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Monday, December 31, 2012

श्री जगन्नाथ पुरी जी की यात्रा - पांचवां दिन

25-12-12  मंगलवार, जगन्नाथ पुरी 

पुरी से भुवनेश्वर : वापसी का दिन :

आज सुबह जब मेरी नींद खुली, मैंने देखा अधिकाँश (बच्चों को छोड़कर) जगे हुए हैं। हालांकि हमने अपनी सारी पैकिंग रात में ही कर ली थी, फिर भी सभी को चौकस करने में कुछ वक़्त लगा। तभी पुजारी मामा, मामी के साथ आ गए। दरअसल पुजारी मामा ने ही हमारे लिए होटल में कमरा और घूमने के लिए गाडी का इंतज़ाम पहले ही करवा दिया था। उनके सानिध्य से हमें बहुत ही प्रसन्नता और सुखद अनुभूति हुई। चाय-नाश्ते के बाद मामा-मामी अपने होटल चले गए।

फिर हम सी-बीच पर चले गए। जहां हमने जलनिधि, सागर महान को नमस्कार कर आशीर्वाद लिया और होटल आकर चेकआउट फाइनल कर के हम भुवनेश्वर के लिए रवाना हो गए। अत्यधिक लगेज के कारण कुछ दिक्कत तो हुई पर हमने मैनेज कर लिया। भुवनेश्वर जाते रास्ते में हम श्री साक्षी-गोपाल के मंदिर में दर्शन को गए जहाँ पण्डों ने हमें घेर लिया और बिना हमारे आग्रह और इजाज़त के हमें इधर-उधर ले जाने लगे। हमें शंका हो गई कि हम ठगों के बीच फंस गए हैं। हमारी शंका निर्मूल नहीं थी। एक पण्डा जी हमें दर्शन करने से पहले "रजिस्ट्रेशन ऑफिस" में ले आये और वहाँ मौजूद पण्डा जी (क्लर्क) ने तुरंत अपने डेस्क में से खाता-बही निकाल कर हमें 'दर्शन करने देने के' अपने "रेट" को बतलाने लगे। डेढ़ लाख! दो लाख। फिर हज़ार, फिर सौ ...!! मैं उठ कर पण्डों के विरोध के बावजूद, कमल और बाकी लोगों की तरफ संकेत कर स्वयं मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर गया। वहाँ पहले से मौजूद दर्शनार्थियों में जा मिला, जहाँ, वहाँ मौजूद पण्डों ने मुझे उपस्थित भक्तों के परिवार का सदस्य समझा, इस प्रकार मैंने भगवान् के दर्शन किये और अपनी बुद्धि के बराबर भगवान की स्तुति-प्रार्थना और निवेदन किया मंदिर की परिक्रमा की और बाहर निकल आया। बाहर जहां हमने अपने जूते-चप्पल उतार कर रखे थे वहां बैठी खाखी वर्दी-सी ड्रेस पहने एक महिला बैठी थी, वो मुझसे प्रति जूते के 10 रुपये मांगने लगी। मेरा जी उचाट हो गया और मन वितृष्णा से भर गया। अफ़सोस से सिर हिलाते मैंने उस महिला से कहा कि अभी सेठ जी आ रहे हैं, उनसे माँगना थोडा ज्यादा ही मिलेगा, ...और मैं वापस आकर गाड़ी में बैठ गया। जिम्मी से मैंने कह दिया कि सभी को कह दे कि मैं बाहर गाडी में बैठा हूँ, वे भी शीघ्र वापस आ जाएँ। लेकिन उन्हें आने में वक़्त लग गया, जिससे मुझे चिंता होने लगी।। उनके आने पर मैंने देर की वजह पूछी तो उनके बताये पता चला कि पण्डों ने सभी को घेर लिया था, जिनसे इनकी काफी बकझक हुई थी। पण्डे अपनी मनोवांछित रकम की मांग पर अड़ गए थे और उनका कहना था कि पैसे चुकाए बिना वे किसी को नहीं जाने देंगे !! इस बात पर कमल को काफी कष्ट हुआ और महिलायें भी काफी त्रस्त हो गयीं थीं। आखिरकार 365/ रुपये दे कर कमल ने जान छुड़ाई!! तब हमने फैसला कर लिया कि अब हम इस यात्रा में किसी मंदिर में नहीं जायेंगे।

भारी मन से हम भुवनेश्वर के लिए चले। रास्ते में हमने धौलागिरी देखा। फिर भुवनेश्वर पहुँच कर एक रेस्टुरेंट में हमने लंच किया। फिर खण्डगिरी देखा। इतने में काफी शाम हो गई थी जिसके वजह से  हम अपनी महिलाओं को अपने वादे के मुताबिक शौपिंग नहीं करा सके। गाडी का समय हो गया था। अत: हम भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन पहुंचे। और प्लेटफोर्म पर एक खाली स्थान देख कर गाड़ी से सभी सामान उतारकर उस स्थान पर रखकर वहीँ बैठ गए और गाडी की प्रतीक्षा करते समय बिताने के लिए प्लेटफोर्म पर घूमने लगे। भुवनेश्वर का रेलवे प्लेटफोर्म काफी स्वच्छ और सुन्दर लगा। यहाँ हमने चारु ड्राईवर को उसके गाडी का किराया और कुछ बख्शीश दे, उसका शुक्रिया अदा कर विदा कर दिया।

ठीक शाम के 7 बजे हमारी गाड़ी "गरीबरथ" प्लेटफोर्म नंबर-1 पर आकर खड़ी हो गयी। G7-बोगी पर पहुँच कर हम गाड़ी पर सवार होकर अपने सामानों को व्यवस्थित करके बैठ गए। गाड़ी अपने नियत समय पर राँची के लिए खुल गई।

अभी रात के 10:15 बज रहे हैं। मैं उपरले बर्थ पर बैठा इन पंक्तियों को अपनी नोटबुक में कलम से लिख रहा हूँ। गाड़ी अपनी पूरी रफ़्तार से राँची की ऑर भागी जा रही है। .......................!

गुड-नाईट,
जय जगन्नाथ।
_श्रीकांत तिवारी .
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26-12-2012 बुधवार, हटिया स्टेशन (रांची) प्रातः 06:15

हम सकुशल वापस आ गए। यहाँ धीरू हमारी गाड़ी लेकर आया है। मुझे लड्डू को ठीक 9 बजे स्कूल पहुंचाना है। क्योंकि उसकी परीक्षा है। मैं, माँ, वीणा, लड्डू और धीरू ने लोहरदगा के लिए प्रस्थान किया । रास्ते में कमल का फोन आया मैं अपना बैकपैक (बैग) ट्रेन में ही भूल आया था ("...मेरी चौंथी धक्क!!) जिसे वो संभाल कर राँची ले जा रहा है। आखिर थोड़ी ही देर बाद मुझे डॉक्टर से आँख दिखा कर नया चश्मा लेना था, सो वापस रांची आना ही था। लड्डू को स्कूल पहुंचा कर हम घर आ गये।

01 बजे दोपहर को मैं धीरू के साथ फिर रांची चला गया।

.....................................इति.......................................

श्रीकांत .