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Saturday, February 2, 2013

कोई हौले से हंसा।

कोई हौले से हंसा।
पढने में एक सीधा सा वाक्य है। लेकिन किसी कथानक के चित्रण में, किसी ड्रैमेटिक सीन को यही सीधा सा वाक्य 'बहुत ही ख़ास' अहसाह भरा बना देता है। श्री सुरेन्द्रमोहन पाठक सर के  उपन्यासों में इस वाक्य से दो बार मुलाकात होती है। ...जैसे किसी की खिल्ली उड़ाने के लिए। जिसे कथानक के हीरो की नज़र से गीदड़भभकी समझा जाता है। हीरो इसे इग्नोर कर देता है। लकिन किसी गुंडे, मवाली के सर पर सवार हीरो पक्ष जब हावी होता है, उस वक़्त यही वाक्य शत्रु का बल हरण कर लेता-सा प्रतीत होता है। एक साधारण से वाक्य से भी यूँ सिहरन पैदा हो जाती है! हयूमन साइकोलोजी की इतनी सटीक व्याख्या करती ऐसी पंक्ति हम और कहीं नहीं पाते ... 

_श्री .