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Wednesday, January 23, 2013

बचपन की याद से स्फूर्ति

23,फ़रवरी,2013 बुधवार लोहरदगा

बचपन की याद से कितनी स्फूर्ति आ जाती है!!
मुझे याद है जब मैं बिछावन पर आराम करते बाबूजी की देह पर कैसे चढ़कर उनके गुदगुदे पेट पर बैठ जाता था! बाबूजी मुझे अपनी छाती से भींच लेते थे। इस क्रम में उनकी बनियान ऊंची सरक जाती थी, उनका गोरा पेट और उनकी नाभि नुमाया हो जाती थी। मैं बालसुलभ चंचलता से उनकी नाभि में ऊँगली डाल देता था, बाबूजी गुदगुदी के मारे हँसते हुए बेहाल हो प्रेम से मुझे चूमते और नाटकीय तरीके से मुझसे कुश्ती लड़ने लगते थे। वे मुझसे हारने का ड्रामा करते और मुझे अपने गँवई अंदाज़ में भोजपुरी के कहावात दोहे के रूप में सुनाते थे :
 "सात भँईंस के सात चभ्भुक्का, सोरह सेर घीऊ खाऊं रे।
 कहाँ बाड़े तोर बाघ मामा, एक तकड़ लड़ जाऊं रे।।"
.....यह याद आते स्वतः मन मुस्काने, ...पर दिल रोने लगता है। अल्पायु में ही हमने अपने बाबूजी को खो दिया। इसके लिए ऊपर वाले से मुझे हमेशा शिकायत बनी रहेगी।

आज गद्दी में स्वर्गीय शिव बाबु की पुण्य तिथि मनाई जा रही है। जहां मेरी बैठने की जगह पर बाबूजी की तस्वीर मुझे मेरी ओर ताकती दिख रही है, वे मुस्कुरा रहे हैं।

_श्री .