उतावले राजकुमार की कहानी कुछ इस प्रकार है :
___दुर्ग देश के तोशल प्रान्त के एक नरेश जब अपनी पुत्री के विवाह के लिए चिंतित थे और योग्य राजकुमार की तलाश में थे तभी उन्हें एक ऐसे युवक के बारे में पता चला जो न केवल शौर्य और प्रज्ञा का धनि था, बल्कि जन-कल्याण के नवीन उपायों के सहारे निर्धन-वंचित लोगों की सेवा भी करता था ! उसके गुणों से प्रभावित होकर तोशल नरेश ने अपनी पुत्री का हाथ उसके हाथ में देने के साथ-साथ उसे अपना राजकुमार भी घोषित कर दिया और अपना उत्तराधिकारी भी ! नरेश के इस निर्णय के उपरांत उस युवक की कीर्ति दुर्ग देश के साथ-साथ पडोसी देशों में भी फ़ैल गई ! उसे एक योग्य, कुशल और सबकी भलाई करने में सक्षम शासक के रूप में देखा जाने लगा ! इस युवक का विशेष गुण था उसकी सत्यनिष्ठा ! उस काल-खण्ड के राजा-महाराजाओं और उनकी शासन पद्धति में इस गुण का विशेष अभाव नज़र आता था ! शासन का दायित्व संभालते ही उस युवक यानि राजकुमार ने प्रजा के कल्याण के लिए कई ऐसे कदम उठाये जो पहले के शासकों ने नहीं उठाये थे, यद्यपि उसके बारे में घोषणाएं करते रहते थे ! सत्यनिष्ठा के साथ प्रजा की सेवा के प्रति समर्पण भाव देखकर तोशल के साथ-साथ अन्य प्रान्तों के गणमान्य नागरिक, विद्वान, व्यापारी, सन्देश वाहक, और टीकाकार इस राजकुमार के सहायक-सहभागी के रूप में कार्य करने के लिए स्वेच्छा से आगे आए !
___तोशल में आनंद की लहर थी ! प्रजा एक उत्कृष्ट शासन की स्थापना का स्वप्न पूरा होते देख रही थी ! अन्य प्रान्तों के शासक उसके प्रति ईर्ष्या से भर उठे ! उन्हें यह भय सताने लगा कि अगर इस राजकुमार की कीर्ति पताका इसी तरह फहराती रही तो वह समस्त दुर्ग देश में लोकप्रिय हो सकता है ! वे उसे अपने लिए बड़ा खतरा मानने लगे ! दुर्ग देश वासी भी उसे उसे भावी शासक के रूप में देखने लगे ! तभी दुर्ग देश के राजा ने भी अपनी पुत्री के स्वयंवर की घोषणा कर दी ! घोषणा में कहा गया था कि राजसी कन्या का वरण करने के लिए आगे आने वालों को युद्ध-कौशल में निपुण होने के साथ-साथ सामान्य नर-नारियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होना चाहिए ! यह वह दौर था जब राजाओं के पास एक से अधिक रानियाँ होना गौरव की बात मानी जाती थी ! उक्त घोषणा होते ही उस राजकुमार ने यह मिथ्या आरोप लगाकर तोशल देश की सत्ता का परित्याग कर दिया कि विधान बनाने वाली परिषद् के अनेक सदस्य उसका सहयोग नहीं कर रहे थे ! तोशल के साथ-साथ दुर्ग देश के लोग हैरान रह गए ! यद्यपि राजकुमार ने यह नहीं प्रकट किया कि वह दुर्ग देश की राजकुमारी के स्वयंवर में भाग लेना चाहता है, लेकिन प्रजा को यह अच्छे से आभास हो गया कि वह इस स्वयंवर के माध्यम से दुर्ग देश का शासक बनने की लालसा से भर उठा है ! शीघ्र ही यह स्पष्ट भी हो गया ! उसने स्वयंवर में भाग लेने की तैयारी कर रहे और उसमें सफल हो सकने वाले राजाओं-महाराजाओं के विरोध में वक्तव्य देने शुरू कर दिए ! वह उन्हें नाकाम, लोभी और कदाचरण में लिप्त करार देने लगा !
___यद्यपि वह बात-बात पर स्वयं को सत्य के प्रति समर्पित बताता, लेकिन प्रतिद्वंद्वी राजाओं की निंदा करने के लिए मिथ्या आरोपों का सहारा लेने में संकोच भी नहीं करता ! एकबार वह गुर्जर प्रांत का भ्रमण करने गया ! इस प्रान्त के बारे में आम धारणा थी कि वह अन्य प्रान्तों की अपेक्षा धन-धान्य से भरपूर और सुखी है, लेकिन उसने प्रचारित किया कि वहाँ तो दुःख-दैन्य-दारिद्र्य का ही वास है ! उसने इस प्रान्त की खुशहाली का वर्णन करने वाले सन्देश वाहकों और टीकाकारों को गुर्जर प्रान्त के नरेश के हाथों की कठपुतली करार दिया ! उसने यह भी चेतावनी दी कि यदि वह दुर्ग देश का स्वामी बना तो इन सन्देश वाहकों और टीकाकारों को कारागार में डाल देगा ! कुछ समय पहले तक वह इन्हीं को अपना मित्र और शुभचिंतक बताया करता था ! उसके आचार-व्यवहार में तेजी से परिवर्तन हो रहा था और वह परिलक्षित भी हो रहा था ! वह कभी स्वयं को याचक और दीन-हीन बताता और सभी के प्रति कटु वचनों का प्रयोग करता ! वह सत्य के प्रति निष्ठावान रहने की सौगंध खाता, लेकिन प्रायः अपने ही वचनों से मुकर जाता ! वह यह दावा करता कि उसका प्रत्येक कार्य प्रजा की अनुमति-अनुशंसा से ही होगा, लेकिन उसने तमाम निर्णय ऐसे लिए जिसमें प्रजा की सहमती तो दूर रही, उनकी किसी भी रूप में भागीदारी भी नहीं रही! वह और उसके दरबारी समय के साथ अपनी आलोचना के प्रति अनुदार होते चले गए ! जो भी उनकी आलोचना करता वे उसे प्रतिद्वंद्वी राजाओं अथवा धनिकों का दूत और भेदिया आदि कहकर आरोपित करते ! उनके इस व्यवहार से दुखी होकर उनके कई साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया ! उनका मानना था कि राजकुमार इस मतिभ्रम से ग्रसित हो गया है कि समस्त दुर्ग देश बस सिर्फ उसे ही पुकार रहा है ! वह यह भी प्रकट करता कि वही एकमात्र उसका उद्धारक है ! वह यह भी प्रकट करता उसके अतिरिक्त अन्य सभी राजा-महाराजा और यहाँ तक कि शासन व्यवस्था से सम्बद्ध संस्थाएं धनिकों के हित में काम कर रहीं हैं !
___विचित्र यह था कि वह अपने सहयोगियों के लिए बड़े भिन्न विधान तय करता और विरोधियों के लिए भिन्न ! उसने अपने एक ऐसे मंत्री के बचाव के लिए बड़ी ही ढिठाई के साथ असत्य का सहारा लिया जिस पर पड़ोसी देश की नारियों से दुर्व्यवहार का आरोप था ! वह खुद को निष्कलंक और निष्कपट बताता, लेकिन तब खीज उठता जब उसकी त्रुटियों का उल्लेख किया जाता ! वह साधारण वेशधारी अपने सुरक्षा प्रहरियों के साथ रहता, लेकिन प्रकट यही करता कि उसे तो प्रहरियों की आवश्यकता ही नहीं है ! वह लोक स्वराज की अपनी संहिता के अनुरूप चलने का प्रचार करता, लेकिन अपने चंद दरबारियों के साथ मिलकर मनमाने निर्णय लेता ! इस उतावले राजकुमार की कहानी का अंत अभी नहीं बताया जा सकता, क्योंकि हम समझ गए हैं कि अभी इसका अंत अभी हुआ ही नहीं है!
(d.j.rajivsachan08042014@shrikanttiwari.blogspot.com)
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हाय रे, हवाईया के टूटल चप्पल आउ फटल मफलर!!
हम त लुटईनी बीच बजरिया, अब ना जीयब, राजा!
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ज़माने, धात तेरे की!
_श्री.