मुझे हैरत है इन नामोंनिहाद,
मशहूर-ओ-आम शुद्ध भारतीय सुपर स्टार्स,चाहे वो किसी भी क्षेत्र के हों, की
अंग्रेजी-प्रेम और हिंदी की उपेक्षा पर! कई ऐसे लोग जो खाते तो हिंदी का
हैं पर गाते हैं अंग्रेजी का, अंग्रेजी बोल कर। हिंदी में सवाल करो वो
अंग्रेजी में उत्तर देते हैं। फिल्मों की नगरी में सिवाय अमित जी, धरम पा जी, और दिलीप साब की
तरह जो अपनी मातृभाषा की खूब कद्र जानते और करते हैं को छोड़ कर, बाकी के
सारे के सारे हिन्दुस्तानी जो हिंदी क्षेत्र के हैं पता नहीं क्यों
अंग्रेजी के भूत से इतना डरते हैं की उसकी गुलामी करने और उसका मैला चाटने से बाज़ नहीं आते। फिल्म 'कहानी'(विद्या बालन) की पार्टी के विडियो में भोजपुरी फिल्म के सुपरस्टार रवि किशन भी
फिल्म की तारीफ़ अंग्रेजी में यूँ करते नज़र आते हैं जैसे अब उन्हें बिहारी
कूड़ेदान से मुक्ति मिल गई हो और अंग्रेजी बोलकर वे जताना चाह रहे हों कि
-'हे बॉलीवुड भगवान् मैंने तुम्हारे लिए ही तो भोजपुरी को माध्यम बनाया था,
अब तो मेरी तरफ अपनी नज़रें ईनायत करने की कृपा करो, देखो अब तो मैं भी
फर्ल-फर्ल अंग्रेजी बोलने लगा!!" जबकि इस फिल्म के निर्देशक सुजॉय घोष बिना हिचके अपने बंगाली होने के बावजूद हिंदी में ही बोलते दिखे। भोजपुरी लोक गीतों की गायिका कल्पना ने नाम-मशहूरियत-दौलत से मालामाल होने के बाद जब अपना पहला इंटरव्यू दिया तो कैमरे को देखते ही उनकी भंगिमा बदल गई, जैसे उनका पुराना गुलाम रहा हो। फिर जब सवाल पूछे गए तो उनके मुँह से अंग्रेजी की धार फुट पड़ी, यूँ बोला कि मडोना को मुँह चिढा रही हो। _हैं न अंग्रेजी की महीमा?
अंग्रेजी जानना और बोलना कतई बुरी बात नहीं, न ही मैं इसके खिआफ़ किसी प्रकार का जिहाद कर रहा हूँ। मैं सिर्फ अपने 'नायकों', भले चाहे वो किसी भी फील्ड के हों, सिर्फ ये गुजारिश करना चाहता हूँ कि वो हिंदी की नाकद्री और उपेक्षा बंद करें। इसी विषय मैंने कुछ लिखा है; जिसे मैंने
"क्रांतिकारी सोच जो लोगो का स्वाभिमान जगा दे"/facebook के साथ शेयर किया :>>
"क्रांतिकारी सोच जो लोगो का स्वाभिमान जगा दे"
"जो लोग अंग्रेजी बोलने से खुद को विद्वान मानते हैं और हिन्दी में अपनी
तौहीनी समझते हैं........वो ये जान लें कि अंग्रेज मुल्कों में Toilet साफ
करने वाला भी अंग्रेजी बोलता है, अतः भाषा से किसी की विद्वता परिभाषित नही
होती....
मात्रभाषा हिन्दी ही हमारी पहचान है॥जय हिन्द!"..............................................<यह मेरी नहीं क्रांतिकारी सोच की वाणी है।
मैंने जो कहा है वो निम्नलिखित है: >>>
"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।।"
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
ऐसी भाषा का क्या फायदा जिसके लिए हर वक़्त डिक्शनरी खोल कर रखना पड़ता है!?
जिसे आप खूब जतन से लिखें और बोलें पर उसका कोई कद्र न करे!???? अच्छा है।
हमारे पास विकल्प है अपनी पसंदीदा भाषा में अपनी बात कहने का मौका है। इस
सुविधा के लिए जो इंजिनियर जिम्मेवार है उसका कोटि-कोटि नमन और अभिवादन।
नमस्ते महोदय !! अंग्रेजी भले भाँड में न जाये, पर हिंदी पर ऐतराज़ बंद करे।
सबसे अच्छी भाषा वो ही है जो आपको अपने आपको अभिव्यक्त करने का सबसे
शानदार और सबसे आसान अवसर देता हो। मैं अंग्रेजी नहीं जानता, जानना चाहता
भी नहीं, इसका ये मतलब नहीं कि मैं बेवक़ूफ़ हूँ। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने
नारा दिया था "हिंदी - हिन्दू - हिन्दुस्तान!" आज के परवेश में इसे
सेक्युलरवाद से जोड़कर इसकी खिल्ली उडाना सबसे आसन काम है, पर इसकी मजबूती,
गरिमा और विशालता को चुनौती देना इतना आसान नहीं है। ध्यान रखियेगा, अगर आप
हिन्दुस्तानी हैं।
मैं हिंदी को मानने वाला व्यक्ति हूँ। अपनी
उपासना मैं हिंदी में करता हूँ। असली बात तो ये है कि मुझे ठीक से अंग्रेजी
नहीं आती। आप में से कुछ लोगों के लिए मुझ जैसे अंग्रेजी न जानने वालों के
लिए अस्पृश्यता (Untouchabilty / Untouchable) का आभास होता होगा। पर मुझे
इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है। अन्य साधनों की तरह अंग्रेजी का प्रयोग
मैं कम करता हूँ। और मेरा हमेशा ये प्रयास रहेगा कि में हिंदी "देवनागरी"
में ही लिखुँ , और लिखुँगा। किन्हीं को ऐतराज़ हो तो पहले अपनी स्थिति और
अवस्था को पहले जांच लेवें, और आईने में अपनी शक्ल देख लेंवें। अगर हिंदी
भाषी भारतीय हैं, तो आपकी मोनोदशा खेदजनक है, पर शायद इससे आपको कोई फर्क
नहीं पड़ता _ये ज्यादा खेदजनक है। मुझे अंग्रेजी नहीं आती पर आप लोगों के
लेखन के खिलाफ मैं बिलकुल नहीं हूँ। कुछ जतन कर के काम चला लेता हूँ।
क्योंकि चलाने की मजबूरी है। श्रीमान को सर हिंदीवाले भी बोलते हैं, इसलिए
ज्यादा माथा खराब करने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए। आप जारी रहिये। हिंदी
की कद्र करने की कोशिश कीजिये। वैसे ये आपलोगों के लिए मुश्किल काम है।
अंग्रेजी का जामा पहनकर आप खुद को परिष्कृत समझें। पर हिंदी लेखन को हिकारत
से देखने की धृष्टता न करें।
जय हिन्द!!!
-श्रीकांत तिवारी.
राहत की बात है कि मेरे उपरोक्त लेखन को सराहा जा रहा है।