मैं तो नहीं हूँ इंसानों में ...
बिकता हूँ मैं तो इन दुकानों में ...(2)
दुनिया बनाई मैंने हाथों से ...`ए ...
मिटटी से नहीं, ज़ज्बातों से ...
फिर रहा हूँ ढूंढता
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
(कोरस में ...)...ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
तेरा ही साया बनके
तेरे साथ चला मैं
जब धूप आई तेरे सर पे
तो छाँव बना मैं ...(2)
राहों में तेरी रहा मैं
हमसफ़र की तरहा ............आ ...
उलझा है फिर भी तू जालों में
ढूंढे सवालों को जवाबों में
खोया हुआ है तू कहाँ
तू ...कहाँ
तू कहाँ .......
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
मुझसे बने हैं ये पंछी
ये बहता पानी
ले के ज़मीं से आसमाँ तक
मेरी ही कहानी ...(2)
तू भी है मुझसे बना
पाटे मुझे क्यूँ यहाँ
मेरी बनाई तकदीरें हैं ...(तकदीरें हैं)
साँसों भरी ये तस्वीरें हैं
फिर भी है क्यूँ बेजुबां
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
.........
संगीत:मीत ब्रोस अनजान)
श्रीजगन्नाथपुरीजी की यात्रा में पूजा-आराधना-प्रार्थना-निवेदन-दर्शन-स्तुति एवं प्रसाद प्राप्ति से मिलने वाली अलौकिक संतुष्टि के सन्दर्भ में मैं कुछ कहे बिना नहीं रह सकता। इसे अभिव्यक्त करने में मुझसे हो सकता है कहीं धृष्टता का आभास हो अत: मैं मनोज कुमार की फिल्म :"यादगार" से महेन्द्र कपूर का गाया और मनोज कुमार पर फिल्माया गीत/गाने का सहारा लेता हूँ, जो कम-से-कम मेरी कुछ भड़ास को शांत करते हुए काफी आर्त-भाव से मेरी अभिव्यक्ति को सटीक शब्द (तो अवश्य ही) देती है:
(या हो सकता है मेरी निष्ठा में ही कोई खोट हो)
_श्री .
बिकता हूँ मैं तो इन दुकानों में ...(2)
दुनिया बनाई मैंने हाथों से ...`ए ...
मिटटी से नहीं, ज़ज्बातों से ...
फिर रहा हूँ ढूंढता
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
(कोरस में ...)...ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
तेरा ही साया बनके
तेरे साथ चला मैं
जब धूप आई तेरे सर पे
तो छाँव बना मैं ...(2)
राहों में तेरी रहा मैं
हमसफ़र की तरहा ............आ ...
उलझा है फिर भी तू जालों में
ढूंढे सवालों को जवाबों में
खोया हुआ है तू कहाँ
तू ...कहाँ
तू कहाँ .......
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
मुझसे बने हैं ये पंछी
ये बहता पानी
ले के ज़मीं से आसमाँ तक
मेरी ही कहानी ...(2)
तू भी है मुझसे बना
पाटे मुझे क्यूँ यहाँ
मेरी बनाई तकदीरें हैं ...(तकदीरें हैं)
साँसों भरी ये तस्वीरें हैं
फिर भी है क्यूँ बेजुबां
मेरे निशाँ
हैं कहाँ
मेरे निशाँ
हैं ...कहाँ
मेरे निशाँ
ओ ...हो ...हो मेरे निशाँ
मेरे निशाँ
ओहो ..हो ..हो मेरे निशाँ
.........
संगीत:मीत ब्रोस अनजान)
तताकथित खुदाओं, भगवानों के नाम :
श्रीजगन्नाथपुरीजी की यात्रा में पूजा-आराधना-प्रार्थना-निवेदन-दर्शन-स्तुति एवं प्रसाद प्राप्ति से मिलने वाली अलौकिक संतुष्टि के सन्दर्भ में मैं कुछ कहे बिना नहीं रह सकता। इसे अभिव्यक्त करने में मुझसे हो सकता है कहीं धृष्टता का आभास हो अत: मैं मनोज कुमार की फिल्म :"यादगार" से महेन्द्र कपूर का गाया और मनोज कुमार पर फिल्माया गीत/गाने का सहारा लेता हूँ, जो कम-से-कम मेरी कुछ भड़ास को शांत करते हुए काफी आर्त-भाव से मेरी अभिव्यक्ति को सटीक शब्द (तो अवश्य ही) देती है:
"आए जहां भगवान् से पहले किसी धनवान का नाम,
उस मन्दिर के द्वार खड़े सब रोवें कृष्ण और राम !
धनवान को पहले मिले भगवान् के दर्शन,
दर्शन को तरसता रहे जो भक्त हो निर्धन !
ये दक्षिणा की रीत, ये पण्डों के छलावे,
दुकान में बिकते हुए मन्दिर के चढ़ावे !
ऐसे ही अगर ..........................................................,
ऐसे ही अगर धर्म का व्यापार चलेगा,
भगवान् का दुनिया में कोई नाम न लेगा !
ऐसे जगह पे जा के तू कुछ भी न पायेगा,
भगवान् ऐसा मन्दिर खुद छोड़ जाएगा !
.......................................छोड़ जाएगा !!
.......................................छोड़ जाएगा !!!"
धनवान पूछता है >: " भगवान् .... मंदिर में नहीं तो और कहाँ मिलेगा?"
"वो खेत में मिलेगा, खलिहान में मिलेगा,
भगवान् तो ऐ बंदे ....., इंसान में मिलेगा !"
...(या हो सकता है मेरी निष्ठा में ही कोई खोट हो)
_श्री .