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Saturday, February 9, 2013

भावी प्रबल

"सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।।'
 - [श्रीरामचरितमानस/अयोध्याकांड।।/दोहा-171।।]

 मुनिनाथ ने बिलखकर (दुखी होकर) कहा - हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाताके हाथ हैं।।171।।

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~ सुन्दरकाण्ड ~
 जिमि अमोघ रघुबर कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।1/4।।

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखी कोसलपुर राजा।।4/1।।

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।60।।
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सियावर रामचंद्र जी की जय!
पवनसुत हनुमान जी की जय!
उमापति महादेव जी की जय!
_ श्री .