दो कलियाँ !! (1968)
बचपन की एक और मीठी याद !!
जब हमने इस फिल्म को पहली दफा देखा था तब हम "बेबी सोनियां' (रणवीर कपूर की माताश्री) से भी छोटे थे!
पहले सिनेमा घरों में आगामी फिल्म का ट्रेलर दिखाना एक व्यावसायिक आवश्यकता थी, और एक फैशन भी! फिल्म्स मनोरंजन का एक एकलौता और सबसे सस्ता माध्यम हुआ करता था! दर्शकों को 'अभी देख रही फिल्म' से ज्यादा मज़ा और रूचि प्रत्याशित 'ट्रेलर' को देखने में होती थी! दोस्तों से सुनकर की चालु फिल्म के मध्यांतर में फलाना-फलाना फिल्मों का ट्रेलर दिखया जा रहा है, ......दो-दो , तीन-तीन ट्रेलरर्स दिखाए जा रहे हैं'!!__सुनकर 'चालु' वाहियात फिल्म को देखने केलिए भी अच्छी-खासी भीड़ हो जाया करती थी जो ट्रेलर पेश होने पर उसकी घोषणा करने वाली वाली प्रमाण-पत्र की स्लाइड देखते ही यूँ हर्षित होकर जोश से हो-हल्ला करते, सीटियाँ मारते और तालियाँ पीटते थे जैसे वाहियात फिल्म की टिकट का पैसा वसूल हो गया हो! कभी-कभी तो सुपर हिट फिल्म के बीच दिखाई गई वाहियात फिल्म के ट्रेलर से भी वही शोर शराबा और हर्ष ध्वनी होती थी! ये क्रेज़ था ट्रेल्लर्स का !! हमने भी किसी अच्छी या वाहियात फिल्म में "दो कलियाँ" का ट्रेलर देखा था, और फैसला हो गया था कि इसे नहीं छोड़ेंगे! "...महमुदवा के देखना हउ जी, मामू मुरुख=(खूब) हंसईले हउ "नउवा" (हज्जाम) बइन के !! लास्ट में तो मार-पीट भी हई ईयार!!" जब फिल्म लग जाती तो (फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने की स्वतंत्रता नहीं थी !) योजनायें बनने लगतीं! सिर्फ बच्चों और नौजवानों की ही नहीं बल्कि घर के मुखियाओं का या बुद्धिजीवी वर्ग के मुखियाओं के भी बैठकें यूँ लगतीं जैसे किसी गंभीर सामजिक मुद्दे के उचित निर्णय पर पहुँचने में बहस हो रही हो, और जिसमे शिरकत करना हर बच्चे-बूढ़े और जवान का नैतिक दायित्व हो! _कब देखना है? _कौन सा शो देखना है? _किस 'क्लास' में बैठकर देखना है? _फिल्म की टिकट कौन कटाएगा? __<< ये सबसे अहम् बात होती थी! घर की लड़कियां, महिलायें, सहेलियां कैसा श्रृंगार करूँ?_कौन सी ड्रेस पहनूं जैसे प्रश्नों को सुलझाने हफ़्तों लगा देती थीं! उन दिनों सिनेमा के बुकिंग क्लर्क्स की शान ये थी कि उसकी एक 'पहचानती नज़र'; एक 'टच !'_के लिए लोग, फिल्म के हीरो से जादा उसमे दिलचस्पी लेते थे! उससे जान-पहचान में सबसे बड़ी शान होती थी! वह सोसाइटी के हाई क्लास के वर्ग का सम्मानित सदस्य हुआ करता था! जहाँ बैठता, उसके चारों तरफ मजमां-सा लग जाता था! झूठ तो झूठ ही सही, कई लोग तो उससे अपनी दोस्ती और रिश्तेदारी तक के किस्से सुनाकर रौब गांठा करते थे! बुकिंग विंडो से टिकट कटा पाने में सफल होने वाले लोगों की भी एक ख़ास जामात हुआ करती थी, जिसने कटा लिया सबकी इर्ष्य भरी नज़रों का पात्र बन जाता, लेकिन अपनी मित्र मंडली में हाँफते हुए और अपनी उंखड़ी साँसों पर काबू पाते वो रौब से छाती फुलाता, अपनी नुची-चुथी बाल, बदन और कमीज़ की सिलवटें झाड़ता और कड़क कर पान वाले से अपन पान मांगता, और यूँ चबाकर थूकता जैसे सिकंदर ने अभी-अभी दिलावर को पीट दिया हो !! .....यह फिल्म उस ज़मानें की हैं जब मुफलिसी की भी खासी इज्ज़त हुआ करती थी! ..और आज !! वही टिकट कलर्क जिंदा तो है पर यह शहर उसे नहीं पचानता! बल्कि वह अब अपनी खो चुकी पुरानी पहचान के लिए सबको देख रहा है, "...ये वही तो है जो हर बार मेरे घर के बाहर खड़ा रहकर पैसे देने को सदैव तैयार ताकि उसे टिकट विंडो की मारा-मारी से न गुजरना पड़े, और जो लोगों को बता सके "..अरे हाँह:! मामू टिकट नई रखतई, जानई नई हई का बेट्टा हमरा?" लेकिन अब कोई उसे उपेक्षा से भी देखने को राज़ी नहीं! .......
Do Kaliyan is 1968 film directed by R. Krishnan and S. Panju. It stars Mala Sinha, Biswajeet, Mehmood and Neetu Singh.
Do Kaliyaan
Cast
Mala Sinha as Kiran
Biswajeet as Shekhar (as Biswajit)
Mehmood as Mahesh
Om Prakash as Kiran's Father
Nigar Sultana as Kiran's mother
Gitanjali (as Githanjali)
Manorama as Madhumati
Hiralal
Umesh Sharma
Shabnam
Bharathi
Sujatha
Neetu Singh as Ganga / Jamuna (as Baby Sonia)
____________
Directed by R. Krishnan
S. Panju
Produced by Mukhram Sharma(dialogue)
Jawar N. Sitaram (Screenplay/Story)
____________
Music by Ravi
Cinematography S. Maruthi Rao
Editing by S. Panjabi
R. Vittal
Release date(s) 1968
Country India
Language Hindi
खुबसूरत गानों, और अच्छी कहानी युक्त यह सुन्दर फिल्म पूरी-की-पूरी YouTube पर उपलब्ध है!
_श्री .
बचपन की एक और मीठी याद !!
जब हमने इस फिल्म को पहली दफा देखा था तब हम "बेबी सोनियां' (रणवीर कपूर की माताश्री) से भी छोटे थे!
पहले सिनेमा घरों में आगामी फिल्म का ट्रेलर दिखाना एक व्यावसायिक आवश्यकता थी, और एक फैशन भी! फिल्म्स मनोरंजन का एक एकलौता और सबसे सस्ता माध्यम हुआ करता था! दर्शकों को 'अभी देख रही फिल्म' से ज्यादा मज़ा और रूचि प्रत्याशित 'ट्रेलर' को देखने में होती थी! दोस्तों से सुनकर की चालु फिल्म के मध्यांतर में फलाना-फलाना फिल्मों का ट्रेलर दिखया जा रहा है, ......दो-दो , तीन-तीन ट्रेलरर्स दिखाए जा रहे हैं'!!__सुनकर 'चालु' वाहियात फिल्म को देखने केलिए भी अच्छी-खासी भीड़ हो जाया करती थी जो ट्रेलर पेश होने पर उसकी घोषणा करने वाली वाली प्रमाण-पत्र की स्लाइड देखते ही यूँ हर्षित होकर जोश से हो-हल्ला करते, सीटियाँ मारते और तालियाँ पीटते थे जैसे वाहियात फिल्म की टिकट का पैसा वसूल हो गया हो! कभी-कभी तो सुपर हिट फिल्म के बीच दिखाई गई वाहियात फिल्म के ट्रेलर से भी वही शोर शराबा और हर्ष ध्वनी होती थी! ये क्रेज़ था ट्रेल्लर्स का !! हमने भी किसी अच्छी या वाहियात फिल्म में "दो कलियाँ" का ट्रेलर देखा था, और फैसला हो गया था कि इसे नहीं छोड़ेंगे! "...महमुदवा के देखना हउ जी, मामू मुरुख=(खूब) हंसईले हउ "नउवा" (हज्जाम) बइन के !! लास्ट में तो मार-पीट भी हई ईयार!!" जब फिल्म लग जाती तो (फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने की स्वतंत्रता नहीं थी !) योजनायें बनने लगतीं! सिर्फ बच्चों और नौजवानों की ही नहीं बल्कि घर के मुखियाओं का या बुद्धिजीवी वर्ग के मुखियाओं के भी बैठकें यूँ लगतीं जैसे किसी गंभीर सामजिक मुद्दे के उचित निर्णय पर पहुँचने में बहस हो रही हो, और जिसमे शिरकत करना हर बच्चे-बूढ़े और जवान का नैतिक दायित्व हो! _कब देखना है? _कौन सा शो देखना है? _किस 'क्लास' में बैठकर देखना है? _फिल्म की टिकट कौन कटाएगा? __<< ये सबसे अहम् बात होती थी! घर की लड़कियां, महिलायें, सहेलियां कैसा श्रृंगार करूँ?_कौन सी ड्रेस पहनूं जैसे प्रश्नों को सुलझाने हफ़्तों लगा देती थीं! उन दिनों सिनेमा के बुकिंग क्लर्क्स की शान ये थी कि उसकी एक 'पहचानती नज़र'; एक 'टच !'_के लिए लोग, फिल्म के हीरो से जादा उसमे दिलचस्पी लेते थे! उससे जान-पहचान में सबसे बड़ी शान होती थी! वह सोसाइटी के हाई क्लास के वर्ग का सम्मानित सदस्य हुआ करता था! जहाँ बैठता, उसके चारों तरफ मजमां-सा लग जाता था! झूठ तो झूठ ही सही, कई लोग तो उससे अपनी दोस्ती और रिश्तेदारी तक के किस्से सुनाकर रौब गांठा करते थे! बुकिंग विंडो से टिकट कटा पाने में सफल होने वाले लोगों की भी एक ख़ास जामात हुआ करती थी, जिसने कटा लिया सबकी इर्ष्य भरी नज़रों का पात्र बन जाता, लेकिन अपनी मित्र मंडली में हाँफते हुए और अपनी उंखड़ी साँसों पर काबू पाते वो रौब से छाती फुलाता, अपनी नुची-चुथी बाल, बदन और कमीज़ की सिलवटें झाड़ता और कड़क कर पान वाले से अपन पान मांगता, और यूँ चबाकर थूकता जैसे सिकंदर ने अभी-अभी दिलावर को पीट दिया हो !! .....यह फिल्म उस ज़मानें की हैं जब मुफलिसी की भी खासी इज्ज़त हुआ करती थी! ..और आज !! वही टिकट कलर्क जिंदा तो है पर यह शहर उसे नहीं पचानता! बल्कि वह अब अपनी खो चुकी पुरानी पहचान के लिए सबको देख रहा है, "...ये वही तो है जो हर बार मेरे घर के बाहर खड़ा रहकर पैसे देने को सदैव तैयार ताकि उसे टिकट विंडो की मारा-मारी से न गुजरना पड़े, और जो लोगों को बता सके "..अरे हाँह:! मामू टिकट नई रखतई, जानई नई हई का बेट्टा हमरा?" लेकिन अब कोई उसे उपेक्षा से भी देखने को राज़ी नहीं! .......
Do Kaliyan is 1968 film directed by R. Krishnan and S. Panju. It stars Mala Sinha, Biswajeet, Mehmood and Neetu Singh.
Do Kaliyaan
Cast
Mala Sinha as Kiran
Biswajeet as Shekhar (as Biswajit)
Mehmood as Mahesh
Om Prakash as Kiran's Father
Nigar Sultana as Kiran's mother
Gitanjali (as Githanjali)
Manorama as Madhumati
Hiralal
Umesh Sharma
Shabnam
Bharathi
Sujatha
Neetu Singh as Ganga / Jamuna (as Baby Sonia)
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Directed by R. Krishnan
S. Panju
Produced by Mukhram Sharma(dialogue)
Jawar N. Sitaram (Screenplay/Story)
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Music by Ravi
Cinematography S. Maruthi Rao
Editing by S. Panjabi
R. Vittal
Release date(s) 1968
Country India
Language Hindi
खुबसूरत गानों, और अच्छी कहानी युक्त यह सुन्दर फिल्म पूरी-की-पूरी YouTube पर उपलब्ध है!
_श्री .