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Sunday, May 5, 2013

ओस की बूँद - राही मासूम रजा

"ओस की बूँद"
लेखक _ राही मासूम रजा
मैंने अभी कुछ दिनों पहले (यात्रा के पहले ही दिन यानी 25-अप्रैल को ही गाडी में पूरा पढ़ लिया था!) ही पूर्ण किया!
कैसा लगा?
यह एक स्वाभाविक प्रश्न है जिसे हरेक मित्र पूछना चाहेंगे; जिन्होनें मुझे इस किताब को पढने की प्रेरणा दी, और पहले इसे ही पढने को प्रेरित किया! __अगर साफगोई से काम लूँ और अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को निष्पक्ष, निश्छल, और निर्मल मन से सच और सिर्फ सच बोलूं तो ये बोलूँगा :



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क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः 
च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं चः 
ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ हं  .......................................
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“GIVE ME SOME SUN SHINE, GIVE ME SOME RAYS,…..GIVE ME ANOTHER CHANCE  _I WANNA GROWN UP ONCE AGAIN………….!” 

किसी की शझ में कुछ नहीं आया तो मैं क्या करूँ ! ऐएं!!?