ओह ! प्रभात खबर ! कर दी न गड़बड़ !!
प्रभात खबर के रांची संस्करण में मेरी कल पोस्ट की गई और E.mail किये गए पत्र का वो "हिस्सा" मात्र प्रकाशित किया गया है जिसे पढने पर ये प्रतीत होता है कि मैंने वो पत्र निर्मलजीत सिंह उर्फ़ निर्मल बाबा के हक में , पक्ष में लिखा है !! जो कि कदापि सत्य नहीं.
मैं किसी भी दृष्टिकोण से इस तथाकथित निर्मल बाबा के पक्ष में नहीं हूँ. लेकिन प्रभात खबर में इसे यूँ छपा गया है जैसे मैं ही एक मात्र निर्मल बाबा का पक्षधर हूँ. ऐसा समझना मेरे प्रति ठीक नहीं. मैं इस तरह की पत्रकारिता का विरोध करता हूँ. प्रभात खबर को चाहिए कि वो मेरे द्वारा पोस्ट कि गयी मेरी प्रतिक्रिया को आद्योपांत छापे जिससे पूरी बात स्पष्ट हो. यूँ भ्रामकता फैलाना सच्ची पत्रकारिता नहीं.
कल से आज तक में निर्मलजीत सिंह उर्फ़ निर्मल बाबा के विरुद्ध कुछ कड़े कदम जनता द्वारा उठए गए. जिससे लगता है "शुरुआत" हो गयी. आगाज़ हो गया. अब अंजाम देखना है.
आश्चर्य है की "निर्मल दरबार" में सम्मिलित बाबा के भक्त जो टीवी पर उनसे लाभान्वित होने की बात बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में स्वीकारते थे वे अब कहाँ हैं!? वे क्यों सामने नहीं आते!? क्यों सामने नहीं आ कर "बाबा" का समर्थन करते!? अभी तक सिर्फ बाबा के विरोध में ही लोग आगे आये हैं. उन्हें किस बात का डर है? अब तक या आज ही सुबह टीवी पर दिखये गए बाबा के प्रचार कार्यक्रम में जो लोग बाबा से लाभान्वित होने की बात "निर्मल दरबार"में स्वीकार किये वे पिछले १ सप्ताह से कहाँ गायब हो गए? क्या वो झूठे लोग थे जिन्होंने बाबा से पैसे खा कर बाबा के समर्थन में टीवी पर जो कहने को सिखाया गया वो बोल दिया!!??? अब तक एक भी बाबा का समर्थक अपनी मर्ज़ी से खुलेआम सामने नहीं आया है. और ये बात "निर्मल दरबार" और "निर्मलजीत सिंह उर्फ़ निर्मल बाबा" को और गहरे शक के घेरे में घेरने के लिए काफी है.
जनता क्यूँ इतनी अंधी हुई? समझ से परे है. अब सब कुछ लुटा कर चेते तो क्या चेते. पर आने वाली नस्लें ये जान लें कि जब कोई व्यक्ति ये दावा करता है कि उसके बताये हुए "टोटके" आजमाने से उसका भला हो जायेगा तो वो कपटी है. और उससे जितनी जल्दी हो किनारा कर सिर्फ और सिर्फ अपने पुरुषार्थ पर विश्वास कर के अपना काम करे. क्योंकि नीयति तो अटल है. किसीको भी हक से ज्यादा और तकदीर से पहले न मिला है न मिलेगा.
-श्रीकांत तिवारी -१७ अप्रैल २०१२ -लोहरदगा.