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Monday, January 28, 2013

सबसे पहले हैं भारत वासी

यारों! 
कोई मेरे को बतायेगा?... कि जब भी मैं तिरंगे को देखता हूँ, तो मेरे रोंगटे क्यूँ खड़े हो जाते हैं? ...जब भी मैं कोई देशभक्ति के गीत सुनता हूँ, जब भी मैं, ...ये अमर बोल सुनता-देखता हूँ मुझे रोष, रोमांच के आवेश में मेरे आंसू क्यूँ अनवरत बहने लगते हैं?  जैसे :-
>>>"हकीकत"(धरम-पा जी) का सच्चा-पावन, वीरगति को समर्पित मोहम्मद रफ़ी साहब के गाया >>>
"कर चले हम फ़िदा जानें-तन साथियों, ...अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..........." यह गाना जब तक मेरी आँखों के सामने चलता है, गाने के साथ-साथ मेरे आंसू भी चल निकलते हैं, मेरे आंसू, मानो मेरे से, मेरे शरीर से, मुझसे ज्यादा प्रबल हों!

>>>"मेरे देश की धरती .." की वह पंक्तियाँ जिसे श्री महेन्द्र कपूर साहब और 'भारत भाई'_मनोज कुमार जी पेश करते हैं_
"......गांधी सुभास .., टैगोर , तिलक ऐसे हैं चमन के वीर यहाँ ............,
रंग हरा, हरी सिंह नलवे से ..............,
रंग लाल है, लाल बहादुर से..............,
रंग बना बसंती भगत सिंह,
रंग अमन का वीर जवाहर से!"

मेरे देश की धरती .. "

 ************************
 >>> 'पूरब सुर पश्चिम' का वो गीत: ....'दुल्हन चली',...में जब ये लाइनें आतीं हैं:
"देश-प्रेम ही आज़ादी की इस दुल्हनिया का वर है,
इस अलबेली दुल्हन का सिन्दूर सुहाग अमर है,
माता है कस्तूरबा जैसी, बाबुल गांधी जैसे,
बाबुल गांधी जैसे,
चाचा जिसके नेहरू-शास्त्री ...........ई, डरे न दुश्मन कैसे!?
डरे न दुश्मन कैसे!?

वीर शिवाजी जैसे वीरन, लक्ष्मीबाई बहना!
लक्षुमन जिसके बोध भगत सिंह, उसका फिर क्या कहना!!
उसका फिर क्या कहना!
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा।
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा।

>>>"आगे-पीछे तीनों सेना ले के चले तिरंगा..आ ..आ ....................आ!!"<<< {एस! यहीं एक्साक्ट्ली मैं रो पड़ता हूँ!!}


सेना चलती है ले के तिरंगा।
सेना चलती है ले के तिरंगा।
हों कोई हम प्रान्त के वासी, हों कोई भी भाषा-भाषी ...........ई!
सबसे पहले हैं भारत वासी।

सबसे पहले हैं भारत वासी।
सबसे पहले हैं भारत वासी।"


जय हिन्द!
वंदे मातरम!!
_श्री .  
****************
"ओय, कंट्रोल इट!"
"नई होता यार!"

मेरे दुश्मनन्न्न्न!

मेरे दोस्त! अगर तू दुखी तो तेरा ये दोस्त भी दुखी।
जी हल्का करने को थोडा इसे गुनगुना लीजिये ::::::>>>

'...मेरे दिल से, सितमगर, तूने अच्छी दिल्लगी की है,
के बन के दोस्त, अपने दोस्तों से, दुश्मनी की है,.......
मेरे दुश्मनन्न्न्न! तू मेरी दोस्ती को तरसे,.............
मेरे दुश्मनन्न्न्न! तू मेरी दोस्ती को तरसे,
मुझे गम देने वाले, तू ख़ुशी को तरसे,.....
मेरे दुश्मनन्न्न्न!
.................!'
'तू फूल बने पतझड़ का, तुझपे बहार ना आये कभी,
मेरी ही तरह तू तडपे, तुझको करार न आये कभी,...
तुझको करार न आये कभी।
जिए तू इस तरह के, ज़िन्दगी को तरसे,....
मेरे दुश्मनन्न्न्न! तू मेरी दोस्ती को तरसे,
मुझे गम देने वाले, तू ख़ुशी को तरसे,.....
मेरे दुश्मनन्न्न्न!
.................'
'इतना तो असर कर जाएँ,...मेरी वफायें ओ बेवफा,....
एक रोज तुझे याद आएँ,...अपनी ज़फायें ओ बेवफा,...
अपनी ज़फायें ओ बेवफा,
पशेमाँ हो के रोये, तू हंसी को तरसे,...
मेरे दुश्मनन्न्न्न! तू मेरी दोस्ती को तरसे,
मुझे गम देने वाले, तू ख़ुशी को तरसे,.....
मेरे दुश्मनन्न्न्न!
................'
'तेरे गुलशन से जियादा,...वीरान कोई विराना न हो,
इस दुनिया में कोई तेरा,... अपना तो क्या!_बेगाना न हो!!
ओ, अपना तो क्या!_बेगाना न हो,
किसी का प्यार क्या तू, बेरुखी को तरसे,...
मेरे दुश्मनन्न्न्न! तू मेरी दोस्ती को तरसे,
मुझे गम देने वाले, तू ख़ुशी को तरसे,.....
मेरे दुश्मनन्न्न्न ............................................'


टूटे दिल से निकली श्राप!
किसी का दिल इतना न दुखाओ उसकी ये हाय तुम्हें ख़ाक कर दे .....!

(हैट्स ऑफ टू 'धरम-पा जी)
_श्री .

देते हैं भगवान् को धोखा..., इंसां को क्या छोड़ेंगे

'कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या,
कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या!
कोई किसी का नहीं ये झूठे नातें हैं, नातों का क्या!!
कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या!
.................!'
'होगा मसीहा.............................................आ,
होगा मसीहा सामने तेरे, फिर भी न तू बच पायेगा,
तेरा अपना. ..............................................आ,
तेरा अपना खून ही आखिर तुझको आग लगाएगा।
आसमान में................................................ए,
आसमान में उड़ने वाले, मिटटी में मिल जाएगा,
कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या!
.................!'
'सुख में तेरे .................................................ए,
सुख में तेरे साथ चलेंगे, दुःख में सब मुंह फेरेंगे,
दुनिया वाले.................................................ए,
दुनिया वाले तेरे बनकर तेरा ही दिल तोड़ेंगे,
देते हैं ........................................................ए,
देते हैं भगवान् को धोखा..., इंसां को क्या छोड़ेंगे!!
'कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या,
कोई किसी का नहीं ये झूठे नातें हैं, नातों का क्या!!
कसमें वादे प्यार-वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या!'

"आप" आज के अर्जुन ही तो हैं!

हिन्दुस्तानी नौसैनिक हवाई-अड्डे के हैंगर में >

प्लेन मेन्टेनेंस मैन(जॉन)>'सर दिन में दो-दो बार आप लड़ाई पर जाता है। जब तक नहीं आता, हमको चैन ही नहीं आता सर!'
फाइटर पायलट>"हा हा हा। जॉन!जॉन!जॉन!"
प्लेन मेन्टेनेंस मैन(पूरन)>"अरे, जॉन भैया! लड़ाई में दुश्मनन के मार-मार के बड़ा मज़ा आता है। क्यूँ सर?'
फाइटर पायलट>'मज़े और नफरत को भूल जाओ। पूरन ! तुमने गीता पढ़ी है?'
पूरन>'नइ सर।"
फाइटर पायलट>अरे पढ़ी तो हमने भी नहीं! हा हा! लेकिन सुना है कि उसमे लिखा है कि ज़िन्दगी में सबसे बड़ी चीज़ है कर्म। यानि कि अमल। एक्शन! जॉन, एक्शन!!
जॉन>'यस सर।'
फाइटर पायलट>'यह बात हमने एक मुसलमान शायर की नज़्म से सीखी है। अच्छा देर हो रही है। चलूँ!'

पूरन जोर से चिल्लाकर>'सर, वो शायर क्या कहता है!? हमें भी सुनाइये न सर! प्लीज़ सर!'

हैंगर से निकर कर अपने फाइटर प्लेन की तरफ जाते थोडा ठिठक कर >
फाइटर पायलट>'अच्छा! एक मिनट है।:>>>

"साथियों! दोस्तों! हम आज के अर्जुन ही तो हैं! 
हमसे भी कृष्ण यही कहते हैं कि 
ज़िन्दगी सिर्फ अमल! सिर्फ अमल! सिर्फ अमल!
और ये बेदर्द अमल सुलह भी है जंग भी है!
'अमन' की महँगी तस्वीर में है जितने रंग,
उन्हीं रंगों में छुपा खून का एक रंग भी है।
जंग रहमत है के लानत?_ये सवाल अब न उठा!
जंग रहमत है के लानत?_ये सवाल अब न उठा! 
जंग जब आ ही गई सर पे तो रहमत होगी,
दूर से देख न भड़के हुए शोलों का ज़लाल,
दूर से देख न भड़के हुए शोलों का ज़लाल...,
इसी दोज़ख के किसी कोने में ज़न्नत होगी!!!!
दोस्तों! साथियों! हम आज के अर्जुन ही तो हैं!"


"हः हा ........!! ...तो ज़न्नत होगी!
ना झुकेगा, सर वतन का, ...हर उड़ान की कसम्म्म्म्म्म !!
हिन्दुस्तान की कसम!
हो! हो! हो!... "
जय हिन्द!
(किसी को कुछ याद आया!! ?)

इंडियन एयर फ़ोर्स के सम्मान में!
हर हिन्दुस्तानी नौसैनिक फाइटर-पायलट को मेरा सलाम!
वन्दे मातरम!


_श्रीकान्त तिवारी.
 

सिर-फुटौवल:

बॉस>"का हुआ जी, दाढ़ी-हजामत काहे बढ़ाय हुए हैं?
मैं>"जी गाँव में चाची की मृत्यु हो गई है..."
बॉस>".........................................................."
मैं>"बंटवारे के बाद से कोई नइ पूछता है, खबर भी हमें किसी तीसरे जन से मिला ..."
बॉस>"..........................................................."
मैं>".. किसी ने खुद खबर नहीं किया,....हम खुद ही सभी नियम-कर्म मानकर उसे निभा रहे हैं।"
बॉस>"............................................................"
मैं >" हम...!"
..........
...........

सीन`1.>
[ऑफिस कॉम्लेक्स में गुदबुदाहट, बातें और बातें] :
एक>"आएं जी, सुनलियई सिरकांत के हीयाँ कोई मर गेलई! ठिक्के?"
दूसरा>"का पता।"
एक>"हमर से तो नइ बोललउ! के जाने सच है कि झूठ, कोई देखे थोड़े न गेले हई!"
तीसरा>"नइ-नइ, ठीक बात हई। ओकर चाची मर गेले हई।"
दूसरा>" झुट्ठो बोलइत होतऊ तो हमिन के का पता।"
चौथा>"कोन्नो भरोसा हई! दस-बारा बरस से तो अलगे-हें न हो गेल्थिन हे, अब मान्थिन कि नइ मान्थिन, लेकिन एन्ने कए दिन से कहाँ हजामत बनईले हउ। मरलोहों होतई।
एक>"लेकिन सब बात हमरा पता रहा हई, सम्झेले रे बाबू! चचिया के मरे के बात कर के मालिक्वइन से पइसा आइन्ठे के बहाना नइ करतई तो माल कहाँ से अइतई! आएँ?"
दूसरा>"ठीक बोला हिन।"
तीसरा>"होइयो सका हाउ, भाए। लेकिन हमर से बात होले हलइ, हमरा तो सचे लगलइ।"
एक>"अरे, बे..त! सच रह्तालई तो हमारा सब पता चल गेले रह्तालऊ। आजकल केए ई सब माना हई जी? बात हई गाँव के। सच-झूठ के पता लगावे मलिकवन का अब ओकर गाँव जैबथिन!! बात करा हे। सब पइसा के चक्कर हऊ।
बाकी सभी>"ठीक बोला हे, चचा।"

सीन`2.>[दशकर्म के बाद]>>>
`एक.>"अरे रे बाऊ!"
चपरासी>"हाँ, चचा?"
एक>"अरे! तोरा पता हउ, सिरकंतवा बेल मुड़इले हई कि नइ?"
(चचा जान! सिरकंतवा कहने की भी क्या ज़रुरत? बिंदी हटा दें,_"सिरकटवा" बोलें!)
चपरासी>"नइ मालूम। बिहाने ओकर घरे गेले हलियाई, टोपी पेन्हले हलई। अब का मालूम जाड़ा चलते कि काहे!"
एक>"देखभीन तो, सच्चो मुडवैले हई कि अइसने टोपिया पेन्ह के फोकस आउर इस्टाइल मारात हउ।"
चपरासी>"हम का करियाई? टोपिया नोंच लियई? अपने सीधे पूछ काहे नइ लेवा हीयई?"
एक>"अच्छाह! सब्भे पता लग जैताई।" [ चचा को मेरी चिंता हो गई, फ़िक्र हो गई। क्या वाकई?]

सीन `3.>
[घर से आकर सोचा ठंढ है, थोड़ी देर धुप में बैठूं।] एक सहकर्मी का आगमन:

"का सिरकांत जी!"
"जी, भईया।"
का हाल हावा?"
"ठीक है, भईया।"
"का बात हई, टोपी पेन्हले ह!?"
"जी, यूँ ही .., सिर,...मुंडन करवाए हैं।"
"काहे का होलई, कोई...!"
"जी हाँ कुछ वैसी ही बात है।"
"ओ! ..हम सोचे कुछ 'गंभीर' बात हई का?...अछा ठीक है, मीलई थी बाद में, आएं!'
"जी, ठीक है।"

[थोड़ी देर बाद,अन्य लोग और 'साथी', सहकर्मियों आगमन हो गया]
सहकर्मी`1.>"टोपिया खोल तो।"
मैं>"काहे ला?"
सहकर्मी`1>"देखाव ना, बेलमुंडा हो के कइसन दीखा हे!?"
मैं चुप रहा।
किसी ने टोपी को हाथ लगाया, मैंने थोडा मुसकाकर उन्हें परे हटाया।
कोई खिलखिला कर हंसा>"आजकल बाल वालन से बेलमुंडवइन जाड़े हिट फिलिम देवत हथिन। बढ़िया बढ़िया हीरो लोग के देख ले सब तो बेल मुंडवा के रूपया-पर-रूपया पीट देलथिन।
सहकर्मी`2>"सिरकांत जी! अबकी थोडा हेयर एस्टाइल बदलियेगा।"
सहकर्मी`3>"हम बोलें!.. अबरी तो आप मोंछ भी बढ़ाइए। और कलम भी लम्बा रखिये। दबंग में सलमान और तलाश में आमिर भी मोंछ रखले हथुन, नया एस्टाइल हाउ, तोर पर बढ़िया फब्ताऊ।
सहकर्मी 4>"आखिर बेलवा मुड्वाइये लिए न तेवारी जी? अबरी फ्रेंच-कट दाढ़ी रखियेगा। अमितब्भा एस्ताइल!"
सहकर्मी`1>"हमर ए गो बात मानबे?"
मैं>"का?"
सहकर्मी`1>"रोज थोडा धूप देखावल कर, हरियर-हरियर (new green) बार (बाल) उगतऊ।"
सहकर्मी`2>"कच्चा अंडा फोड़ के बेल में लगावे से भी फायदा होवा हई।"
प्राकृतिक गंजे सहकर्मी>"कोई हमरा बताइले हई कि ऊँट के मूत से भी फायदा होवा हई। लास्ट ईयर हम गोवा गेले हलियाई न तो हुवें कोई बताइले हलई। तो हम बिहाने-बिहाने एक दिन समुन्दर किनारे गेले हलियाई। हुवां ढेरे ऊंट वालन हलथिन। हम पुछ्लियाई कि आयें भाए ऊंटावा का पेसाब मिलेगा? त उ पुछ्लाई काहे? हम बोलालियाई कि सुने हैं कि ऊंट के पेसाब से मूँडी में नया बार उगता है। तो उ बोला जे ठीक बात है। पेसाब मिल जाएगा। 50-रुपिया लगेगा। हम 30-रुपिया में पटाय। त ऊंटवा वाला बोला बैठिये। हम बालू पर बईठ गय। उ ऊंटवा को ला के हमरा उपरे खड़ा कर दिया और बोला बैठल रहिएगा। देरी होने से मिजाज़ा खिसिया गया। हम बोले पइसा वापस करो, तब्बे ऊंटवा मूतने लगा, ...ऊंटवा वाला बोला 'सर जल्दी ...', हम सिर आगे किये। और छारा-छारा हुवें ...मूत्रस्नान हो गया। ऊंटवा वाला बोला कि धुप में एक घंटा सुखाइये फिर नहा लेना। ऐसे ही एक हपता करना था।  उ त छुट्टी नइ था, से हे वास्ते ठीक से इलाज नइ हुआ।
[>>>सामूहिक हंसी-मुस्कान-ठहाके-खिलखिलाहट और गगनभेदी अट्टहास!!<<<]
सहकर्मी`2>"अजी गाय का पेसाब से भी फायदा होता है।"
सहकर्मी`1>"अरे, नहीं। गाय का पेसाब से नस-नाडी या गठिया में फायदा होवा हई' हमर बाउजी तो गोमूत्र सीसी में हमेशा रखा हलथिन।
सहकर्मी`1>"अं, सिरकांत जी, खाली आफे बेल मुडवाय हैं कि सब्भे भाई।
मैं>"पता नहीं।"
सभी>"काहे?"
मैं>"ये भी पता नहीं।"
सभी>"काहे?"
मैं>"...हमको सिर्फ अपने बारे में पता है।"
सहकर्मी`2>"ऊं..उं, ई तो आपना-आपना मानन वाला बात है, भाई।
सहकर्मी 1>"आयें भाए, तेंदुलकर के भी फादर वल्डकप खेले-हें घडी मर गेले हलाई, उ तो इंडिया वापस आके फिर वापस मैच खेले चल गेले हलई, ऊ (तेंदुलकर) कहाँ बेल मुन्डवैले हलई! फिलिम वालन के कोई मरा हई तो कहियो बेल मुन्ड्वावल देखले ह कोई। इंदरा गांधी मारले हलई तो राजिव गांधी भी तो बेल नइ छिलवैले हलई!
सहकर्मी`3>"एहनिये के चलते तो आज धरम-करम कोई मानत हई!?"
सहकर्मी`4>"ई सब इण्डिया के बरबादी के लच्छन हउ!"
सहकर्मी`"छोड़ न ईयार, हमिन के का लेना-देना ई एस्टार-फेस्टार से।"

सभी फिर मुझपर कृपालु हुवे:
1>"टोपी ऊनी हउ?
मैं >"हाँ।"
1>"पसीना हो जैतऊ, कौटन के खरीद। आराम-देह रह्तऊ।"
2>"ई शहर में बढियां टोपी कहाँ मिल्तऊ, बोस?"
3>"कमल के फोन कर रांची, ए गों बढियां टोपी भेजे ला। दिनभर अईसन टोपी हरजा करतऊ।"
4>"ठहर हम रांची अपन भतीजा कर के बोलत हियऊ'
उन्होंने फोन लगाया और बाज़ार में सस्ता-महंगा, चमड़े से लेकर हर तरह के कपडे की ब्रांडेड-अनब्रांडेड टोपियों को दरयाफ्त कर शाम तक फोन करने को कहा। शाम तक यह जानकारी भी आ गई। 3000-से-50 रूपए तक के टोपियों की...
................

मैं सोच में डूबा हूँ ... कितनी कृपालु, दयालु है ये दुनिया। कितनी फ़िक्र है इन्हें। मेरी हर बात का कितना ख्याल है इन्हें। कितना भाग्यशाली हूँ मैं! लेकिन ये लोग जो खून के रिश्ते में मेरे कुछ भी नहीं। मेरे लिए इतनी सोच भर सही, कुछ तो है इनके पास, जो ये मुझसे शेयर करते है। इनकी हर बात में मेरे लिए एक चिंतन है, एक लगाव है। यही मेरे अपने हैं। सच्चे। बेबाक। सबसे बड़ी बात : हर वक़्त मेरे अंगसंग। जिन्हें चाहो ढूंढो, वो हाज़िर! ये मुझे पहचानते तो हैं! उनकी तरह नहीं जिनके वरिष्ठ, मेरे बाबूजी के भी वरिष्ठ, की म्रत्यु की सूचना तक मुझे बाज़ार से मिली। इतनी चिंता तो उन्हें इस जीवन में तो मेरे लिए होने से रही। मेरे सहकर्मियों-साथियों के इस सिर-फुटौवल में स्नेहपूर्ण हास्य है। न कि कटाक्ष। बाबूजी के असली परिवार यही लोग हैं, जिनके पास मुझे छोड़कर वे विदा हो गए। और शायद यही वो होंगे जो मेरी अंतिम बरात के बाराती भी होंगे। इन्हें तो मैं सदा दिल से लगा कर रखूँगा।

मेरे साथियों को मेरा सेल्यूट!
_श्री .