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Thursday, January 24, 2013

सुरेन्द्रमोहन पाठक के अमर बोल

निम्नलिखित बातें वो बातें हैं जिन्हें पाठक सर ने रचा है, और जो अक्सर मेरी जुबान से भी अब निकलने लगा है। जिनमे से कुछ चुनिन्दा लाइनें मैं सभी मित्रों के साथ शेयर करना चाहता हूँ। जिन्होंने पाठक सर के उपन्यास पढ़े हैं उन्हें इनसे जरूर इत्तेफाक होगा। हो सकता है मेरे किसी मित्र ने पहले भी इसका जिक्र कर शेयर किया होगा, फिर भी मैं चाहूँगा कि इसे आप पढ़ें। ये वो लाइनें हैं जिसने अपनी बात को अभिव्यक्त करने में मुझे सक्षम बनाया, जो मेरी अभिव्यक्ति को शब्द प्रदान करते है। इन्हें किसी उपन्यास में यदि आपने पढ़ा है या अभी पढ़ रहे हैं तो निश्चित ही वह श्री सुरेन्द्रमोहन पाठक सर की रचना है। पाठक सर के ये शब्द और वाक्य अब एक अमर बोल बन चुके हैं। मेरे किसी मित्र को ये पढ़ कर कुछ और याद आये जिसे इसमें जुड़ा होना चाहिए, तो प्लीज़ मेरी जानकारी में लायें।1985 में जब मैं दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ता था। उस समय हमारा इंस्टिट्यूट करोल बाग़ के सामने 5-B पूसा रोड पर स्थित था। तब होस्टल में मेरे रूम मेट हरमिंदर सिंह कालरा (जो सिक्ख हैं, काफी वक़्त से संपर्क में नहीं हैं, MBBS डॉक्टर हैं) बिजनौर के रहने वाले थे। उनसे उस वक़्त की मेरी घनिष्ठता मुझे याद है, वे मुझे पंजाबी सिखाते थे और मैं उन्हें भोजपुरी। तक़रीबन उसी समय मेरी रूचि पाठक सर के उपन्यासों से हो चुकी थी। पंजाबी बातचीत, सवाल-जबाब को हिंदी में पढने पर जो आनंद आता है उसे शब्दों से व्यक्त नहीं कर सकता। खैर इन्हें पढ़िए: सुरेन्द्रमोहन पाठक के अमर बोल:

1. जेनेरल एक्सप्रेशंस :>>> पढने में सिर्क एक वाक्य हैं, पर कहानी (अगर आप पढ़ रहे हैं तो) के सन्दर्भ में इनके बहुत बड़े मायने होते हैं। इससे साफ़ ये अंदाजा हो जाता है कि 'लेखक' को हयूमन साइकोलोजी की कितनी तगड़ी पहचान, और औए पेश कने के ये कितने बेमिसाल अंदाज़ हैं!!>>>
>वह सन्न रह गया।
>वो हिचकिचाया।
>वो सकपकाया।
>वह हकबकाया।
>वह भौंचक्का रह गया।
>उसने बेचैनी से पहलु बदला।
>उसने आहात भाव से देखा।
>उसका चेहरा कानों तक लाल हो गया।
>वह मूछों में मुस्कुराया।
>प्रत्याशा से उसका दिल उछला।
>वो जैसे आसमान से गिरा।
>कोई हौले से हंसा।
>उसने नाक से धुंवे की दोनाली छोड़ी।

2. रमाकांत की उक्तियाँ :>>>
>"आओ जी।जी आया नूं। रक्खो" ...क्या? .."ओ, तशरीफ़!"
>"चल भई, तेरी रोटी शोटी करिए।"
>"ओए, की नां ए तेरा। एद्दर आ।"
>"सोचन ते दयो मालको।"
>"तो हो जाय एक-एक पैग अमरीकसिंह काले बिल्ले नूं!"
>"खुश कित्ता ई मित्रा।"
>"ओ! गोल्ली किद्दि ते गैनें (गहनें) किद्दे, बादशाहों!"
>"यारां नाल बहारां मेले मित्रां दे।"
>"लो जी, हौर सुनो।"
>"माइंयवा, अन्ने कुत्ते हिरणा दे शिकारी।"
>"जुलाहे दियां मस्खारियाँ माँ-भैन नाल।"
(ऐसे मौकों पर सुनील की हंसी छूटती है तब रमाकांत कहता है):
सुनील हंसा।
>"हस्स्या ई कंजर।"
सुनील और जोर से हंसा।

3. इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का कथन (सुनील को):>>>
>"मुझे मेरा धंधा सिखाने की कोशिश मत करो।"

4. विमल के उद्गार:(गुरुवाणी):>>> [ ये यादाश्त से लिखा है, त्रुटियों की संभावना है। कृपया सही स्पेलिंग हिंदी की लिपि में बताएं।]
>"वाहे गुरु सच्चे पातसाह, तू मेरा राखा सबनि थानी।"
>"दीनदयाल दयानिध दोखन, देखत है पर देत न हारे।"
>"सुरा सोई पहिचानिए जो लड़े दीन के हेत। कबहूँ न छाड़े खेत सुरा सो ही।"
>"बांह जिना दी पकड़िये, सिर दीजै बांह ना छडिये।"
>"भय काहू को देत नहीं नहीं, नहीं भय मानत आहीं।"_'खालसा न किसी को डराता है, न ही किसी से डरता है।'
>"कुछ न कहने से भी छिन जाता है ऐजाज़े सुखन। ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है।।"
>''सिर दीने सिर रहत है, सिर राखे सिर जाए।''
 >"देहु शिवा वर मोहि ईहै शुभ कर्मन तें कबहूँ न टरौं, न डरों अरिसो जब जाई लरौं निसिचै करि अपनी जीत करौं। जब आऊ की अउध निदान बनै अथि ही रण में तब जूझि मरौं!!''

...अभी और भी कई ऐसी ही ओजस्वी वाणी हैं, जो अभी याद नहीं आ रही।
फिलहाल, नमस्ते।
_श्री .
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ps : इस लेखन में जिन पंक्तियों को लाल किया है। उसने आज मुझसे बिछड़े मेरे मित्र, मेरे भाई डॉक्टर हरमिंदर सिंह कालरा मिल गए। सोशल मीडिया के माध्यम से इस लेख को facebook पर शेयर किया, fb-Friend श्री हरमिंदर छाबरा जी डॉक्टर एच एस कालरा मेरे मित्र के जीजाजी निकले; जिनसे मुझे डॉक्टर कालरा का पता मिला; यूँ भगवती भवानी ने बिछड़े मेल कराये। सभी का शत-शत-नमन।