एक नया विचार, एक नया ख्वाब, एक नया अरमान :
मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा हुए रईसजादे मुफ्त में हासिल रुतबा और पैसा, घमंड और ताकत के नशे में मासूमों पर जो ज़ुल्म ढाते हैं इसकी मिसाल कोई नई बात नहीं है। जिनके पास ये होता है वो इसका वाजिब-गैरवाजिब इस्तेमाल करता ही है। ऐसे लोगों ने जो ज़ुल्म किये हैं जो घाव दिए हैं वैसा कोई दुश्मन मुल्क भी अपने शत्रुओं को नहीं देता। सदियों से इस विषय को मुद्दा बनाकर पेश की गईं कई कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, और फिल्मे हम देख सुन पढ़ चुके हैं। कभी-कभी ये विषय उबाऊ भी लगने लगता है। पर अचानक ये ज़ख्म फिर हरे हो जाते हैं। इंसानी फितरत अपना रंग दिखने से बाज नहीं आती। और एक नया ज़ुल्म घटित हो जाता है। जिससे अंतरात्मा कुंहूंक उठती है। प्रत्युत्तर में प्रतिकार और क्रोध की जो आग धधकती है उसके आवेश में अँधा इंसान या तो मरता है या मारता है। पर एक फर्क है। बात, इस बात पर निर्भर है कि शिकार कौन बना, ज़ुल्म किस पर हुआ!? पहले किस्म वाले - मासूम पर? यहाँ दो-तरह के मासूम मिलंगे एक -निरीह, दो-शक्तिशाली! ...या कि फिर ...- दुसरे किस्म वाले किसी शक्तिशाली अवांछित-व्यक्तित्व-वाले खल-कामी-क्रोधी और अत्याचारी पर!? पहला अगर ज़ुल्म की मुखाल्फत करेगा तो शक्तिशाली न होने के कारण खुद मारा भी जा सकता है, जबकि दुसरे किस्म वाला अपनी प्रवृत्ति के अनुसार अवश्य बदले में हमला करेगा जो निश्चय ही मार भी सकता है, मारेगा। मासूम और कोमल मन वाले का ह्रदय रहम कर सकता है, पर दुसरे किस्म वाले से ऐसी उम्मीद की कोई गारंटी नहीं, पाताल से खोद कर निकलेगा और ऊपर से नीचे तक पूरा चीर कर रख देगा। क्रोध का जूनून यही कराता है। ज़ुल्म ! सिर्फ ज़ुल्म!!
किसी कोमल मन वाले, निरीह मासूम से पूछकर बताइये कि उसने उस पर हुए ज़ुल्म की मुखालफत क्यों नहीं की? यही जबाब मिलेगा कि -"हम क्या कर सकते हैं साब!" जबकि दुसरे किस्म वाला यदि हार गया तो यूँ चांस का रोना रोवेगा -"अरे अब का बोलें! अवसर मिलता तो वहीँ ^*$#@~!`#$%^&* का टेंटुआ दबा देते!!" और जो कहीं जीत गया तो भले ही उसके क्रोध की आँधी शांत हो जाय लेकिन उसे इंसानी खून की बू लग जाती है, उसे खुद में खुदा की कूवत दिखती है जो जान बचा भी सकता है तो जान ले भी सकता है। इसकी लत उसे तुरंत लगती है। फिर वो अपने हरेक काम को, जो अब नाहक ज़ुल्म में तब्दील हो चूका होता है, उसे जस्टिफाई करने के कुतर्क करने लगता है। फिर वो ये नहीं देख पाता कि उसके ज़ुल्म का शिकार कौन है कोई उसी के पुराने स्वरुप जैसा मजलूम या मानवता का दुश्मन। मानवता के दुश्मन कसाई को उसके कुकर्मों की सजा मिलके रहती है। मिलेगी।
भैया !! गुस्से में बड़ी शक्ति है। क्या इसका प्रयोग ज़ुल्म के अलावे कोई दूसरा भी है !? क्या इसकी एनर्जी से बल्ब रौशन कर पाओगे?...उल्टा होगा ...फोड़ दोगे।
कितना आसन है किसी की खिल्ली उडाना उसका मज़ाक बनाना, उसे नीचा दिखाना ! झट से ये काम हो जाता है। पर उसी को गले लगाना और माफ़ी माँगना बहुत ही कठिन है। इस कठिनाई पर विजय पाकर दिखाइये न! दुनिया आपको गले लगा लेगी। किसी का अपमान करने से पहले ये भी तो सोचो कि उसका भी तुम्हारे ही तरह एक प्यारा परिवार है, जो तुम्हें भी ईतना प्यार दे सकता है, देगा कि ख़ुशी के मारे रो पड़ोगे। ताकतवर हो तो उसकी मदद करो। प्यार और दोस्ती का हाथ बढाकर तो देखो। मैंने अपने से नाराज लोगों को और उनके परिवार को जब देखा तो यही लगा कि इनमे और हममे कोई फर्क नहीं। फिर नाराजगी कैसी। ...नहीं तो जो ज़ुल्म हुआ, हो रहा है वो होता रहेगा। फिर तो ये नफरत का सिलसिला कभी भी नहीं थमेगा।
हारे, निराश न हो, कोई साथ दे न दे, अकेले बढ़ो। आगे बढ़ते ही रहो सिर्फ इतना याद रखना कि तुम्हारे ह्रदय में प्रेम और भाईचारे का उमंग ठाठें मार रहा हो। उसे रोको मत। उफनने दो। अपने प्यार की बौछार सभी पर पड़ने दो। ज़श्न मनाओ! ये सोचकर कि आज तुम्हारी बाकी बची ज़िन्दगी का पहला दिन है। इसे रोते-झींकते और गुस्से में कुढ़ते गुजारते हुए इसे अपने अलावे बाकि सबके लिए ख़राब तो न करो।
ओय अब चल भी पड़ यारा !!
"एकला चोलो रे ..........!"
-श्री .
मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा हुए रईसजादे मुफ्त में हासिल रुतबा और पैसा, घमंड और ताकत के नशे में मासूमों पर जो ज़ुल्म ढाते हैं इसकी मिसाल कोई नई बात नहीं है। जिनके पास ये होता है वो इसका वाजिब-गैरवाजिब इस्तेमाल करता ही है। ऐसे लोगों ने जो ज़ुल्म किये हैं जो घाव दिए हैं वैसा कोई दुश्मन मुल्क भी अपने शत्रुओं को नहीं देता। सदियों से इस विषय को मुद्दा बनाकर पेश की गईं कई कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, और फिल्मे हम देख सुन पढ़ चुके हैं। कभी-कभी ये विषय उबाऊ भी लगने लगता है। पर अचानक ये ज़ख्म फिर हरे हो जाते हैं। इंसानी फितरत अपना रंग दिखने से बाज नहीं आती। और एक नया ज़ुल्म घटित हो जाता है। जिससे अंतरात्मा कुंहूंक उठती है। प्रत्युत्तर में प्रतिकार और क्रोध की जो आग धधकती है उसके आवेश में अँधा इंसान या तो मरता है या मारता है। पर एक फर्क है। बात, इस बात पर निर्भर है कि शिकार कौन बना, ज़ुल्म किस पर हुआ!? पहले किस्म वाले - मासूम पर? यहाँ दो-तरह के मासूम मिलंगे एक -निरीह, दो-शक्तिशाली! ...या कि फिर ...- दुसरे किस्म वाले किसी शक्तिशाली अवांछित-व्यक्तित्व-वाले खल-कामी-क्रोधी और अत्याचारी पर!? पहला अगर ज़ुल्म की मुखाल्फत करेगा तो शक्तिशाली न होने के कारण खुद मारा भी जा सकता है, जबकि दुसरे किस्म वाला अपनी प्रवृत्ति के अनुसार अवश्य बदले में हमला करेगा जो निश्चय ही मार भी सकता है, मारेगा। मासूम और कोमल मन वाले का ह्रदय रहम कर सकता है, पर दुसरे किस्म वाले से ऐसी उम्मीद की कोई गारंटी नहीं, पाताल से खोद कर निकलेगा और ऊपर से नीचे तक पूरा चीर कर रख देगा। क्रोध का जूनून यही कराता है। ज़ुल्म ! सिर्फ ज़ुल्म!!
किसी कोमल मन वाले, निरीह मासूम से पूछकर बताइये कि उसने उस पर हुए ज़ुल्म की मुखालफत क्यों नहीं की? यही जबाब मिलेगा कि -"हम क्या कर सकते हैं साब!" जबकि दुसरे किस्म वाला यदि हार गया तो यूँ चांस का रोना रोवेगा -"अरे अब का बोलें! अवसर मिलता तो वहीँ ^*$#@~!`#$%^&* का टेंटुआ दबा देते!!" और जो कहीं जीत गया तो भले ही उसके क्रोध की आँधी शांत हो जाय लेकिन उसे इंसानी खून की बू लग जाती है, उसे खुद में खुदा की कूवत दिखती है जो जान बचा भी सकता है तो जान ले भी सकता है। इसकी लत उसे तुरंत लगती है। फिर वो अपने हरेक काम को, जो अब नाहक ज़ुल्म में तब्दील हो चूका होता है, उसे जस्टिफाई करने के कुतर्क करने लगता है। फिर वो ये नहीं देख पाता कि उसके ज़ुल्म का शिकार कौन है कोई उसी के पुराने स्वरुप जैसा मजलूम या मानवता का दुश्मन। मानवता के दुश्मन कसाई को उसके कुकर्मों की सजा मिलके रहती है। मिलेगी।
भैया !! गुस्से में बड़ी शक्ति है। क्या इसका प्रयोग ज़ुल्म के अलावे कोई दूसरा भी है !? क्या इसकी एनर्जी से बल्ब रौशन कर पाओगे?...उल्टा होगा ...फोड़ दोगे।
कितना आसन है किसी की खिल्ली उडाना उसका मज़ाक बनाना, उसे नीचा दिखाना ! झट से ये काम हो जाता है। पर उसी को गले लगाना और माफ़ी माँगना बहुत ही कठिन है। इस कठिनाई पर विजय पाकर दिखाइये न! दुनिया आपको गले लगा लेगी। किसी का अपमान करने से पहले ये भी तो सोचो कि उसका भी तुम्हारे ही तरह एक प्यारा परिवार है, जो तुम्हें भी ईतना प्यार दे सकता है, देगा कि ख़ुशी के मारे रो पड़ोगे। ताकतवर हो तो उसकी मदद करो। प्यार और दोस्ती का हाथ बढाकर तो देखो। मैंने अपने से नाराज लोगों को और उनके परिवार को जब देखा तो यही लगा कि इनमे और हममे कोई फर्क नहीं। फिर नाराजगी कैसी। ...नहीं तो जो ज़ुल्म हुआ, हो रहा है वो होता रहेगा। फिर तो ये नफरत का सिलसिला कभी भी नहीं थमेगा।
हारे, निराश न हो, कोई साथ दे न दे, अकेले बढ़ो। आगे बढ़ते ही रहो सिर्फ इतना याद रखना कि तुम्हारे ह्रदय में प्रेम और भाईचारे का उमंग ठाठें मार रहा हो। उसे रोको मत। उफनने दो। अपने प्यार की बौछार सभी पर पड़ने दो। ज़श्न मनाओ! ये सोचकर कि आज तुम्हारी बाकी बची ज़िन्दगी का पहला दिन है। इसे रोते-झींकते और गुस्से में कुढ़ते गुजारते हुए इसे अपने अलावे बाकि सबके लिए ख़राब तो न करो।
ओय अब चल भी पड़ यारा !!
"एकला चोलो रे ..........!"
-श्री .