Sunday, January 13, 2013
श्री हनुमान जी का यह दुर्लभ चित्र
"मंगल मूरति मारुती नंदन,
सकल अमंगल मूल निकंदन।
पवनतनय संतन हितकारी,
ह्रदय विराजत अवधबिहारी।।"
न जाने कई वर्षों से श्री हनुमान जी का यह दुर्लभ चित्र (No.1)हमारे घर में स्थापित है। कई लोग पूछ चुके हैं-'ये कौन है? आपके दादाजी?' हम उत्तर देते हैं कि -'जी हाँ! बाबूजी के पुराने बुजुर्ग हैं, नाम हनुमान तिवारी है।'
दिखने में ये हमारे अपने बुजुर्ग अभिभावक ही दिखते हैं, जो श्रद्धा से मगन होकर रामायण का पाठ कर रहे है। दरअसल भगवान् श्री हनुमान जी का यह अद्वितीय दुर्लभ सजीव चित्र/विग्रह/मूर्ती भारत में कहाँ स्थापित है, हमें नहीं मालूम। कुछ लोगों ने कयास लगाया कि शायद यह गीता प्रेस, गोरखपुर (यू.पी.) स्थित एक मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ती की तस्वीर है। कुछ लोगों ने कहा यही हनुमान जी की असली फोटो है।जो हो, अब तो ये मेरे परिवार के लिए एक पूर्वज की तरह आदरणीय हैं। हम तो अब इनकी ऐसी उपस्थिति के इतने आदि हो चुके हैं कि इनपर ही हमारी निर्भरता है। पारिवारिक तस्वीरों के साथ ही यह चित्र घर में यूँ लगा हुआ है कि ये निश्चय ही घर के बुजुर्ग और मुखिया लगते है।(No.2)
गीताप्रेस से प्रकाशित होने वाली पत्रिका "कल्याण" बाबूजी की पुरानी सदस्यता के चलते घर पर आती थी, उनमे से एक में मैंने सेम-टू-सेम यही तस्वीर, एक चित्रकार द्वारा बना छपा पाया था। पर वह साफ़ पेन्सिल वर्क था। हनुमान जी की पूजा-आराधना के लिए दूसरी, पारंपरिक तस्वीरें हैं। जैसे ये :(No.3)
।। हँ हनुमते नमः।।
_श्रीकांत .
सकल अमंगल मूल निकंदन।
पवनतनय संतन हितकारी,
ह्रदय विराजत अवधबिहारी।।"
न जाने कई वर्षों से श्री हनुमान जी का यह दुर्लभ चित्र (No.1)हमारे घर में स्थापित है। कई लोग पूछ चुके हैं-'ये कौन है? आपके दादाजी?' हम उत्तर देते हैं कि -'जी हाँ! बाबूजी के पुराने बुजुर्ग हैं, नाम हनुमान तिवारी है।'
दिखने में ये हमारे अपने बुजुर्ग अभिभावक ही दिखते हैं, जो श्रद्धा से मगन होकर रामायण का पाठ कर रहे है। दरअसल भगवान् श्री हनुमान जी का यह अद्वितीय दुर्लभ सजीव चित्र/विग्रह/मूर्ती भारत में कहाँ स्थापित है, हमें नहीं मालूम। कुछ लोगों ने कयास लगाया कि शायद यह गीता प्रेस, गोरखपुर (यू.पी.) स्थित एक मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ती की तस्वीर है। कुछ लोगों ने कहा यही हनुमान जी की असली फोटो है।जो हो, अब तो ये मेरे परिवार के लिए एक पूर्वज की तरह आदरणीय हैं। हम तो अब इनकी ऐसी उपस्थिति के इतने आदि हो चुके हैं कि इनपर ही हमारी निर्भरता है। पारिवारिक तस्वीरों के साथ ही यह चित्र घर में यूँ लगा हुआ है कि ये निश्चय ही घर के बुजुर्ग और मुखिया लगते है।(No.2)
गीताप्रेस से प्रकाशित होने वाली पत्रिका "कल्याण" बाबूजी की पुरानी सदस्यता के चलते घर पर आती थी, उनमे से एक में मैंने सेम-टू-सेम यही तस्वीर, एक चित्रकार द्वारा बना छपा पाया था। पर वह साफ़ पेन्सिल वर्क था। हनुमान जी की पूजा-आराधना के लिए दूसरी, पारंपरिक तस्वीरें हैं। जैसे ये :(No.3)
।। हँ हनुमते नमः।।
_श्रीकांत .
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