आजकल का आदमी हूँ सो आजकल की ही कहूँगा! पुराने का मुझे इल्म नहीं!
साब जी,
सर जी,
बॉस,
मालको,
भाईयों,
दोस्तों,
साथियों,
हिन्दुस्तानियों :
आजकल आम, और रोजीना यह सुनने को मिलता है कि :
"फलाने की बेटी -फलनवा- के साथ भाग गई! जबकि नौवीं क्लास में ही थी!" _
"फलनवा के बेटा "लभ"-मैरेज कर लिया! बाप-मांयं घर में घुसने नहीं दिए!" _
_हम भी औलाद वाले हैं! हमने भी अपने जन्माय बच्चों को उम्दा तालीम दिलवाई, और घरेलु संस्कार समझा रक्खे हैं! तमन्नाओं के दीप जला रखे हैं! लेकिन यदि अनहोनी हो ही गई तो हम पति-पत्नी क्या क्या कर लेंगे? ठेंगा!
बहुत लोगों को देखा जिनके घर में छोटी सी छुरी नहीं लेकिन "सालन मिलें ना, गोली मार देंगे!" - "काट के बोरा में भर के नदी में दहवा देंगे!" _का दावा करते हैं! फिर विवशता से बाद में यूँ विलाप करते हैं कि देखकर कलेजा दहल जाता है!
माँ-बाप अपनी औलाद से न बिछ्ड़ें! किसी भी माँ-बाप के बच्चे बच्चियाँ इस कुप्रथा के वश न छिन जायँ! बच्चों की भी -लालसा- पूरी हो! भले हॉलीवुड और बॉलीवुड ने अरबों फ़िल्में इस विषय पर बना रक्खीं है! हजारों करोड लेखकों ने कई अरबों गैलन स्याही ऐसी ही कहानियों में सर्फ़ कर दी है!
पर कोई समाधान है?
है!
बात-चित!
मैं पूछता हूँ!
आपकी तेरह -१३- वर्षीय बेटी यदि "यह मुराद" आपसे मांगे तो?
अगले दिन वह नापत्ता / चम्पत हो गई तो?
आपका बेटा अचानक किसी दिन कोई लड़की -अनजानी लड़की- ब्याह लाया तो?
क्या मुझमे और आप किसी में भी यह दिल गुर्दा है कि इस सिचुएशन को दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन बन कर पूरे परिवार और समाज सहित झेल पाओगे?
हाल ही में कई ऐसी धटनाएं हुईं हैं! रोज! सर जी, रोज ये हो रहा है! माँ-बाप मोहल्ले में निकलने से कतरा रहे हैं! ठीक है, उन औलादों को बहिष्कृत किया पर जो कटाक्षपूर्ण नज़रें इन माँ-बाप पर पड़ रहीं हैं, और इनके पीठ पीछे सब के सब जो बोली बोल रहे हैं, जो फब्तियां कस रहें हैं क्या उनके अपने दामन साफ़ हैं? इनकी छोड़िये! क्यों छोड़िये?????? पहले इनके जुमले बंद क्यों न हों? जिन्होंनें जिस किसी के परिवार के विकास में अपना कोई योगदान नहीं दिया उन्हें इनपर नापाक जुमले कसने, कहने का हक़ क्यों कर है? जिस बेचारे के हाथ खाली हो गए, जिस्म खोखला हो गया, आत्मा कुंहक रहीं है उसका मज़ाक उड़ाने वालो को ही पहले क्यों ना सबक मिले?? जिसका जो होना था वो तो हो गया! वो फिराया नहीं जा सकता! साथ जियें! या अलग हो जाएँ, इनकी मर्ज़ी!
हंसने वालों!!!!! तुम्हीं असली शत्रु हो! सबसे पहले अपने गिरेबां और अपनी आत्मा में झाँकों!
और वे औलादें?? जिन्होंनें अपने माँ-बाप को इस नर्क में झोंक दिया, इनका कुछ तो इलाज़ होना चाहिये?? ऑनर-किलिंग एक विषद समस्या इसी -दुर्भिक्ष- की देन है! मामूली गृह क्लेश से हम इतने कुपित हो जाते हैं कि मरने-मारने की वाहियात बातें करतें है, जबकि मरना कोई नहीं चाहता! लेकिन -इस- विषय से घायल आत्मा घोर-अघोर सब कर डालती है! फिर भी यह लड़की का भागना और भगाना नहीं रुक रहा! कैसे कोई लड़की इतनी बेदर्द और बेरहम हो सकती है इसके बेशुमार उदाहरण भरे पड़े हैं जिसके तल में सेक्स वासना और जिस्मानी आकर्षण का पर्सेंटेज़ सबसे ज्यादा है! समाज निर्माण नगण्य!
हम लोग असक्षम हैं! सह लेंगे! जो सक्षम हैं, मारकर पाताल में गाड़ देंगे! लेकिन यह तो कोई समाधान नहीं हुआ! बरसों बरस बीत गए! समस्या जस की तस है!
समस्या जस की तस है!
बेटी वालों ज़रा सोचो!
बेटे वालों ज़रा सोचो!
बेटी जरा सोचना!
बेटे जरा सोचना!
साब जी, सोचना!
सर जी, आप भी सोचना!
एक समाधान को बारम्बार सुझाया गया लेकिन नतीजा! सिफर! वो समाधान बातचित ही था! और आईन्दे भी समाधान बातचीत ही है!
सबसे बड़ा समाधान आज की नौजवान पीढ़ी को ही निकालनी पड़ेगी! क्योंकि अन्य समाधानों की धार कुंद हो चुकी है! नौजवान पीढ़ी से ही आस और उम्मीद करनी होगी! उन्हें इस बहस के सार्थक समाधान में अपने साथ शामिल करना ही होगा! और उन्हें इस विषय पर अपनी बात खुलकर बोलने की आज़ादी देनी ही होगी! इसी में उम्मीद की एक हलकी सी आस "भास" रही है!
शेष विध्वंश है!
भयानक!
माँ-बाप के बारे में सोचे बिना केवल केवल केवल और सिर्फ केवल लड़का-लड़की का सिर्फ अपने बारे में सोचना ही मूल समस्या है!
मैंने कई कोशिशें कीं, कि इसके प्रति एक सार्थक बात हो, लेकिन मुझे हतोत्साहित किया गया कि ज़लालुद्दीन मोहम्मद अकबर कुछ नहीं कर सका तो तुम क्या कर लोगे?
ठीक बात है, साब! मैं मामूली आदमी हूँ! मेरी सस्ती-सी हस्ती तो मामूली से भी गई गुजरी है! लेकिन जब मैं अपने बाबुजी की ओर और अपनी अईया और माँ को देखता हूँ तो मेरे खून में भी वही उबाल खौलता है जो केवल मरने और मारने की बात को प्रेरित करता है! जिसका अंजाम अच्छा नहीं होगा! इसे व्यक्तिगत समस्या मत समझिएगा! क्योंकि मेरे यहाँ ऐसी कोई स्थिति संभव ही नहीं है! मैं अपने साथियों दोस्तों लोगों समाज और देश के बारे में एक आवाज़ उठा रहा हूँ! कि, मिलजुलकर इस नासूर का कोई इलाज कीजिये!
कौन जानता है कि किसी का ब्रेन-ट्यूमर कब कैंसर में बदल जाय!
जय हिन्द!
_श्री .
साब जी,
सर जी,
बॉस,
मालको,
भाईयों,
दोस्तों,
साथियों,
हिन्दुस्तानियों :
आजकल आम, और रोजीना यह सुनने को मिलता है कि :
"फलाने की बेटी -फलनवा- के साथ भाग गई! जबकि नौवीं क्लास में ही थी!" _
"फलनवा के बेटा "लभ"-मैरेज कर लिया! बाप-मांयं घर में घुसने नहीं दिए!" _
_हम भी औलाद वाले हैं! हमने भी अपने जन्माय बच्चों को उम्दा तालीम दिलवाई, और घरेलु संस्कार समझा रक्खे हैं! तमन्नाओं के दीप जला रखे हैं! लेकिन यदि अनहोनी हो ही गई तो हम पति-पत्नी क्या क्या कर लेंगे? ठेंगा!
बहुत लोगों को देखा जिनके घर में छोटी सी छुरी नहीं लेकिन "सालन मिलें ना, गोली मार देंगे!" - "काट के बोरा में भर के नदी में दहवा देंगे!" _का दावा करते हैं! फिर विवशता से बाद में यूँ विलाप करते हैं कि देखकर कलेजा दहल जाता है!
माँ-बाप अपनी औलाद से न बिछ्ड़ें! किसी भी माँ-बाप के बच्चे बच्चियाँ इस कुप्रथा के वश न छिन जायँ! बच्चों की भी -लालसा- पूरी हो! भले हॉलीवुड और बॉलीवुड ने अरबों फ़िल्में इस विषय पर बना रक्खीं है! हजारों करोड लेखकों ने कई अरबों गैलन स्याही ऐसी ही कहानियों में सर्फ़ कर दी है!
पर कोई समाधान है?
है!
बात-चित!
मैं पूछता हूँ!
आपकी तेरह -१३- वर्षीय बेटी यदि "यह मुराद" आपसे मांगे तो?
अगले दिन वह नापत्ता / चम्पत हो गई तो?
आपका बेटा अचानक किसी दिन कोई लड़की -अनजानी लड़की- ब्याह लाया तो?
क्या मुझमे और आप किसी में भी यह दिल गुर्दा है कि इस सिचुएशन को दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन बन कर पूरे परिवार और समाज सहित झेल पाओगे?
हाल ही में कई ऐसी धटनाएं हुईं हैं! रोज! सर जी, रोज ये हो रहा है! माँ-बाप मोहल्ले में निकलने से कतरा रहे हैं! ठीक है, उन औलादों को बहिष्कृत किया पर जो कटाक्षपूर्ण नज़रें इन माँ-बाप पर पड़ रहीं हैं, और इनके पीठ पीछे सब के सब जो बोली बोल रहे हैं, जो फब्तियां कस रहें हैं क्या उनके अपने दामन साफ़ हैं? इनकी छोड़िये! क्यों छोड़िये?????? पहले इनके जुमले बंद क्यों न हों? जिन्होंनें जिस किसी के परिवार के विकास में अपना कोई योगदान नहीं दिया उन्हें इनपर नापाक जुमले कसने, कहने का हक़ क्यों कर है? जिस बेचारे के हाथ खाली हो गए, जिस्म खोखला हो गया, आत्मा कुंहक रहीं है उसका मज़ाक उड़ाने वालो को ही पहले क्यों ना सबक मिले?? जिसका जो होना था वो तो हो गया! वो फिराया नहीं जा सकता! साथ जियें! या अलग हो जाएँ, इनकी मर्ज़ी!
हंसने वालों!!!!! तुम्हीं असली शत्रु हो! सबसे पहले अपने गिरेबां और अपनी आत्मा में झाँकों!
और वे औलादें?? जिन्होंनें अपने माँ-बाप को इस नर्क में झोंक दिया, इनका कुछ तो इलाज़ होना चाहिये?? ऑनर-किलिंग एक विषद समस्या इसी -दुर्भिक्ष- की देन है! मामूली गृह क्लेश से हम इतने कुपित हो जाते हैं कि मरने-मारने की वाहियात बातें करतें है, जबकि मरना कोई नहीं चाहता! लेकिन -इस- विषय से घायल आत्मा घोर-अघोर सब कर डालती है! फिर भी यह लड़की का भागना और भगाना नहीं रुक रहा! कैसे कोई लड़की इतनी बेदर्द और बेरहम हो सकती है इसके बेशुमार उदाहरण भरे पड़े हैं जिसके तल में सेक्स वासना और जिस्मानी आकर्षण का पर्सेंटेज़ सबसे ज्यादा है! समाज निर्माण नगण्य!
हम लोग असक्षम हैं! सह लेंगे! जो सक्षम हैं, मारकर पाताल में गाड़ देंगे! लेकिन यह तो कोई समाधान नहीं हुआ! बरसों बरस बीत गए! समस्या जस की तस है!
समस्या जस की तस है!
बेटी वालों ज़रा सोचो!
बेटे वालों ज़रा सोचो!
बेटी जरा सोचना!
बेटे जरा सोचना!
साब जी, सोचना!
सर जी, आप भी सोचना!
एक समाधान को बारम्बार सुझाया गया लेकिन नतीजा! सिफर! वो समाधान बातचित ही था! और आईन्दे भी समाधान बातचीत ही है!
सबसे बड़ा समाधान आज की नौजवान पीढ़ी को ही निकालनी पड़ेगी! क्योंकि अन्य समाधानों की धार कुंद हो चुकी है! नौजवान पीढ़ी से ही आस और उम्मीद करनी होगी! उन्हें इस बहस के सार्थक समाधान में अपने साथ शामिल करना ही होगा! और उन्हें इस विषय पर अपनी बात खुलकर बोलने की आज़ादी देनी ही होगी! इसी में उम्मीद की एक हलकी सी आस "भास" रही है!
शेष विध्वंश है!
भयानक!
माँ-बाप के बारे में सोचे बिना केवल केवल केवल और सिर्फ केवल लड़का-लड़की का सिर्फ अपने बारे में सोचना ही मूल समस्या है!
मैंने कई कोशिशें कीं, कि इसके प्रति एक सार्थक बात हो, लेकिन मुझे हतोत्साहित किया गया कि ज़लालुद्दीन मोहम्मद अकबर कुछ नहीं कर सका तो तुम क्या कर लोगे?
ठीक बात है, साब! मैं मामूली आदमी हूँ! मेरी सस्ती-सी हस्ती तो मामूली से भी गई गुजरी है! लेकिन जब मैं अपने बाबुजी की ओर और अपनी अईया और माँ को देखता हूँ तो मेरे खून में भी वही उबाल खौलता है जो केवल मरने और मारने की बात को प्रेरित करता है! जिसका अंजाम अच्छा नहीं होगा! इसे व्यक्तिगत समस्या मत समझिएगा! क्योंकि मेरे यहाँ ऐसी कोई स्थिति संभव ही नहीं है! मैं अपने साथियों दोस्तों लोगों समाज और देश के बारे में एक आवाज़ उठा रहा हूँ! कि, मिलजुलकर इस नासूर का कोई इलाज कीजिये!
कौन जानता है कि किसी का ब्रेन-ट्यूमर कब कैंसर में बदल जाय!
जय हिन्द!
_श्री .