"अखबारोक्ति" ०४, अप्रेल`२०११ {दैनिक जागरण, प्रकाशन ५/४/२०११}
रांची _
झारखण्ड हाई-कोर्ट उवाच: " शहर के अन्दर खटाल संचालित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. इससे तमाम तरह की समस्याएं आती हैं. खटाल वाले शहर से बहार जा कर इसे संचालित करें. ...चंडीगढ़ प्रशाशन ने राजभवन को भी गाय रखने की अनुमति नहीं दी थी. किसी भी परिस्थिति में शहर की अमन और शांति भंग करने की इज़ाजत नहीं दी जा सकती. अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा क़ि _ झारखण्ड में सबकुछ है. इस राज्य की जनता जिस दिन जग जाएगी बेईमानों को लैम्प-पोस्ट पर टांग देगी. अदालत तो जनता को जगाने का एक छोटा सा प्रयास कर रही है. आमजन यदि खामोश है तो इसे तूफ़ान के पहले की शांति मानकर सरकार को संभल जाना चाहिये."
....फिर, ५ अप्रेल को रांची में दंगा हो गया ! पुलिस और जनता आपस में भिड़ गयी ! लाठी-गोली सब चले ! जाने गयीं ! लोग घायल हुए. सांसद सुबोधकांत ये कहते हुए जेल गए कि '...वे जब तक जिंदा रहेंगे, अतिक्रमण को नहीं हटाने देंगे !!!' ....इस्लामनगर में और रांची के अन्य ईलाको में भरी गड़बड़ी के मद्देनज़र कर्फ्यू लगानी पड़ी. ७/८ अप्रेल को झारखण्ड बंद रखने का एलान " जनता" ने किया है !!
...और राज्य के मुख्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा विदेश भ्रमण को गए हुए है. इसलिए जनता उनका 'पुतला' दहन करेगी.
वाह! अदालत!! वाह! जनता!!! वाह! नेता!! वाह! सरकार!! ____________________________________