THE SECRET OF THE NAGAS [SHIVA TRILOGY part-II, by Amish]यह विश्लेषण समूचे उपन्यास की लघु कथा है ! (2) कृपया पढ़ें >>>
..............शिव ने देखा नाव में पानी बहुत तेजी से भर रहा था! उफनती नदी में डूबते अपने मित्र को बचाने के लिये बेतहाशा डगमगाती नाव को संभालने का प्रयत्न करते हुए शिव पतवारों से जूझ रहा है! ...पानी की थपेड़ों से आतंकित ब्रहस्पति की आँखें आश्चर्य से खुली रह जातीं हैं; उसे लगा कि उसके पैरों में कहीं से आई एक रस्सी लिपटती जा रही है और उसे पानी में खींच रही है! वह चीखता है "...Shiva! Help! Please help me!' शिव बेतहाशा नाव को ब्रहस्पति की तरफ खे रहा था! "Hold on! I'm coming!" अचनाक पानी में से एक विशालकाय तीन सिरों वाला सर्प निकला! शिव के देखते-देखते वह रस्सी ब्रहस्पति के जिस्म पर ऊपर लिपटती और उसे कसकर भींचती जा रही है! वह सर्प था! "Noooo!"
शिव हडबडा कर जाग उठा! शिव का ललाट ( उसकी भौहों के बीचोबीच) जोर से धधक रहा था! उसका नीला गला असह्य रूप से अत्यंत ही ठंढा हो गया था! देखा, सभी लोग सो रहे थे! नौका गंगा की लहरों में हौले-हौले डोलती अपने गंतव्य की ओर शांति से बढ़ रही थी। शिव खिड़की के पास खड़ा होकर ठंढी हवाओं के साथ अपने धड़कते दिल को काबू करने लगता है! ब्रहस्पति को याद कर शिव की मुट्ठियाँ कस जातीं हैं! वह पुनः अपनी शपथ दुहराता है _He curled his fist and rested it against the wall. "I will get him, Brahaspati. That snake will pay." ...............उन्हें काशी से निकले दो सप्ताह हो गए हैं! और तीन सप्ताह में वे ब्रंगा पहुँच जायेंगे।
[मैं थोडा हैरान हूँ। "पंचवटी" जैसी पावन भूमि "नागाओं" की राजधानी!!??......शायद जबाब आगे मिले।] ....नागाओं को खबर है कि शिव का काफिला ब्रंगा पहुँचने वाला है! घायल नागा स्वस्थ हो चूका है! नागाओं की रानी ब्रंगा के राजा को शिव के मंतव्य की सूचना दे कर उसे सचेत कर देने का संकेत देती है! "नागा", रानी को हैरान करते हुए काशी जाने की बात कहता है '..क्यों?' 'She didn't go with the Neelkanth.' The Queen stiffened. "नागा" सफाई देता है की इसीप्रकार से ही उसे 'उत्तर और शान्ति' मिल सकेगी। कुछ बहस के बाद रानी ये कहकर स्वीकृति देती है कि वह भी उसके साथ जायेगी!
यात्रा पर अपनी चौकस नज़र रखे मुआयने पर लगे पर्वतेश्वर की नज़र आनंदमई पर पड़ती है। उसे आश्चर्य होता है की आनंदमई, उतंक के निर्देशों का पालन करते हुए (वस्तुतः उसका मज़ाक उड़ाते हुए) चाक़ू से निशाना लगाने का अभ्यास कर रही है! वहीँ उसका छोटा भाई भागीरथ भी खड़ा है! आनंदमई सबको हैरत में डालते हुए एक लटके हुए Target Board पर एक के बाद एक सांय-सांय 6(छः) चाकुओं को चलाती हैं, और सभी ठीक Board के केंद्र पर लगतीं है! पर्वतेश्वर के मुँह से आनंदमई के लिए तारीफ निकल जाती है। .....इस SHIVA TRILOGY में आनंदमई एक रोचक किरदार हैं! वह हमेशा निडर, निर्भीक और बेबाक हैं! वह हमेशा अपने सौन्दर्य के लिए गुलाब की पंखुडियां मिले दूध से स्नान करती हैं! वह गज़ब की नृत्यांगना हैं! वह हमेशा बेबाकी से बिना किसी की परवाह किये 'उकसाने' वाले वस्त्र धारण करतीं हैं! और अभी हमें यह भी प्रमाण मिला कि वह एक कुशल 'योद्धा' भी हो सकतीं हैं! वह प्रारंभ से ही पर्वतेश्वर को रिझाने की कोशिश करती रहतीं हैं! जबकि पर्वतेश्वर "दशरथ-शपथ" धारी कट्टर ब्रम्हचर्य के मूर्तिमान, जीवंत स्वरुप हैं! इनकी बातचीत रोचक प्रसंग प्रस्तुत करती है! ऐसा लगता है जैसे दोनों के बीच कोई बाजी चल रही है! पर्वतेश्वर के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर आनंदमई मुस्काती हैं और सदा की भाँती उन्हें 'पर्व' कहकर पुकारती हैं! Anandmayi turned with a great smile. 'Parva! When did you get here?' Parvateshwar, meanwhile, had found something else to admire. He was staring at Anandmayi's bare legs. Or it seemed. Anandmayi shifted her weight, relaxing her hips to the side saucily. 'See, something you like, Parva?' पर्वतेश्वर आनंदमई की कमर से लटकती तलवार की ओर इशारा कर कहते हैं 'That is a long sword.' आनंदमई का चेहरा उतर जाता है। वह खीज जाती हैं! पर्वरेश्वर आनंदमई को अपने साथ द्वंद्वयुद्ध में तलवारबाजी के लिए आमंत्रित करते हैं। आनंदमई उनके इस प्रस्ताव की उपेक्षा कर यह जताते कि"{तुम अपने युद्ध कौशल की श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर मुझे अपने प्रभाव के नीचे दबाना और स्वयं को सर्वोत्कृष्ट साबित करना चाहते हो, ऐसा मुझे मंज़ूर नहीं!!}"_वहाँ से तूफ़ान के झोंके की तरह चली जातीं हैं!
शिव का काफिला ब्रंगा की जल सीमा में नदी में ही निर्मित उसके प्रवेश द्वार के पास पहुँच गया है! B.Tech. पढने वाले छात्रों (मेरे बच्चों) ने ब्रंगा के प्रवेश द्वार के बनावट पर कहा कि उन्हें यह बहुत अच्छा लगा! शिव कहता है कि ये द्वार नहीं "फंदे" हैं! इस स्थान का न्यायोचित फिल्मांकन (यदि फिल्म बनेगी तो) अमीश के दृष्टिकोण से बड़े जबरदस्त तकनीकी विशेषज्ञों की मांग करेगा! ........द्वार पर के रोमांचक प्रसंग किताब में पढने में मज़ा देता है! ईतना ... कि लिखने में हाथ दुख जाएगा! प्रवेश द्वार के द्वारपालों की मुखिया Major -प्रमुख- का नाम "उमा" है!! वह अपने कर्तव्य के प्रति दृढ-निश्चई और कठोर है! वह दिवोदास को पहचान जाती है। लेकिन पुरानी बातों को भूलते और दिवोदास को हैरत में डालते और व्यंग्य करते हुए उसके वापस आने का कारण पूछती है! उसकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि वह नागाओं की रानी को विशिष्ट मान देती है! तब विवश दिवोदास उससे कहता है कि वह नागाओं की रानी से भी ज्यादा अति-विशिष्ट व्यक्ति को लेकर ब्रंगा के राजा से मिलवाने आया है! लेकिन इसका उमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता! वह दिवोदास की खिल्ली उडाती है! तब हताश दिवोदास महसूस करता है कि अब स्वयं 'नीलकंठ' को ही सामने आना पड़ेगा! क्योंकि उसे मालूम था की उमा को भी "नीलकंठ की पौराणिक गाथाओं'" पर विश्वास था। भागीरथ भी प्रयत्न करता है, पर उमा अडिग है! बिना महत्वपूर्ण कारण के, प्रवेश की इजाज़त नहीं! बात इतनी बढ़ जाती है कि उमा शिव तक को धक्का दे कर तिरस्कार पूर्ण स्वर में उसे Get out of Here कह देती है!! तलवारें मायनों से बहार निकल आतीं हैं ..., अचानक! "...ठहरिये!"_शिव आ खड़ा होता है। उसका अंगवस्त्रम खिसका हुआ है! उसका नीला गला साफ़ दीप्तिमान होकर नुमायां हो रहा है! यह देखते ही उमा धम्म से बैठ जाती है और .....भौंचक्का-सा शिव देखता रह जाता है,.....अब उमा की रुलाई रोके नहीं रुक रही! वह रोये ही जा रही है और शिव के करीब आकर शिव की छाती पर मुक्का मारते रोती है और आंसू बहाते विलाप करते लगातार कहते जा रही है "...अब तक तुम कहाँ थे, ...अब तक तुम कहाँ थे,.!!..तुम पहले क्यूँ न आये,...तुम पहले क्यूँ न आये,..!!".
****************
इधर सती की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं! काशी का राजा अथिथिग्व एक -नागा- से "राखी" बंधवा रहा है! वह नागा स्त्री, जिसका धड़ तो एक है पर छाती के पास से दो-दो कंधे और दो सर हैं! असल में वह एक शरीर में दो-औरत है!! सती इस स्तब्धकारी दृश्य से हैरान-परेशान है कि एक सेविका की नज़र सती पर पड़ जाती और सती को सामने आना पड़ता है! वह आक्रामक भाव से अथिथिग्व से जबब-तलब करती है और कारण पूछती है! तब वह दो सिर वाली नागा स्त्री जिसका नाम "माया" है सती से बहस करती है! उसका एक सिर "सरलमना" है जबकि दूसरा _"आक्रामक!!" इस बहस को किताब में पढ़िए! अथिथिग्व उसे अपनी बहन बताता है! और सती से वचन मांगता है कि वो ये रहस्य किसी से न कहे! सती वचन देती है! _सूर्यवंशी वचन!!
________________मेरी खोपड़ी भन्ना रही है!
आप भी भुनभुनाइये!
कुछ अवकाश चाहता हूँ! शीघ्र हाजिर होऊंगा!
नमस्ते!
विनयावनत,
_श्री .
शिव हडबडा कर जाग उठा! शिव का ललाट ( उसकी भौहों के बीचोबीच) जोर से धधक रहा था! उसका नीला गला असह्य रूप से अत्यंत ही ठंढा हो गया था! देखा, सभी लोग सो रहे थे! नौका गंगा की लहरों में हौले-हौले डोलती अपने गंतव्य की ओर शांति से बढ़ रही थी। शिव खिड़की के पास खड़ा होकर ठंढी हवाओं के साथ अपने धड़कते दिल को काबू करने लगता है! ब्रहस्पति को याद कर शिव की मुट्ठियाँ कस जातीं हैं! वह पुनः अपनी शपथ दुहराता है _He curled his fist and rested it against the wall. "I will get him, Brahaspati. That snake will pay." ...............उन्हें काशी से निकले दो सप्ताह हो गए हैं! और तीन सप्ताह में वे ब्रंगा पहुँच जायेंगे।
[मैं थोडा हैरान हूँ। "पंचवटी" जैसी पावन भूमि "नागाओं" की राजधानी!!??......शायद जबाब आगे मिले।] ....नागाओं को खबर है कि शिव का काफिला ब्रंगा पहुँचने वाला है! घायल नागा स्वस्थ हो चूका है! नागाओं की रानी ब्रंगा के राजा को शिव के मंतव्य की सूचना दे कर उसे सचेत कर देने का संकेत देती है! "नागा", रानी को हैरान करते हुए काशी जाने की बात कहता है '..क्यों?' 'She didn't go with the Neelkanth.' The Queen stiffened. "नागा" सफाई देता है की इसीप्रकार से ही उसे 'उत्तर और शान्ति' मिल सकेगी। कुछ बहस के बाद रानी ये कहकर स्वीकृति देती है कि वह भी उसके साथ जायेगी!
यात्रा पर अपनी चौकस नज़र रखे मुआयने पर लगे पर्वतेश्वर की नज़र आनंदमई पर पड़ती है। उसे आश्चर्य होता है की आनंदमई, उतंक के निर्देशों का पालन करते हुए (वस्तुतः उसका मज़ाक उड़ाते हुए) चाक़ू से निशाना लगाने का अभ्यास कर रही है! वहीँ उसका छोटा भाई भागीरथ भी खड़ा है! आनंदमई सबको हैरत में डालते हुए एक लटके हुए Target Board पर एक के बाद एक सांय-सांय 6(छः) चाकुओं को चलाती हैं, और सभी ठीक Board के केंद्र पर लगतीं है! पर्वतेश्वर के मुँह से आनंदमई के लिए तारीफ निकल जाती है। .....इस SHIVA TRILOGY में आनंदमई एक रोचक किरदार हैं! वह हमेशा निडर, निर्भीक और बेबाक हैं! वह हमेशा अपने सौन्दर्य के लिए गुलाब की पंखुडियां मिले दूध से स्नान करती हैं! वह गज़ब की नृत्यांगना हैं! वह हमेशा बेबाकी से बिना किसी की परवाह किये 'उकसाने' वाले वस्त्र धारण करतीं हैं! और अभी हमें यह भी प्रमाण मिला कि वह एक कुशल 'योद्धा' भी हो सकतीं हैं! वह प्रारंभ से ही पर्वतेश्वर को रिझाने की कोशिश करती रहतीं हैं! जबकि पर्वतेश्वर "दशरथ-शपथ" धारी कट्टर ब्रम्हचर्य के मूर्तिमान, जीवंत स्वरुप हैं! इनकी बातचीत रोचक प्रसंग प्रस्तुत करती है! ऐसा लगता है जैसे दोनों के बीच कोई बाजी चल रही है! पर्वतेश्वर के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर आनंदमई मुस्काती हैं और सदा की भाँती उन्हें 'पर्व' कहकर पुकारती हैं! Anandmayi turned with a great smile. 'Parva! When did you get here?' Parvateshwar, meanwhile, had found something else to admire. He was staring at Anandmayi's bare legs. Or it seemed. Anandmayi shifted her weight, relaxing her hips to the side saucily. 'See, something you like, Parva?' पर्वतेश्वर आनंदमई की कमर से लटकती तलवार की ओर इशारा कर कहते हैं 'That is a long sword.' आनंदमई का चेहरा उतर जाता है। वह खीज जाती हैं! पर्वरेश्वर आनंदमई को अपने साथ द्वंद्वयुद्ध में तलवारबाजी के लिए आमंत्रित करते हैं। आनंदमई उनके इस प्रस्ताव की उपेक्षा कर यह जताते कि"{तुम अपने युद्ध कौशल की श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर मुझे अपने प्रभाव के नीचे दबाना और स्वयं को सर्वोत्कृष्ट साबित करना चाहते हो, ऐसा मुझे मंज़ूर नहीं!!}"_वहाँ से तूफ़ान के झोंके की तरह चली जातीं हैं!
शिव का काफिला ब्रंगा की जल सीमा में नदी में ही निर्मित उसके प्रवेश द्वार के पास पहुँच गया है! B.Tech. पढने वाले छात्रों (मेरे बच्चों) ने ब्रंगा के प्रवेश द्वार के बनावट पर कहा कि उन्हें यह बहुत अच्छा लगा! शिव कहता है कि ये द्वार नहीं "फंदे" हैं! इस स्थान का न्यायोचित फिल्मांकन (यदि फिल्म बनेगी तो) अमीश के दृष्टिकोण से बड़े जबरदस्त तकनीकी विशेषज्ञों की मांग करेगा! ........द्वार पर के रोमांचक प्रसंग किताब में पढने में मज़ा देता है! ईतना ... कि लिखने में हाथ दुख जाएगा! प्रवेश द्वार के द्वारपालों की मुखिया Major -प्रमुख- का नाम "उमा" है!! वह अपने कर्तव्य के प्रति दृढ-निश्चई और कठोर है! वह दिवोदास को पहचान जाती है। लेकिन पुरानी बातों को भूलते और दिवोदास को हैरत में डालते और व्यंग्य करते हुए उसके वापस आने का कारण पूछती है! उसकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि वह नागाओं की रानी को विशिष्ट मान देती है! तब विवश दिवोदास उससे कहता है कि वह नागाओं की रानी से भी ज्यादा अति-विशिष्ट व्यक्ति को लेकर ब्रंगा के राजा से मिलवाने आया है! लेकिन इसका उमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता! वह दिवोदास की खिल्ली उडाती है! तब हताश दिवोदास महसूस करता है कि अब स्वयं 'नीलकंठ' को ही सामने आना पड़ेगा! क्योंकि उसे मालूम था की उमा को भी "नीलकंठ की पौराणिक गाथाओं'" पर विश्वास था। भागीरथ भी प्रयत्न करता है, पर उमा अडिग है! बिना महत्वपूर्ण कारण के, प्रवेश की इजाज़त नहीं! बात इतनी बढ़ जाती है कि उमा शिव तक को धक्का दे कर तिरस्कार पूर्ण स्वर में उसे Get out of Here कह देती है!! तलवारें मायनों से बहार निकल आतीं हैं ..., अचानक! "...ठहरिये!"_शिव आ खड़ा होता है। उसका अंगवस्त्रम खिसका हुआ है! उसका नीला गला साफ़ दीप्तिमान होकर नुमायां हो रहा है! यह देखते ही उमा धम्म से बैठ जाती है और .....भौंचक्का-सा शिव देखता रह जाता है,.....अब उमा की रुलाई रोके नहीं रुक रही! वह रोये ही जा रही है और शिव के करीब आकर शिव की छाती पर मुक्का मारते रोती है और आंसू बहाते विलाप करते लगातार कहते जा रही है "...अब तक तुम कहाँ थे, ...अब तक तुम कहाँ थे,.!!..तुम पहले क्यूँ न आये,...तुम पहले क्यूँ न आये,..!!".
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इधर सती की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं! काशी का राजा अथिथिग्व एक -नागा- से "राखी" बंधवा रहा है! वह नागा स्त्री, जिसका धड़ तो एक है पर छाती के पास से दो-दो कंधे और दो सर हैं! असल में वह एक शरीर में दो-औरत है!! सती इस स्तब्धकारी दृश्य से हैरान-परेशान है कि एक सेविका की नज़र सती पर पड़ जाती और सती को सामने आना पड़ता है! वह आक्रामक भाव से अथिथिग्व से जबब-तलब करती है और कारण पूछती है! तब वह दो सिर वाली नागा स्त्री जिसका नाम "माया" है सती से बहस करती है! उसका एक सिर "सरलमना" है जबकि दूसरा _"आक्रामक!!" इस बहस को किताब में पढ़िए! अथिथिग्व उसे अपनी बहन बताता है! और सती से वचन मांगता है कि वो ये रहस्य किसी से न कहे! सती वचन देती है! _सूर्यवंशी वचन!!
________________मेरी खोपड़ी भन्ना रही है!
आप भी भुनभुनाइये!
कुछ अवकाश चाहता हूँ! शीघ्र हाजिर होऊंगा!
नमस्ते!
विनयावनत,
_श्री .