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Friday, April 5, 2013

THE SECRET OF THE NAGAS [SHIVA TRILOGY part-II, by Amish]

THE SECRET OF THE NAGAS [SHIVA TRILOGY part-II, by Amish]यह विश्लेषण समूचे उपन्यास की लघु कथा है ! (1) कृपया पढ़ें >>>
इस किताब के प्रारंभ से पहले .....
शिव को अपने बचपन की एक हौलनाक दास्तान की याद आ रही है, और उसे अपने चाचा की सुकून पहुंचाने वाली बातें याद आ रहीं हैं, उसे थोड़ी सांत्वना मिलती है। .....

रामजन्मभूमि मंदिर, अयोध्या के प्रांगण में शिव-सती पर घात लगाकर, 'वही' नागा अचानक हमला कर उन्हें घायल कर देता है! इस भिडंत के बाद शिव के पीछा करने पर वह नागा तो एक घोड़े पर सवार होकर उसकी रास अपने चाक़ू से काटकर, निकल भागता है! लेकिन उसी नागा के द्वारा घोड़े के मालिक को फेंककर मारी गई स्वर्णमुद्राओं से भरी पोटली में से शिव एक स्वर्णमुद्रा (2-स्वर्णमुद्राओं के बदले) लेकर घायल सती को दिखाता है; दोनों उसपर ढलाईकर उंकेरी गई आकृति पर हैरान होते हैं! इसपर एक Horizontal crescent moon; चंद्रमा, और टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें थीं!! ...क्या हैं ये ?


स्वद्वीप की सभा में _शिव में, पिछले युद्ध के अनुभव के बाद, आये वैचारिक बदलाव से दक्ष अचंभित हैं! ...शिव का मानना है कि ये लोग(...चंद्रवंशी) बुरे नहीं हैं! राजा दिलीप 'नीलकंठ' के बदले विचार से प्रसन्न है; लेकिन राजकुमार भागीरथ अभी भी शंकालु हैं और 'बर्बर देहाती' को आदर नहीं देते! शिव द्वारा पूछे जाने पर कि वह नागाओं को कैसे ढूंढ सकता है, दिलीप सहम जाते हैं, पर बतलाते हैं कि "ब्रंगा" का राजा इस बारे में अच्छा बतला सकता है; क्योंकि वह 'काली-शक्तियों' को मानने वाला और नागाओं से मेल-जोल रखने वाला है! 'अश्वमेध यज्ञ' में स्वद्वीप से पराजित होने के बाद हुए समझौते के मुताबिक स्वद्वीपवासी उनके राज्य-छेत्र में प्रवेश नहीं करेंगे इसके बदले _ब्रंगा, स्वद्वीप को सालीना शुल्क देगा! शिव इस बात से चकित होता है कि स्वद्वीप के अधिकार क्षेत्र की भूमि के भीतर "एक दूसरा राज्य और राजा' भी हो सकता है!" इसी तरह 'काशी' भी स्वद्वीप साम्राज्य के भीतर ही है और अविश्वसनीय परन्तु समृद्ध ब्रंगा वाले सिर्फ काशी से ही व्यापारिक सम्बन्ध रखते हैं! इसी बैठक में यह भी पता चलता है कि ब्रंगा में कोई 'रहस्यमई-बीमारी" सदैव एक महामारी की तरह आती है जिससे आक्रान्त होकर कुछ ब्रंगा वासी काशी में 'शरणार्थी' के रूप में बसे हुए हैं! जिन्हें अपने राज्य ब्रंगा से सहायता मिलती रहती है! यहीं सती राजा दिलीप से पूछतीं हैं कि ब्रंगा कहाँ स्थित है? _उत्तर सुनकर, एक-दूसरे को देखते हुए शिव-सती मुस्कुराते हैं! __उनकी समझ में 'नागा' वाले 'स्वर्णमुद्रा पर उंकेरी गई आकृति" का रहस्य समझ में आ गया था!
 Dilipa was about to ask where Shiva got the coin from, but was cut off by the Neelkanth.
`How quickly can we leave for Kashi?`
राजा दक्ष और राजा दिलीप में संधि के लिए शिव बहुत ही होशियारी से ऐसी व्यवस्था कायम करता है कि जिसे दोनों राजा सहर्ष मान जाते हैं! काशी-यात्रा की तैयारी और नीलकंठ और सती की सुरक्षा में पर्वतेश्वर को तैनात कर दक्ष अपनी राजधानी लौट जाते हैं! .... इसी बीच फुर्सत में दोस्त भद्र के साथ चिलम का आनंद लेते वे भगीरथ और राजा दिलीप के पारस्परिक संबंधों पर चर्चा में लीन थे कि चीख-पुकार सुनाई देती है! भगीरथ का घोडा बेकाबु होकर खतरनाक ढंग से खाई की तरफ भागा जा रहा है! उसपर सवार भगीरथ की जान खतरे में हैं,..शिव उनकी प्राण रक्षा करता हैं, घोड़े के बेकाबु होने के कारण को दिखाकर शिव समझाता है कि `...Somebody doesn't like you, my friend.`...... भगीरथ शिव का मित्र बन जाता है! शिव भगीरथ को अपने साथ काशी चलने को आमंत्रित करता है!

आनंदमई (भगीरथ की बड़ी बहन) भी काशी यात्रा पर चलेंगी, अतः उनकी विशेष मांग और सेवा पूछने के उद्देश्य से पर्वतेश्वर उनसे मिलते हैं तो आनंदमई सरयू नदी के दक्षिण (वर्तमान में बिहार स्थित बक्सर में गंगा नदी के) तट पर स्थित उस स्थान पर जहाँ भगवन श्रीराम ने ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से ताड़का राक्षषी का वध किया था, पूजा-अर्चना करने के लिए रुकने और व्यवस्था करने की मांग करतीं हैं जहाँ ऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम-लक्षमण को विशेष अमोघ अष्त्र-शष्त्र प्रदान कर उन्हें उनकी दीक्षा दी थी! ... शिव की काशी यात्रा प्रारंभ हो जाती है! शिव का काफिला; जिसमे सभी -प्रमुख किरदार- शामिल हैं, सरयू नदी में विशेष नौका-यानों पर सवार हो, काशी प्रस्थान करता हैं! सुन्दर मनोरम दृश्यों को देख पुलकित होते, विशेष स्थानों पर रूककर पूजा करते वे आगे काशी की ओर बढ़ते हैं! ......इस यात्रा में नदी के किनारे सबकी आँखों से छिपते-छिपाते नागओं का एक सैन्यदल, उनका सरदार "नागा"_'लोकाधीश', सेनापति विश्व्द्युम्न, और नागाओं की महारानी और उनका प्रधान-मंत्री 'कर्कोटक' एक षड्यंत्र के तहत शिव के काफिले के साथ-साथ चल रहे हैं!! (ढान-ढ़-ना!!)....ये "नागा", महारानी को विशेष क्षणों में "मौसी" बुलाता है! .... शिव का काफिला 'मगध'-नगर- में प्रवेश करता है, जहाँ का राजा 'महेन्द्र' है! और भी कई नए किरदारों और उनकी निष्ठा, और वास्तविकता से परिचित होते, हर्षित और रोमांचित होते, अचंभित होते, पड़ाव डालते और नौकायन करते शिव-सती आगे बढ़ रहे हैं! .... इधर जंगल में मगध का राजकुमार 'उग्रसेन' एक अबला आदिवासी महिला से उसका बच्चा छीनना चाहता है, वह माँ अपने बेटे की रक्षा के लिए संघर्ष करती है,... इस संघर्ष का कोलाहल सुनकर स्तब्ध नागा इस दृश्य को देखते हैं! नागाओं का मुखिया "नागा" सोचता है "...क्या माँ है!" _वह उग्रसेन को ललकारता है,... तना-तनी और बहस होती है, कुछ ऐसी सच्चाईयां सामने आती हैं जो उग्रसेन के प्रति बर्बर और घृणास्पद है!!  ...लेकिन "नागा" का इस प्रकार द्रवित होना...सवाल खड़े करता है!! "नागा" (नागाओं का _तथाकथित 'लोकाधीश') _उनका विरोधकर बच्चे को छुड़ाकर उसे उसकी माँ को देने के लिए लड़ाई करता हैं,... एक तीर उसके कंधे को बेध डालती है जिसके आवेग से उसके पाँव उखड़ जाते है और उसपर मूर्छा तारी हो जाती है! लेकिन वह संभलकर उठता है और पूरी नागा सेना उग्रसेन के दल पर घातक आक्रमण कर देती है ....`NO MERCY!`........

मगध में शिव, भगवन 'नरसिंह' के दर्शन कर मुग्ध होता है। उस मंदिर में उसे पिछली बार के तीन पंडितों; जो स्वयं को विष्णु के उत्तराधिकारी 'वसुदेव' कहते हैं, चौंथे पंडित से होती है .....यहाँ शिव को एक नयी अनुभूति होती है' ....Radio Waves...!'; जिसके प्रयोग से सभी वसुदेव जब जी चाहे एक-दूसरे से मानसिक तरंगों द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं! शिव के आश्चर्य का कारण है कि पंडितजी उसके मन की बात कैसे सुन पाए!!?....और बड़ा आश्चर्य स्वयं शिव अन्य सभी वसुदेवों की बातें और आवाजे कैसे और क्यों सुन पा रहा है ...!? कई तरह से शिव के कई सवालों के जबाब मिलते हैं पर कई और नए सवाल खड़े हो जाते हैं!....

{हमारे नायक दल में चर्चा है कि उग्रसेन की मौत के लिए मगध उन्हें जिम्मेवार समझता होगा !}...उग्रसेन का भाई सुर्पदमन सबको चकित करते हुए नीलकंठ की सेवा में विनम्रता से हाज़िर होता है! सुर्पदमन एक स्वर्ण मुद्रा दिखाकर बतलाता है कि वह उसे उग्रसेन की लाश के पास से मिला है; और शिव से सवाल पूछकर सबको चकित कर देता है कि 'अयोध्या में आपको ऐसा ही सिक्का मिला था ना!!'.....शिव सुर्पदमन को आश्वाशन देता है कि जब "नागा" से उसका सामना होगा तो सुर्पदमन को युद्ध में अवश्य शामिल करेगा।

नागाओं की महारानी नागा-प्रमुख के घायल होने पर चिंतित हो अपनी राजधानी 'पंचवटी' की यात्रा से वापस लौटकर नागा को डांटती है कि उसने एक वाहियात जंगली औरत के लिए अपनी और सभी सैनिकों की जान खतरे में डालने का दुस्साहस किया फिर उसे "उस स्त्री"(कौन?...सती..!?); से{जो शुरू से ही उनकी चिंता का विषय औरTarget है}दूर रहने की अपनी पुरानी सलाह को जोर देकर दुहराती है! ....इधर, शिव-सती सकुशल काशी पहुँचते हैं और वहां के पवित्र वातावरण से प्रसन्न होकर निर्णय लेते हैं कि उनके बच्चे का यहीं जन्म लेना श्रेष्ठ होगा! वे काशी नगरी के 'अस्सी घाट' पर पहुँच जाते हैं! घाट का नाम "अस्सी(80)" रखने के बारे में शिव के प्रश्नोत्तर में भगीरथ उन्हें वह प्रसंग बतलाते हैं जो इस नामकरण का निमित्त बना था!...यहाँ शिव के मन में एक सवाल उठता है, (`...किसने कहा असुर बुरे होते हैं...!!?`) भगवान् 'रूद्र' के द्वारा हुई उस युद्ध के बाद "रूद्र" की ही आज्ञा पर दैवी-अष्त्रों पर प्रतिबन्ध, अस्सी घाट पर 'अब कोई वध नहीं'; और मृतकों की अंत्येष्टि के आज्ञा की कथा रोमांचित करती है! किसी की भी अत्येष्टि काशी में गंगा के तटों पर की जा सकती है _की अनुमति प्रसारित होते ही कई आप्रवासियों ने काशी को अपना घर ही बना लिया! इस प्रकार ब्रंगा वालों ने भी यहीं अपना छेत्र (लोकल भाषा में मोहल्ला) बाउंड्री-वाल सहित एक नगर ही बसा डाला था! इन कहानियों को सुनते हुए शिव की नौका काशी के 'अस्सी-घाट' पर लंगर डालती है! काशी में शिव के आगमन की सूचना से उत्साह-उल्लास का वेग किसी थामे नहीं थम रहा, सभी 'नीलकंठ' को देखना और छूना चाहते हैं! घाट पर बड़ी भारी भीड़ है! काशी नरेश 'अथिथिग्व' आगे आकर, ख़ुशी से भीगी आँखों से, नीलकंठ और उनकी प्राणप्रिया सती का स्वागत करते हैं!

शिव-सती के काशी आगमन पर सभी खुश हैं! .....अचानक; जब नीलकंठ जनता से मिलने वाले हैं, भारी खलबली मच जाती है, समाचार मिलता है कि ब्रंगा वालों के छेत्र में स्थानीय लोगों के साथ "दंगा" हो गया है ..."क्यों? 'क्योंकि ब्रंगा वालों ने फिर (...फिर) एक मोर (peacock) की हत्या कर दी है!! ...इस दंगे को काफी बहस और बिचार के बाद कंट्रोल करने के लिए पर्वर्तेश्वर स्वयं को प्रस्तुत करते हैं!....रण-नीतियां तैयार होते ही वे पर्वतेश्वर के नेतृत्व में ब्रंगा वासियों के छेत्र में वे प्रवेश करते हैं! पर्वतेश्वर ने बहुत अच्छी रण-नीति अपनाई थी, किसी की जान नहीं लेनी, सिर्फ टेम्प्रोरली घायल करना है, .. वे धावा बोलते हैं, पत्थरों की बरसात जो किसी मिसाइल से कम नहीं थी, को झेलते, धकेलते सभी ब्रंगा वालों की प्रधान कोठी में घुस जाते हैं जहां ह्रदय विदारक रहस्योद्घाटन होता है कि ब्रंगा वाले 'मोर' को क्यों मारते थे!? .. तभी एक ब्रंगा वासी पर्वतेश्वर के सर पर भरी वजनी प्रहार कर उसे प्राणघातक रूप से विस्मित करते हुए घायल कर देता है! [अमीश कहते हैं_ Even a Mountain Can Fall!]
 ...इधर, शिव-सती 'काशी' में विश्वनाथ मंदिर में आते हैं और वहां की अप्रतिम सुन्दरता और शान्ति से प्रभावित होकर बहुत प्रसन्न होते हैं! भगवन विश्वनाथ -रूद्र- की मूर्ती उन्हें रोमांचित करती है, स्तब्ध करती है, प्रफुल्लित करती है! वहीँ सती के सहचरी कृतिका को यह सवाल सूझता है कि रूद्र की संगिनी "मोहिनी" यहाँ क्यों नहीं हैं? उसे शीघ्र ही उत्तर मिल जाता है! उसे 'मोहिनी' का दर्शन होता है, और उनकी मूर्ती की स्थापना के पीछे छिपे दर्शनशात्र की महत्ता समझ में आती है! यहाँ अथिथिग्व से शिव को -रूद्र- के मोती जड़ी दाढ़ी-युक्त संरचना की कथा और 'परीहा' (परियों के देश) की बात सुनने को मिलती है। प्रभु रूद्र की प्रतिमा भय उत्पन्न करने वाली थी, ...क्यों? शिव सोचता है, तभी उसे वसुदेवों की आवाजें सुनाई देतीं हैं ..... जो उत्तर भी दे रहीं हैं और सवाल भी पूछ रही हैं ... `Where are you Panditji?`
`Hidden, from view; Lord Neelkanth. There are too many people around.`
`I need to talk to you.`
`All in the good time, my friend. But if you can here me, can't you here the desperate call of your most principled follower?`
MOST PRINCIPLED FOLLOWER?
The voice had gone silent. Shiva turned around,concerned.
शिव, पर्वतेश्वर के लिए जहाँ चिंतित है वहीँ कुछ क्रुद्ध भी! आयुर्वती पर्वतेश्वर की प्राण रक्षा के लिए हर संभव प्रयत्न कर रहीं हैं! एक बार फिर 'सोमरस' के इस्तेमाल पर सवाल-जबाब होते हैं, अंततः सोमरस का प्रयोग किया जाता है! पर्वतेश्वर की खोपड़ी की हड्डी के नीचे कनपटी के ऊपर दिमाग में गंभीर रक्त-स्राव हुआ है; "That there was blood haemorrhaging" _OPPERATION? शल्य-चिकित्सा खोपड़ी की चोट में तभी की जा सकती है जब मरीज़ को होश हो और उसे अपनी घायलावस्था का पूरा भान हो; अन्यथा प्राण जा सकते हैं! सिर्फ एक उपाय है 'सजीव; LIVE ताज़ी संजीवनी वृक्ष की छाल!"; जो सिर्फ 'मेलुहा' में है या हिमालय की तराई में! मुश्किल यह है की वह छाल, वृक्ष से अलग होते ही अपनी शक्ति कुछ ही मिनटों में तुरंत खो कर बेकार हो जाता है; फायदा तभी है जब उसे उन्हीं ताज़े क्षणों के भीतर ही प्रयोग में लाया जाय! सोमरस ने बस इतनी सहायता की, कि रक्तस्राव रुक गया! पर..., तभी नंदी भगीरथ को अपने साथ आने को कहता है! चकित भगीरथ नंदी के साथ हो लेता है और तब उसे सबसे ज्यादा हैरानी होती है जब नंदी उसे ब्रंगा काबिले के सरदार 'दिवोदास' से मिलवाता है! दिवोदास दुखी है कि उसकी गैर-मौजूदगी में वह हादसा हुआ! वह पर्वरेश्वर के प्रति कृतज्ञ है कि उनकी रण-नीति के कारण ही उसके काबिले वाले और उसका परिवार अभी जीवित और सुरक्षित हैं! अतः वह सहायता करना चाहता है! कुछ बहस के बाद दिवोदास, भगीरथ को एक मलहम देता है जो पर्वतेश्वर की प्राण-रक्षा कर सकेगा! ...आयुर्वती इस मलहम को सूंघते ही गंभीर हो जाती है, लेकिन उसी से पर्वतेश्वर की प्राण रक्षा होती है! "_सफल इलाज़ के बाद में_"; यह बात आयुर्वती शिव की मौजूदगी में भगीरथ से पूछती है कि उसे वो चमत्कारी मलहम कहाँ से मिला !? भगीरथ असमंजस में पड़ जाता है; क्योंकि शिव की आँखों में शंका है! आयुर्वती के मुताबिक उस मलहम में ऐसे मिश्रण थे जो संजीवनी वृक्ष के छाल के गुणों को बनाय रखने में कामयाब थे और ऐसी विद्या सिर्फ "-नागाओं-" को मालूम थीं!!!???(ढन-ढ़-ना!!) ...अब भगीरथ परेशान हो जाता है और बार-बार शिव को मनाने लगता है उसका नागाओं से कुछ लेना-देना नहीं! `प्रभु .....!` पर्वतेश्वर के लिए चिंतित आनंदमई भी अब उनके उत्तम स्वस्थ्य से संतुष्ट और खुश हैं! अंततः शिव भी शांत होता है; और विचार कर दिवोदास से तुरंत मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता है! दिवोदास से मिलने और एक दुसरे को पसंद करने के उपरांत शिव दिवोदास को ब्रंगा जाने की अपनी इच्छा ही नहीं अपनी आज्ञा भी सुनाता है! वजह? दिवोदास के मुताबिक ब्रंगा साम्राज्य जो दर असल स्वद्वीप के अंतर्गत है नागाओं से ज्यादा लगाव रखता है; और उसका राजा 'चंद्रकेतु' इसमें नागाओं के प्रति उदार है! ...क्यों !!??? शिव दिवोदास को अपनी शरण देता है ! और उसे शीघ्र (शुभस्यशीघ्रम) ब्रंगा यात्रा की तैयारी की आज्ञा देता है! ...इसी दरम्यान काशी के मंदिर में 'वसुदेव' पंडितजी शिव को एक लेप देते हैं; यह कहकर कि इसे सती के उदर पर लगावें इससे प्रसव आसान होगा! और सती जो शंकित थी की कहीं  फिर कुछ (पुरानी जैसी अनहोनी न हो) कोई शंका नहीं रहेगी! शिव-सती के पुत्र का निर्विघ्न जन्म होता है! चूँकि शिव, सती की परिचारिका 'कृतिका' से बहुत प्रसन्न है अतः अपनी "बेटी" का नाम कृतिका ही रखना चाहता है जबकि सती की जिद्द है कि लड़का होगा! आखिरकार वह शुभ घडी आ ही गई जब शिव-सती के प्रथम संतान की उत्पत्ति हुई! आयुर्वती ख़ुशी से झूमती प्रसव-गृह से बाहर आ शिव को बतातीं हैं की STRONG, NICE, BEAUTIFUL, HAPPY, MIGHTY, HEALTHY पुत्र का जन्म हुआ है! सारी काशी नगरी में उत्साह और उल्लास का वातावरण छा जाता है! इस शुभ समाचार को सुन राजा दक्ष अपनी रानी वीरनी सहित काशी पधारते हैं! राजा दिलीप भी शामिल होते हैं! समूचे नगर में उत्सव का माहौल है! इस उत्सव में आनंदमई के साथ "उत्तंक" का युगल नृत्य और शिव की एकल नृत्य से सभी को अलौकिक आनंद और सुख की अनुभूति होती है! चूँकि शिव कृतिका की सेवा भाव से बहुत प्रभावित था उसने अपने बेटे को ( जो अगर बेटी होती तो कृतिका ही कहलाती) "कार्तिक" नाम देता है!.., इधर दिवोदास शिव की आज्ञानुसार पोत (शक्तिशाल्ली नाव) के निर्माण में लगा है! इसी दरम्यान द्रपकु के अंधे पिता 'पूर्वक' का भी काशी आगमन होता है! जिसे थोड़े परिहास के बाद शिव उसे अपने अंगरक्षकों में शामिल कर लेता है क्योंकि वह एक पुराना लेकिन काबिल योद्धा रह चूका है; जो अपने अंधेपन के बावजूद अभी भी आवाजों को सुनकर मुकाबला करने में और शत्रु को पराजित करने में खूब सक्षम है!

राजा दक्ष द्वारा कार्तिक के लिए 18-वर्षों तक के लिए 'सोमरस' चूर्ण के उपहार का शिव-सती विरोध करते हैं! तब मजबूरन दक्ष को यह बताना पड़ता है कि मंदार पर्वत के (ब्रहस्पति सहित) विध्वंश के बावजूद एक जगह कहीं गोपनीय रूप से ऋषि भृगु के निर्देशानुसार प्रचुर मात्रा सोमरस चूर्ण उपलब्ध है जो पूरे मेलुहा के लिए काफी से ज्यादा है! और लगातार निर्माण का काम भी ज़ारी है! ... इसी बीच नए पोत के निर्माण कार्य के निरिक्षण से लौटते भगीरथ पर एक जानलेवा हमला होता है जिसे भगीरथ और गुप्त रूप से छिपे नंदी, जो शिव की आज्ञा पर भागीरथ पर गोपनीय सुरक्षात्मक निगाह रखता है; की सहायता से आसानी से विफल कर दिया जाता है! ...आनंदमई की सिफारिश पर उतंक; एक पुराना योद्धा जो घायल होने के कारण अपने कूबड़ की वजह से नाकाम हो चूका है; जो एक बहुत ही सक्षम योद्धा भी है, को शिव की सेना में शामिल करने की फरमाइश पर पर्वरेश्श्वार उतंक की नकली (लकड़ी की) तलवार से परीक्षा लेता है और उसकी क्षमता से प्रभावित होकर सेना में शामिल करता है; आनंदमई प्रसन्न होती है!

शिव और अन्य सभी दिवोदास द्वारा निर्मित नाव (पोत) को देख कर जहाँ खुश होते हैं वहीँ हैरान भी होते हैं कि उसकी पेंदी में -नयी धातु- "लोहे" की चादरों का बहुलता से प्रयोग कर विचित्र निर्माण किया गया था! पूछने पर दिवोदास उन्हें कहता है कि नाव जब ब्रंगा की जल सीमा के "फाटक" पर पहुंचेगी तभी इसका महत्त्व सबकी समझ में आएगा! आयुर्वती दिवोदास का आभार व्यक्त करतीं हैं कि उनके दिए लेप से सती का प्रसव आसन हुआ; ...दिवोदास हैरत से इनकार करता है! निःसंदेह उसने पर्बतेश्वर के लिए वह लेप भगीरथ को दिया था, पर किसी प्रसव के लिए नहीं! सभी को विलक्षण आश्चर्य होता है, कि शिव को वह लेप किसने दिया था!? ...शिव क्रोध में है! वह नंदी और वीरभद्र को अपने साथ ले कर बिना किसी के प्रश्नों का उत्तर दिए निकल पड़ता है! मंदिर में पहुंचकर शिव वसुदेवों को गर्जना से पुकारता है लेकिन सिर्फ उसकी ही ध्वनी गूंजती है कोई उत्तर नहीं मिलता! क्रोध से उन्मत्त शिव मंदिर से बाहर निकल जाता है! {उसके मन में ये प्रश्न था कि नागाओं वाली औषधि मिली संजीवनी का लेप वसुदेओं के पास कैसे और क्योंकर पहुंचा!!??] (...शिव को उसका बचपन; वह असाधारण घटना; वह लेप!!! और उसके काका के बोल याद आते हैं!)...सती आश्चर्यचकित है! वसुदेव पंडितजी के पास नागाओं वाली औषधि!  "?" '...कैसे ? ...क्यों?'

शिव, सती और कार्तिक से विदा लेता है और दिवोदास द्वारा तैयार नौका-यानों पर अपने कुमुक के साथ सवार होकर ब्रंगा की यात्रा पर निकर पड़ता है ....नागाओं की खोज में . बदला लेने और उन्हें दंड देने के लिए ...!

नागाओं की रानी "नागा" से क्रुद्ध है। वह सवाल करती है कि क्या उसने प्रसव के लिए वसुदेव को औषधि दी थी!!?? "नागा" सहम कर "हाँ" बोलता है! "...क्यों??"; "...मैंने उन्हें अपना नीजी औषधि ही दिया है, ब्रंगा की आपूर्ति बाधित नहीं होगी!"

इधर 'मेलुहा में ऋषि भृगु के सामने राजा दक्ष एक अपराधी की तरह उनके चरणों में पड़ा नतमस्तक है! ऋषिवर क्रोध में हैं !" ...क्या तुमने उन्हें स्थान की सूचना भी दे दी?" ; "नहीं मुनिवर!' 

राखी के त्यौहार का दिन है! काशी  में सती अपने कक्ष की खिड़की से वही दृश्य फिर देख रही है ......! राजा अथिथिग्व एक नाव पर अपने परिवार -सिर्फ अपने परिवार- के साथ गंगा नदी के पूर्वी घाट की तरफ नौका द्वारा जा रहे हैं! ये यूँ रहस्यमय तरीके से क्यों हर बार (आम जनता के लिए) प्रतिबंधित छेत्र में जाते रहते है! "...मैं इसका पता लगा कर रहूंगी!' सती कृतिका को कार्तिक की देखभाल की जिम्मेवारी सौंपकर -थोड़ी बहस के बाद- दृढनिश्चय हो कर अपनी तलवार और ढाल के साथ गंगा में छलांग लगाकर काफी सावधानी से चुपके-चुपके नदी के बीच के रेत पर विश्राम करते हुए फिर गहरे पानी में नीचे-नीचे तैरते नदी को पार कर पूर्व में स्थित राजा अथिथिग्व के -गोपनीय महल- में गोपनीय ढंग से प्रवेश करती है! ...सर्वत्र स्तब्धता है; कहीं कोई आहट नहीं, .... तभी ..सती को कुछ बातचीत की आवाजें सुनाई देती हैं! उन आवाजों के पीछे वह स्तब्ध और सुनसान महल में कभी भी, कैसे भी अचानक आक्रमण से सतर्क; प्रवेश कर आवाज आती कक्ष की और बढती जाती है! जिस कक्ष से आवाज आ रही थी सती उस कक्ष में एक ओट से झाँक कर देखती है _राजा अथिथिग्व के सामने रक्षाबंधन की सामग्री से सजी थाल है, और राखी बंधने वाली ........ हे प्रभु ! .....उसके धड एक हैं पर (2) दो- कंधे और (2)दो स़िर हैं ..... वो तो  .............................!.

(मुझे बारम्बार जम्हाई आ रही है) अवलोकनार्थ अमीश द्वाराप्रस्तुत कुछ नक़्शे हैं; कृपया इन्हें बारीकी से देखें !


परसों मिलता हूँ! 
 विनयावनत,
_श्री .