आखिरकार वो शुभ घडी आई और मेरे सौरभ की शादी ०८/ दिसम्बर/२०१० को अमृता(सोनी) के साथ संपन्न हो गई.
सौरभ के लिए उसके परिवार और उसके खुद के मन-माफिक लड़की की तलाश की कहानी कम दिलचस्प नहीं है ! मेरे बड़े जीजाजी (श्री शम्भुनाथ ओझा) और मेरी दीदी इस विषय में काफी चिंतित और उद्विग्न रहते थे. उनके बड़े बेटे, मेरे बड़े भांजे सुशील की शादी डेढ़ साल पहले मेरी पत्नी के एक रिश्तेदार की बेटी कंचन (जो रिश्ते में मेरी साली लगती है) से हमहीं-दोनों ने तय करवाया था. जीजाजी के अपने प्रयास अब काम नहीं आ रहे थे, उन्होंने समाचार-पत्रों के वैवाहिक कोलुम्न्स में "add " भी दिए लेकिन जबाबों से उनकी तसल्ली नहीं हुई. उन्होंने मुझे और मेरी पत्नी से भी किसी लड़की का पता लगाने को कह रखा था. लेकिन इस मामले में हमारी कोई विशेषता नहीं है, और अनुभव तो है ही नहीं ! अत: मैंने वीणा (मेरी पत्नी) से कहा भी था की यूँ लोहरदगा में बैठे-बैठे हम उनकी पसंद और जरुरत को माफिक आने वाली लड़की का कैसे पता लगायें ? फिर पिछली शादी (सुशील की) तो एक संयोग था, इश्वर की मर्जी थी जिसमे हम निमित्त-मात्र बन गए थे. आगे कहीं ऐसा न हो क़ि हम जोश खा कर अपनी सुख-शान्ति बर्बाद कर लें ! अगर हमारे प्रयास से कोई दूसरी लड़की मिल भी गई और उनके उम्मीदों पर खरी ना उतरी तो बे-फ़ालतू में हमें ना-जायज़ उलाहने सुनने पड़ेंगे, सो हमें शांत ही रहना चाहिये. लेकिन दुःख की घडी में जब हम जीजाजी के यहाँ गए थे तब मेरी भांजी शिल्पी ने बिलखते हुए मुझसे कहा था कि "_मामा कुछ भी कर के भैया (सुशील) के शादी करवा द ना तअ ई लोग (दीदी-जीजाजी) ना बच्बथुं !" मुझे शिल्पी का वो क्रंदन आज भी जब याद आता है मैं सिहर-सिहर उठता हूँ, ..फिर मेरे मन में ये ख्वाहिश और -और प्रबल होती चली गई कि मैं इस मामले में जीजाजी के परिवार का पूरा साथ दूंगा. और आखिरकार सुशील कि शादी कंचन के साथ संपन्न हुई.
सुशील की शादी के कुछ ही महीनो बाद कंचन के मायके से सौरभ के लिए रिश्ता आया, जिसे जीजाजी ने जांचा-परखा तो वो उनकी उम्मीदों के मुताबिक न लगा. लेकिन रिश्तेदार के भरोसे और fake_computer _manufactured _Photograph के झांसे में आ गए और छेका करने की पूरी तैयारी के साथ लड़की वालों के यहाँ जाने की गंभीर गलती कर बैठे, अत: "...बाद में सोच-विचार कर जवाब देंगे", ऐसा कहने पर लड़की वाले क्रोधित और आक्रामक हो कर उदंडता पर उतर आए, और अनेक प्रकार से इन्हें धमकाने लगे कि छेका कर के ही जाना होगा!!! ...अन्तत: छेका नहीं होना था सो नहीं हुआ और दीदी-जीजाजी किसी तरह वहां से बच कर वापस आ गए. लेकिन काफी दिनों तक उन लड़की वालों के फ़ोन धमकाने वाले अंदाज़ में आते रहे और जीजाजी और उनका परिवार त्रस्त और आशंकित रहा. आखिरकार काफी दिनों बाद हमें इन बातों की जानकारी मिली तो मैंने अपना सर पीट लिया. ...हाय रे खोटी अक्कल !!! किसी ऐसे को साथ ले जाना था जो सही तरीके से बातचीत कर सकता ! ...लेकिन, ...ओह!! ...इसके बाद ही मैंने सौरभ की शादी के बारे में गंभीरता से ही नहीं बल्कि दृढ़ता से सोचना शुरू किया.
...सौरभ के लिए हम-दोनों की भी पूरी इच्छा थी, दिल से ये तमन्ना थी कि उसके लिए उसकी मन-माफिक दुल्हन, दीदी-जीजाजी के लिए 'उनके' मन-माफिक छोटी बहु, तथा सुशील-कंचन के साथ तालमेल निभा सकने वाली लड़की मिले. ...पर ...कहाँ लोहरदगा...! ...और कहाँ मुजफ्फरपुर...! ...और अपने सभी नजदीकी रिश्तेदारों से दूर _हम !! ...जिन्हें इन बातों का कोई अनुभव नहीं. हम तो ऐसा कुछ भी नहीं जानते जो उनके ख़ास काम आ सके. ...यूँ ही समय बीतता गया.
मेरे बेटे जिम्मी के इंजीनियरिंग में select हो जाने और admission वगैरह का लोन पास हो जाने के बाद मैंने अपने लोहरदगा डेरे पर "भगवान सत्यनारायण" की कथा का आयोजन किया था. जिसकी पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के लिए आमंत्रित मेहमानों में श्री लखपति साहू जी (मास्टर साहेब) भी शाम में हमारे यहाँ आये थे. बातों-बातों में ही मैंने उनसे विस्तार से श्री शम्भू जीजाजी के घर-परिवार और सौरभ के लिए दुल्हन की तलाश की बात कही, और उनसे कहा कि वो हमारे घर-परिवार और हमारे परवारिक परिवेश को खूब अच्छी तरह से जानते हैं, सो अपने जानकारी के दायरे में सौरभ के लिए उपयुक्त लड़की का पता लगा कर मुझे बताएं.
जीवन की घोर कठिनाईयों को मेरे (शम्भू) जीजाजी के परिवार ने बड़ी बुरी तरह से भुगता है, कुछ इस तरह कि उनके अपने ही लोग "अब" उनकी कोई सहायता नहीं करना चाहते थे. कैसी विडम्बना है कि पीड़ित को ही आतताई समझ कर एक भ्रान्ति का शिकार हो कर अपने पूज्यनीय से ही लोग परहेज करने लगते हैं !!!
बहरहाल, श्री लखपति मास्टर साहेब ने मेरी बातें सुनी, और अपनी तरफ से जरुरी सवाल पूछे, जिसका मैंने उन्हें संतोषप्रद जवाब दिया. समझ-बूझ चुकने के तत्काल बाद, तुरंत उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक काल लगाईं, पर वांछित उत्तर नहीं मिला. लेकिन मास्टर साहेब ने मुझे बताया कि "एक लड़की है. और वो ...लोहरदगा में ही है !!!" [बगल में छोरा नगर ढिंढोरा !] ...लड़की के बारे में उन्होंने कहा कि वे उसे उसके बचपन से जानते हैं, जो [ जब लखपति मास्टर साहेब हमारे मकान में किराये पे रहते थे तब ] अपने स्कूल के दिनों में (वो) लड़की मास्टर साहेब की बेटी के साथ ही स्कूल जाया करती थी और हमारे मकान में अक्सर आया-जाया करती थी!!! [...मेरी नज़र इस लड़की पर क्यों नहीं पड़ी...!? ] ...फिलहाल आजकल बी. ए. (स्नातक) कर चुकने के बाद "हमारे मकान के निकट कस्तूरबा हाई स्कूल में ही कंप्यूटर ओपेरटर है!" और रोजीना हमारे मकान के सामने से सड़क पर गुजरती है ! [ हे भगवान् ! अर्रे मेरी नजर इस पर अब तक क्यों नहीं पड़ी ...!? ] लखपति मास्टर साहेब ने हमारा भी बचपन देखा है और मुझसे उनका विशेष स्नेह है जो मेरे स्वभाव, व्यक्तित्व, प्रकृति और पसंद-नापसंद को खूब अच्छी तरह से जानते हैं. लड़की के रूप-रंग, शिक्षा-दीक्षा के मामले में मास्टर साहेब ने मुझे जो बतलाया और आश्वासन दिया उससे मैं बहुत ही उत्सुक हो उठा! लखपति मास्टर साहेब ने कहा क़ि ...वो ब्राम्हण तो हैं लेकिन वो हमारी जाती (गौढ़ ब्राम्हण), और गोत्र के हैं या नहीं सो उन्हें मालूम नहीं. मैंने उन्हें सौरभ के बारे में सारी जरुरी जानकारी बतला दी और लड़की को देखने की अपनी (-प्रबल-) इच्छा जताई कि वो कोई जतन कर के unofficially, अनौपचारिक रूप से कहीं भी चाहे उनके अपने (लखपति मास्टर साहेब के) घर पर ही मुझे दिखलाने का प्रबंध करें _ "अगर मुझे पसंद आ गई तो" मैं उसका विवाह अपने भांजे सौरभ से अवश्य ही करवा दूंगा _ ये मैंने उन्हें पक्का आश्वासन दिया. लखपति मास्टर साहेब ने एक सप्ताह का समय माँगा और फिर भगवान "श्रीसत्यनारायणजी" का प्रसाद ग्रहण कर चले गए. इस दौरान जीजाजी की लगातार मुझसे बातें होती थी और वो मुझसे पूरा प्रयास करते रहने को कहते थे, तभी एक बार मैंने उनसे लखपति मास्टर साहेब वाली बात की जानकारी दी जिससे जीजाजी की उम्मीद प्रबल हुई.
इस बीच रूपा [कमल क़ि पत्नी] के बहनोई ने भी एक लड़की का पता "सिंदरी" में लगा कर हमें बतलाया था, जो कि जीजाजी के ही गोत्र की होने कारण बात आगे नहीं बढ़ सकी, फिर भी लड़की वाले ये सम्बन्ध करना चाहते थे, लेकिन लड़की देखने, दिखलाने की लड़की के बाप की शर्त थी कि लड़की देखने के बाद "मुझे ही" सारी जिम्मेवारी झेलनी होगी ! ...तौबा ! दुर्र फिटे मूँ !!!
एक सप्ताह के बाद लखपति मास्टर साहेब का मेरे पास फ़ोन आया और उन्होंने उत्साहित हो कर मुझे जानकारी दी कि लड़की वाले गौढ़-ब्राम्हण ही हैं, और उनका गोत्र भी जीजाजी के गोत्र से भिन्न है ! उन्होंने मुझसे सौरभ की एक तस्वीर और बायोडाटा मंगवाने को कहा. मैंने ये बात आगे जीजाजी और सौरभ को उसी शाम फ़ोन द्वारा बतला दिया, सौरभ ने अपनी एक तस्वीर और बायोडाटा डाक से मुझे भेज दिया. जो मुझे मिलते ही मैंने लखपति मास्टर साहेब को तत्काल सूचित किया.
दो दिन बाद मास्टर साहेब का फ़ोन आया कि लड़की के पिता उनके घर बातचीत करने के लिए आये हुए है, सो मैं भी सौरभ की तस्वीर और बायोडाटा ले कर वहीँ आ जाऊं. मैं उस समय अपने ऑफिस (गद्दी) में व्यस्त था अत: मैंने उनसे आग्रह किया कि वो ही लोग मेरे यहाँ (थाना टोली) आने का कष्ट करे. उन्होंने सहमती जताई और मेरे घर पधारे. तब पहली बार मैंने श्री सत्येन्द्र शुक्ला जी (स्कूल टीचर; मास्टर साहेब) को देखा और उनका परिचय पाया. मास्टर साहेब ने अपनी लड़की का नाम "अमृता "[nickname : सोनी] बताया. ये जान कर मुझे ताज्जुब हुआ कि वो (शुक्ला जी) मेरे इसी घर में पहले आ चुके हैं, और मेरे स्व. पूज्य बाबूजी की पुण्य-तिथि पर भजन-कीर्तन में शामिल होकर हारमोनियम बजा चुके हैं ! मेरे इसरार करने पर उन्होंने मुझे अपनी बिटिया की तस्वीर (जिसे वो अपनी motorcycle की डिक्की-बॉक्स में रखे हुए थे) लाकर दिखलाई! ...मैंने स्टूडियो फोटो के flap को खोला और उसमे चिपके लड़की की तस्वीर पर एक-क्षण-वाली "संकोचपूर्ण" नज़र डाली. तस्वीर की एक हलकी झलक में लड़की का मुखड़ा देखते ही मैं (अपनी हडबडाहट को जबरन छिपाते हुए) फोटो के flap को बंद कर उठ खडा हुआ और तुरंत रसोई में वीणा के पास गया और उसे वो तस्वीर दिखाई, वीणा ने तस्वीर को बड़े मनोयोग से देखा और प्रसन्नता से कहा कि "...अच्छी तो है, इस लड़की को देखा जा सकता है." फिर मैंने माँ को भी वो तस्वीर दिखाई, माँ ने भी प्रभावित हो कर आगे बात करने की इज़ाज़त दी. मैं तस्वीर के साथ वापस अपने मेहमानों के पास आया. मैंने लड़की को देखने की अपनी इच्छा जताई कि वो (शुक्ला जी) मुझे अनौपचारिक तरीके से ही कहीं भी, चाहें तो लखपति मास्टर साहेब के यहाँ ही, लड़की को दिखलाने का कष्ट करें, जिसे उन्होंने बे-हिचक, सहर्ष, (स-शर्त_कि मुझ पर कोई दबाव नहीं आएगा) अनुमति प्रदान की. शुक्ला जी से जब मैंने उनके पारिवारिक-सामाजिक समाचार की जानकारी के लिए पूछा तो उन्होंने बतलाया कि वो "गया" जिले के 'देवकुली' गाँव के रहने वाले हैं, लोहरदगा में वो 'कुजरा' में स्कूल-टीचर हैं, और जिले में पिछले २१-२२ वर्षों से कार्यरत हैं. [...अब तक कहाँ छिपे थे भाई ? हम पहले क्यों न मिले !?] लखपति मास्टर साहेब से वो तभी (शुरू) से वाकिफ हैं. [लखपति मास्टर साहेब की गठरी में अभी और कितना 'माल ' है, पता करना पड़ेगा !] बातचीत में उन्होंने (शुक्ला जी ने) अगला नया रेफेरेंस जो दिया उस से मुझे विश्वास हो गया कि ये सम्बन्ध तय है. उन्होंने मुझे बताया कि मेरे ऑफिस (गद्दी) में मेरे साथ ही कार्यरत श्री मनोज कुमार सिन्हा (मनोज भैया) उन्हीं के गाँव के रहने वाले हैं! और स्कूल के दिनों में वो दोनों एक ही स्कूल में एक कक्षा आगे-पीछे पढ़ते थे !! {वाह !!!} मनोज भैया से मेरा भाईचारे का शुरू से ही अद्भुत नाता रहा है. स्व. पूज्य बाबूजी भी मनोज भैया को बहुत मानते थे. उसी समय से हमारे में प्रेम, सहयोग और भाईचारा रहा है. हमारे घर की औरतें अब तक कभी भी (संयोगवश) नहीं मिलीं थीं. मनोज भैया का रेफेरेंस पा कर मैंने काफी राहत महसूस किया. मुझे विश्वास था कि मनोज भैया के मार्फ़त मुझे समूची, सच्ची और सम्पूर्ण जानकारी तो मिलेगी ही ये बात भी पुरजोर तरीके स्थापित हो जायेगी कि ये सम्बब्ध करना चाहिए या नहीं! मनोज भैया से बात हो जाने तक का समय मैंने माँगा और अपने मेहमानों को विदा किया.
_श्रीकांत तिवारी.
जारी ...सोनी की तलाश !!! # 02