यारों!
कोई
मेरे को बतायेगा?... कि जब भी मैं तिरंगे को देखता हूँ, तो मेरे रोंगटे
क्यूँ खड़े हो जाते हैं? ...जब भी मैं कोई देशभक्ति के गीत सुनता हूँ, जब भी
मैं, ...ये अमर बोल सुनता-देखता हूँ मुझे रोष, रोमांच के आवेश में मेरे
आंसू क्यूँ अनवरत बहने लगते हैं? जैसे :-
>>>"हकीकत"(धरम-पा जी) का सच्चा-पावन, वीरगति को समर्पित मोहम्मद रफ़ी साहब के गाया >>>
"कर चले हम फ़िदा जानें-तन साथियों, ...अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..........." यह गाना जब तक मेरी आँखों के सामने चलता है, गाने के साथ-साथ मेरे आंसू भी चल निकलते हैं, मेरे आंसू, मानो मेरे से, मेरे शरीर से, मुझसे ज्यादा प्रबल हों!
>>>"मेरे देश की धरती .." की वह पंक्तियाँ जिसे श्री महेन्द्र कपूर साहब और 'भारत भाई'_मनोज कुमार जी पेश करते हैं_
"......गांधी सुभास .., टैगोर , तिलक ऐसे हैं चमन के वीर यहाँ ............,
रंग हरा, हरी सिंह नलवे से ..............,
रंग लाल है, लाल बहादुर से..............,
रंग बना बसंती भगत सिंह,
रंग अमन का वीर जवाहर से!"
मेरे देश की धरती .. "
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>>> 'पूरब सुर पश्चिम' का वो गीत: ....'दुल्हन चली',...में जब ये लाइनें आतीं हैं:
"देश-प्रेम ही आज़ादी की इस दुल्हनिया का वर है,
इस अलबेली दुल्हन का सिन्दूर सुहाग अमर है,
माता है कस्तूरबा जैसी, बाबुल गांधी जैसे,
बाबुल गांधी जैसे,
चाचा जिसके नेहरू-शास्त्री ...........ई, डरे न दुश्मन कैसे!?
डरे न दुश्मन कैसे!?
वीर शिवाजी जैसे वीरन, लक्ष्मीबाई बहना!
लक्षुमन जिसके बोध भगत सिंह, उसका फिर क्या कहना!!
उसका फिर क्या कहना!
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा।
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा।
>>>"आगे-पीछे तीनों सेना ले के चले तिरंगा..आ ..आ ....................आ!!"<<< {एस! यहीं एक्साक्ट्ली मैं रो पड़ता हूँ!!}
सेना चलती है ले के तिरंगा।
सेना चलती है ले के तिरंगा।
हों कोई हम प्रान्त के वासी, हों कोई भी भाषा-भाषी ...........ई!
सबसे पहले हैं भारत वासी।
सबसे पहले हैं भारत वासी।
सबसे पहले हैं भारत वासी।"
जय हिन्द!
वंदे मातरम!!
_श्री .
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"ओय, कंट्रोल इट!"
"नई होता यार!"