"सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।।'
- [श्रीरामचरितमानस/अयोध्याकांड।।/दोहा-171।।]
मुनिनाथ ने बिलखकर (दुखी होकर) कहा - हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाताके हाथ हैं।।171।।
***************
~ सुन्दरकाण्ड ~
जिमि अमोघ रघुबर कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।1/4।।
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखी कोसलपुर राजा।।4/1।।
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।60।।
*************
सियावर रामचंद्र जी की जय!
पवनसुत हनुमान जी की जय!
उमापति महादेव जी की जय!
_ श्री .