यदि हिंदी फ़िल्में आपको अच्छी लगतीं हैं तो यह रोचक सचित्र-लेख आपही के लिए है!
SANYASI
सन्यासी
Sanyasi is a 1975 Hindi film directed by Sohanlal Kanwar, and starring Manoj Kumar and Hema Malini as leads
Directed by Sohanlal Kanwar
Produced by Sohanlal Kanwar
Starring Manoj Kumar
Hema Malini
Premnath
Music by Shankar Jaikishan
Release dates 1975
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धर्मान्धता और अन्धविश्वास की आड़ में : एक नंगी हकीक़त__
अंडरवर्ल्ड !!
गुनाह ! अपराध !! और पाप !!!_की दुनियाँ ! _कैसे अपना शिकार करती है? _कौन शिकारी हैं? ...और, कौन शिकार? _क्यों? _कब? _कैसे? का फिर-से (क्योंकि यह अक्ल तो लगातार बँटती और बाँटी जाती रही है; पर हमें कभी अक्ल से क्या मतलब? _"क्यों? ठीक है न, ठीक??")__उतर देने वाली -'यह फिल्म'- अपने उस दौर की फिल्म है, उस दशक की फिल्म है, जिसे हमारा हिंदी फिल्मोद्योग स्वयम मंज़ूर करता है, और हम भी यह मानते हैं कि वह दशक ; सन-७० का दशक, हिंदी फिल्मों और हिंदी फिल्म-दर्शकों के लिए स्वर्ण-युग रहा है! संयोग से, यही दौर हमारे; मेरे; बचपन का रहा है, जब स्क्रीन के हीरो को या तो हम "खुद"-का रूप या "बड़े भईया" ; या पडोसी मित्र, मान कर उनका आदर करते रहे हैं!! यह पारस्परिक-प्रेम-सम्बन्ध उसी वक़्त हमारे मस्तिष्क और खून में समां गया कि हिंदी फिल्म के हीरो`ज़ तो हमारे अपने हैं! और देखिये! आज वे हमारे अपनों से भी बढ़-चढ़ कर आदरणीय माननीय हैं, कि नहीं? यह फिल्म "सन्यासी" उसी वर्ष की फिल्म है, जब शोले, जय संतोषी माँ, दीवार, खेल खेल में, धर्मा... इत्यादि रिलीज़ हुईं थीं! इन बड़ी-बड़ी फिल्मों के बीच "सन्यासी" ने भी बड़ी मजबूती अपने झंडे गाड़े, फहराये, और जनता, हमसब झूम उठे ! इस फिल्म के किरदारों से कहानी में मुलाक़ात होती जायेगी जिनसे आप 'उस' दौर की मानसिकता अनुसार प्यार या नफरत करेंगे!
......इस फिल्म में मनोज कुमार साहब और हेमा जी की नोंक-झोंक, तूँ-तूँ -मैं-मैं, छेड़-छाड़ का ऐसा चित्रण किया गया है और दोनों कलाकारों (खासकर मनोज साब ने) इतनी उम्दा एक्टिंग की है, कि जिन्हें ये भ्रम है कि मनोज कुमार कॉमेडी नहीं कर सकते, वे भी हँसे-मुस्काये बिना नहीं रह सकेंगे! मेरे आनंद के लिए यह सबसे बड़ी रोमांचक वजह _कि, इसमें हमारे आदरणीय, मखमली आवाज़ के जादूगर मुकेश साहब का 'रेयर' श्रेणी का चंचल, हास्यपूर्ण गायन, जो मनोज साहब की आत्मा सी मालूम पड़ती, _मेरे दिल में समां जाती है! जिसमे लता जी की कोकिल आवाज में हेमा जी का शानदार नृत्य मानो स्वयं मेनका हों ; रोमांच से भर देता है! मन्त्रमुग्ध कर देने वाले इसके गाने अभी भी बजाओ, तो बचपन की खुशबु को जिंदा पाओगे! इस फिल्म के चार प्रमुख गाने, शोले-दीवार-जय संतोषी माँ, _के बराबर या कहीं बढ़कर सुपरहिट हुए और कई सालों तक जाड़े की सरस्वती पूजा से लेकर नए जाड़े की दुर्गा पूजा के पंडालों में, और घरों में भी LP पे बजाये जाते रहे! ये यादगार गाने हमारी हिंदी फिल्मों की सुन्दर संग्रहों में से एक अनुपम, श्रवणीय एवं दर्शनीय विषय की वस्तु हैं! जो एक मस्त उमंग भरी मेरी जोशीली बचपन की धाकड़ यादगार है! जिसे मैं ना भूलूंगा! शंकर-जयकिशन जैसे महान संगीतकारों के उत्तम संगीत से सजी यह हिंदी फिल्म "सन्यासी" _बहुरंगी, बहुआयामी है! और मिलजुलकर देखने और मजे लेने लायक है! इस लेख की सचित्र कथा 56-सलाईड्स में संलग्न हैं!
अंडरवर्ल्ड !!
गुनाह ! अपराध !! और पाप !!!_की दुनियाँ ! __इसके सामने इस वक़्त एक ऐसा परिवार है जिसकी कहानी चंद लफ़्ज़ों में ही बड़ी भावुक है! एक धनाढ्य परिवार का चिराग; दौलत की चकाचौंध{जरूरत से ज्यादा ऐयाशी!} में मारा जाता है, जिससे घबराकर उसके पिता ने -उसके बेटे-, यानि अपने पोते 'राम' की यूँ परवरिश की कि उसका मन बैरागी हो गया! वह सुन्दर सलोना नौजवान अपने गुरु, और गुरुदीक्षा और गुरु-आज्ञा के अधीन एक निर्मल मन वाला शांत, उदार हृदय युवक है, जो अपनी आध्यात्मिक साधना में ही लीन, अपना जीवन समर्पित कर चूका है! जबकि 'दादाजी' को अपने आगामी वंश की चिंता सताती है! वे राम की शादी करना चाहते हैं लेकिन राम इससे घबराया हुआ अपने प्रभु की शरण में प्रार्थना कर रहा है! इसने योग विद्या सीखी है, जिसके प्रभाव और उपयोग से यह अपनी सांस और दिल की धड़कन आधे घंटे से ज्यादा देर तक रोके रखने की क्षमता रखता है; जिसे ऐसी हालत में देखते _मृतक! ; मृत!; मर चूका हुआ!! _मुर्दा व्यक्ति सा विष्मयकरी विश्वास/अविश्वास हो! सत्यनिष्ठ, दृढ-निश्चयी, विद्वान, ज्ञानी, और निडर राम, जो तन मन धन ; मन वचन कर्म से पूरा सन्यासी है! _ये विवाह कर गृहस्थी बसाएगा??? कभी नहीं! यह खुद अकेले में मुँह बिसूरता है, जनता हँसती है! इसकी बरात निकलती है, कलपता हुआ यह घोड़ी पर बैठा युक्ति लगाकर बारात से घुड़सवारी करता कुलांचे भरता भाग जाता है,....और फिल्म के टाईटल्स और कास्टिंग्स, म्यूजिक के झमाकों के साथ शुरू हो जाते हैं! ....अब कहीं जाकर जनता अपनी सीटें खोजतीं, तंग करने वाली चमकती टोर्च की रौशनी में ‘उशर’ से बतियाती, शेष दर्शकों की दीद की बाधा बनती गालियों और कोसनें सहती 'हॉल' में प्रवेश कर रही है..., शोर और चिल्ल-पों मची हुई है; पब्लिक, पब्लिक को कुचलती हुई अपनी सीटों को कब्ज़ा रहे हैं..., कास्टिंग ख़त्म होते तक जनता शांत होती है, और खुसर-पुसर करती बगल वाले (उसी को गरियाते व्यक्ति से) पूछती है :"कितना पार हुआ?...का का हुआ?" सामने बैठे मेरी मुंडी को जबरन बाएं करते माईयवे पिछड़े दर्शक से उलझते, फिल्म आगे बढती है.....
......मनोज साहब धोती, कुर्ता और पवित्र अंगौछा धारण कर, हाथों में जप की माला लिए गंभीर, और शांतचित्त वाले सरल सहज और मजबूत इरादे वाले सन्यासी के रोल में १००% जमें हैं! जिनकी बाद में काया पलट 'उस दौर की' मजेदार एक्शन फिल्म बन गई! एक बात मेरे में यूँ हमेशा अहसास कराती रही है, कि मनोज साहब मार-धाड़ के दृश्य बहुत ही अल्प किन्तु रफ़्तार से निपटा देते हैं, ये कभी भी -ताकतवर शरीर वाले- हीरो बने ही नहीं! इनका एक्शन इनकी दृढ़ता, निडरता, सादगी और साफगोई और संवाद अदायगी में है! इनकी फिल्मों में शेष कलाकारों से जुदा इनके अपने एक्शन कम होते हैं, प्राण साब के ज्यादा!! और ये कभी डांस, नृत्य, नाच नहीं करते, बस और भी अन्य महारथियों की तरह अपनी एक ख़ास अदा के लिए भी बहुत चाहे, पसंद किये गए! मनोज साब के अपने खुद के निर्देशित फिल्मों में उनकी फिल्म शूटिंग का अंदाज़ एक ख़ास ब्लेंड और 'डिमांडेड ब्रांड' की श्रेणी का रहा है, जिनके फिल्मों का गलैमर कभी हिन्दुस्तान के सर चढ़कर बोलता था!! जो हमारे "भारत भैया" हैं, जो अभी 'राम' के रूप में हमारे सामने हैं__
......राम के भाग जाने से दुखी उसके बीमार बुजुर्ग दादाजी यह वसीयत छोड़कर मर जाते हैं, कि राम के लौटते ही एक महीने के अन्दर उसका विवाह कर दिया जाय, _अन्यथा उनकी समस्त जायदाद दान में दे दी जाय!
......राम गंगा किनारे -गीता-भवन- में है! {ऋषिकेश} जहाँ उसके गुरुदेव 'शान्ति बाबा' संसार को गाकर उसे उसकी असलियत! कर्म! और कर्तव्य की दीक्षा दे रहे हैं, जिनमें शामिल कई बातों पर राम सहमत है, तो कभी असमंजस में.......
......आखिरकार राम की माँ(सुलोचना/रेणुका देवी) उसे लेने आतीं हैं; जहाँ स्वयं गुरूजी और माँ राम को गृहस्थाश्रम के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन दृढ-संकल्पित राम किसी भी हालत में इसके लिए राजी नहीं होता! गुरूजी भी दबाव नहीं देते, लेकिन उनकी आँखें बतलातीं हैं, जो माँ को आश्वासन देतीं हैं कि शान्ति रक्खें, जो हुआ है वो होना था ; जो होना है, वह अटल है! राम अपनी माँ के साथ घर आकर समूचा कारोबार संभालता है, और अपने परिवार पर आश्रितों की उसी सद्भावना से मदद करता है जैसा कि उसके दादा जी ने की, एवं उसके खानदान की रीत रही है, लेकिन अपनी साधना-उपासना में भी अटल है! राम को पता चलता है कि उसके दादाजी के मार्फ़त, उनकी मदद से, उनके एक पुराने मुलाजिम की लड़की 'आरती(नजमा)' को उसकी पढाई और रहन-सहन के लिए माहवारी मदद दिए जाने का हुक्म है, -जिसे किसी ने नहीं देखा-, _राम निर्मल मन से इस व्यवस्था को भी जारी रखने की इज़ाज़त दे देता है! आरती के बारे में जानकार गुरूजी माँ को सलाह देते हैं कि वे आरती को अपने पास बुलवा लें, और उससे राम के मैत्री-संपर्क की इच्छा जताते हैं, ताकि राम का मन सांसारिक बातों की तरफ मुड़ सके! माँ का चेहरा खिल जाता है! वे आरती को आने को सूचना भेज देती हैं! राम को पता है कि माँ के भाई, उसके मामा, बचपन में सबको अचानक छोड़कर किसी तरह लन्दन चले गए थे; जिनकी सूचना उन्हें है, _पर जो कभी नहीं मिले हैं, __के लिए माँ अभी भी वापस आने की उम्मीद में हैं, जिनका एक राम के ही बराबर की उम्र का बेटा भी है!
......यहीं इस रामायण के रावण का प्राकट्य होता है, जिसकी भाव-भंगिमा से सिनेमा हॉल के सभी दर्शक समझ जाते हैं कि यही इस फिल्म का खलनायक है, नहीं समझती है तो स्क्रीन में उसके साथ मैजूद जनता; _जो वस्तुतः हम ही हैं, साब! यह छल-प्रपंच-धोखा-ठगी-गद्दारी-तस्करी-लूट-डाका-बालात्कार-छलावा-ईर्ष्या-काम-क्रोध-लोभ-घमण्ड-ज़ुल्म-कहर और मौत का शक्तिशाली मूर्तिमान स्वरुप है जो अपनी दुष्टता और दुश्चरित्रता को साधू-योगी-संत-ऋषि के पाखण्डपूर्ण बहुरूप में छिपा छद्मवेषधारी पूज्यनीय स्वामी बना हुआ है! इसके चेलों की ज़मात है! जिसमें एक इसका अपना चेला है, शेष दो जने पार्टनर जैसे हैं, जो सभी लम्पट-लफंगई और धूर्तता की जीवंत मूरत हैं! सभी मिलकर एक डाका डालते हैं! जिसमें इनके ग्रुप की संत-सति-नारी रुपी अपनी (मजबूरी से) गुलाम-महिला(अरुणा ईरानी) द्वारा जश्न मनाते खाते पीते नाचते गाते बजाते हैं, और पुलिस की भारी सुरक्षा में उनकी आँखों के सामने दीदादीलेरी से उनका मुँह चिढाते, दान हेतु सोने से खुद को तौलाये सेठ का, सारा सोना ले उड़ते हैं!! लूट के बँटवारे के बाद, उम्रदराज गिरधारी(राज मेहरा) और जवान बनवारी(प्रेम चोपड़ा) ट्रेन में दो व्यक्ति, मालदार -पिता-पुत्र- से मिलते हैं, जो लन्दन से वापस इंडिया आये हैं, जिन्हें अपनी बहन रेणुका देवी से पहली बार मिलने जाना है! ‘ज़ाहिर तौर पर’, इस ट्रेन ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है, लन्दन वाले -पिता-पुत्र- मारे जाते हैं; _घायल गिरधारी-बनवारी की बाछें खिल जाती हैं, वे खुद को मृत घोषित कर लन्दन वाले मामा जी और उनके बेटे राकेश बन जाते हैं! और जैसे राम की अयोध्या में कंस और दुर्योधन का पदार्पण हुआ हो ; वे पूरी बेशर्मी से मेहमान से घरवाले बनकर साथ ही चमचई कर मौज करते लम्बे दाँव का षड्यंत्र शुरू कर देते हैं, जिन्हें पता है कि राम से मिलने आरती आने वाली है! जिससे राम की शादी हुई नहीं कि स्कीम का बंटाधार...! जिसके सूत्रधार इनके "बड़े मालिक" हैं! जो दरअसल दुर्दांत डाकू मंगल सिंह हैं; जो अभी तंत्कालीन सुप्रीमो, -वही रावण- अंडरवर्ल्ड डॉन है! _जो शहर में धर्मांध अन्धविश्वासी हिन्दुओं में साक्षात भगवन शंकर का अवतार “-ईश्वर बाबा-“ है!_ _ _ "बम-बम, महादेव !!!" की गर्जना करता दुर्वाषा ऋषि सा क्रोधी महाभयंकर (महाप्रभु प्रेमनाथ जी)"ईश्वर बाबा" के बहुरूप में 'अवतरित' होता हैं; पाखण्ड से जादू-चमत्कार का जाल फैलाकर और सभी जन-साधारण का भगवान् बनकर उनसे अपनी पूजा करवाने लगता है! इसी षड्यंत्र में इनकी "प्यादी" -चम्पा-(हेमा जी) का प्रवेश होता है, जिसकी मदद से आरती दुष्टों द्वारा कैद कर ली जाती है! और चम्पा -'आरती'- बनकर रेणुका देवी घर में घुस कर अपना काम शुरू कर देती है, जिसकी ड्यूटी है, राम को स्लो poison देकर मार डालना वरना उसकी माँ (कामिनी कौशल) को मार दिया जायेगा! चम्पा सभ्रांत घर की अच्छी और गुणवान लड़की है, जिसे इन पाखंडियों से नफरत है, जिनके चंगुल में इसकी माँ क़ैद है, रोकर, हारकर इस दुष्कर्म में शामिल होने की हामी भरती है! लेकिन रेणुका देवी की नज़र में उसकी एक और ड्यूटी भी है, राम को अपनी ओर आकर्षित करना, उसे समझाना, विवाह के लिए राजी करना! _जो मानना पड़ेगा बॉस!!!!' क्या रोल किया है हेमा जी ने !! वाह!!!!! और इस दाँव में तीन सुपर डूपर हिट गाने अंजाम दिए गए, जिनपर हिंदी फिल्म और हम, _हक से; ख़ुशी से झूम सकते हैं!
१.सुन बाल-ब्रम्हचारी मैं हूँ कन्याकुमारी .......!'_-मुकेश साब, एवं लता जी! मनोज कुमार और हेमा मालिनी की रूहानी याद ...
http://www.youtube.com/watch?v=faW0FwAVF0s
२.चल सन्यासी मंदिर में.........!'_मुकेश साब, एवं लता जी! मनोज कुमार और हेमा मालिनी की रूहानी याद ...
http://www.youtube.com/watch?v=XPpPXwXzoFI
३.बाली उमरिया भजन करूँ कैसे..........!'_मुकेश साब, एवं लता जी! मनोज कुमार और हेमा मालिनी की रूहानी याद ...
http://www.youtube.com/watch?v=WgdTu3iOHro
--------बज गई घंटी---------
राम तो नहीं, पर चम्पा राम के सामने श्रद्धा से उससे प्रेम करने लगती है! जिसे काफी धक्का लगता है जब राम अपना फैसला सुनाता है कि : माँ राकेश को गोद ले ले, उसकी शादी चम्पा से कर दे, यूँ खानदान का नाम भी कायम रहेगा और दादाजी की इच्छा भी पूरी हो जाएगी! राकेश बदसुलूकी से और चाल चलकर चम्पा को, जिसका अब कोई यूज़ नहीं, -गेम- ले निकलने के लिए (यूज़ & थ्रो) असली आरती को रेणुका देवी के सामने लाकर उसे माँ द्वारा बेईज्ज़त करवाकर घर से निकलवा देता है! दुष्टों की चाल कामयाब रहती है! रेणुका देवी राकेश को गोद लेने वाली बात पर राज़ी हो जातीं हैं, और इससे कानूनी रूप से सिक्केबंद कर शत्रु अपना वार राम के खानदान और सम्पत्ति पर करते हैं और बाज़ी उनके हाथ लगती है! ऐन मौके पर भ्रम-धर्मान्धता-अंधविश्वास के मोहजाल में फँसी अपना सबकुछ गँवाने वाली रेणुका देवी को रोकने गुरूजी आ जाते हैं! _ _ _"बम-बम, महादेव!!!" गरजते ईश्वर बाबा का उत्तर आत्मिक मुस्कान युक्त शांत वाणी "जय श्रीकृष्ण!" से देते हैं! रेणुका देवी की आखें खोलने का भरसक प्रयत्न करते हैं, __जिसमें राम भी अपनी माँ की धर्मान्धता, और अपनी सादगी और शिष्टाचार वश असमर्थ हैं__, अन्धविश्वास की जीत होती है! अच्छाई-सच्चाई को शपथ के बंधन में बाँधकर परे हो लेने दिया जाता है! _पाप लगेगा, _पुरखों की आत्मा भूखों श्राप देंगी! _भस्म हो जाओगे! _सर्वनाश हो हजायेगा! _बेटा मर जाएगा! _धन-धर्म-मर्यादा धूल में मिल जायेगी! _जैसी वाणी से डरकर किसी साधू के चक्कर में कोई नहीं पड़ना चाहेगा, फिर भी जबकि यह २०१४ आ गया इस फिल्म के दर्शकों को अक्ल नहीं आई! अभी पिछले ही साल "ओह माय गॉड" बनी, अक्ल वज्रबुद्धि लट्ठ की तरह खड़ी/पड़ी हुई है!
.......अक्ल तब आई जब जन माल ईज्ज़त सब चला गया!
डॉन अपने असली रूप मंगल सिंह के ग्लैमरस आधुनिक रूप में प्रकट होता है! और सब अपने काबू में कर लेता है!
.......तब राम को गुरूजी की ही शरण लेनी पड़ी! गुरुजी ने राम को गीतानुसार कर्मयोग की आज्ञा दी! राम निडरता से दुष्टों का सामना करता है! अब चम्पा भी उसकी तरफ उसके साथ पाक-साफ़ दिल से दिलेरी से उसका साथ देती है! ईश्वर बाबा के पोल खोलनेवाली एक मंडली बनाकर राम उसके झूँठ के जाल को उजागर कर देता है!
......गाना नंबर ४. जो अभी भी सुनकर अच्छा लगता है :” कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान्, ये है गीता का गया, ये है गीता का ज्ञान!”
http://www.youtube.com/watch?v=MhqgjgD1k28
......दुष्ट रावण सीता को जबरन उठाना चाहता है,पर रास्ते में गुरूजी हैं, जो खुद जटायु तो नहीं हैं पर यहाँ रावन से भीषण द्वंद्वयुद्ध कर रामचरणों में वीरगति को प्राप्त होते हैं; जब खून से लथपथ राम भी अपने मरते गुरूजी की चरणों में गिर जाता है! ! डॉन मंगल सिंह के अड्डे में अकेले लड़ते राम को ज़ख़्मी कर के उसे मुर्दा जानकार गंगा में उसकी 'लाश' फेंक दी जाती है! योगविद्या से जीवित बचा राम गंगा तीरे एक मुसलमान को मिलता है जिसकी सिफत और दवा से राम स्वस्थ हो जाता है! अब उसे अपने शत्रुओं से सब वापस हासिल कर हमारा पैसा वसूल करवाना होता है, फलस्वरूप वह ZORO बनकर गोलियां चलाता काऊबॉय-सा रूप बनाकर मंगल सिंह पर टूट पड़ता है! आप तो जानते ही हैं कि हिंदी फिल्मों के इस सिच्युवेशन में दिमाग जेब में रख लेना चाहिए! __लेकिन मनोज कुमार को पता था कि श्रीकांत उन्हें कुछ उम्मीद से देख रहा है, अतः मेरी ख़ुशी और संतुष्टि के लिए वे दो-चार बार बड़ियाँ ढिशुम-ढिशुम कर दिखाए! उनके लास्ट PUNCH के ब्लो से मंगल सिंह मारा जाता है! कंस और दुर्योधन भारतीय फ़िल्मी पुलिस की गिरफ्त में होते हैं, जहाँ एक नामालूम से पुलिस कमिश्नर साहब यह बताते हैं कि यह रब कारनामें राम ने उनकी मदद से पुरे किये! पूरे परिवार कलाकार का सुखद मिलन होता है! धन-धर्म-सम्मान से सभी विभूषित होते हैं! फिल्म समाप्त होती है!
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परदे पर भारतीय तिरंगा ध्वज फहरता है और राष्ट्रीय गान बजता है जिसके सम्मान में अभी सच्चे भारतीय दर्शक खड़े होकर राष्ट्रीय ध्वज के आगे राष्ट्रीय गान गाकर सिनेमा हॉल से बाहर आकर अपने-अपने घर चले जाते जाते हवा में विलीन हो गए________!!!???
अब कहाँ हैं ये दर्शक ?
कहाँ गया राष्ट्रीय गान ??
कहाँ गया भारत का तिरंगा???
तुम्हारे -अंडरवर्ल्ड- में ???????
खड़े होकर इसके सम्मान में गाईये :
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अब मैं कह सकता हूँ :_
शुभम,
_श्री .