लोहरदगा, थाना रोड / थाना टोली _ ०१:२९ दोपहर
अमिताभ बच्चन की अग्रेजी ब्लॉग रचना ...
...साफ़ बात है भाऊ, एकदम समझे में नई आता है ! बार-बार dictionary खोलना पड़ता है, इससे तो अच्छा है कि अपनी ही कही जाय, जिसे "अपने" लोग समझ-बूझ सकें ! भाषा सबसे अच्छी वो ही है जो मुझे समझ में आती है !! जो हमारे यहाँ के लोग आपस में बोलते-बतियाते हैं ! हमें नहीं शौक की हम जान-बूझ कर बकलोल बनने के लिए अमिताभ बच्चन की अंग्रेजी ब्लॉग रचना को सिर्फ इसलिए पढ़ें की वो अमिताभ बच्चन की लिखी-कही हुई हैं ! अमिताभ बच्चन को अपनी बात अंग्रेजी में ही कहना सहज लगता है तो वो अंग्रेजी में ही लिखें-बोलें हमें क्या !? असंख्य तो उनके प्रशंसक भरे पड़े हैं इस दुनिया में, जिन्हें अंग्रेजी और सिर्फ अंग्रेजी ही आती है, पूरे भारत वर्ष में ही अनेक भाषाएँ हैं, अपनी भाषा के आगे किसी दुसरे की भाषा ना समझ पाने का अफ़सोस तो होता है पर उस-से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उस-से हमारा कोई लेना-देना नहीं होता है, ...लेकिन अगर लेना-देना पड़ जाए तो? तब मुश्किल होती है !! लेकिन एक हमारे पसंद-नापसंद से अमिताभ बच्चन को क्या लेना-देना !! क्या फर्क पड़ जाएगा अगर सिर्फ हम उनके ब्लॉग को ना पढ़ सकें तो ! क्या अमिताभ बच्चन को खबर है कि उनकी अग्रेजी ज्ञान पर भले हमें प्रसन्नता हो पर उसे ना समझ पाने से हमें कितना दुःख होता है !! नहीं है! ना है _और ना उनकी इस ज़िन्दगी में उनको कभी इस बात का बोध होगा. इसलिए अच्छा है हम ही संभल जाएं. छोड़ दे उनके ब्लॉग को पढना, और ...फिर बे-फ़ालतू का कमेन्ट करना..., अच्छा होगा हम छोड़ ही दें. छोड़ ही देते हैं !
जिस काम का कुछ हासिल ना हो वो क्यूँ करें ??
-दुर्र हो- !!
...और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा !!
लेकिन अमित भईया ! आपकी फ़िल्में देखना हम नहीं छोड़ेंगे ! अच्छा लगेगा तो डी.वि.डी. या वि.सी.डी. खरीद लेंगे नहीं तो जम के कोसेंगे.