जिम्मी ! न रो बेटा !
10/10/2012 को जिम्मी की आकांक्षाओं पर अप्रत्याशित आघात से मैं, वीणा, कमल, हम सभी दहल गए हैं!
न जाने क्या होने वाला है ...!?
13 तारीख को तो वैसे ही बहुत मनहूस माना जाता है, और इसी दिन, जिम्मी के कहने के अनुसार, जो फैसला आने वाला है उस पर हमारे परिवार का भविष्य निर्भर है!
जिम्मी से बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ। अब उसी के मुख से शुभ सुनने की इच्छा है। जब भी फ़ोन की घंटी बजती है प्रत्याशा से मन भर आता है। आज पूजा में शंख की ध्वनि में मेरी आकांक्षाओं ने शब्द का रूप लिया और आंसू बन बह निकला।
शनिवार 13 तारीख 2012 _सुनने में ही भयावह लगता है! यह दिन हमारे जीवन का एक हर्षपूर्ण दिन बनेगा या गहन अवसाद का? एक-एक पल डर के साए में बीत रहा है।
पर सौरभ की राय में बहुत सुखद संवाद की अपेक्षा है। सन्नी का भी यही मानना है।
- श्रीकांत तिवारी