ख़ास-विशेष मौकों पर अमीरों की फितरत है कि ये अपने स्टाफ को, चाहे वो किसी भी ओहदे का हो, बड़ी ही शिद्द्त (यतन) के साथ हमेशा ये याद दिलाते रहना, ये एहसास करते रहना कि "- तुम महसूस करो कि तुम निकृष्ट, निम्न, छोटे, और नौकरों की जामात के प्राणी हो, अपनी औकात में रहो-"...काफी अखरता है।
दुःख तब और बढ जाता है जब उस गरीब की मामूली औकात उसके मुंह पे मारी जाती है।
अमीरों के ऐसे रवैये से लगता है कि वो कह रहे हैं कि : "-सारे कुत्ते तीर्थ करने चले जायेंगे तो पत्तल कौन चाटेगा!? -यही न!?
- श्रीकांत
दुःख तब और बढ जाता है जब उस गरीब की मामूली औकात उसके मुंह पे मारी जाती है।
अमीरों के ऐसे रवैये से लगता है कि वो कह रहे हैं कि : "-सारे कुत्ते तीर्थ करने चले जायेंगे तो पत्तल कौन चाटेगा!? -यही न!?
- श्रीकांत