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Thursday, January 3, 2013

एकला चोलो रे


सादर नमस्कार,

एसएमपी पेज पर अपने ब्लॉग का लिंक पोस्ट करने वजह ये थी कि एक बार वो लेख "सूरज और प्रहरी" को पोस्ट करने बाद मैंने पाया कि उसमे कई जगह उच्चारण/स्पेलिंग गलत टाइप हुआ था। उसे फिर से सुधार करते वक़्त कई और उम्दा नुक्ते जेहन में आये, जिन्हें मैंने उसमे जोड़ा। इससे लेख का आकार कुछ बढ़ गया। इसी तरह जब उसे एसएमपी पेज पर सुधारना चाहा तो वैसे विकल्प "Edit Post" को मैं न पा सका, सिर्फ ""डिलीट"" ही आप्शन है, जिसके वजह से मैंने ब्लॉग के लिंक को ही पोस्ट कर दिया। हाँ! मेरे से ये गलती हुई कि पोस्ट्स मैंने 4 जगह दाल दी। बस यही बात है। इसके पीछे मेरी कोई दूसरी मंशा नहीं थी।

इस ग्रुप को ज्वाइन करने पर फील हुआ था कि अब दिल्ली में मेरे ढेर मित्र-साथी और दोस्त हैं, जो कभी मैं माता वैष्णौ देवी की यात्रा के निमित्त दिल्ली जाऊँगा तो उनके ही साथ रहूँगा, वे ही मुझे अन्यत्र न जाने देंगे, किसी होटल की जगह अपने साथ होने को कहेंगे, बल्कि जिद्द करेंगे, रमाकांत की तरह -' गोल्ली किदि ते गहने किद्दे'- कह कर अपने साथ ले जायेंगे और वो हर काम करेंगे जो एक दोस्त ही दोस्त के लिए कर सकता है।

माफ़ कीजियेगा, अफ़सोस कि ऐसा हो न सका।

मैं ये ग्रुप छोड़ना चाहता हूँ। सेल्फ क्विट करने की सुविधा होती तो मैं यह कष्ट भी आपको न देता। कृपया मुझे तत्काल प्रभाव से इस ग्रुप की सदस्यता से हटाने की कृपा करें। इसे मेरा फाइनल और अंतिम निर्णय समझें। इस विषय में कोई दूसरा विकल्प विचारणीय और वांछनीय नहीं है।

अलविदा।

_श्रीकांत .

ps : मेरे उपरोक्त मेसेज के उत्तर में सेल्फ क्विट का तरीका बताया गया; मैंने एसएमपी ग्रुप छोड़ दी है। आज बड़ी राहत, सुकून और हल्कापन महसूस कर रहा हूँ। मुझे ख़ुशी है।


******आगे मेरे आंसू ...
मेरी गलती थी।

मुझे इसका भान तक न हुआ कि मेरी इस कदर उपेक्षा की जायेगी। इंसान की इन्सानी फितरत से अंधी होकर आत्मसम्मान की भावना, कब विकृत होकर स्वाभिमानी से किस कदर अभिमान में बदल जाती है, फिर मित्र भी अचानक हमलावर हो जाने को विवश हो जाते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मुझे मिला। जहां मौजूद हर कोई खुद को दुसरे से ज्यादा, बहुत ज्यादा होशियार और दानिशमंद समझता है। जहाँ पहले से मौजूद सभी नहीं पर कुछ बंदे, मंच के मठाधीश, जो सभी बावन गज के है, जिनके हाथ में हमेशा हंटर है, क्योंकर अपने आगे किसी और को पनपने देंगे भला! यह भी मुझे सोच लेना चाहिए था। मैं बहुत एहसानमंद हूँ इस मंच के मठाधीशों का जिन्होंने मुझसे 'मेरा' परिचय करा दिया। तहे दिल से शुक्रिया।

एक सलाह में मुझे बताया गया कि इस प्रकार के मंचों, फोरम, पर "मेरे जैसे लोगों" के लिए कोई जगह नहीं है। 'मेरे जैसे लोग!!" _सड़कछाप ! _मजदूर-क्लास ! _समाज के बहिष्कृत, तिरस्कृत ! ...क्या, कैसा ??? जिनकी यही पहचान है कि वो अपने ही जैसे किरदारों की किरदारनिगारी से अभिभूत होकर किरदार के रचयिता को अपना मसीहा समझ लेने की भूल, भयंकर भूल, एक अक्षम्य अपराध कर बैठते हैं, और उमंग में अपनी भावनाएं बांटने की कोशिश करते है!? शायद हाँ। तब हंटर की फटकार सीधे मेरे मुँह पर पड़ती है और हंटर वाले भैया, जिनका एलीमेंट्री कैनाल उल्टा होता है, अपने जेहन का मैला अपने उदगार "-गाली-" से व्यक्त कर अपनी कुसंस्कृत प्रवृत्ति और व्यक्तित्व का परिचय, फिर से कराते हैं।

होना तो ये चाहिए था कि पहले ही दिन मुझे चेतना आ जाती। पर मैं ऐसा खुशकिस्मत कहाँ! मेरी महत्वाकान्छायें ही मेरी दुश्मन हैं। जितनी बड़ी उम्मीद होती है उतनी ही बड़ी निराशा मिलती है। इज्ज़त के बदले गालियों और कोसनों से नवाज़ा जाता है, वही गालियाँ जो जेहन में आ तो जातीं हैं पर मैं व्यक्त नहीं करता, ये मेरे संस्कार का असर है या भय का मुझे पता नहीं।

विडम्बना देखिये : अपने रचे किस्से में जैसे किरदार रचते हैं और वाहवाही बटोरते हैं, वैसे लोगों से उन्हें हकिक़तन खुद घिन्न आती है! ये प्रपंच एक कटु सत्य है, इसपर भी ये कथा कह कर प्रशंसा पाने का लालच नहीं छोड़ते।

मेरे उपरोक्त निवेदन के प्रत्युत्तर में मुझे सेल्फ क्विट करने की विधि बताई गई। मैंने क्विट किया। मैंने यह मंच छोड़ दिया। मैंने वैसे और एक मंच को छोड़ दिया जिसमे मुझसे पूछे बगैर "मेरे जैसे लोग" को सदस्यता दे दी गई थी।

अब ...
"एकला चोलो रे ...........!"
रे ऐ श्रीकांत! चल अकेला ............