धत्त तेरे की!
19,फरवरी को हमारे प्रिय पाठक सर का जन्म-दिवस है। उनके सभी प्रशंशक, हीत-मित्र, परिवार और शुभचिंतक उन्हें स्वस्थ, प्रसन्न और लम्बी उम्र की शुभकामनाएं देने लगे हैं, तो मैं पीछे कैसे रह जाऊं?...मैं शहर के सबसे माने हुए ग्रीटिंग्स-कार्ड बिक्रेता, जिसके पास हर प्रकार, हर दाम के और हर शुभ-मौके के लिए कार्ड्स हमेशा उपलब्ध रहते हैं, गया और पाठक सर के लिए कोई धांसू कार्ड तलाश करने लगा, ...लेकिन कोई भी कार्ड पसंद नहीं आ रहा था, ...सब में जो शुभकामना सन्देश इंग्लिश या हिंदी में छपे हुए थे वो मुझे पाठक सर के खुद द्वारा ही रचे हुए लग रहे थे, ...क्योंकि इन पंक्तियों का रचयिता भी कोई पाठक सर सामान रचनाकार ही होगा, ...एक उम्दा और पसंदीदा रचनाकार को किसी और के द्वारा रचित रचना भेजना क्या उचित होगा ...!!??...मुझे काफी देर से असमंजस में देखते दुकानदार ने पूछा कि मैं क्या ढूढ़ रहा हूँ? ...मेरे बताने पर उसने कई और सारे कार्ड्स दिखलाए लेकिन कोई बात, कोई कार्ड मुझे अब-भी पसंद नहीं आ रहा था, ...फिर भी दुकानदार के इसरार पर मैंने एक कार्ड चुना जिसमे कई पन्ने थे, और सभी पन्नों में कोई नयी बात लिखकर उत्साहवर्धन, और शुभकामना सन्देश जगह-जगह छपे हुए थे, ...मैंने फिर सोचा कहीं कार्ड-निर्माता ने इन्हें पाठक सर से ही तो नहीं लिखवाया हुआ, ...पर मैंने उसे खरीद लिया। उसके साथ एक सादे कागज़ पे मेरे अपने प्रेम के कुछ शब्द और शुभकामनाएं लिंखीं, उसे कार्ड में मिलाकर कार्ड सहित उसके साथ मिले लिपाफ़े में डाला,...उसपर पाठक सर का पता लिखने ही वाला था कि मोबाइल पे काल आ गई, ...काफी देर तक बातों में उलझा मैं फिर से लिपाफे कार्ड और पत्र को उलटने-पलटने-रखने-निकलने-रखने-सजाने लगा। दुकानदार ने मुझे इस तरह देखा तो मुझे हेल्प करने की गरज से मेरे पास आया और मेरे हाथ ले लिपाफा सेकर उसे सलीके से बंद कर उसे सेलोटेप से चिपका दिया। बात ख़त्म हुई तो मैं दाम चुका कर दुकानदार का शुक्रिया कर ऑफिस आ गया और लिपाफे पर पाठक सर का पता लिख कर उसे ऑफिस के 'मामा' को दे दिया कि वो उसे जल्दी से पोस्ट कर दें। उन्होंने उसे मेरे निर्देशानुसार पोस्ट कर दिया। शाम को मेरे ऑफिस में फ़ोन आया। फोन कार्ड वाले दूकानदार का था जिसने बताया कि जो कार्ड मैंने इतनी शिद्दत से छांटा था वो उसके काउंटर पर ही रह गया था,...
लिपाफे में सिर्फ चिठी भर ही थी ...
19,फरवरी को हमारे प्रिय पाठक सर का जन्म-दिवस है। उनके सभी प्रशंशक, हीत-मित्र, परिवार और शुभचिंतक उन्हें स्वस्थ, प्रसन्न और लम्बी उम्र की शुभकामनाएं देने लगे हैं, तो मैं पीछे कैसे रह जाऊं?...मैं शहर के सबसे माने हुए ग्रीटिंग्स-कार्ड बिक्रेता, जिसके पास हर प्रकार, हर दाम के और हर शुभ-मौके के लिए कार्ड्स हमेशा उपलब्ध रहते हैं, गया और पाठक सर के लिए कोई धांसू कार्ड तलाश करने लगा, ...लेकिन कोई भी कार्ड पसंद नहीं आ रहा था, ...सब में जो शुभकामना सन्देश इंग्लिश या हिंदी में छपे हुए थे वो मुझे पाठक सर के खुद द्वारा ही रचे हुए लग रहे थे, ...क्योंकि इन पंक्तियों का रचयिता भी कोई पाठक सर सामान रचनाकार ही होगा, ...एक उम्दा और पसंदीदा रचनाकार को किसी और के द्वारा रचित रचना भेजना क्या उचित होगा ...!!??...मुझे काफी देर से असमंजस में देखते दुकानदार ने पूछा कि मैं क्या ढूढ़ रहा हूँ? ...मेरे बताने पर उसने कई और सारे कार्ड्स दिखलाए लेकिन कोई बात, कोई कार्ड मुझे अब-भी पसंद नहीं आ रहा था, ...फिर भी दुकानदार के इसरार पर मैंने एक कार्ड चुना जिसमे कई पन्ने थे, और सभी पन्नों में कोई नयी बात लिखकर उत्साहवर्धन, और शुभकामना सन्देश जगह-जगह छपे हुए थे, ...मैंने फिर सोचा कहीं कार्ड-निर्माता ने इन्हें पाठक सर से ही तो नहीं लिखवाया हुआ, ...पर मैंने उसे खरीद लिया। उसके साथ एक सादे कागज़ पे मेरे अपने प्रेम के कुछ शब्द और शुभकामनाएं लिंखीं, उसे कार्ड में मिलाकर कार्ड सहित उसके साथ मिले लिपाफ़े में डाला,...उसपर पाठक सर का पता लिखने ही वाला था कि मोबाइल पे काल आ गई, ...काफी देर तक बातों में उलझा मैं फिर से लिपाफे कार्ड और पत्र को उलटने-पलटने-रखने-निकलने-रखने-सजाने लगा। दुकानदार ने मुझे इस तरह देखा तो मुझे हेल्प करने की गरज से मेरे पास आया और मेरे हाथ ले लिपाफा सेकर उसे सलीके से बंद कर उसे सेलोटेप से चिपका दिया। बात ख़त्म हुई तो मैं दाम चुका कर दुकानदार का शुक्रिया कर ऑफिस आ गया और लिपाफे पर पाठक सर का पता लिख कर उसे ऑफिस के 'मामा' को दे दिया कि वो उसे जल्दी से पोस्ट कर दें। उन्होंने उसे मेरे निर्देशानुसार पोस्ट कर दिया। शाम को मेरे ऑफिस में फ़ोन आया। फोन कार्ड वाले दूकानदार का था जिसने बताया कि जो कार्ड मैंने इतनी शिद्दत से छांटा था वो उसके काउंटर पर ही रह गया था,...
लिपाफे में सिर्फ चिठी भर ही थी ...