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Saturday, February 23, 2013

वेद प्रकाश शर्मा!

वेद प्रकाश शर्मा!
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हिंदी क्राइम फिक्शन की दुनिया से मेरा पहला प्यार इन्हीं की उपन्यासों से हुआ था। इनके लिखे अनेक विविध उपन्यासों में से सबसे ज्यादा मैं 'विजय-विकास' सिरीज़ के उपन्यासों को ही पसंद करता हूँ। हाई स्कूल से कॉलेज के 'मोड़' पर मेरी शर्मा जी के उपन्यासों से मुलाक़ात, जान-पहचान हुई थी। इनके पसंदीदा उपन्यासों की कभी मेरे पास वृहद् संग्रह हुआ करती थी। आज कुछ ही शेष हैं। शर्मा जी ने आजकल 'विजय-विकास' सिरीज़ को लिखना/रचना छोड़ नहीं दिया तो बहुत ही कम अवश्य कर दिया है। जिसके कारण इनके विविध रचनाओं की तरफ मेरा ध्यान नहीं जाता। फिर भी, पहला प्यार कोई नहीं भूलता। हिंदी जासूसी उपन्यास को निरंतर पढने की पहली प्रेरणा मुझे शर्मा जी की किताबों से ही मिली थी। मैं किसी भी उपन्यास की समीक्षा नहीं करता न ही कभी उनपर कोई लेख लिखता हूँ। मेरी पसंद-नापसंद की अपनी विचारधारा है। मैंने फील किया है की प्रशंशा की जगह आलोचना बड़ी कष्टकारक होती है। आलोचना को कोई भी रचनाकार भूल सुधार की जगह अपनी नाकद्रि समझ कर उदास या फिर नाराज़ हो जाते हैं। जबकि इन्हीं रचनाकारों की अनेक-अनेक बहुसंख्य रचनाओं को जबरदस्त तारीफ़ मिलती है, तो वे फूले नहीं समाते। किसी उपन्यास का कथानक किसी वजह से आलोचना का भाग बन जाता है तो इसका मतलब ये नहीं कि लेखक ने इस बार मेहनत कम करी थी। पूरी लगन नहीं लगाईं थी। उनकी मेहनत और लगन पर कभी भी किसी भी प्रकार की शंका न कभी थी न होगी। शर्मा जी लेखक हैं, अभी भी लेखन में सक्रीय हैं। इनका भी एक विशाल पाठक-वर्ग अवश्य है तभी तो ये फोरम वजूद में आया है! मुझे दीपांशु जी ने इस ग्रुप में शामिल कर मुझे जो मान दिया है इसके लिए मैं तहे दिल से इनके प्रति आभारी हूँ। कभी संयोग वश शर्मा जी के किसी उपन्यास पर कोई बात कहनी होगी तो मैं उसे इफ मंच पर अवश्य ही मित्रों के साथ शेयर करूँगा। लेकिन खेद है कि काफी वर्ष बीत चुके हैं, मैंने शर्मा जी की कोई रचना, कोई भी नई रचना नहीं पढ़ी है। शर्मा जी के 'विजय-विकास' सिरीज़ में एक बात जो मैंने कॉलेज के दिनों में ही नोट की थी, वो ये की जितने भी जासूसों की जामात है, उनमे अधिकाँश भारतीय जासूस आपस में रिश्तेदार हैं, विदेशी हैं तो मित्र हैं! फिर भी वैचारिक और सक्रीय रूप से एक दुसरे के खिलाफ हैं! किसी भी केस का मामला हो अपने अलग-अलग सोच के वश ये आपस में ही भीड़ जाते हैं! कोई किसी के काबू में नहीं आता! सभी एक-से-बढ़कर-एक "धुरंधर" हैं! कोई किसी से "शिकस्त" नहीं खाता फिर भी सभी एक दुसरे को "शिकस्त" देने में ही लगे रहते हैं! कोई किसी से मात नहीं खाता फिर-भी खाता है तो एक एहसान की तरह! कोई भी केस हो मामला राष्ट्रीय-हित की सुरक्षा का ही होता है क्योंकि इसके बिना भारतीय 'सीक्रेट सर्विस' की भूमिका बनती ही नहीं! लेकिन राष्ट्रीय-हित से परे अपने-अपने हुनर के प्रदर्शन में ज्यादा इन्वोल्व रहते हैं! सभी इस केस को अपने ढंग से ही सुलझाने की जिद्द में आपस में ही लड़कर मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं! जैसी तकनीकों का सहारा लेकर शर्मा जी अपने जासूसों को 'सुपर पावर्स' प्रदान करते थे या हैं, वह सभी तकनीक आज बाज़ार में सभी नागरिकों को हासिल है। फिर भी ऐसी कई वैज्ञानिक तकनीक हैं जिन्हें हमारी जानकारी से परे रखा गया है, जिसके बारे में यदा-कदा चर्चा होने पर हम हैरत में पड़ जाते हैं! शुरू-शुरू में शर्मा जी के जासूसों के करतब हमें ऐसे ही हैरान कर मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे! शर्मा जी ने कभी खुद निवेदन नहीं किया लेकिन इनके उपन्यासों को पढने के लिए बहुत सी बातों से समझौता किये बिना गुजारा नहीं! सामाजिक विषयों में भी इसी तरह की जिद्द का समावेश मिलता है!

इस मंच से अगर शर्मा जी के किसी ख़ास नोवेल, जो मैंने नहीं पढ़ी है, उसे पढने की प्रेरणा मिली तो जरूर पडूंगा और इस मंच के प्रति सदा आभारी रहूँगा।

संलग्न फोटो मेरे पास शर्मा जी मौजूद उपन्यासों का कैमरा शॉट है ...
 
१.अल्फंसे की शादी <<<(शर्मा जी की रचना) मेरा सबसे चहेता उपन्यास
२.कफ़न तेरे बेटे का
३.विजय और केशव पंडित <<<वाह!
४.कोख का मोती
५.दूध ना बख्शुंगी <<<हिट!
६.दहेज़ में रिवाल्वर
७.दुल्हन मांगे दहेज़ <<< एक विलक्षण रहस्य कथा! कडवा सच!!
८.इन्साफ का सूरज <<<सुप्प्प्पर हिट!
९.बहु मांगे इन्साफ <<<लाजवाब!
१०.साढ़े तीन घंटे <<<गज़ब!
११.कातिल हो तो ऐसा
१२.शाकाहारी खंज़र
१३.मदारी
१४.Mr.चैलेन्ज
१५.लल्लु
१६.ट्रिक
१७.हत्यारा कौन
१८.वो साला खद्दरवाला (यहाँ 'साला' शब्द को क्रॉस करने की कोई विधि मेरे पास नहीं; कृपया क्षमा करेंगे)

मुझे मेरे बचपन के अभिन्न मित्र की तरह जब कोई याद आता है और मैं जिसे सबसे ज्यादा 'मिस' करता हूँ तो है -वेद प्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों का अमर पात्र- '_विजय_!' कुछ ही दिन पहले 'बोकारो स्टील सिटी' रेलवे प्लेटफॉर्म पर की पुस्तक दूकान से मैंने पहले की पढ़ी किताब 'साढ़े तीन घंटे' खरीदी। शर्मा जी के अन्य रि-प्रिंट्स में से एक और पुरानी यादगार दिखी -'सारे जहां से ऊंचा' लेकिन चूँकि ये 'एक और अभिमन्यु' का दूसरा भाग है, और पहला -एक और अभिमन्यु-, दूकान पर उपलब्ध नहीं था मैंने, अफ़सोस के साथ, छोड़ दिया। यदि हाल में शर्मा जी ने कोई 'विजय-विकास' सीरिज़ की रचना/कथा/उपन्यास लिखा हो तो मेरा आग्रह है कि सूचित करने की कृपा करें।

सदर नमस्कार।
_श्री .