छेदी, तिलनी और कालु की कहानी ने मुझे कसकर झिंझोड़ा है! ...वाह! आँखें भर आतीं है! आँखें खुल जातीं हैं!! कितनी द्रवित कर देने वाली कोमल, निर्मल, पावन और निश्छल मानवीय भावनाएं है!! छेदी द्वरा त्याग की, किसी भी प्रकार के लालच के और मोह के त्याग की! तिलनी के रूप में दया और करुणा की कितनी सुन्दर मिसाल है!
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जब लालफीताशाही का रोग नहीं था! ...
गाँव में सरकारी संपत्तियों के सुपरिन्टेन्डेन्ट सर फ्रेडरिक एंडरसन का कैम्प लगना बहुत बड़ी बात थी। सर एंडरसन की तम्बू के पास गाँव के फरियादी जमा होते हैं। कुछ निपटारों के बाद छेदी की बारी आने पर वह कालु पर आरोप लगाता है कि कालु ने उसकी पत्नी तिलनी का अगवा कर लिया है!
पहाड़ के देहात की देहातन तिलनी जो छेदी की पत्नी है, छेदी की मलीनता और उसके द्वारा अरुचिपूर्ण रख-रखाव से असंतुष्ट, छेदी को छोड़कर कालु के पास चली जाती है। पूरी अदबो-आदाब लेकिन हिम्मत से सर एंडरसन के सामने मंज़ूर करती है कि वह स्वेच्छा से कालू के पास चली गई है।
मामले पर चर्चा के बाद सर एंडरसन के पूछने पर कि छेदी तिलनी के बदले मुआवजे की क्या दरख्वाश करता है, तब खूब मोल-भाव के बाद सर एंडरसन जो मुआवजा तय करते हैं वह कालु (के पास कम, होने पर उसके कुछ मित्रों की सहायता से) चुका देता है..., छेदी पैसे गिन कर रख लेता है। ...तभी एक बीमार, मलीन, चलने और खड़े रहने में लाचार कमजोर औरत आती है और दूर पेड़ के नीचे से विलाप करती सर एंडरसन को बताती है कि वह कालु की मौजूदा बीवी है! उसकी बीमारी, लाचारी और बेबसी पर सभी द्रवित हो जाते हैं! लोग आवक थे! उसके इस सवाल का कोई जबाब आता कि -"अब उसका क्या होगा?'...तबतक तिलनी उसे अपने अंग लगाकर सांत्वना देती है, उसके आँसु पोंछती है, और वचन देती है कि वो आजीवन उसकी सेवा करेगी, कालु की झोंपड़ी अब उन दोनों की बराबर है, और भविष्य में जो भी उसे मिलेगा उसके आधे को वह उसे दे दिया करेगी!
सभा विसर्जन के समय छेदी सर एंडरसन के पास आकर निवेदन करता है, वह अपनी मुआवजे की दरख्वाश सर एंडरसन से वापस लेकर उसे फाड़ देता है, और मुआवजे में मिली पूरी रकम लौटा देता है ताकि वो वापस कालु को दे दी जा सके :-'कालु और मैं एक ही गाँव के हैं और अब उसके पास खिलाने के लिए दो मुँह हो गए हैं ............, मैं समझता हूँ कालु को पैसे की जरूरत मुझसे ज्यादा है...'
_जिम कॉर्बेट की " मेरा हिन्दुस्तान" से।
_श्रीकांत तिवारी