"Cheers gentlemen!"
... अभी मैं -DON-/विजय की दुनिया में हूँ ..12`Year old boy! nOw 47Yr. old ..."OLD!!?" ना ना -kid-_KID, ...थोडा पगलाया सा, ...थोडा बौराया सा, ...थोडा व्हिस्की(की याद) का बुखार,... ज्यादा "भांग"(से बदहजमी) का खुमार,...मूंह में पान,...साथ में प्राण, ...थोडा ज्यादा ही जोश, ...नन्हा-सा होश! ...watching the movie... "-DON-"_78@HOME.CAM
"विजय !"
यह एक शब्द नहीं, एक नाम नहीं, एक परिचय नहीं, एक पुकार का बोल नहीं, यह जय-पराजय का मामला भी नहीं,..... यह इन सबसे इतर एक बुनियाद है, जो वज्र से भी मज़बूत है! इसी बुनियाद पर "अमिताभ बच्चन" नाम के एक आदमी की; -नायक से महानायक बने शानदार और प्रेरक;- "आसमानी इमारत" इस पृथ्वी पर खड़ी है, और पृथ्वी के जीवनप्रयंत अडिग, अचल खड़ी रहेगी! हम मर जायेंगे, मिट जायेंगे लेकिन इस इमारत के बगल में खड़ा होने वाला कोई नहीं! (था तो था .. था!!) न है, न होगा! अमित जी की इस बुनियाद को टक्कर देना अब प्रकृति के वश में भी नहीं है! जिसका नाम है _
"विजय !"
जिसे फ़िल्मी पर्दे पर पुकारने में एक माँ को फक्र होता है, एक भाई को गर्व होता है, एक दोस्त का सीना चौंडा हो जाता है, जो एक आम आदमी है, जो हमारे पड़ोस में रहता है, जो हमारे लिए लड़ता है, हमारे हक में लड़ता है, जो हमारे जैसे ही कपडे पहनता है, जो हमारी तरह ही ढाबे की चाय पीता है, जो कभी गंभीर है ........चुप, खामोश,......लेकिन अशांत! पहाड़ के गर्भ में खौलते दहकते लावे की तरह, ...जो फट पड़ने को तत्पर ज्वालामुखी के मुहाने जैसा खतरनाक है, जिसे देखकर, जिसकी सुलगती आँखों को देखकर दुश्मन, और अत्याचारी यूँ ही आधा मर जाता है, जिसकी मौजूदगी जीत है; -"विजय"- की गारंटी है! वह विजय जो कभी "जय" के रूप में वीरू ...!वीरू......!! कहता ऐंठ कर दम तोड़ता है तो पूरा जनसमुद्र रोता है! ..जो 'विजय' मंदिर में माँ की गोद में मरता है तो इंसानियत रो पड़ती है!!
"विजय !" _जिसके बगैर अमिताभ का कोई वजूद नहीं................................
वही "विजय" DON में जब "........अबे ओ` गंजे!!" कहकर 'शेट्टी' को उकसाता है तो सिनेमा घर के भीतर ही नहीं बाहर खड़ी उत्सुक भीड़ में भी जोश, ख़ुशी और हंसी के फव्वारे फुट पड़ते हैं! वो तालियाँ और वो सीटियाँ अब इतिहास बन चुकी हैं; लेकिन उसकी ताजगी और सुगंध अभी भी उसी पुरजोर जोश के साथ हमारे साथ है!
_श्री .
... अभी मैं -DON-/विजय की दुनिया में हूँ ..12`Year old boy! nOw 47Yr. old ..."OLD!!?" ना ना -kid-_KID, ...थोडा पगलाया सा, ...थोडा बौराया सा, ...थोडा व्हिस्की(की याद) का बुखार,... ज्यादा "भांग"(से बदहजमी) का खुमार,...मूंह में पान,...साथ में प्राण, ...थोडा ज्यादा ही जोश, ...नन्हा-सा होश! ...watching the movie... "-DON-"_78@HOME.CAM
"विजय !"
यह एक शब्द नहीं, एक नाम नहीं, एक परिचय नहीं, एक पुकार का बोल नहीं, यह जय-पराजय का मामला भी नहीं,..... यह इन सबसे इतर एक बुनियाद है, जो वज्र से भी मज़बूत है! इसी बुनियाद पर "अमिताभ बच्चन" नाम के एक आदमी की; -नायक से महानायक बने शानदार और प्रेरक;- "आसमानी इमारत" इस पृथ्वी पर खड़ी है, और पृथ्वी के जीवनप्रयंत अडिग, अचल खड़ी रहेगी! हम मर जायेंगे, मिट जायेंगे लेकिन इस इमारत के बगल में खड़ा होने वाला कोई नहीं! (था तो था .. था!!) न है, न होगा! अमित जी की इस बुनियाद को टक्कर देना अब प्रकृति के वश में भी नहीं है! जिसका नाम है _
"विजय !"
जिसे फ़िल्मी पर्दे पर पुकारने में एक माँ को फक्र होता है, एक भाई को गर्व होता है, एक दोस्त का सीना चौंडा हो जाता है, जो एक आम आदमी है, जो हमारे पड़ोस में रहता है, जो हमारे लिए लड़ता है, हमारे हक में लड़ता है, जो हमारे जैसे ही कपडे पहनता है, जो हमारी तरह ही ढाबे की चाय पीता है, जो कभी गंभीर है ........चुप, खामोश,......लेकिन अशांत! पहाड़ के गर्भ में खौलते दहकते लावे की तरह, ...जो फट पड़ने को तत्पर ज्वालामुखी के मुहाने जैसा खतरनाक है, जिसे देखकर, जिसकी सुलगती आँखों को देखकर दुश्मन, और अत्याचारी यूँ ही आधा मर जाता है, जिसकी मौजूदगी जीत है; -"विजय"- की गारंटी है! वह विजय जो कभी "जय" के रूप में वीरू ...!वीरू......!! कहता ऐंठ कर दम तोड़ता है तो पूरा जनसमुद्र रोता है! ..जो 'विजय' मंदिर में माँ की गोद में मरता है तो इंसानियत रो पड़ती है!!
"विजय !" _जिसके बगैर अमिताभ का कोई वजूद नहीं................................
वही "विजय" DON में जब "........अबे ओ` गंजे!!" कहकर 'शेट्टी' को उकसाता है तो सिनेमा घर के भीतर ही नहीं बाहर खड़ी उत्सुक भीड़ में भी जोश, ख़ुशी और हंसी के फव्वारे फुट पड़ते हैं! वो तालियाँ और वो सीटियाँ अब इतिहास बन चुकी हैं; लेकिन उसकी ताजगी और सुगंध अभी भी उसी पुरजोर जोश के साथ हमारे साथ है!
_श्री .