पूर्वकाल में दक्षिण दिशा में 'महिलारोप्य' नाम का एक नगर था। उस नगर के अधिपति थे राजा, अमरशक्ति। राजा अमरशक्ति उदार होने के साथ-साथ निपुण और कुशल प्रशाशक थे। उनके तीन पुत्र थे -- बहुशक्ति, उग्रशक्ति, और अनन्तशक्ति। राजा अमरशक्ति जितने उदार थे, उनके पुत्र उतने ही उच्छ्रिंखल और अवज्ञाकारी। पिता जितने नीति-निपुण थे, पुत्र उतने ही वज्रमूर्ख! अंत में राज के मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया कि यदि राज्यसभा में उपस्थित, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता, प्रकांड विद्वान्, पंडित विष्णुशर्मा को यह दायित्व सौंपा जाय तो वे अल्पकाल में ही राजकुमारों को सब विधाओं में पारंगत बना देंगे।
यह सुनकर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने पंडित विष्णुशर्मा को बुलवाया और उनसे निवेदन किया कि यदि किसी प्रकार राजकुमारों को सुशिक्षित कर दें तो पुरस्कार स्वरुप उन्हें एक-सौ गावोँ का स्वामित्व प्रदान किया जायेगा।
राजा का यह वचन सुनकर विष्णुशर्मा ने कहा --'हे राजन! एक-सौ ग्रामों का आधिपत्य प्राप्त करने पर भी मैं अपनी विद्या को नहीं बेचूंगा! मैं ब्राम्हण हूँ, और ब्रम्हाण को धन का कोई लोभ नहीं होता! वैसे भी मेरी आयु ८० वर्ष की हो चुकी है। और मैं समस्त इन्द्रीय-सुखों से विरक्त हो चूका हूँ। फिर भी, आपकी इच्छापूर्ति और 'अपने' मनोरंजन के लिए मैं आपके पुत्रों को शिक्षित करूँगा, और उन्हें छः मास की अवधि के भीतर ही नीतिशास्त्र में निपुण बना दूंगा। यदि मैं ऐसा न कर सका तो आप मुझे मृत्यु दण्ड दे सकते हैं!'
पंडित विष्णुशर्मा की यह भीषण प्रतिज्ञा सुनकर राजा अमरशक्ति आश्चर्यचकित रह गए! उन्होंने निश्चिन्त होकर राजकुमारों की शिक्षा का दायित्व पंडित विष्णुशर्मा को सौंप दिया और स्वयं शासन के कार्यों में व्यस्त हो गये।
तब पंडित विष्णुशर्मा ने तीनों राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से सम्बंधित कथाएं सुनाई। इन्हीं सब कथाओं का संग्रह बाद में 'पंचतंत्र' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सचमुच 'पंचतंत्र' संस्कृत भाषा का महान ग्रन्थ है।
पुस्तक में पाँच तंत्र हैं -- 'मित्रभेद', 'मित्र-संप्राप्ति', 'काकोलूकीयम', 'लब्ध प्रणांश', और 'अपरीक्षित कारकम'। पाँच प्रकरण होने के कारण ही इसका नाम "पंचतंत्र" रखा गया। प्रत्येक प्रकरण में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर ईतनी रोचक, ईतनी ज्ञान वर्धक नीति-कथाये कही गईं हैं, जिन्हें पढ़कर अथवा सुनकर पाठक या श्रोता भावविभोर हो जाता है। ( __गंगा प्रसाद शर्मा)
अवश्य पढ़ें!
विनयावनत,
_श्री।
यह सुनकर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने पंडित विष्णुशर्मा को बुलवाया और उनसे निवेदन किया कि यदि किसी प्रकार राजकुमारों को सुशिक्षित कर दें तो पुरस्कार स्वरुप उन्हें एक-सौ गावोँ का स्वामित्व प्रदान किया जायेगा।
राजा का यह वचन सुनकर विष्णुशर्मा ने कहा --'हे राजन! एक-सौ ग्रामों का आधिपत्य प्राप्त करने पर भी मैं अपनी विद्या को नहीं बेचूंगा! मैं ब्राम्हण हूँ, और ब्रम्हाण को धन का कोई लोभ नहीं होता! वैसे भी मेरी आयु ८० वर्ष की हो चुकी है। और मैं समस्त इन्द्रीय-सुखों से विरक्त हो चूका हूँ। फिर भी, आपकी इच्छापूर्ति और 'अपने' मनोरंजन के लिए मैं आपके पुत्रों को शिक्षित करूँगा, और उन्हें छः मास की अवधि के भीतर ही नीतिशास्त्र में निपुण बना दूंगा। यदि मैं ऐसा न कर सका तो आप मुझे मृत्यु दण्ड दे सकते हैं!'
पंडित विष्णुशर्मा की यह भीषण प्रतिज्ञा सुनकर राजा अमरशक्ति आश्चर्यचकित रह गए! उन्होंने निश्चिन्त होकर राजकुमारों की शिक्षा का दायित्व पंडित विष्णुशर्मा को सौंप दिया और स्वयं शासन के कार्यों में व्यस्त हो गये।
तब पंडित विष्णुशर्मा ने तीनों राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से सम्बंधित कथाएं सुनाई। इन्हीं सब कथाओं का संग्रह बाद में 'पंचतंत्र' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सचमुच 'पंचतंत्र' संस्कृत भाषा का महान ग्रन्थ है।
पुस्तक में पाँच तंत्र हैं -- 'मित्रभेद', 'मित्र-संप्राप्ति', 'काकोलूकीयम', 'लब्ध प्रणांश', और 'अपरीक्षित कारकम'। पाँच प्रकरण होने के कारण ही इसका नाम "पंचतंत्र" रखा गया। प्रत्येक प्रकरण में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर ईतनी रोचक, ईतनी ज्ञान वर्धक नीति-कथाये कही गईं हैं, जिन्हें पढ़कर अथवा सुनकर पाठक या श्रोता भावविभोर हो जाता है। ( __गंगा प्रसाद शर्मा)
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विनयावनत,
_श्री।