"...जिम्मी की B.Tech. की पढ़ाई पूरी हुई!
अब उसे वापस घर लौटना है!
अपने जीवन के बहुमूल्य 4-वर्ष एक स्थान पर, गुजारने के बाद, ...उन सभी को पीछे छोड़कर, ...जो लगातार इन चार वर्षों में अपने 'अपनों' से कहीं ज्यादा "ख़ास" हो गए हैं, ...और जो जान रहे हैं कि अब के बिछड़े ना जाने फिर कब मिलें, ...मिलेंगे भी या नहीं? कॉलेज में पहले ही इन्होंने, और इन-सब के लिए सभी जूनियर्स ने मिलकर एक फेयरवेल पार्टी कर ली है, जिसमे सभी ने एक उत्सव सा, उल्लास भरा समय बिताया, ...एक-दूजे से गले मिलते और सबको शुभकामनाएं देते, ...हँसते-गाते नाचते-झूमते सभी-ने सभी की बुशर्ट (College Uniform, Shirt) पर संदेशे-बधाईयाँ-शुभकामना सहित अपने-अपने हस्ताक्षर, नाम-पते और कांटेक्ट नम्बर्स कई रंग-बिरंगी स्याहियों वाली कलमों से लिख डालीं! ...अब यह शर्ट कभी नहीं धुलेगी! बल्कि एक यादगार बनकर सदैव इनके पास रहेगी! इस फेयरवेल पार्टी की हंसी थमने में थोडा वक़्त लगा, ...फिर हंसी थमी, और ठिठककर एक उदास-सी खामोशी में सूखते पसीने की ठण्ड में बर्फ की तरह जम कर सबके हलक में अटक-सी गई; ...फिर जब ये बर्फ पिघली तो आँखों से अश्रुधारा बनकर फुट पड़ी, जिसका आवेग सबके अपने-अपने मनःस्थिति के मुताबिक था; ...पर था। निर्मल और निश्छल, पवित्र और पावन! ..... एकदूसरे को अपने अंक में भरते ये नौजवान,.... जो देशहित के हेतु नवनिर्माण में अपना-अपना योगदान देने के लिए, अब बिछड़ रहे हैं, कई कई यादों की झोलियों को अपने ह्रदय में लिए एक-दूजे को चूमते और नए वादे के साथ अपने इस घर और परिवार से विदा लेते हैं.....
०९/जून/२०१३ को जिम्मी को घर लिवाने के लिए, हम ८-तारीख की शाम को आसनसोल पहुँच गए! हमें पता चला कि अधिकांश लड़के चले गए हैं केवल जिम्मी ही अब तक रुक हुआ है, चूंकि प्रोग्राम पहले से ही तय था अतः हम तो सही समय पर पहुंचे, लेकिन जिम्मी को उसकी उम्मीद से काफी पहले ही पूरी _छुट्टी/फुर्सत_ मिल गई थी! ५-दिन उसने एक तरह से बोरियत में गुजारे! हमारे पहुँचने पर हमने पाया कि कमरे के बाहर, असलियत में एक फ्लैट; जिम्मी और उसके बाकी छह मित्रों ने मिलकर, जिसे किराए पर लिया हुआ था, के बाहर कार्डबोर्ड के कार्टंस में और यूँ ही खुले पड़े -A HUGE-, भारी कूड़े, और सामानों का अम्बार पड़ा हुआ है! फ्लैट के अन्दर हॉल में भी उसी तरह का एक सामानों का अन्य पहाड़ दिखा! जिम्मी और कुणाल(जिम्मी का मित्र) बस ये २-जने ही थे! बाकी अन्य छ: लड़के; पता चला; जूनियर्स थे! इन्होने हमारी आवभगत की! ठहराया और कोल्ड-ड्रिंक्स वगैरह से हमारी थकान और प्यास को राहत दी! उन सामानों के बारे में पूछने पर इन्होने बतलाया कि बाहर वाला रियल कूड़ा है, जो जिम्मी-&-ग्रुप्स की चार-वर्षीय बचत-खुचत का खफत था! ...और भीतर हॉल वाला नए आगंतुकों (छात्रों) का सामान था! जिसे वे फ्लैट 'पूरा खाली होने', पर अपने-अपने ढंग से अपने-अपने कमरों में रखेंगे! कॉलेज होस्टल की कहानी वही बासी स्टोरी है; कि "कुछ" कारणों और अपने हित में उसे त्यागकर कॉलेज के सामने एक बिल्डिंग के इन्होने एक फ्लैट किराए पर ले लिया था, और सभी कामों के लिए ऐसे इलाकों में उपलब्ध 'चाचियों' में से एक चाची इनके लिए खाना बनाना, कपडे धोना, झाड़ू-बुहारू, बर्तन वगैरह के लिए अवेलेबल थी! इन्होने फ्लैट मालिक द्वारा (किराए में शामिल) उपलब्ध कराये चार फोल्डिंग कोर्ट्स को जोड़कर बिछावन लगा दिया था! और खुशकिस्मती से हमारे लिए एक दुर्लभ चीज़ की बढियां मौजूदगी से हमारी थकान तुरंत मुस्कान में बदल गई, वो थी :"बिजली, और चलता हुआ पंखा!" जो थाना टोली, थाना रोड, लोहरदगा, झारखण्ड में कदापि नहीं पाया जाता! छोडिये इसकी कथा! बहुत थके हैं थोड़ा आराम कर लें, क्योंकि शाम में महिलाओं को 'घुमाना-फिराना' भी है, वस्तुतः जिसके लिए वो आईं हैं!
कोल्ड-ड्रिंक्स पीते और लड़कों से बातों के दरम्यान जूनियर्स [B.Tech. 2ndYr-3rdYr_ fifth semester to seventh semester के] बच्चों से बातचीत हुई! और उनके ही द्वारा जिम्मी के विषय में काफी Overwhelming अनसुनी-अनजानी और ह्रदय को शान्ति, संतुष्टि, प्रसन्नता, गर्व, जोश, हिम्मत और राहत देने वाली जानकारियों को सुनकर हमें हैरानी हुई और आंखें नम! जिम्मी इन सभी बच्चों का अध्यापक है! बड़ा भाई है!
"...प्रितीश भैया के होते क्या डर!" "....मुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा कि अब मेरा क्या होगा? कौन मुझे Guideline देगा?" "...जानते हैं अंकल प्रितीश भैया ने एक बार.........!" इन बातों में खुलकर मुस्कुराते जिम्मी की धवल दंतपंक्ति को मैं नज़रें चुराकर देखता! हरेक बच्चा _*प्रितीश भैया*_ के विछोह की वेदना में कई किस्से बयान करते गये, और रो पड़े!
मकान मालिक ने सुना कि प्रितीश के माता-पिता, दादी, अंकल, और छोटा भाई 'लड्डू', आये हैं तो ह्रदय-रोग की बाइपास सर्ज़री करा चुके और मधुमेह के रोगी वह कृशकाय वृद्ध जबरन हमें इस फ्लैट के ऊपर निर्मित अपने घर लिवा ले गये और हमारी मेहमाननवाज़ी कर हमें सम्मान दिया! उनकी पत्नी और बहु ने भी हमें जिम्मी कि कई गुणकारी व्यक्तित्वों की हमें जानकारी दी और TCS (
http://en.wikipedia.org/wiki/Tata_Consultancy_Services)
"टाटा कंसल्टेंसीज सर्विसेज़ / Tata Consultancy Services" में जिम्मी की प्लेसमेंट हो जाने पर हमें बधाईयाँ दी! उनसे प्राप्त सम्मान से अभिभूत और कृतज्ञ होकर उनके इसरार पर उनके यहाँ से नाश्ता-चाय के बाद हम सभी और प्रितिश के -सभी दोस्तों- को भी साथ लेकर हमने एक साथ शाम गुजारी, आसनसोल के मशहूर GALAXY MALL में घूमें, फिर एक रेस्टुरेंट में डिनर!
०९/जून/२०१३ की सुबह प्रस्थान से पहले मेरे सुझाव पर बच्चे हमें [माँ, वीणा, धीरू(मेरा मौसेरा भाई) और लड्डू] को कॉलेज घुमाने ले गये! कॉलेज, इतवार होने की वजह से सूना था! सिक्यूरिटी क्लेअरेंस मिलने के बाद हम कॉलेज परिसर के अन्दर गए! और भारी उमस भारी गर्मी और तर-तर पसीने के बावजूद भी सबने खूब एन्जॉय किया! मेरी अनुभूति और रोमांच को सिर्फ मैं ही फील कर रहा था! मेरे मन में एक साथ अनेकानेक विचारों का सत्संग चल रहा था! कॉलेज परिसर में कई जगहों पर हमने फोटो खिचवाये! सभी बच्चों ने महिलाओं को कॉलेज के हरेक हिस्से को दिखलाया! चूंकि इतने व्यापक भू-भाग का भमण काफी समय ले लेता अतः उन्होंने दूरे से ही कई इमारतों को अपनी जोशीली कमेन्ट्री के साथ दिखलाया! फिर बाहर!
बाहर आये तो हमारी गाड़ी के पास और अन्य कई लोग इकट्ठे थे! जिम्मी ने मुझे उनसे मिलवाना चाहा, तो मैंने घडी को ऊँगली से ठकठका कर शीघ्रता करने को कहा और बगल के "जुबली पेट्रोल पंप" पर गाड़ी में तेल भरवाने चला गया! लौटने पर देखा २/३ लोग और आ गए हैं! जिमी ने मुझे उन सभी से मिलवाया! '...ये वो दुकानदार 'भैया' हैं, जिनसे सभी खाद्य-पदार्थ अब तक खरीदते थे'; '...ये ज़ेरॉक्स वाले 'भैया' हैं', '...ये किताब दूकान वाले 'भैया' हैं', 'ये नाश्ते-चाय वाले भैया हैं', ........ ........ ........ मकान मालिक भी हैं! ...सभी दोस्त (जूनियर्स) है! और जिम्मी सबके लिए अनमोल है, जो आज जा रहा है, अपने घर .....
...गाडी में जिम्मी का सारा सामान लादा जा चूका है! ...बारिश के लक्षण हैं, ... पर यहाँ आँखें बरस रही हैं! सभी जिम्मी को अपने अंक में भर कर रो रहें है,
(हे, भगवान्!) ...जैसे बेटी की बिदाई हो रही हो, कोई मेरे चरण छूना चाहता है तो उसे बाहों से बीच में ही थामकर, उनसे गले मिल उनके सभी सहयोग के लिए प्रणाम कह रहा हूँ, मैंने मकान मालिक 'सिंह साहब' (बक्सर/ बिहार के मूल निवासी) से विदा ली! सारे बच्चे जिम्मी को गोल घेरे में लेकर इसे चुमते हुए आंसू बहा रहे हैं! महिलाए भी सब्र न कर सकीं! इन्होने सभी का शुक्रिया कहा! और सभी बच्चों को आपना आशीष दिया! सब रो रहे थे, पर जिम्मी नहीं; उसकी खिली मुस्कान और धवल दंतपंक्ति सबको आश्वासन दे रही कि वो ''तन, मन, धन'', ''मन, वचन, और कर्म'' से सदैव उनसे सम्बंधित रहेगा........!"
हम AEC से निकल पड़े;
......अ ...ल ... वि ...दा ...!
G.T. Road पर सनसनाते_ घर, रांची के लिए!
आसमान कहीं आग बरसा रहा है, तो बादलों की बगावत से उमस और चिपचिपी पसीने वाली गर्मी का भारी हमला है! धनबाद में हमने नाश्ता किया! इसी दरम्यान जिम्मी के २-मित्र मोटरसाइकल से हमारे पीछे-पीछे लगे पहुंचे! और हमें धनबाद के निकास मार्ग तक पहुंचा कर ही विदा हुए!
राँची; घर, पहुंचकर मैं अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लाठी की तरह गिरा, और सो गया!
.........................
रात्री से पहले लगभग ८:४५ बजे हम लोहरदगा, डेरा पर आ गये!
लोहरदगा!
हमारा मुक्तिधाम!
No Electricity, No Road, No Water, No Network, No Doctors,
NO, NOTHING! सिर्फ स्वार्थ!
न दोस्त, ना दोस्ती!
भीषण गर्मी, अँधेरे और कीचड में डूबा हुआ!
मिटटी तेल का बुझा हुआ दिया
और हम मच्छरों के आहार,
फिर भी, जिम्मी ने DAN BROWN की किताब " i n f e r n o" कब्जाई और अपना पोर्टेबल लैंप लेकर ऊपर खुली छत पर उपन्यास का मजा लेने कूदता हुआ चला गया! थोड़ी देर में ही वापस भागता हुआ आया! मुसलाधार बरसात की बौछार शुरू हो गई थी! ...अरे! फिर अचानक थम भी गई!
अपने -इस- शहर में
अपने इस घर में
अभी भी हम
अजनबी हैं!"
_श्री .