मौत का तो रोज का मेला है! उसकी रोज होली और दीवाली है! सभी उसके ग्रास हैं! सबकी बारी आनि है! मौत जब आती है तब यह सफाई नहीं देती कि मृतक बेक़सूर था कुसूरवार! मेरे बाबुजी के मित्र, ९४-वर्षीय निःसंतान, भागवत प्रसाद जी कल ११ बजे उसी तरह चाक-चौबंद और स्वस्थ थे! कोई बिमारी नहीं! ना साँस की तकलीफ, ना बीपी, ना शुगर न कोई दवाईयों पर निर्भरता! फिर भी यूँ मारे गए और यूँ उनकी जान निकली जैसे रौशन दीपक अचानक बुझ गया हो! उनकी मारुति वैन ने पलटा खाया और वे हस्पताल पहुँचने से पहले ही संसार को अलविदा कह गए! उनके भांजे की दोनों टांगें टूट गई! और अब उनका परिवार उनकी बाट जोह रहा है! किस उम्मीद में हैं ये लोग ?? एक सप्ताह पहले ही भागवत बाबु मेरे कार्यालय में अपने इसी भांजे के साथ आये थे और मैंने निश्चय किया था कि इनसे जरूर मिल बैठ कर अपने बाबुजी की बातें करूँगा, साथ एक फोटो खिचवाऊँगा … इनकी नतनी और भांजे की पत्नी को अभी सब्र है और वे इन्तजार में हैं … लोग पूछ रहे हैं कि भागवत बाबु ने भगवान् का क्या बिगाड़ा था ?? कल की इस दारुण घटना की सूचना लोहरदगा में कल ही आम थी लेकिन उसे मुझ तक पहुँचने में १२ घंटे लग गए जब श्री उदय बाबु ने मुझसे फोनकर पूछा कि :"पता चला तिवारी जी? खुद में ऐसे ही खोये हैं हम! किसी को किसी की कोई सुध-बुध नहीं! बस अपनी आत्म प्रशंसा! और एक दुसरे को नीचा दिखाते घमंड के गाल बजाना! छिः!