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Saturday, September 28, 2013

आज रपट जाएँ तो हमें ना उठाईयो

एक बार कि बात है ....
हम पति-पत्नी पटना में हैं! पटना में हमारे कई ठिकाने हैं! लेकिन शादी के बाद ससुराल को ही ज्यादा प्राथमिकता दी जाने लगी! शुरुआत में, १९८४ से १९८९ तक मेरे पूज्य गुरुदेव श्री प्रयाग पाण्डेय जी (मेरे मंझले जीजाजी) का घर ही मेरा घर था! आज भी, अभी भी मुझे इन्हीं की शरण में ज्यादा शान्ति मिलती है! मैं पटना में मच्छली की तरह तैरता हूँ, जी! मैंने इसके सभी ईलाके देखे हुए हैं! पोस्टल पार्क! हनुमान नगर! कंकड़बाग़! विजय नगर! सैदपुर! बेली रोड! बोरिंग कैनाल रोड! नाला रोड! खजांची रोड! अशोक राज-पथ! चिरैयांतांड! एक्जीविशन रोड! स्टेशन रोड! फ्रेज़र रोड! गांधी मैदान! महात्मा गांधी सेतु! करबिगहिया! बाकरगंज! पीरबहोर! राजेन्द्र नगर! अगम कुंवां! कदम कुंवां! बहादुरपुर! सब-के-सब सिनेमा घर, शानदार मॉल और रेस्टुरेंट इत्यादि-इत्यादि!
पर यह बात आज की है! आज का पटना मेरी निम्नलिखित पटना से कहीं ज्यादा भिन्न है!
मैं अपनी पत्नी के ईलाज के सिलसिले में यहाँ आया हूँ, और बोरिंग कैनाल रोड पर, अपने स्वसुर जी के आवास पर ठहरा हूँ! मेरी भांजी प्रियंका (रिम्पी) को पता है कि मामा-मामी पटना आये हैं! बस्स!_उसने मिलने की जिद्द पकड़ ली! और वो अपने बड़े पापा के यहाँ बहादुरपुर में है; जो हमारे मौजूदा मुकाम से किसी ऑटो(टेम्पु) के हिसाब से एक घंटे की दूरी पर है! पैदल, रिक्शा, और ऑटो , कुल मिलाकर डेढ़ घंटे की मुँह बिसूरने वाली सफ़र है! लेकिन हमें चूँकि कंकड़बाग़ में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट फिक्स थी, सो उधर जाना ही था! अपॉइंटमेंट शाम की थी! हमने सबेरे ही निकले का फैसला किया कि पहले रिम्पी से मिलेंगे फिर वहीँ से डॉक्टर साहब के पास चले जायेंगे! सो हम निकल पड़े!
रिम्पी एक इकलौती बच्ची है, जो मुझे अपने सामने देखकर अतिउत्साहित हो जाती है! उसका मेरे प्रति रुझाव एक इकलौता उदाहरण है जो अभी भी कायम है! ये अभी एक एग्जाम कि तैयारी के सिलसिले में बोकारो से पटना आई हुई है! इसके बाद इसे दिल्ली में हायर-स्टडीज के लिए जाना है! हमारे पहुँचते ही ये कूदने-फांदने लगी! हमने वहीँ लंच किया! आराम किया! गप्पें कीं! फिर समयानुसार हमने विदा लिया! मौसम प्रतिकूल था! बादल भारी बारिश की धमकी दे रहे थे! गरजते बादल और चमकती बिजली से मन में शंका होती रही कि हम अब घर वापस कैसे जायेंगे? फिर घड़ी ने भी सूचना दी कि हमें निकलना चाहिये क्योंकि अभी लगभग एक किलोमीटर पैदल चलना है, रेलवे लाईन क्रॉस कर के नालंदा मेडिकल कॉलेज के सामने जा कर खड़े होना है! और देखना है कि कौन सी ऑटो खाली आती है, जिसमे हम दोनों समा सकें! मौसम की धमकी के बावजूद हम निकल पड़े! रिम्पी अपनी आदत के मुताबिक़ रूवांसी हो गई! पर वो अपने मामा को जानती है, जो किसी की भी एक पुकार पर हाज़िर होने की क्षमता रखता है! और दूरियां मेरे इस ज़ज्बात के आड़े नहीं आतीं! मैंने अपनी बेटी को प्यार किया! बिटिया ने अपनी मामी से लिपट कर, "फुईं-फुईं" कर हमें विदा किया! और अब हम इन्द्रदेव की मर्ज़ी के हवाले खर्रामा-खर्रामा, पैदल NMCH की ओर चल पड़े, कि बूँदें गिरने लगीं! हिम्मत कर के और आगे बढ़े कि शायद बारिश न हो! पर उसकी तीव्रता बढती गई जो सचमुच महाभारी मूसलाधार तेज बारिश में तब्दील हो गई! अब कहाँ आश्रय पायें? कही कोई टिन-टप्पर भी नहीं, कोई मामूली सा शेड भी नहीं, जिसके नीचे खड़े होकर बारिश की रफ़्तार थमने का इन्तजार कर सकें! वापस जाना या आगे बढ़ना एक बराबर था! मैंने पत्नी जी -वीणा- को देखा तो वह खेद से मुस्काई! हमारी नज़रों ने फैसला किया कि पानी से भीग कर तर-ब-तर हो ही चुके हैं अब छिपना क्या और बचना क्या, चलो आगे ही बढ़ते हैं! समय भी बीता जा रहा है! सो, साब जी, हमने कीमती और आवश्यक वस्तुवों को मेरी जेबों की गहराई में सुरक्षित किया, और भीगते हुए टहलते चल निकले! कई लोगों ने जो कहीं आश्रय पा चुके थे हमें -बिंदास- इस भारी बारिश में टहलते देख अजीब-अजीब भंगिमाएं बना रहे थे! हमने सावधानी से देख-सुन-समझकर वह -असुरक्षित- (आदम द्वारा ज़बरन बनाई गेटवे) रेलवे क्रासिंग को पार किया और खर्रमा-खर्रमा चलते NMCH के मुख्य द्वार के सामने खड़े किसी खाली टेम्पु का इन्तजार करने लगे! वह मिला! हम बैठे! टेम्पु चली, तब हमें हमारी दशा का ख्याल आया कि हम जैसे किसी पानी टंकी या तालाब से डुबकी लगाकर सीधे इस टेम्पु में आ बैठें हों! मैं बार-बार अपनी ऊँगली से वाईपर की तरह अपना चश्मा साफ़ करते चला! वीणा ने भी खुद को "ठीक" किया! आखिरकार हम उस मोड़ पर उतरे जहां से डॉक्टर की क्लिनिक का रास्ता था! कंकड़बाग़ रोड पर चिरियांटांड पुल की तरफ आईये जहां "बोम्बे डाईंग"(मरता हुआ बम्बई) का शोरूम दिखे ठीक उसके सामने की सड़क में घुस जाईये, वो आपको कंकड़बाग़ कॉलोनी ले जायेगा! यहाँ उतरे तो ना कोई रिक्शा था न टेम्पु! अब? वही _खर्रमा-खर्रमा!
सांझ ढले हम डॉक्टर साहब के क्लिनिक तक आये! और अन्दर गये जिसमे मरीज़ बैठकर अपनी बारी का इन्तजार करते हैं! वहां जन समुद्र की बाढ़ ने हमारा ऐसा स्वागत किया कि समझ में नहीं आया कि वापस जायें, कि जो है सो झेलें? झेलो भई! आखिर १००० कि.मी. इसीलिए तो आये हैं!! मैंने कुछ जतन कर वीणा को बिठा दिया और पता करने लगा कि हमारा नंबर कब आएगा? कौन सा नंबर चल रहा है? जो जानकारी मिली उससे हमदोनों का मूंह कद्दू जैसा लटक गया! अभी इवनिंग शिफ्ट की शुरुआत ही नहीं हुई है! और हमारा नंबर ८ आठ है! अब? इन्तजार! इन्तजार!! इन्तजार!!! ...एक हलचल से पता चला कि डॉक्टर साहाब अपने चैंबर में आ गये हैं! उनका स्टाफ मरीजों कि लिस्ट लेकर गायब हो गया! खूब कलपाने के बाद जब वो नज़र आये तो मैं उनसे पूछने लगा कि लिस्ट तो गई, डॉक्टर ने मरीजों को देखना शुरू किया या नहीं?? मेरी तरह ही सावालिया निशान बने कई लोग उसका मूंह ताकने लगे! उसने अपने चिर-परिचित भारतीय असभ्यता अनुसार उत्तर दिया और सबको उनकी औकात दिखाई: जब आपका नंबर आएगा तो अपने बुला लेवेंगे!
_"जरूर रे, मामु!! तोर बुलाहटा अईतऊ तो हमारा बुलईहे! पेंदिया में सुलगल अगरबत्ती छुवईबऊ ना रे बेट्टा, तो फट्ट से भितरा जईबे!"
हमारी बारी आई साब! आई! डॉक्टर साहब ने मुझे देखते ही कहा : "का हो तिवारी जी! अब का भलवअ?" आवअ बैठअ! बोलअ का बात बा? पेपर्स का मुआयना कर बोले : "__हमम्म्म्म! तो मलकिनी के देखावे के बा?"
मैं शरमाया! पर वीणा ने ठिठोली की : "का बोलें सर! आपका पास आनेहें में तो अईसन भींज गये कि का बतायें!!!"
_"आयें!?? बाहरे पानी बरसअ ता का?"_डॉक्टर ने हैरानी जताई!
_"जी,सर!" _उनसे ज्यादा हैरान होते मैंने उत्तर दिया कि साहब सच्चो भित्तरे थे का????"
वीणा ने भारी बारिश और हमारे गीले भीगे बदन की दुहाई देते कुछ और बातें कहीं, तब डॉक्टर साहब ने वो नायाब और वेशकीमती सुझाव दिया जो अभी भी हमदोनों को याद है, अलबत्ता मलकिनी जी को थोड़ी लाज आती है!
डॉक्टर साहब ने कहा : "बरसात में भीग गये तो क्या हुआ? शरीर गल गया? या किसी मुसीबत में पड़ गये? मुझे समझ में नहीं आता लोग बारिश से भीगने से इतना कतराते क्यों हैं, जब वे सशक्त है, नौजवान है, कोई अलामत नहीं, कोई फिक्र-फाका नहीं, _आखिर आप दोनों पति-पत्नी हैं या घर से भागे नाजायज रिश्तेदार हैं???
वीणा हकबकाई! मैं थोडा आशंकित हुआ कि कोई गुस्ताखी हो गई क्या? पर डॉक्टर ने हमारे चेहरे के भाव पढ़ लिए और स्नेह से मुस्काये! फिर थोड़े शरारती लहजे में बिदास बोले :
_"यार! जवान हो! महबूबा साथ में है! रिमझिम बरसात हो रही है! घर जाने की कोई जल्दी नहीं! कोई इमरजेंसी नहीं! इस रूमानी मौसम का मजा लेने के बदले कलपने लगे कि भीग गये! _ये क्या बात हुई? कई कवियों ने, लेखकों ने, कई कलाकारों, चिंतको और विद्वानों ने बरसात की रूमानियत की तरफदारी में बेशुमार गीत गाये हैं! कोई विरह नहीं, साथ-साथ हो! अरे, मजे लेना था बारिशा का! बेकार में एक मौका हाथ से गँवा दिया मस्ती का! क्या आदमी हो यार!!? फिल्मों में हीरो-हिरोइन को बारिश में भीग कर नाचते गाते देखने का लुत्फ़ पैसे देकर उठाते हो वही मस्ती, वही जवानी, वही रूमानी समां! और प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ है, लेकिन मुँह कदुवा के जईसन लटकल है, ये ठीक है!?? अरे लाईफ के इन लम्हों को एन्जॉय करो यार! क्या बारिश में भीग गये का रोना रोते हो! हम इस अवसर के लिए कलपते बूढ़े हो गये, तुम्हें अनायास मिल गया तो इसकी कोई इज्ज़त ही नहीं! मेरी अपॉइंटमेंट आज नहीं तो कल देखि जाती! यह सुहाना पल और यूँ अकेले साथ शहर कि गलियों में बारिश का मजा लेते मस्त होकर घूमने-फिरने का मौका फिर कब मिलेगा, किसे मालूम?" 
मैंने वीणा को देखा तो यह मेरी गोरी गोरिया -गोरी लाल- हो गई थी!
और ये मईयवा बरसात ख़तम हो चुका था!
और हम बुढापे की तरफ चल पड़े!
_"अबे ऐए _बुड्ढा होगा तेरा बाप!"
"आज रपट जाएँ तो हमें ना उठाईयो................!"
_श्री .

Sunday, September 22, 2013

दीपिका कुमारी।

दीपिका!
दीपिका कुमारी।
(रातू, राँची) झारखण्ड, भारत की बेटी।
एक मजदूर, एक ऑटो चालक की बेटी।
ओलम्पियन,एवं कई स्वर्ण-पदकों, सम्मानों से देश को गौरान्वित करने वाली बेटी।
एक शानदार तीरंदाज़!
नाज़ कीजिये कि यह हममे में से एक है!
नाज़ कीजिये कि यह आपही की तरह भारतीय है!
फिर सोचिये किसने किसको कितना दिया।
खुद पर यकीन कीजिये।
अपने बच्चों पर यकीन कीजिये।
उनकी सच्ची प्रतिभा को पहचानिये।
किताबी कीड़े जन्माने से ऐसी वीरांगनाएँ पैदा करना बेहतर है।
Hurray!
Deepika Kumari wins silver medal in the World Cup Finals in Paris
Congratulate her here!
— with  me.
जय हिन्द!
_श्री .

Saturday, September 21, 2013

10 Amazing Lessons from Albert Einstein:

10 Amazing Lessons from Albert Einstein:

1 - Follow Your Curiosity

“I have no special talent. I am only passionately curious.”

What piques your curiosity? I am curious as to what causes one person to succeed while another person fails; this is why I’ve spent years studying success. What are you most curious about? The pursuit of your curiosity is the secret to your success.

2 - Perseverance is Priceless

“It's not that I'm so smart; it's just that I stay with problems longer.”

Through perseverance the turtle reached the ark. Are you willing to persevere until you get to your intended destination? They say the entire value of the postage stamp consist in its ability to stick to something until it gets there. Be like the postage stamp; finish the race that you’ve started!

3 - Focus on the Present

“Any man who can drive safely while kissing a pretty girl is simply not giving the kiss the attention it deserves.”

My father always says you cannot ride two horses at the same time. I like to say, you can do anything, but not everything. Learn to be present where you are; give your all to whatever you’re currently doing.

Focused energy is power, and it’s the difference between success and failure.

4 - The Imagination is Powerful

“Imagination is everything. It is the preview of life's coming attractions. Imagination is more important than knowledge.”

Are you using your imagination daily? Einstein said the imagination is more important than knowledge! Your imagination pre-plays your future. Einstein went on to say, “The true sign of intelligence is not knowledge, but imagination.” Are you exercising your “imagination muscles” daily, don’t let something as powerful as your imagination lie dormant.

5 - Make Mistakes

“A person who never made a mistake never tried anything new.”



Never be afraid of making a mistake. A mistake is not a failure. Mistakes can make you better, smarter and faster, if you utilize them properly. Discover the power of making mistakes. I’ve said this before, and I’ll say it again, if you want to succeed, triple the amount of mistakes that you make.

6 - Live in the Moment

“I never think of the future - it comes soon enough.”

The only way to properly address your future is to be as present as possible “in the present.”

You cannot “presently” change yesterday or tomorrow, so it’s of supreme importance that you dedicate all of your efforts to “right now.” It’s the only time that matters, it’s the only time there is.

7 - Create Value

“Strive not to be a success, but rather to be of value."

Don’t waste your time trying to be successful, spend your time creating value. If you’re valuable, then you will attract success.

Discover the talents and gifts that you possess, learn how to offer those talents and gifts in a way that most benefits others.

Labor to be valuable and success will chase you down.

8 - Don’t Expect Different Results

“Insanity: doing the same thing over and over again and expecting different results.”

You can’t keep doing the same thing everyday and expect different results. In other words, you can’t keep doing the same workout routine and expect to look differently. In order for your life to change, you must change, to the degree that you change your actions and your thinking is to the degree that your life will change.

9 - Knowledge Comes From Experience


“Information is not knowledge. The only source of knowledge is experience.”

Knowledge comes from experience. You can discuss a task, but discussion will only give you a philosophical understanding of it; you must experience the task first hand to “know it.” What’s the lesson? Get experience! Don’t spend your time hiding behind speculative information, go out there and do it, and you will have gained priceless knowledge.

10 - Learn the Rules and Then Play Better

“You have to learn the rules of the game. And then you have to play better than anyone else.”

To put it all in simple terms, there are two things that you must do. The first thing you must do is to learn the rules of the game that you’re playing. It doesn’t sound exciting, but it’s vital. Secondly, you must commit to play the game better than anyone else. If you can do these two things, success will be yours!

_श्री .

Friday, September 20, 2013

आजकल का आदमी हूँ

आजकल का आदमी हूँ सो आजकल की ही कहूँगा! पुराने का मुझे इल्म नहीं!
साब जी,
सर जी,
बॉस,
मालको,
भाईयों,
दोस्तों,
साथियों,
हिन्दुस्तानियों  :
आजकल आम, और रोजीना यह सुनने को मिलता है कि  :
"फलाने की बेटी -फलनवा- के साथ भाग गई! जबकि नौवीं क्लास में ही थी!" _
"फलनवा के बेटा "लभ"-मैरेज कर लिया! बाप-मांयं घर में घुसने नहीं दिए!" _
_हम भी औलाद वाले हैं! हमने भी अपने जन्माय बच्चों को उम्दा तालीम दिलवाई, और घरेलु संस्कार समझा रक्खे हैं! तमन्नाओं के दीप जला रखे हैं! लेकिन यदि अनहोनी हो ही गई तो हम पति-पत्नी क्या क्या कर लेंगे? ठेंगा!
बहुत लोगों को देखा जिनके घर में छोटी सी छुरी नहीं लेकिन "सालन मिलें ना, गोली मार देंगे!" - "काट के बोरा में भर के नदी में दहवा देंगे!" _का दावा करते हैं! फिर विवशता से बाद में यूँ विलाप करते हैं कि देखकर कलेजा दहल जाता है!
माँ-बाप अपनी औलाद से न बिछ्ड़ें! किसी भी माँ-बाप के बच्चे बच्चियाँ इस कुप्रथा के वश न छिन जायँ! बच्चों की भी -लालसा- पूरी हो! भले हॉलीवुड और बॉलीवुड ने अरबों फ़िल्में इस विषय पर बना रक्खीं है! हजारों करोड लेखकों ने कई अरबों गैलन स्याही ऐसी ही कहानियों में सर्फ़ कर दी है!
पर कोई समाधान है?
है!
बात-चित!
मैं पूछता हूँ!
आपकी तेरह -१३- वर्षीय बेटी यदि "यह मुराद" आपसे मांगे तो?
अगले दिन वह नापत्ता / चम्पत हो गई तो?
आपका बेटा अचानक किसी दिन कोई लड़की -अनजानी लड़की- ब्याह लाया तो?
क्या मुझमे और आप किसी में भी यह दिल गुर्दा है कि इस सिचुएशन को दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन बन कर पूरे परिवार और समाज सहित झेल पाओगे?
हाल ही में कई ऐसी धटनाएं हुईं हैं! रोज! सर जी, रोज ये हो रहा है! माँ-बाप मोहल्ले में निकलने से कतरा रहे हैं! ठीक है, उन औलादों को बहिष्कृत किया पर जो कटाक्षपूर्ण नज़रें इन माँ-बाप पर पड़ रहीं हैं, और इनके पीठ पीछे सब के सब जो बोली बोल रहे हैं, जो फब्तियां कस रहें हैं क्या उनके अपने दामन साफ़ हैं? इनकी छोड़िये! क्यों छोड़िये?????? पहले इनके जुमले बंद क्यों न हों? जिन्होंनें जिस किसी के परिवार के विकास में अपना कोई योगदान नहीं दिया उन्हें इनपर नापाक जुमले कसने, कहने का हक़ क्यों कर है? जिस बेचारे के हाथ खाली हो गए, जिस्म खोखला हो गया, आत्मा कुंहक रहीं है उसका मज़ाक उड़ाने वालो को ही पहले क्यों ना सबक मिले?? जिसका जो होना था वो तो हो गया! वो फिराया नहीं जा सकता! साथ जियें! या अलग हो जाएँ, इनकी मर्ज़ी!
हंसने वालों!!!!! तुम्हीं असली शत्रु हो! सबसे पहले अपने गिरेबां और अपनी आत्मा में झाँकों!
और वे औलादें?? जिन्होंनें अपने माँ-बाप को इस नर्क में झोंक दिया, इनका कुछ तो इलाज़ होना चाहिये?? ऑनर-किलिंग एक विषद समस्या इसी -दुर्भिक्ष- की देन है! मामूली गृह क्लेश से हम इतने कुपित हो जाते हैं कि मरने-मारने की वाहियात बातें करतें है, जबकि मरना कोई नहीं चाहता! लेकिन -इस- विषय से घायल आत्मा घोर-अघोर सब कर डालती है! फिर भी यह लड़की का भागना और भगाना नहीं रुक रहा! कैसे कोई लड़की इतनी बेदर्द और बेरहम हो सकती है इसके बेशुमार उदाहरण भरे पड़े हैं जिसके तल में सेक्स वासना और जिस्मानी आकर्षण का पर्सेंटेज़ सबसे ज्यादा है! समाज निर्माण नगण्य!
हम लोग असक्षम हैं! सह लेंगे! जो सक्षम हैं, मारकर पाताल में गाड़ देंगे! लेकिन यह तो कोई समाधान नहीं हुआ! बरसों बरस बीत गए! समस्या जस की तस है!
समस्या जस की तस है!
बेटी वालों ज़रा सोचो!
बेटे वालों ज़रा सोचो!
बेटी जरा सोचना!
बेटे जरा सोचना!
साब जी, सोचना!
सर जी, आप भी सोचना!
एक समाधान को बारम्बार सुझाया गया लेकिन नतीजा! सिफर! वो समाधान बातचित ही था! और आईन्दे भी समाधान बातचीत ही है!
सबसे बड़ा समाधान आज की नौजवान पीढ़ी को ही निकालनी पड़ेगी! क्योंकि अन्य समाधानों की धार कुंद हो चुकी है! नौजवान पीढ़ी से ही आस और उम्मीद करनी होगी! उन्हें इस बहस के सार्थक समाधान में अपने साथ शामिल करना ही होगा! और उन्हें इस विषय पर अपनी बात खुलकर बोलने की आज़ादी देनी ही होगी! इसी में उम्मीद की एक हलकी सी आस "भास" रही है!
शेष विध्वंश है!
भयानक!
माँ-बाप के बारे में सोचे बिना केवल केवल केवल और सिर्फ केवल लड़का-लड़की का सिर्फ अपने बारे में सोचना ही मूल समस्या है!
मैंने कई कोशिशें कीं, कि इसके प्रति एक सार्थक बात हो, लेकिन मुझे हतोत्साहित किया गया कि ज़लालुद्दीन मोहम्मद अकबर कुछ नहीं कर सका तो तुम क्या कर लोगे?
ठीक बात है, साब! मैं मामूली आदमी हूँ! मेरी सस्ती-सी हस्ती तो मामूली से भी गई गुजरी है! लेकिन जब मैं अपने बाबुजी की ओर और अपनी अईया और माँ को देखता हूँ तो मेरे खून में भी वही उबाल खौलता है जो केवल मरने और मारने की बात को प्रेरित करता है! जिसका अंजाम अच्छा नहीं होगा! इसे व्यक्तिगत समस्या मत समझिएगा! क्योंकि मेरे यहाँ ऐसी कोई स्थिति संभव ही नहीं है! मैं अपने साथियों दोस्तों लोगों समाज और देश के बारे में एक आवाज़ उठा रहा हूँ! कि, मिलजुलकर इस नासूर का कोई इलाज कीजिये!
कौन जानता है कि किसी का ब्रेन-ट्यूमर कब कैंसर में बदल जाय!
जय हिन्द!
_श्री .

Tuesday, September 17, 2013

परनाम पंडी जी!

मास्टर साहेब हमिन के लरिकाईं में पढ़ाते कम, पीटते जास्ती थे! उनकी पढ़ाई पढ़कर हम ट्रैफिक पर खड़ा हो के सीटी बजाने तो सीख ही गये, काहे कि मास्टर साहेब फुलमनियाँ दाई को देखते ही सीटी बजाने लगते थे। हम भी सीखे। जो आज काम आ रहा है। मास्टर साहेब के किरपा से ही हमको ई भी पत्ता चलिये गया कि पूरब केन्ने होता है और दक्खिन केन्ने होता है! अगल का है और बगल का है! खाना "किससे" है और -धोना- "किससे" है! एक शब्द को गलत लिखने से उसको पंद्रह बार फिर से (गलतिये) लिखने का सजा हमको रोज्जे मिलता था! यही -"सिच्छा"-आज ई चौराहा पर हमको खूब काम आ रहा है!एक दिन मास्टर साहब अपना स्कूटर को अपनी जोश में रेड-लाइट पार करते धरा गए! हमने उनको लपक लिया! _"परनाम पंडी जी!"
_"अर्रे! "सिरकटवा" तू हे रे? (पंडी जी हमरा नाम के -बिंदु- नई बोलने सकते हैं, काहे कि उनका नकौड़ा हमेशा ओवर-लोडेड रहता है!) ससुर, कहित रहियउ नी कि पढ़ रे कुक्कुर! मगिर, नहिएँ सुधरल्हींन न! देखा अपन दसा!" मास्टर साहेब रुआब दिखाना रिटायरमेंट के बाद भी नहीं भूले थे! फिर धीरे से बोले _"सुन नी, आदमिन से गल्ती होईये जा हई! तोर चाची के दवाई लेवे जाईत रहियउ, ललका बतिया देखहें नै-न सकलियई! तोहिन के केतना मानईत रहियउ, हई कि नईं? छोड़ दे न बाऊआ! जाय दे!"
_"अरे बाह!!! कय बारिस से हम ई चौरहवा पर राउरेहें असरा देखईत रहियई, पंडी जी! तनी गाड़िया साईड करूँ नी, हमके कुछ बतियावई के हई!" हमने कहा। 
_"अर्रे, नई रे बेट्टा, तू तो आज्जो हमर से खिसियाईल हे, छोड़ नी, बउआ, जाय दे नी। मास्टर साहेब रिरिआये। 
_"पंडी जी! रउरे केत्ता बरिस बाद भेंटईलिअई हे, तनी बढियाँ से खातिर करे देउ नी, हमरो अरमान पूरा हो जईतई! मास्टर साहेब परेशान से होकर स्कूटर साईड किहिन। तब हम बोले "ई लेंऊ कॉपी अउर रूल (पेंसिल)! अउर इकर पर तीस बेर लिखू कि "-मैं ट्रैफिक-रूल कभी नहीं तोडुंगा-!" हम प्रसन्न होकर शुद्ध हिंदी में बोले। 

जुगाली =
१. RUMINATION
२. REGURGITATE
३. RUMINATE



लिओनि फैशन passion

सवाल : सनि लिओनि उर्फ़ करेन मल्होत्रा (कनाडियन इंडियन पोर्न स्टार) को इंडिया में क्यों निमंत्रित किया गया?
जबाब : भट्ट नाम के एक महा ईश ऐयाश के अपने जिस्मानी सुख और विषय-वासना की पूर्ती के लिए,जो परवीन बॉबी की नृंशस तबाही का मुजरिम है! फिल्मोद्योग के ऐयाशों की ऐश के लिए! बड़ा भोक्ता खुद भट्ट है, जिसकी अपनी बेटी जैसे अपने बाप की वासना पूर्ती की सेज सजाती लगती है! और बहुत ही दुःख से कहना पड़ रहा है कि अपने जीतू जी की बेटी, सास-बहु क्वीन ना जाने किस हिसाब से और किस मानसिकता से इस गन्दगी को अपनाने को सहमत हुईं!
_मैं सनि लिओनि के भारत की धरती पर रहने का पुरजोर विरोध करता हूँ! लेकिन हमारे सत्ताधीशों ने उसे भारतीय नागरिकता दे दी है! जिसे एक्टिंग की ABCD न आती है ना कभी आएगी! मेरे जैसा एक अदना आदमी सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता है, जो करता ही रहूँगा! मैं Like & Comments के खेल नहीं समझता पर विचारों की अभिव्यक्तो की स्वतंत्रता को खूब जानता हूँ! हॉलीवुड की बिकिनी गर्ल्स, और साउथ अफ्रीका की Candice Swanepoel मेरी facebook फ्रेंडशिप की लिस्ट में भरी हुई हैं! इनका अपना जीवन है, अपनी जीवन शैली है, इसमें हम और कोई क्या कर सकता है? लेकिन Candice Swanepoel सनि लिओनि जैसी नहीं हैं! वे जैसी हैं हमें विवश नहीं कर सकती कि उनके रहन-सहन को हम फॉलो करें! हमने इनसे fb फ्रेंडशिप की ताकि विश्वस्तरीय सौन्दर्य को देखें! पर सनि लिओनि साफ़ उकसा रही है! अपनी वीडियोस के दाम वसूल रही एक खरबपति विश्व-वेश्या है! क्या इसका विरोध नहीं होना चाहिए? किस हक और हैसियत से हमारा अपना बॉलीवुड हमें नीति, नैतिकता और मर्यादा का पाठ पढ़ाने की अगुवाई कर सकता है, जब उसके अपने दामन पर ही बेशुमार गंदे भद्दे धब्बे हैं!???
भारत में बलात्कार की घटनाएं रोज़ हज़ारों की संख्या में हो रही हैं, इसकी जिम्मेवारी कुछ से ज्यादा प्रतिशत भारतीय फिल्मोद्योग, बॉलीवुड की भी है! zism-2 से इस गन्दगी की शुरुआत कर दी गई है! एक बेढब, बेहुदे और फूहड़पन की सीमा लांघ चुके बॉलीवुड को तो अब कोई क्रांति ही सुधार सकती है; श्रीकांत तिवारी का यह लेख नहीं!
हद है अकर्मण्यता की भी!
सचमुच विश्व को सहनशक्ति भारत से सीखनी चाहिये! जिसने चंगेज़, तैमूर, बाबर और अंगेर्जों को झेला वह इस रण्डी नाच को भी झेल ही लेगा! जरा देखिएगा कहीं आपके अपने घरों में लिओनि फैशन passion न बन जाय!
_श्री .

DILIP KUMAR : बेअदब! जान लेकर ही मानोगे क्या?

दिलीप साहब अस्वस्थ हैं!
दिलीप साहब को सांस लेने में तकलीफ हो रही है!
दिलीप साहब अस्पताल में भर्ती हैं!
दिलीप साहब की हालत स्थिर बनी हुई है!
हम प्रार्थना कर रहे हैं!
साब जी!
ओवरडोज़ हो गया है प्रार्थनाओं का!
वे मेरे हैं!
वे हमारे हैं!
हम दुआ नहीं मांगेंगे तो और कौन मांगेगा!?
ठीक बात है!
पर, साब जी! ओवरडोज़ ? ठीक होगा??
अति सर्वत्र वर्ज्ययेत !
थोडा सा भी भगवान् को सोचने की कभी फुर्सत है ??
वृद्धावस्था का ईलाज होता तो राज राजेश्वर महाराज दशरथ पुत्रकामेष्टि यज्ञ को कभी प्रेरित ही नहीं होते और विष्णु को रामावतार के लिए कोई और बहाना या कोई और रावण पैदा करना पड़ता!
मुझे उनसे लगाव है! प्रीती, प्यार और स्नेह है! वे मेरे घर के बुजुर्ग हैं! उनके साथ रहने की आदत हो गई है! मेरी अलमारी में उनकी सभी फ़िल्में हैं, पर इस फेसबुकियन की "हथौड़े की लगातार मार जैसी - प्रार्थना" से दर्द होने लगा है! और उनसे परे रहने का मन करता है! डर से उनकी तरफ ताकते थर्रा रहा हूँ! मृत्यु का प्रचार पहले से ही किया जाना इस तकनीकी आंधी में एक फैशन बन गया है! likes & comments के खेल की प्रतियोगिता हो रही है!
तो सट्टेबाजी भी शुरू कर ही दी गई होगी?
जिया तो इतना! मरा तो ईतना!!
टीवी के समाचार चैन्ल्स भी देखना आफत हो गई है! जिसे देखो वही उनकी हिस्ट्री गा रहा है! ये कैसी रवायत है कि किसी की निश्चित मौत की घोषणा सी प्रतीत हो रही है, दुआ की जगह बददुआ सी लग रही है!??
उनके बिना मैं जी नहीं पाउँगा!_ऐसा उदघोष कोई करेगा? किसी और के क्या ये खुद मेरे ही मुँह की ये वाणी रही है! फिर भी जीए जा रहा हूँ, बढे जा रहा हूँ उसी अनंत को ओर जिधर सभी गए और बाकियों ने जाना है!
इसीलिए मैं आज और अभी ही रो लेता हूँ! मेरे आंसू न आपको दिखेंगे, ना ही मेरा दर्द आपको महसूस होगा! पर वक़्त पर काम आनेवाला एक मजबूत कन्धा तो तैयार जरूर रहेगा! उनको वापस घर लाने के लिए!
क्योंकि कल के बाद फिर कल और हमेशा जब वे हमें फिर से हँसायेंगे तो इसी मुँह से ही ना हँसना पड़ेगा!?
मेरे ख्याल से सच्ची प्रार्थना ये है कि हम ये दुआ मांगें कि उन्हें कोई कष्ट, और दर्द न हो!
उनकी बातें, उनकी फ़िल्में, उनके गाने, उनकी तस्वीरें, दिनरात सुबह शाम लगातार देखते देखते डर हो गया है कि :
बेअदब! जान लेकर ही मानोगे क्या?

Monday, September 16, 2013

चुगली= Backbite , Tattle ,

चुगलखोरी = Backbiting

धन्यवाद हरपाल भाई जी! बहुत बहुत धन्यवाद!

धन्यवाद प्रस्तावना ~ सन्दर्भ : -दुर्भिक्ष-

_बहुत ही तसल्ली से कह सकता हूँ कि मेरे लेखन का एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट मैंने पूरा किया! मेरा किया यह एक ऐसा 'करम' है जिससे उत्पन्न भावनाओं की अभिव्यक्ति भी उतनी ही जरूरी है जितना मेरी इस रचना -दुर्भिक्ष- का हक़ीक़तन अपने वजूद में आना! मुझे इस बात की सबसे बड़ी तसल्ली है कि मैं इस शर्मिंदगी से बच गया कि मैंने एक काम शुरू तो किया पर बीच में ही टायं टायं फिस्स हो गया! मैंने जिस करम का आगाज़ किया उसे अपनी दिन रात की मेहनत से उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया! यह रचना २२ अध्यायों में पूर्ण किया गया! इसके लिए मैंने अपने पूरे परिवार के समस्त सदस्यों के संस्मरण - स्मरण को लिखकर या यादकर इक्कट्ठा किया! मैं कई ऐसे ऐसे लोगों से मिला जो अनेक-अनेक घटनाओं के साक्षी रहे हैं! मेरी अपनी पाँच बड़ी बहनों में से सिर्फ चार के यानि आठ जनों से सीधे संपर्क में हूँ! और वे लोग जो मेरे परिवार के करीबी रहे पर आज कहीं दूर हैं जिनसे जानकारियों का और 'खजाना' हासिल हो सकता, नहीं हो पाया! कई लोग तो इसी बीच ब्रम्हलीन हो गए! लेकिन अनेक-अनेक लोगों से मैं व्यक्तिगत रूप से मिला और उनके संस्मरण सुने, सवाल पूछे और जबाब पाया, जिनके साथ बातें करते मैंने घंटों बिताये, उसकी संख्या भी कोई कम नहीं है! कितने रोये, और कितने हँसे, सब इसमें शामिल है! इसके लिए मैं सभी का आभारी रहूँगा! १९७४ के बाद तो मैं स्वयं ही सबका साक्षी रहा हूँ, क्योंकि इससे पहले की याद गुम सी हो गई है! जिसे कुछ लोगों ने याद दिलाया, ये भी कोई मामूली सहयोग नहीं है! कई बातें मैं भूल गया था या जो नई यादों के नीचे दबा हुआ था, उसे इन लोगों ने जब अपने आख्यान में कहा तो मुझे उसका पूर्ण ज्ञान याद हो पाया! इसके लिए भी मैं सबका आभारी रहूँगा! सबसे ज्यादा मेरे बड़े जीजाजी मेरे सबसे बड़े प्रेरक और जानकारियों के श्रोत रहे! मेरी बड़ी दीदी एक स्पंज की तरह रही है, उसे हर छोटी-बड़ी बातें अभी भी जस का तस याद है! सभी बहनों से उनका बचपन पूछना उन्हें भी फिर से हरा-भरा होना बहुत पसंद आया! और सबने बड़े उत्साह से मुझे समस्त जानकारियाँ दी! ससे बड़ा आभारी मैं मेरी भांजी प्रियंका (यह facebook पर है) का हूँ जिसने मुझे यह लिखने को प्रेरित किया और बार-बार, लगातार मेरा उत्साह बढ़ाती रही!
इस रचना को मैंने लिख-लिखकर फेसबुक पर शेयर करने लगा तो कई मित्रों के शुरूआती समर्थन से मेरा उत्साह कई गुणा बढ़ गया!
इस रचना की सबसे बड़ी उपलब्धि मुझे हरपाल सिंह जी जैसे नायब दोस्त की दोस्ती का हासिल है! मेरी कहानी पढ़कर या मेरे अपने लोग और परिवार यूँ ही जानते हैं कि व्यक्तिगत जीवन में मैं एक अकेला इंसान हूँ जो अपने आप में खोया रहता हूँ! कारण मेरी रचना में विस्तार से लिख चूका हूँ! मेरी एक पोस्ट को पढ़कर हरपाल सिंह जी ने जो कमेंट दिया और जैसी प्रतिक्रिया और अपनी अभिव्यक्ति और अपना निमंत्रण मुझे दिया यह मेरी अभीतक की तमाम ज़िन्दगी का एक इकलौता उदाहरण है! अद्वितीय! आज तक किसी अपने या पराये ने मुझे इस तरह से आलिंगन में नहीं लिया जिस तरह से हरपाल भाई ने किया! मैं तहे दिल से उनका शुक्रगुजार हूँ और आजीवन उनका ऋणी और आभारी रहूँगा!
२२-वां भाग इस रचना का सबसे लम्बा लेख और इस "राम" कहानी का विश्राम है, अंत नहीं! क्योंकि जहां इस कहानी में मैंने ~इति~  लिखा है, दरअसल वहीँ से मेरे वास्तविक जीवन संघर्ष की शुरुआत हुई है! -दुर्भिक्ष- की 'इति' इसका अंजाम या समापन नहीं है बल्कि एक नए आगाज़ का आह्वान है! लेकिन इससे आगे कोई नया लेखन और इतना बड़ा प्रोजेक्ट मुझसे अब नहीं संभलेगा! मैं मेरी क्षमता जानता हूँ, और वह मैंने कर दिखाया है! इस रचना के सभी पन्नों का प्रिंटआउट निकालने से पहले एक एडिटिंग की सख्त जरूरत है, जो अपने आप में एक नया बड़ा प्रोजेक्ट है! मेरे समस्त परिवार की दिली इच्छा है कि इसे मैं एक किताब के रूप में ढालूँ! इसके लिए एडिटिंग तो सबसे पहले मैं खुद करूँगा! फिर इसे पढने वाले निःसंदेह इसमें कुछ जोड़ना या घटाना या हटाना या बदलना चाहेंगे! लेकिन मेरी अपनी खुद की एडिटिंग के बाद औरों की सुनना और उसे मानना पूरी तरह मेरी अपनी मर्जी के अनुसार ही होगा!
शुरुआत में मैं इस लेखन को कॉपी कर facebook पर पेस्ट कर देता था! बाद में मुझे स्वयं यह महसूस हुआ कि कुछ टाइपिंग मिस्टेक्स और लेख की वृहद् लम्बाई सभी को उबा देगी, फलतः मैंने सिर्फ उसके लिंक को शेयर करने लगा! और मेरी बेटी, प्रियंका, अकेले मुझे लगातार, बिना नागा अपने कमेंट्स देती रही! इसी एकमात्र "पाठक" के दम पर मैं लिखता गया, लिखता गया! और आज यह पूर्ण हुआ!
निःसंदेह यह मेरी व्यक्तिगत और मेरे अपने परिवार और मेरी अईया और बाबुजी की कहानी है, लेकिन मैंने इसे जब एक सोशल मीडिया पर डाल दिया तो इसके प्रभाव पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं रहा! इसे कोई भी कभी भी पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दे सकता था! मैंने सबको (fb friends ) को टहोक-टहोक और पोक कर के इसे पढने को विवश कर इस लेखन की मर्यादा का मज़ाक नहीं बनने दिया!
मैंने २२-सों अध्याय को कई बार पढ़ा! यह मानकर कि मैं एक आलोचक हूँ और मुझे इसमें खोट निकालना है, तब मेरी समझ में यह आया कि इसे सबसे पहले मैं स्वयं एडिट करूँगा! और काम आज से शुरू हो गया है! २२-वें अध्याय की एडिटिंग पूर्ण हो गई है, जिसका लिंक मैं प्रियंका के लौटते ही शेयर करूँगा! -दुर्भिक्ष- पठनीय है, इसमें कोई संदेह नहीं! इसे पढने वाला फट से जान जायेगा कि श्रीकांत तिवारी कौन और क्या है! मैंने इसमें खुद ही अपने व्यक्तित्व को भी उजागर किया है! पर कोई लालसा नहीं! कोई मांग नहीं! मुझे संतोष है कि अईया और बाबुजी अभी भी मेरे साथ, मेरे पास हैं!
नमस्ते।
_श्री .

Friday, September 6, 2013

बाबुजी की २०-वीं पुण्य तिथि

आज बाबुजी की २०-वीं पुण्य तिथि है! घर में आज उपवास, पूजन और हवन है! बाबुजी को यादकर के उनकी सेवा में खुद को समर्पित करने और उनसे आशीर्वाद के लिए मैंने एक प्रार्थना लिखी हुई है, मुझे संस्कृत लिखना नहीं आता, सो जो भी मन में आया, अपनी बोली में ही लिख दिया। 
क्या भगवान् सिर्फ संस्कृत ही समझते हैं? 
मेरी लिखी यह प्रार्थना ३-साल पुरानी है। मुझे नहीं लगता कि इसमें(प्रार्थना के निवेदन में) कुछ सुधार की जरूरत है! या कुछ और जोड़ने और घटने की जरूरत है! मैंने अपने बाबुजी से हमेशा इसी प्रकार निवेदन किया, और आज फिर करता हूँ _
समय ०९:४५ (AM)     लोहरदगा      ०६,सितम्बर,२०१३ 
हमारे परमपूज्य प्रिय बाबुजी की २०-वीं पुण्य तिथि 
श्रीमाद्पद्मपुराण अध्याय ४७ के नौवें श्लोक में ब्रम्हर्षी व्यास जी ने कहा है :
"पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। 
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवता: ।।"

 पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सर्वोत्कृष्ट तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं!
-=*****=-
*
हमसभी के तरफ से पूज्यवर बाबुजी से की गई मेरी प्रार्थना :
"आज बाबुजी की २०-वीं पुण्य तिथि है। उनको खोने का दिन। उनको याद करने का दिन। उनके दिव्य व्यक्तित्व को याद करने का दिन। उनकी बातों को याद करने का दिन। उनके आदर्शों को याद करने का दिन। उन्हें श्रद्धा से प्रणाम करने का दिन। उनकी पूजा करने का दिन। उनसे विनती करने का दिन। उनसे आशीर्वाद पाने का दिन। उनसे अपनी शिकायतें कह डालने का दिन। उनसे अपनी तकलीफें और संताप को साझा कर उनसे रक्षा सुरक्षा और संरक्षण के लिए निवेदन करने का दिन। उनसे रूठने का दिन। उनको मनाने का दिन। उनको प्यार करने का दिन। उनसे प्यार पाने का दिन। उन्हें अपना सर्वस्व अर्पण करने का दिन। उनसे उनका सर्वस्व पाने का दिन। जो नहीं पा सके उसे भूलकर उन्हीं का होकर उन्हें पा लेने का दिन। उनकी सतुति, स्मृति, प्रार्थना और सेवा से पूर्ण समर्पित होकर एक याचक की तरह उनसे निवेदन और प्रार्थना करने का दिन। उन्हें सदा अपने साथ होने के अहसास को महसूस करने का दिन। 
।।ॐ श्री पितृदेवेभ्यो नमः त्वम् पाहिमाम शरणागतम।। 
हम आपके बच्चे हैं, और आपके शरणागत हैं। कृपाकर हमें अपनी शरण में लीजिये। अपनी कृपा हमपर बनाये रखिये। हमारी भूलों, गलतियों, नादानियों, अपराधों को हमपर दयाकर के हमें क्षमा कीजिये। हमारे द्वारा आपकी की गई पूजा को स्वीकार कर हमें उपकृत कीजिये। हमपर प्रसन्न होकर हमें अपना आशीर्वाद दीजिये। हमें प्रगति, उन्नति, तरक्की, समृद्धि, शांति, सदभाव, भाईचारे और परस्पर निश्छल प्रेम और अपनी ममतामई भक्ति का पावन आशीर्वाद दीजिये। हम आपके बच्चे हमारी पूज्य माता सहित आपको विनीत और विनयावनत होकर श्रद्धा और प्रेम से आपको सादर प्रणाम कहते हैं।"
-="आपका अपना परिवार"=-
माँ 
श्रीकांत -वीणा 
शशि - पुष्पा 
कमल - रूपा 
प्रितीश{आपका पोता 'बुचुलिया' आज इंजिनियर बन गया!}
क्षितिज{आपका पोता इंजीनियरिंग की पढ़ाई में आगे बढ़ रहा है।}
गोविन्द{शशि का बेटा, आपका पोता दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत है!}
अतुल (लड्डू){आपका पोता बोकारो में 10+2 की पढाई कर रहा है, जिसे आपके विशेष आशीर्वाद की आवश्यकता है, कृपा कर उसे शक्ति दीजिये!}
शरिष्ठा(गुनगुन){आपकी पोती, हमारे घर की गुड़िया, राँची विशॉपवेस्टकॉट स्कूल में प्रगति शील है।}
यथार्थ(डुग्गु){आपका नन्हा पोता आपके आशीर्वाद के लिए आपही की शरण में है!}  
और आपके १६ (सोलह) नाती-नतिनी भी श्रद्धा से आपको प्रणाम बोल रहे हैं!
हे, बाबुजी! हमारा मार्ग प्रशस्त कीजिये। 
सदा हमारा मार्गदर्शन करते रहिये। 
सदा हमारे अंग-संग रहिये। 
आपको हमसभी का प्रणाम प्रणाम प्रणाम। 
  ~आपका बेटा~ 
श्रीकांत (बबुआ)  
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06th SEPTEMBER 2013
हो गई पूजा की तैयारी! देखो अईया और बाबुजी को!!
-=***=-
_/\_
-प्रणाम-
***

Thursday, September 5, 2013

गुरु स्तोत्रम

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।  
गुरुर्र साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥

Sunday, September 1, 2013

ऐ मेरे वतन के लोगों

ऐ मेरे वतन के लोगों
(Ae mere watan ke logo)
गायक - लता मंगेशकर
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ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा

पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली
क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के
जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं

थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
जय हिंद जय हिंद की सेना
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद