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Tuesday, September 17, 2013

परनाम पंडी जी!

मास्टर साहेब हमिन के लरिकाईं में पढ़ाते कम, पीटते जास्ती थे! उनकी पढ़ाई पढ़कर हम ट्रैफिक पर खड़ा हो के सीटी बजाने तो सीख ही गये, काहे कि मास्टर साहेब फुलमनियाँ दाई को देखते ही सीटी बजाने लगते थे। हम भी सीखे। जो आज काम आ रहा है। मास्टर साहेब के किरपा से ही हमको ई भी पत्ता चलिये गया कि पूरब केन्ने होता है और दक्खिन केन्ने होता है! अगल का है और बगल का है! खाना "किससे" है और -धोना- "किससे" है! एक शब्द को गलत लिखने से उसको पंद्रह बार फिर से (गलतिये) लिखने का सजा हमको रोज्जे मिलता था! यही -"सिच्छा"-आज ई चौराहा पर हमको खूब काम आ रहा है!एक दिन मास्टर साहब अपना स्कूटर को अपनी जोश में रेड-लाइट पार करते धरा गए! हमने उनको लपक लिया! _"परनाम पंडी जी!"
_"अर्रे! "सिरकटवा" तू हे रे? (पंडी जी हमरा नाम के -बिंदु- नई बोलने सकते हैं, काहे कि उनका नकौड़ा हमेशा ओवर-लोडेड रहता है!) ससुर, कहित रहियउ नी कि पढ़ रे कुक्कुर! मगिर, नहिएँ सुधरल्हींन न! देखा अपन दसा!" मास्टर साहेब रुआब दिखाना रिटायरमेंट के बाद भी नहीं भूले थे! फिर धीरे से बोले _"सुन नी, आदमिन से गल्ती होईये जा हई! तोर चाची के दवाई लेवे जाईत रहियउ, ललका बतिया देखहें नै-न सकलियई! तोहिन के केतना मानईत रहियउ, हई कि नईं? छोड़ दे न बाऊआ! जाय दे!"
_"अरे बाह!!! कय बारिस से हम ई चौरहवा पर राउरेहें असरा देखईत रहियई, पंडी जी! तनी गाड़िया साईड करूँ नी, हमके कुछ बतियावई के हई!" हमने कहा। 
_"अर्रे, नई रे बेट्टा, तू तो आज्जो हमर से खिसियाईल हे, छोड़ नी, बउआ, जाय दे नी। मास्टर साहेब रिरिआये। 
_"पंडी जी! रउरे केत्ता बरिस बाद भेंटईलिअई हे, तनी बढियाँ से खातिर करे देउ नी, हमरो अरमान पूरा हो जईतई! मास्टर साहेब परेशान से होकर स्कूटर साईड किहिन। तब हम बोले "ई लेंऊ कॉपी अउर रूल (पेंसिल)! अउर इकर पर तीस बेर लिखू कि "-मैं ट्रैफिक-रूल कभी नहीं तोडुंगा-!" हम प्रसन्न होकर शुद्ध हिंदी में बोले। 

जुगाली =
१. RUMINATION
२. REGURGITATE
३. RUMINATE