अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग के आज के पृष्ठ पर जिस विषय की चर्चा की है वो समय के अनुसार और उनके जैसे व्यक्तित्व से अपेक्षित भी था. अयोध्या ! भगवान् श्रीरामचंद्र जी की जन्म भूमि ! ...उन बच्चों के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ है जो कि इसके इतिहास से अनभिज्ञ हैं, ...अभी जिस कक्षा में वो हैं -उनकी किताबों में भी अभी इन नौनिहालों को इतना नहीं बताया गया है कि ये इसकी महत्ता या आज के हालात कि संवेदनशीलता को समझ सकें ! ...सिर्फ राम कथा, हनुमान कथा, या रामायण नाम से छपी एक कहानी मात्र है, जिसमे इनकी दिलचस्पी सिर्फ इतनी है, और इनके मम्मी-पापा भी इतना ही चाहते कि _वे अपने EXAMS में सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर लिख सकें, ...फिर क्यों गैर-जरुरी बातें उन्हें बताई जाय !! इतिहास कि महत्ता और स्थान विशेष के धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व से अनभिज्ञ इन् मासूमों को ये समझने में अभी वक़्त लगेगा, लेकिन कुछ बातें बच्चे भी अपने बाल-सुलभ निश्छल स्वाभाव से सहज ही समझ जाते हैं, अपने आस-पास कि दुनिया और घरों के दीवारों से भी सीखते हैं कि कहाँ किसकी तस्वीर है और वो क्यों पूज्यनीय है और इसी समय इन्हें ये भी समझ में आ जाता है कि किसे अस्पृश्य समझना है !! ...लेकिन इधर कुछ दिनों में ऐसा क्या हो गया है कि लोग एकाएक आशंका के साथ इसकी चर्चा कर रहे हैं, ...गली-मोहल्ले अपनी प्रति-दिन कि स्वाभाविकता त्याग कर किस कट्टरपंथ कि आलोचना-विवेचना में लग गए ! ...जैसे कुछ अशोभनीय और नुकसानदायक होने वाला है, ...आज स्कूल बस क्यों नहीं आया !? ...आज शहर में सन्नाटा क्यों है !? ...किस संकट और आतंक की बात हो रही है ? ...!! "...आशंका भरी चर्चा, अफवाह, सतर्कता, सुरक्षा...??? क्या... !!!" _क्यों!? ...जिसके सीधे असर में तस्वीर बनाने वाला, तहरीर लिखने वाला नहीं बल्कि ये बच्चे ही आने वाले हैं, _इन्हीं के लिए इनके सवाल का जबाब -["_फैसला_"]- सही-सही देना है, दे ही देना है बस.....!
...अब तो ख़ास अयोध्या वाले भी नहीं चाहते की उनके शहर को फिर अवांछित भीड़ से भरी जाय_
अमिताभ बच्चन द्वारा उल्लेख कि गई उपरोक्त पंक्तियाँ जिन्हें १९३५ में श्री हरिवंश राय बच्चन जी ने लिखा था :
"मुसलमान और हिन्दू हैं दो _एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय _एक मगर उनकी हाला,
दोनों रहते साथ न जबतक _मंदिर-मस्जिद में जाते,
बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद _मेल कराती मधुशाला."
_ये पंक्तियाँ हमने स्कूल में अपनी हिंदी की किताब में पढ़ा था, समयांतराल से फिर किसी कक्षा में ये भी पढने को मिला था, जिसे स्व. हरिवंश राय बच्चन ने ही लिखा था जो आज भी प्रासंगिक है :
...जो बीत गयी सो बात गई":
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई ...............हरिवंश राय बच्चन
अमित भैया को तो ये सब जुबानी याद होगा ही...
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...फैसला आ चूका है, सम्बंधित लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रियाएं भी आ चुकीं हैं, और अभी आती होंगी, आगे भी आती रहेंगी.
...अब तो स्कूल-बस चालू कर दो भाई !!
-श्रीकांत
http://shrikanttiwari.blogspot.com/