MY GRAND(-MATERNAL-)MOTHER !!
उम्र १०० +वर्ष !!! AGE =100 +Yrs.
कल रात के १० के बजे करीब मैं अमिताभ बच्चन के बारे में सोचते हुए कुछ लिखने के लिए अपने विचारों से जूझ रहा था कि अचानक मुरारी मामा का फ़ोन आया कि नानी की तबियत ज्यादा खराब हो गयी है उसे डॉक्टर के पास ले जाना है, सो मैं गाड़ी ले कर जल्द पहुंचुं !! "...रात के इस वक़्त दरवान ने गेट पर ताला जड़ दिया होगा, और गद्दी का कुतवा भी खुल गया होगा, ....ह्म्म्म ..!...मुश्किल होगी !!" ...फिर भी मैंने एक पल भी जाया किये बगैर तुरंत वीणा को ये बात बताई और गाड़ी की चाबी ले कर घर से निकला, ये देख कर मन को शांति मिली की गद्दी का गेट अभी भी खुला था, मैं अन्दर जा कर दरवान को आवाज़ देता हूँ, उसके साथ उसका जोड़ीदार 'गोपाल' वहीँ था गाड़ी स्टार्ट करते हुए बाहर निकालते समय मैंने गोपाल से ये कह कर कि "...तुरंत आता हूँ, अगर मुझे देर हो जाये और तब तक कुत्ता ,जो खुल चुका होगा, तो मेरे वापस आने पर उए काबू में रखे ताकि मैं सुरक्षित घर जा सकूँ , ससुरा बड़ा कटाह है !"
मैं मामा के घर जल्दी पहुंचा, नानी ठीक तो थी पर सोफे पर लेटी हुई थी, उसके सर पर तेल चुपड़ा हुआ था, बहुत कमज़ोर और नि:सहाय लग रही थी, मेरा मन द्रवित हो गया, मामा ने उसे बताया कि मैं आया हूँ तो वो रोने लगी और शिकायत करने लगी कि मैंने आना-जाना छोड़ दिया है..., और भी अनेक बातें करते हुए अपने सभी पुत्रों को याद कर के भावुक हो कर काफी परेशान हो गई, ..१०० से ज्यादा की उम्र में बुखार से तपते वृधा नानी को उस दशा में देख कर सबका मन भारी हो गया. मुरारी मामा ने दनादन सभी को उनके मोबाइल पर कॉल किया और उन्हें सीधी सूचना देते हैं कि "...माई के तबियत ठीक नइखे, डाक्टर हिंया ले जा तनी, ..आ के भेंट कर ल लोग, तूं लोग के इयाद कर-कर के रोव-तीया, ल बात कर ल माई से ...!! ..फिर मोबाइल नानी के कान से लगा कर उसका loudspeaker ऑन कर देते हैं, और नानी से कहते हैं "...ले माई ले बात कर, भईया हवन !" बड़का मामा {मदन मामा] अपनी माँ को खूब तसल्ली देते हैं और शीघ्र आने का वादा करते है, "...ले माई ले बात कर, नन्हका ह !!" "...ले माई ले बात कर,दिदिया हीय !" ...यूँ ही कई कॉल कर के सभी से नानी कि बात करवा दी गई, और नानी कि तबियात कि जानकारी सभी को दे दी गई, ...कि जिन्हें-जिन्हें मिलना हो वो आ कर मिल लें ...!!!
फिर हम नानी को गाड़ी पर बैठाते हैं, ...नानी इस उम्र में और अपनी खराब तबियत की इस दशा में भी किसी का सहारा नहीं लेना चाहती थी, लेकिन जीर्ण शरीर और कमज़ोर आँखों से लाचार नानी को हमने उसी के कहे अनुसार सहारा देते हुए टॉर्च से रौशनी दिखाते हुए गाड़ी पर बैठा कर डॉक्टर गणेश प्रसाद के यहाँ ले जाते हैं जहाँ मामा ने पहले से फ़ोन कर के डॉक्टर साहब की इजाजत ले ली थी. डॉक्टर ने नानी की तबियत की जांच की और दवाएं तजवीज़ कर हमें बताया कि घबराने कि बात नहीं है, बी.पी. बढ़ा हुआ है, बुखार नहीं है, लेकिन फिर चढ़ सकता है, नानी वहां भी बदस्तूर रोए जा रही थी, डॉक्टर साहब ने उसकी जांच की, समझाया-बुझाया और अपने पास से २-tablets दे कर खिलने को कहते हैं, एक बी.पी.और दूसरी नींद की गोली है ताकि रात को शांति से सो सके ! तस्सल्ली पा कर नानी को वापस मामा के घर पहुंचा कर मैं वापस लौट आया.
..........लेकिन डॉक्टर साहब ने जो नींद की गोली नानी को दी गई थी वो नानी पर भार पड़ी और नानी बेसुध हो गई, उसे अपना और अपने शारीर का कोई होश न रहा, रात भर मामा-मामी औए बच्चे सभी परेशान रहे . सुबह वीणा ने मुझे सारी रात की बात कही कि कैसे रात में मामा-मामी परेशान रहे ! दिन के ११ बजे मैं वीणा के साथ मामा के यहाँ गया, कलावती भी साथ चली. ...नानी बेसुध अपने FAVOURITE सोफे पर लेटी हुई थी.....! चेहरा निस्तेज हो गया था ...! मेरा मन भारी होने लगा, ...नींद की गोली के असर से अभी वो मुक्त नहीं हुई थी, ...सो कुछ खा-पी नहीं सकने के कारण एकबारगी अत्यंत ही कमज़ोर हो गई थी, ...सिर्फ एक रात......चंद घंटे में ही वो दुर्दशा की सी स्थिति में पहुँच गई थी ! ............वीणा ने बहुत कोशिश की कि नानी कुछ बात करे, .....लेकिन..... नानी नहीं बोली ! ...सिर्फ थोडा हिली-दुली, तब मामा और छोटी मामी माँ दुर्गा की आरती उतार रहे थे..., आरती से निपट कर मामा ने आ कर जरा ऊंचा बोल कर नानी को बताया की "...माई !अरे वीणा आईल बाड़ी, ऊठ ! लेकिन नानी ज्यादा कुछ न कर और कह सकी, फिर वीणा ने मामी ने उनकी सेवा सुश्रुषा की.
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[जरा रुकिए ! लगता है नानियाँ को होश आ गया है ! मामा का फ़ोन आया है, नानी मुझे गाली बक रही है कि मैं उसे जंजाल में फंसा कर कहाँ भाग गया !!? .........मैं चला ! माँ साथ में है !]
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.........आखिरकार नानी ने वीणा को पहचाना और रोने लगी, वीणा नानी को समझाती है, मैं बताता हूँ की मैं हूँ तो कुछ अस्पस्ट सा बोलती है, लेकिन मुझे देखती है और माँ के बारे में पूछती है, वीणा नानी को दिलासा देती है कि माँ आ रही है शाम तक पहुँच जाएगी, बडका मामा भी परसों आ जायेंगे. मुरारी मामा मोबाइल से छोटका मामा को कॉल करते हैं और मोबाइल नानी के कान के नजदीक कर के बोलते हैं कि "..ले माई नन्हका ह, बतिआव" ...नानी बड़े ही करुण-क्रंदन से आंसू बहाते रोने लगती है, "... तू हीं लोग पर हमार प्राण अंटकल बा बबुआ, अब हम न बाँचब !!!" पुजारी मामा अपनी माता को तस्सल्ली देते हैं की वो भी जल्द आ रहे हैं.
नानी रात से, तब दिन के १२ बजे तक, ढंग से कुछ खाया नहीं होने के कारण बहुत सुस्त हो गई थी . खिलाने-पिलाने कि कोशिश कि जाती है लेकिन वो ढंग से पानी भी नहीं पी पा रही थी, मुझे उस "नींद कि गोली " के असर पर गुस्सा आ रहा था, मामा भी अफ़सोस करने लगे, फ़ोन पर डॉक्टर साहब से बात करते है तो डॉक्टर कहते हैं कि वो "बहुत कम पॉवर की दवा थी "...अईसा होना तो नई चाहिए था !" ...मामा मुझसे सलाह मांगते हैं, ...मेरा खुद का हाथ-पाँव फूला हुआ था और मुंह सूखा हुआ था सो मैंने मामा से कहा कि अगर कुछ खाय-पीयेगी नहीं तो फिर "भर्ती" करना पडेगा, ...मामा डॉक्टर से मशवरा करते हैं. ...थोड़ा इन्तजार के बाद मैं अपना निश्चित फैसला बोलता हूँ कि नानी को भर्ती कर ही दिया जाना चाहिए, यूँ घर में अटकल लगते ही रह जायेंगे, अत: डॉक्टर को मामा फिर फ़ोन कर कहते हैं कि वो नानी को ले कर आ रहे हैं, डॉक्टर साहब सहमती देते हैं. फिर नानी को डॉक्टर के क्लिनिक ले चलने के लिए जब नानी को कहा जाता है, ... नानी किसी भी प्रकार के शारीरिक श्रम के लिए तब तक बिलकुल ही असहाय हो चुकी थी, सो वीणा के कहने पर मैं नानी को अपनी बाहों से उठा कर गोद में ले कर गाड़ी पर बैठाता हूँ, फिर घर के कुछ लोग मामी और वीणा साथ चलते हैं.
डॉक्टर का क्लिनिक -"OVER -PACKED"- था कोई "BED " खाली नहीं था, मरीजों कि संख्या काफी थी, ...हम किसी दुसरे अस्पताल या क्लिनिक के लिए सोचते हैं लेकिन जी नहीं मानता, ...फुर्सत पाते डॉक्टर साहब हमें देख कर असहाय भाव से मुस्काते हैं, ..."mission -hospital " ले जाने को कहते हैं, ...लेकिन हम हिचकिचाते हैं, वहां के एक स्टाफ ने कहा कि कुछ देर में एक "bed " खाली होने वाला हैं, मामा केबिन के लिए पूछते हैं तो स्टाफ बोलता है कि "अभी वईसा कोई चांस नईं हऊ ..!" मजबूरन genral -ward के खाली होने वाले -बेड- के लिए हम अपनी सहमती देते है क्योंकि स्टाफ बोलता है कि अगर हम कहें तो गली में एक चौकी दाल देगा ! "...न-न हम इन्तजार करंगे" मैं क्लिनिक के चिकने फर्श पर फिसल जाने के डर से अपनी चप्पल गाड़ी के नजदीक खोल देता हूँ तब तक नानी और बाकी सभी गाड़ी में इन्तजार से तंग आ गए थे इसलिए मैं नानी को फिर अपनी गोद में उठा कर डॉक्टर साहब के 'EXAMINATION -ROOM' के टेबल पर ले जा कर लिटा देता हूँ. डॉक्टर के आदेश पर नानी की फिर जांच होती है, ...कोई "गंभीर बात" नहीं थी !! लेकिन नानी के कुछ न खाने-पीने के कारण उसकी कमजोरी को देख कर और हमारे आग्रह करने पर डॉक्टर ने अपनी सहमती दे कर अपने स्टाफ को निर्देश दिया की -bed - खाली होते ही नानी को वहां शिफ्ट कर -"dripp -" चालु करे दे.
थोड़े इंतज़ार के बाद -bed- खाली होने की खबर मिलते ही मैं नानी को फिर अपनी गोद में उठा कर वार्ड में ले चला, नानी बेसुध-सी थी जो अपने जिस्म को हलचल में पा पर पूछती है "_अरे ! गड़िया चले लागल का?" मैं नानी की बात में हाँ-हूँ करते वार्ड में जाता हूँ जहाँ -बेड- खाली बताया गया वहां मैं -बेड- पर बिछे बिछावन के मुताबिक नानी को लिटाने ही लगा था की मामा ऐसा करने से मना करते हुए कहते हैं कि दूसरी दिशा में लिटाऊं, ."...क्यों?" "...क्योंकि वो उत्तर दिशा है, जो मृतक-शरीर की दिशा होती है !!!" मैंने वैसा ही किया. फिर नर्स ने नानी को -dripp - लगा दिया.
इस दरम्यान -लड्डू- स्कूल से वापस आ गया था लेकिन घर पर ताला लगा पा कर बिरेंदर के यहाँ चला गया था, वहां से बिरेंदर ने फ़ोन कर के ये बताया और पूछा की दूध वाले सिंध जी आये हैं, घर गये थे लेकिन ताला लगा देख कर वापस आ गए, सो दूध लेना है या नहीं? मैंने ले लेने की निर्देश दिया. और वीणा को बतलाया. थोड़ी देर नानी पर ध्यान रख कर और उसे ठीक पा कर मैं, वीणा और कलावती वापस घर आ गए.
लड्डू घर आ गया था, माँ को रांची में ट्रेन पर बैठा कर कमल ने इसकी सूचना मुझे दी, मैंने बिरेंदर को कहा को वो स्टेशन जा कर Motercycle से माँ को लिवा लाये क्योंकि दुर्गा-पूजा के पंडालों की -SCAFFOLDINGS- (बांस के मचान etc.) और बाज़ार की भीड़ में फौर-व्हीलर चलाने से मैं हिचकिचा रहा था.
शाम को गद्दी से वापस आया तब तक माँ आ चुकी थी लेकिन खूब परेशान सी थी, सफ़र जो महज़ सवा-घंटे का है, '-माल-गाड़ी-' को '-पास-' देने के लिए SHUNTING में काफी देर 'टांगरबसली' स्टेशन पर खड़ी रही थी. ...फिर माँ, वीणा और लड्डू को ले कर मैं डॉ. गणेश प्रसाद के क्लिनिक पहुंचा. नानी अब ठीक लग रही थी लेकिन खूब अन्साई सी और बेचैन थी, कमज़ोर तो थी ही और एक नन्हें बच्चे की तरह बार-बार घर चलने के लिए कह रही थी. माँ ने अपनी माँ को देखा, बातें की उसके पाँव के तलुओं को अपने साडी के पल्लू से सहलाया, उसे समझाया-बुझाया और खुद चैन पाया. नानी अब खुद अपने हाथ से ग्लास थाम रही थी और पानी पी पा रही थी. मैंने नानी कहा कि मैं आ गया हूँ तो नानी कहती है कि "...हम त सोचनी ह कि तें ना अईबे, हमारा के बझा के अपने घरे चल गईलअ ह !" सभी हंस पड़ते हैं.
अब मैं चैन से *"_कौन बनेगा करोडपति_"* देखने जा सकता था !