Powered By Blogger

Thursday, March 7, 2013

facebook?!. ...!

facebookfacebook? facebook?
facebook! facebook! facebook!
facebook. facebook. facebook. क्या है ये फेसबुक!?
दोस्त ज्यादा कि दुश्मन!?
दुश्मन ज्यादा कि दोस्त!?
ख़ुशी ज्यादा कि दुःख!?
दुःख ज्यादा कि ख़ुशी!? 
उम्मीद ज्यादा कि निराशा!?
निराशा ज्यादा कि उम्मीद!?
सुकून ज्यादा कि बेचैनी!?
बेचैनी ज्यादा कि सुकून!?
फुर्सत ज्यादा कि व्यस्तता!?
व्यस्तता ज्यादा कि फुर्सत!?
अपना काम ज्यादा कि faceबुकनी!?
faceबुकनी ज्यादा कि अपना काम!?
मित्रता ज्यादा कि वैमनस्य!?
वैमनस्य ज्यादा कि मित्रता!?
होड़ ज्यादा कि चूहा दौड़!?
चूहा दौड़ ज्यादा कि होड़!?
समाधान ज्यादा कि उलझन!?
उलझन ज्यादा कि समाधान!?
अपनी-अपनी ज्यादा कि उसकी!?
उसकी-उसकी ज्यादा कि अपनी!?
मैं-मैं ज्यादा कि तू-तू!?
तू-तू ज्यादा कि मैं-मैं!?
सार्थक बातें ज्यादा की अनर्गल प्रलाप!?
अनर्गल प्रलाप ज्यादा कि सार्थक बातें!? 
समय की बर्बादी!? 
या समय का सदुपयोग!?
अनुयायी ज्यादा कि प्रशंसक!?
प्रशंसक ज्यादा कि अनुयायी!?
चमचई ज्यादा कि प्रशंसा!?
प्रशंसा ज्यादा कि चमचई!?
प्रसन्नता ज्यादा कि कुढ़न!?
कुढ़न ज्यादा की प्रसन्नता!?
मानसिक शान्ति कि मानसिक बिमारी!!??
facebook ही ज़िन्दगी!? या 
ज़िन्दगी ही facebook!?
  धत्त!
Comment :>जब कोई भाव नहीं देता न, तब ऐसी ही "कवितायें" रची जातीं हैं! हंह!!

सवालकर्ता :>लेकिन जब facebook या कोई और सोशल मीडिया नहीं थे तब हम सुखी नहीं थे क्या? अभी सबकी बी०पी० नापकर देखो, पारा शूट करता दिखेगा! अनिंद्रा की बिमारी ने कईयों को ग्रस लिया है! कई काम के वक़्त सोये पड़े रहते हैं और कई सोने के समय उल्लू की तरह जागते ट्वी-ट्वी ट्वीट करते रहते हैं! कई स्टूडेंट हायर स्टडी के वक़्त अपने अमूल्य समय का सदुपयोग न कर व्यर्थ में 'खर्च' हो रहे हैं! जबकि इन्हीं के हाथों में आने वाले समय की बागडोर है! कहाँ ले जायेंगे 'हमारे ये नौनिहाल' हमको? facebook सबको ही पोजिटिव रिजल्ट देगा क्या यह अटल सत्य है? अश्लीलता को कितने ही मासूमों ने कब अपना कर सब तहस-नहस कर लिया!_पता भी है? "मेरा बच्चा मेरा बच्चा है, वो ऐसा-वैसा कुछ कर ही नहीं सकता!"_जैसे भ्रम जाल में न फंसें! facebook सरीखे कंप्यूटर जनित सोशल मीडिया जितना सहायक है उससे कई-कई गुना ज्यादा खतरनाक और नुक्सानदेह है! गूगल 'बाबा' से ही ये पूछ लीजिये ना! यदि ज्ञान, सूचना और विचारों के आदान-प्रदान का यह इतना ही अच्छा और सबसे ज्यादा प्रशंसनीय माध्यम है तो इसी की वजह से झगडे और आत्महत्याएं क्यों हो रही हैं? किसी भी तताकथित "समर्पित विद्यार्थी" से पूछकर बताइये कि facebook या अन्य सोशल मीडिया का वे कब और कितना प्रयोग कर रहे हैं? जबाब आपके होश उड़ा देगा!

Comment :> हर चीज के दो पहलु होते हैं एक अच्छा, एक बुरा! जिसे जो पसंद हो, जितना पसंद उसी अनुरूप अपनाए कौन रोकता है!? आपकी सारी बातें निराशावादी एवं फ्रस्ट्रेशन से ग्रसित हैं! अमर्यादित हैं इनका उत्तर नहीं दिया जा सकता! इन बातों पर कोई ध्यान तक नहीं देगा! खुद को सेलेब्रिटी मत समझिये!

सवालकर्ता :> हा-हा-हा! बढियां जोक सुनाया एक और सुनाओ!

Comment :> आपके मुँह न ही लगना ठीक है।
 
सवालकर्ता :> हा-हा-हा ...शावाशे!