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Saturday, December 29, 2012

श्री जगन्नाथ पुरी जी की यात्रा - चौथा दिन

24-12-2012  सोमवार,  जगन्नाथ पुरी 

आज का दिन कुछ विलम्ब से शुरू हुआ। हमारे सो कर उठने में देर की वजह से उदीयमान सूर्य का दर्शन हम सी-बीच पर नहीं कर सके। फिर भी सभी तैयार हो कर सी-बीच पर जा पहुंचे। वहां अभी और भीड़ बढ़ गई थी। छुटियाँ मनाने देश के अनेक हिस्से से ख़ास कर कोलकाता (पश्चिम बंगाल) से आये अधिकांश लोगों की भीड़ थी। हमने रोजाना की तरह बीच पर मछुवारों और मलाहों के कार्यकलापों और मेहनत और उससे प्राप्त जीव-जंतुओं और समुद्री, जलीय अनेक सामानों को देखा। माँ, वीणा और रूपा ने इनमे खूब दिलचस्पी ली और कुछ मोतियाँ खरीदीं। चिलिका में मोती खरीदने में उन्हें बढ़िया चूना लगा था, सो सी-बीच पर उन्हीं वस्तुओं को आधे से भी कम कीमत पर मिलता पा कर जहाँ वे खुश थीं वहीं उन्हें पिछले दिन के ठगी से गुस्सा और अफ़सोस हो रहा था।

काफी वक़्त सी-बीच पर गुजरने के बाद हम होटल वापस आये और समुद्र स्नान के लिए इस बार हम मॉडल-सी-बीच पर गए। वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी। बने हुए शेड के नीचे चादर बिछा कर इस बार अपना बाकि बचा बाइफ़ोकल चश्मा मैंने रूपा को संभल कर रखने के लिए दे दिया। और दौड़कर पानी में बच्चों के साथ घुस गया। यहाँ लहरों के दूर में ही गिर कर टूट जाने के कारण उनका वेग किनारे पर आते-आते कमज़ोर पड़ जाता था। गहरे पानी में भी एक सामान्य तालाब जैसा फील हो रहा था। हमें यहाँ उतना मज़ा नहीं आया जितना पहले "गोल्डन बीच" (हमारे होटल के नजदीक वाला) पर आया था। लेकिन महिलाओं को यही पसंद आया जिसका उन्होंने खूब आनंद लिया। हम सभी माँ, वीणा, रूपा और सभी बच्चों ने तक़रीबन 2-घंटे तक समुद्र स्नान का मज़ा लिया। खूब खेले-कूदे। सी-बीच की रेत पर लेटकर स्निग्ध धुप का आनंद लेते समय जिम्मी और सन्नी और गुनगुन ने लड्डू को, कमल को और मुझे बालू से (सर्फ सर छोड़कर) पूरा ढक दिया। तभी वीणा ने मेरे मुँह में कुछ चने दाल दिए जिन्हें मैं चबाने लगा। ये देखकर माँ हंसने लगी। मेरे ऊपर इतना बालू पड़ा हुआ था कि जब उठाना चाहा तो विशेष शक्ति लगानी पड़ी। बालू से निकलकर मैं फिर पानी में कूद गया और खूब डुबकियाँ लगाईं। साफ़ नीले पानी में नहाने का मजा आ गया। तभी मुझे याद आया कि मेरे शॉर्ट्स की जेब में खर्च के रुपये थे ! हाय बाप !! तीसरा धक्क !!! मैंने चेक किया, पैसे सलामत थे क्योंकि जेब का बटन बंद था। फिर सभी मुझे कोसने लगे। मैं खेद से सिर हिलाते पानी से लिथड़े पैसे वीणा को दिए, जिन्हें वो खोल कर धुप में सुखाने लगी। लगता था जैसे वो पैसों की दूकान लगाए बैठी हो! मन में आया कि पूछूं :" बाई ! ये पाँच सौ वाले का कितना दाम है!?" पर वो और भड़क जाती इसलिए चुपचाप फिर समुद्र के कूद गया।

स्नान से लौटकर हम झटपट तैयार हुए और चेरू ड्राईवर के साथ गाड़ी में कोणार्क के लिए रवाना हो गये। कोणार्क में हमने एक गाइड (नाम : प्रताप) ठीक किया जिसके सहायता से हजारों लोगों की लम्बी लाइन के बावजूद हमें आसानी से प्रवेश टिकट मिल गया। गाइड की कमेंट्री के साथ हमने पूरे मोन्यूमेंट को अच्छी तरह से देखा। खूब तस्वीरें लीं गईं। हैण्डीकैम से विडियो शूट किया। वहां भी शंख हमें मुनासिब दाम पर नहीं मिला। तब कमल ने बताया कि पिछली शाम को सी-बीच पर वीणा ने एक शंख पसंद करके दाम पटा भी लिया था लेकिन वो और कम कीमत देना चाहती थी तो दूकानदार ने देने से इनकार कर दिया था। तब चेरू ने कहा कि पुरी में मंदिर के सामने के बाज़ार में हमें मुनासिब दाम पर इससे भी बढ़िया शंख मिल जायेगा।

हम पुरी वापस आ गए। और मंदिर के सामने खूब भटकने के बाद एक  जगह "सौदा" पट गया, और मुझे मेरा शंख मिल गया।

इसके बाद हम वापस अपने होटल के पास "गोल्डन सी-बीच" के मेले में चले गए जहाँ बच्चों के साथ मैं रोलर-कोस्टर, जिसे हम अपनी जुबान में "रमढुलुवा" कहते हैं, पर चढ़ा। ऊंचाई से सी-बीच का मनभावन नज़ारा देखकर दिल झूम गया। अफ़सोस कि मेरे हाथ में उस वक़्त कैमेरा नहीं था। झूले का मज़ा मुझे मेरे बचपन की याद करा गया।

वहीं बीच पर किनारे लगी कुर्सियों पर बैठकर कुछ खाते-पीते हम समुद्र को और उसकी गरजती लहरों को देखकर आनंदित होते रहे।

फिर होटल वापस।

गुड नाईट।
जय जगन्नाथ!
_श्रीकांत .
..........................................................................जारी