भ्रष्टाचार ! आतंक ! हत्या !! बालात्कार !!! से त्रस्त मैं तुम्हारी भारत माँ का ध्वज ! तुम्हारी आन-बान और शान सहित तुम्हारी वीरता का प्रतीक ! तुम्हारा तिरंगा ! शर्म और तुम्हारी निश्कर्मन्यता की कालिख से आज मैला हो चूका हूँ। मुझे मेरा हक और इन्साफ चाहिए! मुझे मेरा दामन साफ़ करके दो!
आज मुझे कोई ख़ुशी प्रसन्न नहीं कर पाएगी।
बहुत ही अफ़सोस, दुःख, निराशा-हताशा मिलकर क्रोध के रूप में मेरे प्राण क्षीण कर रहे हैं। इस विवशता और अपनी कमजोरी पर मुझे अत्यंत खेद है।
श्रीकांत .