श्री जगन्नाथ पुरी जी की यात्रा 21,दिसंबर,2012 से ... 26,12,12 तक :-
21-12-2012 पहला दिन, हटिया (राँची) स्टेशन :
इस समय हमारी ट्रेन 'हटिया-पूरी, तपस्विनी एक्सप्रेस एक अनजान हाल्ट पर खड़ी है, समय सायं 08:44 ...
यात्रा की तैयारी कल दिनभर और देर रात तक करने के बाद __ आज 21,12,12 को सुबह 5 बजे ही मैं जाग चूका था। माँ के तरफ से आती आहटों की आवाज़ से लग रहा था कि घर को झाड़ू से बुहारने लगी थी। हमारे कमरे में माँ ने प्रवेश किया :"...वीणा! जाअगा ! बिहान हो गइल।" वीणा :"हाँ माँ ! मैं नींद में होने का बहाना करते यूँ ही बडबडाया :"अर्रे ! क्या हुआ? अँधेरे में कहाँ जा रही हो, देखो ठीक से जाना, बत्ती जला दूं या साथ चलूँ, गिरना मत।" वीणा :"चुप रहिये, बकर-बकर मत करिए, अभी आप सुतले रहिये चुपचाप।" ...और फिर राँची प्रस्थान की तैयारी होने लगी। मैंने निश्चय किया था कि शिट-शेव-शावर राँची में ही करूँगा। सिर्फ ब्रश किया और कपडे पहन कर सभी सामानों को चौकस करने लगा कि सबकुछ सोचे-विचारे योजना और बच्चों के शौक और फरमाइशों के मुताबिक सबकुछ ठीक था या नहीं। फिर सभी तैयारी हो जाने के बाद माँ ने धीरू (मेरे मौसेरा भाई) को आवाज़ दी :"धीरू ........", धीरू :"हं हं, जागल बनी, एकदम रेडी।" चूंकि राँची में भी काम था अत: हमने ज्यादा देर नहीं की। धीरू के तैयार होकर गाड़ी द्वार पर लाने तक मैं स्व. पूज्यवर बाबूजी की मूर्ती के सामने बैठकर स्तुति-प्रार्थना करने लगा। तब तक सभी सामन गाड़ी में रखा जा चुका था। मैंने मलुवा और उसके बच्चों को दुलार किया, फिर हमने घर को चेक करके लॉक किया, धीरू ने ड्राइविंग संभाली, तभी मैं गद्दी चला गया, और मोहन चाचा से मिलकर शीघ्र लौटकर गाड़ी में बैठा और पेन-ड्राइव लेकर ऑडियो सिस्टम को अपने पसंदीदा ट्रैक पर सेट कर दिया। धीरू ने गाड़ी स्टार्ट की और श्री गौरी-गणेश-महेश की जय, भईया बलभद्र जी, बहिनी सुभद्रा जी, श्री-जगन्नाथ भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र जी की जय बोलकर हम निकल पड़े। गाडी में जो पहला गाना बजा वो मनोज कुमार के एल्बम से "_ मेरा रंग दे बसंती चोला" से शुरू हुआ। मधुर संगीत का आनंद लेते हम राँची फ्लैट पर पँहुच गये। वहाँ हमने अपनी तैयारी रिफ़्रेश की। मैंने शेव किया, शिट कहीं सटक गया था, फिर शावर की जगह लोटा-बाल्टी से ही हर-हर गंगे बोल कर स्नान किया। नाश्ते के बाद हम मार्किट निकलने ही वाले थे कि जिम्मी अपनी चप्पल को मरम्मत कराने मोची के पास चला गया। उसके जाते ही जब मैं जूता पहन रहा था कि पाया कि उसका सोल (हील के पास से), बुरी तरह उखड कर लटका हुआ था! "...हं ...हं ...हं, कल मलुवा को मारने के लिए दौडाए थे और मैं गिरते-गिरते बचा था, ज़रूर उसी वक़्त जूते का सोल उखड़ गया होगा। अब तो समस्या हो गई। जिम्मी जा चूका था, अचानक लौट आया। बोला मोची कहीं नहीं है, शायद आज आया ही नहीं। तब धीरू ने एक झोले में सभी टूटे जूते-चप्पलों को लेकर गया और आधे घंटे में मरम्मत करा कर वापस आ गया। फिर जिम्मी, धीरू और मैं शोपिंग के लिए बाज़ार चले गए।हमारे पास कोई ढंग का कैमेरा नहीं था, अत: रूपा की इच्छा थी कि एक अच्छी क्वालिटी का डिजिटल कैमेरा हमारे साथ होना चाहिए। जिम्मी ने अपने स्किल्स से एक बढ़िया कैमेरा खरीदवा दिया, जो सबको खूब पसंद आया। सिवाय वीणा के। उसकी नज़र में ये फिजूलखर्च था। जिम्मी ने अपने लिए और अपने छोटे भाइयों के लिए शोर्ट पैन्ट्स खरीद्वाये। तबतक घडी डेढ़ - पौने दो बजाने लगी थी और रह-रह कर मोबाईल बजने लगा, कभी वीणा, तो कभी कमल। हम शीघ्रता से घर पहुँचे। फिर सभी सामान गाडी में लाद गया, जिससे पूरी गाड़ी भर गई। जैसे-तैसे एडजस्ट होकर हम निकल पड़े। इस बार मैंने ड्राइव की। हम हटिया स्टेशन सवा तीन बजे पहुँच गए। 04:05 में गाड़ी खुलने वाली थी। गाड़ी प्लेटफोर्म नंबर-1 पे खड़ी थी। कमल ने और मैंने सबको निर्देश दिया और सभी ने मिल-बाँट कर सभी सामान उठाया प्लेटफोर्म की तरफ बढे। माँ ने गुनगुन को डांट-डपट कर कंट्रोल में रखा। मेरे आगे जिम्मी, सन्नी, लड्डू, रूपा जिसकी गोद में डुग्गु था, चले। मेरे पीछे माँ, वीणा, कमल और धीरू थे। कमल सबको बार-बार बोल रहा था कि हमारी बर्थ बोगी नंबर S-8 में है। S-8 तक सामान के साथ लंबा वाक करना पड़ा, जिसके कारण कभी कोई आगे हो जाता था तो कभी कोई पीछे रह जाता था, फिर भीड़ में गर्दन उचका कर उन्हें देखकर संतोष से S-8 की तरफ चले। पहुँचने पर सबसे पहले जिम्मी,सन्नी, लड्डू और गुनगुन S-8 में प्रवेश किये। उनके पीछे रूपा थी जिसे मैंने कहा :"रूपा ! यही S-8 है, चढ़ो-चढ़ो!" रूपा ने कहा कि वो बोगी के अगले दरवाजे से प्रवेश करेगी, क्योंकि उधर से हमारी बर्थ नजदीक थी, वो डुग्गु को गोद में लिए हुए बोगी में प्रवेश कर गई, तबतक वीणा ठीक मेरे पीछे थी। मैंने अपने हाथ के सभी सामान बोगी पर चढ़ाया फिर खुद चढ़ा, मुझे पूरा भान था कि वीणा ठीक मेरे पीछे है और मुझे फौलो कर रही है, वो मेरे पीछे आ जायेगी। फिर उसके पीछे कमल, माँ और धीरू तो थे ही। मैंने अपना सामान फिर उठाया और अपने नंबर वाली बर्थ के पास पहुंचकर देखने लगा कि सभी जन आ चुके हैं या नहीं। तभी माँ ने कहा :"अर्रे! बीना केने गईली, आह ददा छोड़ देला स का उनका !?" अचानक सभी हैरान-परेशान वीणा को ढूँढने लगे। वीणा बोगी में कहीं नहीं थी !! हम सभी मर्द बोगी से बाहर निकल कर प्लेटफोर्म पर पागलों की तरह वीणा को ढूँढने लगे। मैं और कमल आगे बढे, काफी दूर इंजन के पास से कमल ने हाथ हिलाकर मुझे इशारा किया कि वो वीणा के साथ आ रहा है। "हाय बाप ! वीणा इंजन के पास तक चली गई थी !"वो जब आ कर हमसे मिली तो हम आपस में शोर-शराबा करने लगे। वीणा का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था। जब बोगी में उसे माँ और रूपा के पास लेकर पहुंचे तो वहां नया शोर-शराबा हुआ। ...फिर शांत। सबकुछ एडजस्ट और सभी कोई सैटलडाउन हो चुके थे। मैं और धीरू कुछ सॉफ्ट ड्रिंक्स लेने चले गए। तभी गाड़ी के हूटर ने आवाज़ दी और हम सभी गाड़ी में अपनी सीट पर आ बैठे। धीरू ने भावभीने होकर सबको हैप्पी जर्नी कहा और बड़ों को प्रणाम कर बोगी से नीचे उतर कर खिड़की के पास आकर बच्चों और डुग्गु को दुलार किया, तभी गाडी सरकने लगी। धीरू ने हाथ हिलाते हमें विदा किया। गाडी खुल चुकी थी। मैंने मन-ही-मन इश्वर को याद किया और "रक्षा करो, करते रहना" की गुहार लगाईं। यात्रा शुरू हो शुकी थी। हम श्री जगन्नाथ पुरी जी की यात्रा पर रवाना हो चुके है। तभी एक नंबर सिक्स (हिजड़ा) आता दिखा। मैंने सबको सावधान किया। नंबर सिक्स (हिजड़ा) हमारे पास आया। उसने शेव की हुई थी और लिपस्टिक, काजल, बिंदी वगैरह धारण कर साड़ी पहने हुए था। उसके बांये हाथ की सभी उँगलियों में 20-10 के नोट लगे हुए थे जिन्हें अपनी अदाओं के साथ दिखलाकर हमसे पैसे मांगने लगा और दुआएं देने लगा। मैंने उसे एक 10 का नोट थमाया। उसने अपने तरीके से मुझे और मेरे आस-पास बैठे सभी जन को दुआएं दीं और ऊपर वाले बर्थ पर बैठे जिम्मी,सन्नी, लड्डू और गुनगुन से पैसे मांगने लगा तो वीणा ने उससे कहा की ये सभी हमारे ही बच्चे है, सो जो दिया वो सबकी तरफ से है। नंबर सिक्स (हिजड़ा) ने वीणा के मुंह के सामने अपनी बहुचर्चित ढंग से हाथ से ताल ठोक कर कहा :"आय हाय ! ये कहाँ से आई रे बाबा इ मीना कुमारी!" हमारी बेसाख्ता हंसी छूट पड़ी। फिर वो, नंबर सिक्स (हिजड़ा) लहराते बल खाते लचकते-मचकते आगे चला गया। पुरे रास्ते हम वीणा को मीना कुमारी बोलकर चिढाते रहे।
खाते-पीते, हँसते-गाते, मौज मानते,खेलते-खिलाते हमारा सफ़र शुरू हो चूका था। अभी हमारी गाडी राउरकेला से आगे झारसुगड़ा स्टेशन से खुली है। अभी जब मैं लिख रहा हूँ, समय है रात्रि 09:40PM.
शुभ रात्रि।
जय जगन्नाथ।
------------------------------------------------जारी ...
21-12-2012 पहला दिन, हटिया (राँची) स्टेशन :
इस समय हमारी ट्रेन 'हटिया-पूरी, तपस्विनी एक्सप्रेस एक अनजान हाल्ट पर खड़ी है, समय सायं 08:44 ...
यात्रा की तैयारी कल दिनभर और देर रात तक करने के बाद __ आज 21,12,12 को सुबह 5 बजे ही मैं जाग चूका था। माँ के तरफ से आती आहटों की आवाज़ से लग रहा था कि घर को झाड़ू से बुहारने लगी थी। हमारे कमरे में माँ ने प्रवेश किया :"...वीणा! जाअगा ! बिहान हो गइल।" वीणा :"हाँ माँ ! मैं नींद में होने का बहाना करते यूँ ही बडबडाया :"अर्रे ! क्या हुआ? अँधेरे में कहाँ जा रही हो, देखो ठीक से जाना, बत्ती जला दूं या साथ चलूँ, गिरना मत।" वीणा :"चुप रहिये, बकर-बकर मत करिए, अभी आप सुतले रहिये चुपचाप।" ...और फिर राँची प्रस्थान की तैयारी होने लगी। मैंने निश्चय किया था कि शिट-शेव-शावर राँची में ही करूँगा। सिर्फ ब्रश किया और कपडे पहन कर सभी सामानों को चौकस करने लगा कि सबकुछ सोचे-विचारे योजना और बच्चों के शौक और फरमाइशों के मुताबिक सबकुछ ठीक था या नहीं। फिर सभी तैयारी हो जाने के बाद माँ ने धीरू (मेरे मौसेरा भाई) को आवाज़ दी :"धीरू ........", धीरू :"हं हं, जागल बनी, एकदम रेडी।" चूंकि राँची में भी काम था अत: हमने ज्यादा देर नहीं की। धीरू के तैयार होकर गाड़ी द्वार पर लाने तक मैं स्व. पूज्यवर बाबूजी की मूर्ती के सामने बैठकर स्तुति-प्रार्थना करने लगा। तब तक सभी सामन गाड़ी में रखा जा चुका था। मैंने मलुवा और उसके बच्चों को दुलार किया, फिर हमने घर को चेक करके लॉक किया, धीरू ने ड्राइविंग संभाली, तभी मैं गद्दी चला गया, और मोहन चाचा से मिलकर शीघ्र लौटकर गाड़ी में बैठा और पेन-ड्राइव लेकर ऑडियो सिस्टम को अपने पसंदीदा ट्रैक पर सेट कर दिया। धीरू ने गाड़ी स्टार्ट की और श्री गौरी-गणेश-महेश की जय, भईया बलभद्र जी, बहिनी सुभद्रा जी, श्री-जगन्नाथ भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र जी की जय बोलकर हम निकल पड़े। गाडी में जो पहला गाना बजा वो मनोज कुमार के एल्बम से "_ मेरा रंग दे बसंती चोला" से शुरू हुआ। मधुर संगीत का आनंद लेते हम राँची फ्लैट पर पँहुच गये। वहाँ हमने अपनी तैयारी रिफ़्रेश की। मैंने शेव किया, शिट कहीं सटक गया था, फिर शावर की जगह लोटा-बाल्टी से ही हर-हर गंगे बोल कर स्नान किया। नाश्ते के बाद हम मार्किट निकलने ही वाले थे कि जिम्मी अपनी चप्पल को मरम्मत कराने मोची के पास चला गया। उसके जाते ही जब मैं जूता पहन रहा था कि पाया कि उसका सोल (हील के पास से), बुरी तरह उखड कर लटका हुआ था! "...हं ...हं ...हं, कल मलुवा को मारने के लिए दौडाए थे और मैं गिरते-गिरते बचा था, ज़रूर उसी वक़्त जूते का सोल उखड़ गया होगा। अब तो समस्या हो गई। जिम्मी जा चूका था, अचानक लौट आया। बोला मोची कहीं नहीं है, शायद आज आया ही नहीं। तब धीरू ने एक झोले में सभी टूटे जूते-चप्पलों को लेकर गया और आधे घंटे में मरम्मत करा कर वापस आ गया। फिर जिम्मी, धीरू और मैं शोपिंग के लिए बाज़ार चले गए।हमारे पास कोई ढंग का कैमेरा नहीं था, अत: रूपा की इच्छा थी कि एक अच्छी क्वालिटी का डिजिटल कैमेरा हमारे साथ होना चाहिए। जिम्मी ने अपने स्किल्स से एक बढ़िया कैमेरा खरीदवा दिया, जो सबको खूब पसंद आया। सिवाय वीणा के। उसकी नज़र में ये फिजूलखर्च था। जिम्मी ने अपने लिए और अपने छोटे भाइयों के लिए शोर्ट पैन्ट्स खरीद्वाये। तबतक घडी डेढ़ - पौने दो बजाने लगी थी और रह-रह कर मोबाईल बजने लगा, कभी वीणा, तो कभी कमल। हम शीघ्रता से घर पहुँचे। फिर सभी सामान गाडी में लाद गया, जिससे पूरी गाड़ी भर गई। जैसे-तैसे एडजस्ट होकर हम निकल पड़े। इस बार मैंने ड्राइव की। हम हटिया स्टेशन सवा तीन बजे पहुँच गए। 04:05 में गाड़ी खुलने वाली थी। गाड़ी प्लेटफोर्म नंबर-1 पे खड़ी थी। कमल ने और मैंने सबको निर्देश दिया और सभी ने मिल-बाँट कर सभी सामान उठाया प्लेटफोर्म की तरफ बढे। माँ ने गुनगुन को डांट-डपट कर कंट्रोल में रखा। मेरे आगे जिम्मी, सन्नी, लड्डू, रूपा जिसकी गोद में डुग्गु था, चले। मेरे पीछे माँ, वीणा, कमल और धीरू थे। कमल सबको बार-बार बोल रहा था कि हमारी बर्थ बोगी नंबर S-8 में है। S-8 तक सामान के साथ लंबा वाक करना पड़ा, जिसके कारण कभी कोई आगे हो जाता था तो कभी कोई पीछे रह जाता था, फिर भीड़ में गर्दन उचका कर उन्हें देखकर संतोष से S-8 की तरफ चले। पहुँचने पर सबसे पहले जिम्मी,सन्नी, लड्डू और गुनगुन S-8 में प्रवेश किये। उनके पीछे रूपा थी जिसे मैंने कहा :"रूपा ! यही S-8 है, चढ़ो-चढ़ो!" रूपा ने कहा कि वो बोगी के अगले दरवाजे से प्रवेश करेगी, क्योंकि उधर से हमारी बर्थ नजदीक थी, वो डुग्गु को गोद में लिए हुए बोगी में प्रवेश कर गई, तबतक वीणा ठीक मेरे पीछे थी। मैंने अपने हाथ के सभी सामान बोगी पर चढ़ाया फिर खुद चढ़ा, मुझे पूरा भान था कि वीणा ठीक मेरे पीछे है और मुझे फौलो कर रही है, वो मेरे पीछे आ जायेगी। फिर उसके पीछे कमल, माँ और धीरू तो थे ही। मैंने अपना सामान फिर उठाया और अपने नंबर वाली बर्थ के पास पहुंचकर देखने लगा कि सभी जन आ चुके हैं या नहीं। तभी माँ ने कहा :"अर्रे! बीना केने गईली, आह ददा छोड़ देला स का उनका !?" अचानक सभी हैरान-परेशान वीणा को ढूँढने लगे। वीणा बोगी में कहीं नहीं थी !! हम सभी मर्द बोगी से बाहर निकल कर प्लेटफोर्म पर पागलों की तरह वीणा को ढूँढने लगे। मैं और कमल आगे बढे, काफी दूर इंजन के पास से कमल ने हाथ हिलाकर मुझे इशारा किया कि वो वीणा के साथ आ रहा है। "हाय बाप ! वीणा इंजन के पास तक चली गई थी !"वो जब आ कर हमसे मिली तो हम आपस में शोर-शराबा करने लगे। वीणा का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था। जब बोगी में उसे माँ और रूपा के पास लेकर पहुंचे तो वहां नया शोर-शराबा हुआ। ...फिर शांत। सबकुछ एडजस्ट और सभी कोई सैटलडाउन हो चुके थे। मैं और धीरू कुछ सॉफ्ट ड्रिंक्स लेने चले गए। तभी गाड़ी के हूटर ने आवाज़ दी और हम सभी गाड़ी में अपनी सीट पर आ बैठे। धीरू ने भावभीने होकर सबको हैप्पी जर्नी कहा और बड़ों को प्रणाम कर बोगी से नीचे उतर कर खिड़की के पास आकर बच्चों और डुग्गु को दुलार किया, तभी गाडी सरकने लगी। धीरू ने हाथ हिलाते हमें विदा किया। गाडी खुल चुकी थी। मैंने मन-ही-मन इश्वर को याद किया और "रक्षा करो, करते रहना" की गुहार लगाईं। यात्रा शुरू हो शुकी थी। हम श्री जगन्नाथ पुरी जी की यात्रा पर रवाना हो चुके है। तभी एक नंबर सिक्स (हिजड़ा) आता दिखा। मैंने सबको सावधान किया। नंबर सिक्स (हिजड़ा) हमारे पास आया। उसने शेव की हुई थी और लिपस्टिक, काजल, बिंदी वगैरह धारण कर साड़ी पहने हुए था। उसके बांये हाथ की सभी उँगलियों में 20-10 के नोट लगे हुए थे जिन्हें अपनी अदाओं के साथ दिखलाकर हमसे पैसे मांगने लगा और दुआएं देने लगा। मैंने उसे एक 10 का नोट थमाया। उसने अपने तरीके से मुझे और मेरे आस-पास बैठे सभी जन को दुआएं दीं और ऊपर वाले बर्थ पर बैठे जिम्मी,सन्नी, लड्डू और गुनगुन से पैसे मांगने लगा तो वीणा ने उससे कहा की ये सभी हमारे ही बच्चे है, सो जो दिया वो सबकी तरफ से है। नंबर सिक्स (हिजड़ा) ने वीणा के मुंह के सामने अपनी बहुचर्चित ढंग से हाथ से ताल ठोक कर कहा :"आय हाय ! ये कहाँ से आई रे बाबा इ मीना कुमारी!" हमारी बेसाख्ता हंसी छूट पड़ी। फिर वो, नंबर सिक्स (हिजड़ा) लहराते बल खाते लचकते-मचकते आगे चला गया। पुरे रास्ते हम वीणा को मीना कुमारी बोलकर चिढाते रहे।
खाते-पीते, हँसते-गाते, मौज मानते,खेलते-खिलाते हमारा सफ़र शुरू हो चूका था। अभी हमारी गाडी राउरकेला से आगे झारसुगड़ा स्टेशन से खुली है। अभी जब मैं लिख रहा हूँ, समय है रात्रि 09:40PM.
शुभ रात्रि।
जय जगन्नाथ।
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