बचपन में बाबूजी मुझे गणितीय जोड़-घटाव सिखाते-पढ़ाते थे तब मैं कभी
खेलते-खेलते उनके कार्यालय 'गद्दी' में उनके करीब जा बैठता था। गलती पर
उन्होंने कभी कोई सख्ती नहीं की। एक-एक बात इतने प्यार-दुलार से सिखाते थे
कि मैं सिर्फ प्यार ही सीख पाया। बाबूजी तब अक्सर रोजनामचे को मुझे देते और
उसमे अंकित गणितीय अंकों को दुसरे कागज़ पर नक़ल उतार कर जोड़ लगा कर उत्तर
देने को कहते। और अपने काम में व्यस्त हो जाते थे। हर पन्ने पर 30-35
लाइनें होतीं थीं। अंकों के तुरंत बगल में उन्हें बंद करती नीचे को मुड़ी
हुई लकीर होती थी जो पेन की घसीट से अंकों से भी बाहर निकली होती थी, जिसके
बाद सिर्फ दो अंक ही होते थे। मैंने जब पूछा कि ये क्या है तब उन्होंने
बतलाया कि शुरू के अंकों को रूपए और घुमावदार लकीर के बाद के अंक पैसे होते
हैं। मैंने उस लकीर को और जानना चाहा तो उन्होंने कहा-'ई सिफड़ कहा ला!'
मुझे उलझन में देखकर उन्होंने लकीर को एक बिंदु में बदल दिया। मैंने फिर
पूछा तो बिना झल्लाय वे बोले -'ई -दशमलव- कहा ला!' तब मैं कुछ सहज हुआ। जब
नक़ल उतार रहा था तो पाया कि अंकों के बगल में उनका विवरण दर्ज था। एकाध बार
मैंने उन्हें पढ़ा, लिखा था-'कुक्कुर के दूध!' _ 'कुक्कुर के शिकार!' तब
मेरी हैरत का कोई ठिकाना न रहा। मैंने बाबूजी को उनके काम के बीच झिंझोड़कर
पूछा -'अहो, बाबूजी! ई कुतवा के दूध के पिये ला!? आऊ कुतवा के शिकार करे के
जा ला!?' मेरी बात सुनकर बाबूजी के पास बैठे उनके सहकर्मी साथी ठठा कर
हँसे! बाबूजी ने भी झेंपते, हँसते बतलाया कि -'अरे कुक्कुर-के ना! "कुक्कुर
'के-वास्ते!', "आऊ, कुक्कुर के शिकार कोई ना करे, ई "कुतवा 'के-वास्ते' 'मीट'
ह!" ..आजकल ट्रेंड बदल गया है। कुत्ता या कुकुर बोलने लिखने की मनाही हो
गई है। 'डॉग' लिखिए। डॉग बोलिए।
प्राइमरी स्कूल के दिनों में हमें घरेलु, पालतु जानवरों पर निबंध लिखने को कहा जाता था। अधिकांश छात्र, मैं भी, तब 'गाय' को ही अक्सर अपना निबन्ध-विषय बनाते थे। पर, जब 'मा-स्साब' का आदेश होता कि 'कुत्ता' पर एक लेख लिखो, तब हमारे मानस-पटल पर इस जानवर का अक्स उभर आता था। जो कि हमारे, अपने आस-पास सडकों पर आम विचरते पाये जाते हैं। फिर हम थोडा सोचते, थोडा याद करते निबंध लिखना शुरू कर देते थे। और जैसी परम्परागत लाइनें स्कूल में हमें सीखाई गई थी, सभी छात्र लिखते थे -"कुत्ता एक चौपाया जानवर होता है। कुत्ता एक पालतु जानवर होता है। इसके {चौपाया लिख चुकने के बाद भी} चार पैर, दो कान, दो आँख, एक मुँह और एक पोंछी होता है। कुत्ता बहुत ही उपयोगी जानवर होता है। कुत्ता बहुत वफादार जानवर होता है। कुत्ता घर की रखवाली करता है"..., आदि-इत्यादि। कॉपी जाँच के समय 'मा-स्साब' कान खींचते और अलंकृत भाषा में डांटते -'कुक्कुर कहीं का! एतना बड़ा हो गया!! 'कुत्ता' के बारे में नहीं जनता है!? हिंदी बिगाड़ता है? पूंछ को पोंछी लिखता है!? इस्कूल का नाम हंसावेगा?' 'मा-स्साब' को क्या पता, जैसे ही कुत्ते पर पेन रखा, वो भाग जाता है। वरना कॉपी पर क्यूँ लिखता! खुद पर ही लिख के न दे देता!
उस समय हमें नहीं बताया गया था, न पढ़ाया गया था कि कुत्तों की भी अलग-अलग जाति, प्रकार और नस्ल होते हैं। हमें सारे संसार में बस एक ही तरह के कुत्तों की मौजूदगी का आभास होता था। देहाती, सड़क छाप, शुद्ध देशी। [अंगेजों ने नाम दिया-'स्ट्रीट डॉग!]' पर हमें इसका ज्ञान नहीं कराया गया था। कुछ बड़े हुए तो 'अल्सेशन' शब्द से परिचय हुआ [जिसे इधर अभी भी 'ऐलसेसियन' बोलते हैं]। तब हमें यही समझाया गया अल्सेशन माने अंग्रेज या विदेशी कुत्ते। जिसे रखना, पालना, साथ-साथ -घूमना, खिलाना-पिलाना, उसे अपने बच्चे की तरह{भले चाहे आप अपनी जन्माये पुत्र-पुत्रितों का तिरस्कार और निरादर करते हों}अपने गोद में लेना, पुचकारना और साथ सुलाना, फैशन बन गया। स्टेटस सिम्बल बन गया। आप 'बड़े, महिमामंडित व्यक्तित्व के स्वामी' बन गए। ये 'कुत्ते' की महिमा है! जैसे 'मेड इन जापान' से आप अपने अंडरकस्टडी / अंडरपोजेशन हरेक आइटम से मुतासिर, सहमत और खुश, होते हैं, विदेशी मूल के कुत्तों से खुश होने लगे! जैसे फौरेनर विदेशी घड़ियाँ, मोबाइल, टैब्ज़, और आईपोड से कुछ 'ख़ास' होने की आपको सुखद अनुभूति होती है, ठीक वैसे ही विदेशी नस्ल के कुत्तों ने आपको सुखी कर दिया। शुद्ध देशी, सड़क वाले, "हाड़ी रे!...दुर्र हो!' के लायक हो गए! एक पत्थल उठाया और 'दे मार!' कुत्ता फिर भी आपको -"चा!-बस!! ..चा!-बस!!" की शाबाशी देता, भाग जाता है! फिर भी बेशर्म की तरह, ढीठ, जिद्दी देशभक्त की तरह, आस-पास ही इस प्रत्याशा में मंडराता रहता है, इस बात का भरोसा रहता है कि अल्सेशन भाई कुछ तो छोड़ेंगे, या क्या पता देशवासियों को ही देशी की फिर से कद्र हो जाए! पर न ये हुआ है, न होता है, भविष्य किसने देखा है! इसलिए आस बरकरार है।
कुत्ता किसके काम की 'चीज' नहीं? 1976 की फिल्म 'अदालत' की याद आती है, जिसमे अमित जी पूर्वोत्तर भारत (इलाहाबाद-से-पटना तक) के एक किसान, गृहस्थ हैं, जिनकी भाषा भोजपुरी है। घटनाक्रम जिन्हें शहर ले आती है, तब वे अपने जान-पहचान के रिश्तेदार के यहाँ वक्ती शरण के लिए जाते हैं। लेकिन घर की मालकिन छोटे घर का रोना रोती है कि एक हमारा कमरा, एक इनका, एक बेबी का एक पप्पी का,.अमित जी अचकचाय> "पप्पी!?" तो चाची बोलती है 'माई डार्लिंग डॉग!' वहीदा जी, जो इसमें अमित जी पत्नी हैं,-पति-अमित जी ('धर्मा") से पूछतीं हैं -'ए जी, ई 'डॉग' का हय?' अमित जी जबाब देते हैं -"अरे! कुकुर हो!"<<< इस सीन पर, इस संवाद पर, अमित जी के बोल और अंदाज़ पर, हॉल का तो मुझे याद नहीं पर बाबूजी जो हँसे, ..जो हँसे थे! वो ही हंसी अब भी छूटती है। फिल्म "क्रांति" में जब प्रेम चोपड़ा(शंभू) दिलीप साहब(सांगा) से कहते हैं कि 'महाराज की आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है।' तब दिलीप साहब का जबाब आता है-'कर्तव्य का पालन करना कुत्ते से सीखो! कुत्ता तो अपने मालिक की रक्षा करता है, तुमने अपनी मातृभूमि का सौदा कर लिया।' कहने का मतलब प्रेम चोपड़ा का घमंड जहां 'पशुता' है, वहीं दिलीप साहब का जबाब पशु-प्रेम है। पशु-प्रेम की भी खूब कही-(श्रीकांत जी!)-, जहां लोग देश-विदेश में गाय को खाकर डकार नहीं लेते, कुत्ते की पिटाई पर बवाल मचा देते हैं! कुत्ता यहाँ भी काम आया, जो 'सब्जेक्ट' सुझा गया।
कुत्ता कितने काम आता है! बीवी से पिटकर भागे-आपसे -आपसे पिटकर, मार खाकर, 'आपकी' भड़ास निकालता है और आपको मर्द होने का अहसास कराता है। फिर भी आप ही के कदमों में लोटता है, सूंघता, चाटता आपसे लाड दर्शाता है। कुत्ते का अपने प्रेम प्रदर्शन की यह इंटरनेशनल प्रकृति; प्रव्रत्ति है। उसे ये भी याद नहीं रहता कि इसी ने मार था, 'क्यूँ न काटकर इसे मेडिकल केस बना दूं। लगे चौदह इंजेक्शन नाभि में! तब कुत्ते की ताक़त का पता चलेगा, कितने सुहाने दिन थे वो! सुसरे पास न आते थे। सत्यानाश हो इस नई ईजाद का जो वो चौदह इंजेक्शन अब हिस्ट्री बन गया!' कुत्ते को बारम्बार भगाइये वो लौट कर फिर आ ही जाएगा, ये उसकी वफादारी का मज़बूत और चट्टानी सुबूत बन गया। उसकी भूख ने, जो कभी नहीं मिटती, उसे 'कुत्ता' की संज्ञा दिलाया। भर पेट खाने के बाद भी जब आपको खाते देखेगा, आपकी मुँह निहारेगा। और आप गरियायेंगे: 'साला कुकुर! भाग हीयाँ से।' तब भी उसकी बेईज्ज़ती नहीं होती। वो आप पर मानहानि का मुक़दमा नहीं ठोकता। सिर्फ अपनी क्षुधा की आग बुझाने के लिए सब बेईज्ज़ती भुलाकर हर वो करतब करने को तैयार रहता है जिसके लिए आप उसे पालते हैं। हर आहट पर भूकता है। क्योंकि यही उसकी भाषा है। उसे किसी ने व्याकरण नहीं पढ़ाया। उसे अलंकारिक भाषा का कोई ज्ञान नहीं। उसे यह भी पता नहीं कि उसके सात समंदर पार वाले बिरादरी भाई भी यही भाषा बोलते-समझते हैं। यहाँ तो हर 100 किलोमीटर पर भाषा और संस्कार बदल जाते हैं। ईमान और धर्म बदल जाते हैं। फिर बेचारे कुत्ते की क्या बिसात! सिर्फ भौंक कर अपना विरोध भर दर्ज करा देता है।
पहले
सिर्फ फिल्मों और किताबों में पढ़ा था कि कुत्ते की मदद से जटिल केस सोल्व
कर लिया जाता था। लेकिन उसकी गवाही अदालत में नहीं मानी जाती। सारी दुनिया
में कुत्ते अब जासूसी करने लगे हैं। 'डॉग-स्क्वायड' के नाम से इनकी सेना का
निर्माण हो रहा है। 26/11 के बाद तो मुंबई वाले 'स्ट्रीट-डॉग्स' को भी अब
'सुपर-कॉप' बनाने की मुहीम पे लगे हैं। दिन बहुरने के लच्छन दिख रहें
हैं। बिरादरी को खबर मिलनी चाहिए। मीडिया वाले भी शायद कुत्तों पर 'ज़ूम'
करें! 'पीपली लाइव' की तरह।
*बिफरा हुआ कुत्ता :>>>
एसएमपी सर के विमल सीरीज के उपन्यास "दमन चक्र" में जब विमल और वेष बदली हुई नीलम पहली बार ओरियंटल की बोर्ड मीटिंग में वहाँ मौजूद बोर्ड के (दादा टाइप) मैनेजिंग डायरेक्टर दाण्डेकर को मिलते हैं तब बाद में नीलम विमल से दाण्डेकर के हुलिए और व्यवहार का हवाला देकर पूछती है कि "वो 'बिफरे हुए कुत्ते' जैसी शक्ल वाला" आदमी अगर फिर भौंका तो?'__यहाँ मेरा इशारा इस बात की तरफ है कि इंसान, महिला या पुरुष, में पहली नज़र में ही ये जान लेने की क्षमता फीड होती है कि सामने वाला बंदा किस किस्म का है। भगवान् ने कमीनी फितरत वाले कुत्ते की जात जैसे गलीज़ आदमी को सचमुच बिफरे हुए कुत्ते जैसी ही कमीनी शक्ल भी दी होती है। आप जब पहली ही बार किसी से मिलते हैं तो मिलते ही आपको ये आभास हो जाता है कि 'मेरी इससे निभने वाली है या नहीं। या 'इसके वजह से प्रॉब्लम हो सकती है!' अगर आप थोड़ी बारीकी, गभीरता और यत्न से अपने बचपन को याद करें तो याद करके बताइये कि जब आपने स्कूल में पहला कदम रक्खा था तो क्या सभी लड़कों से आपकी दोस्ती हो गई थी? _नहीं। आपकी पहली मासूम, सहमी नज़र कक्षा में मौजूद हुजूम में किसी अपने जैसे हमख्याल और प्यारे शख्श की तलाश में होती है। जब वो मिलता है तो आप एक-दुसरे को पसंद कर मित्रता, फिर याराना का रिश्ता स्थापित कर लेते हैं। फिर भी कक्षा में मौजूद हुजूम में आपको वो शक्ल भी दिखाई पड़ती है, जिसके चेहरे से घमंड, और कमीनगी साफ़ झलकती है। वो अपनी नाक के नीचे ही सबको देखना चाहता है। बेवजह सभी से अक्खड़ लहजे में बात करता है, बात-बात पर किसी-न-किसी का कॉलर पकड़ लेता है। वो कक्षा का 'इलेक्टेड मोनिटर' हो-या-न हो, वो मोनिटर पर भी ऐसी ही 'धाक जमा कर' उसे अपने रौब के दायरे में रखने की घटिया कोशिश करता है, और यूँ 'सिंगल आउट' होकर तस्दीकशुदा 'बिफरा हुआ कुत्ता' सिद्ध होता है। ऐसे लोग या तो समाज के असामाजिक तत्व बनते हैं या फिर ज़िन्दगी भर दुर्र-दुर्र झेलते, अवांछित अछूत बन जाते हैं। इनकी ऐसी दुर्भावना तब स्पष्ट और प्रबल हो जाती है, जब आप की सोच को मुहरबंद करती वह बंदा कोई दादागिरी नुमा व्यवहार दायें-बाएं बिखेरता मिलता है। उसकी हर किसी पर हर वक़्त चाबुक ताने रहने की फितरत सहज ही समझ में आ जाती है, कि ये खुद को 'बॉस' समझता है। वजह यही है कि उसे अबतक कोई आइना दिखाने वाला नहीं मिला होता की वो देख ले कि उसकी शकल बिलकुल "बिफरे हुए कुत्ते जैसी" है। और वो कभी भी शांत नहीं रहेगा। उसके आस-पास कभी शांति नहीं रहेगी। उसकी अशांत अवस्था उसे खुद ही ले डूबेगी। ऐसा वहशी समान 'कुत्ता आदमी' कतई सभ्य इंसान नहीं हो सकता। इसीलिए वो किसी का भला चाह ही नहीं सकता। इससे जितना हो सके परहेज जरूरी है। फिर भी वो अपनी फितरत के मुताबिक कभी-न-कभी : यदि आप मौजूद हैं; चुपचाप अपना काम कर रहे हैं; उसकी तरफ आप कोई तवज्जो नहीं देते; जिसे वो अपनी तौहीन समझता है और हमेशा आपको उकसाने वाली कोई हरकत करता है, आपको छेड़ता है, आपको बेईज्ज़त और शरेआम ज़लील करके आपको खुद अपने आगे सरेंडर करने को विवश करता है ऐसी स्थिति में मेरा सवाल है : "आप क्या करेंगे?" ये भी संभव है कि सबकुछ आपकी, मेरी निगाह का धोखा साबित हो; जिसके चांसेज लगभग जीरो ही हैं, पर जब ऐसा साबित होगा तो निश्चय ही मन के मैल मिट जायेंगे, प्रेम-प्यार-दोस्ताना और याराना की जीत होगी। लेकिन ऐसा नहीं होता है तो? अब जबाब दीजिये __ ऐसा आदमी सच्चा पुत्र-पति और पिता, मित्र और सही नागरिक के रोल में खपेगा? निभा पायेंगे इसके साथ? यदि आपका ऐसे लोगों से पाला कभी पड़ा था तो आपने क्या किया? मुझे आकस्मात बदकिस्मती से ऐसे कुत्ते से पाल़ा पड़ जाय तो मुझे क्या करना चाहिए? ध्यान रखियेगा, आपको इससे अकेले ही लड़ना है या भागना है। यहाँ अब आपके अपने इज्ज़त, आन-मान-सम्मान-स्वाभिमान की बाज़ी है। ऐसी हालत में इस कुत्ते का क्या इलाज़ है!?!?!?
कमज़ोर-से-कमज़ोर कुत्ता भी भौंकता है। अनायास भौंकता है। घर के भीतर से ही भौंकता है। सिर्फ उसे किसी दुसरे कुत्ते की 'ललकार' सुनाई देने की कसर होती है। 'ताल-से-ताल मिलाओ' इसने सबसे ज्यादा समझा है। चाहे वो ताल विरोध ही क्यों न दर्शाता हो। अनेकता में एकता की मिसाल यह कुत्ते की जात जितनी प्रबलता से दर्शाती है, 'शायद' ऐसी और दूसरी कोई मिसाल नहीं। कोई कुत्ता (लिंग-भेद से भी परे) अपनी 'टेरिटरी' में दुसरे अप्रवासी कुत्ते की इंट्री और दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करता। बिना किसी फतवे के समूचे समूह को इकठ्ठा कर लेता है और जो जंग होती है, उसमे अप्रवासी 'घुसपैठिये' कुत्ते को हार मान कर, देह नुंचवा कर, दुम दबा कर भागना ही पड़ता है। लेकिन देश के रहनुमा 'नो कमेंट्स' से ज्यादा बोलना तक नहीं जानते। सबसे बड़े प्रतिनिधि तो चुप रहना ही बेहतर समझते हैं, डर हो सकता है कि कहीं जाति न बदल जाय, हमें भी 'उनके' (पाकिस्तानियों) जैसा ही बडबोला न समझ लिया जाय। फिल्मों और उपन्यासों का रसिया हूँ, इसलिए एक और फ़िल्मी दृश्य की याद आ गई। राजेश खन्ना की फिल्म 'अपना देश' में तीन नेता (तीनों विलेन) म्युनिसिपल्टी के चुनाव में अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए आपस में लड़ पड़ते हैं। उनकी भों-भों चलती रहती है कि डायरेक्टर ने सड़क पर लड़ते तीन कुत्तों को पर्दे पर दिखा दिया, और हॉल में गूंजती तालियाँ और सीटियाँ साबित करतीं हैं कि - ये पब्लिक है, सब जानती है।(...ये राजेश खाना की ही फिल्म 'रोटी' का गाना है।). फिल्मों की बात है तो और एक बात जोड़ता हूँ। कुत्तों ने मिमिक्री आर्टिस्टों पर भी खूब मेहरबानी की है। उन्हें जब भी धरम-पा जी की नक़ल करनी होती है वे उनकी अंदाजेबयां की नक़ल कर सिर्फ -"कुत्ते!" कहते हैं और सारी तारीफ के हक़दार बन जाते हैं। मशहूर हास्य कलाकार श्री राजू श्रीवास्तव एक कॉमेडी शो में>>> -"मैंने देखा सामने से धर्मेन्द्र जी चले आ रहे हैं! आँखों पर यकीन नहीं हुआ! डरते-डरते उनके पास जा कर पूछे कि सर, आप धर्मेन्द्र जी ही हो ना? कोई मेकअप तो नहीं किया हुआ?' 'वो' पलटे और गुस्से से बोले -"कुत्ते!" (राजू)>>>".....हाँ!हाँ! असली है, असली है!!" कुत्तों में कटखनापन भी अजीब लच्छन हैं। किसी को भी काटना, बेवजह काटना, बेमतलब भौं-भौं इनकी लाइफ स्टाइल है।
इनके सारे बदन में हर वक़्त, बेवक्त की खुजली भी लाज़बाब होती है। तीन टांग से बैलेंस बनाकर एक टांग से बदन खुजाना!_ये नक़ल कोई मिमिक्री आर्टिस्ट करके नहीं दिखाता। कुत्ते को ड्राइविंग नहीं आती फिर भी वो हर गाडी के पीछे भागता है। पकड़ भी लेगा तो आखिर करेगा क्या!? कुत्ते की दुम बड़ी रहस्यमय है! इसके हिलने और दुबकने का मतलब, प्यार,स्नेह का प्रदर्शन तथा डरा-सहमा हुआ माना जाता है। टेढ़ी दुम पर कई प्रश्नोत्तर, और डायलोगबाजी हो चुके है, आगे भी होते ही रहेंगे। जब भी जरूरत होगी किसी के भी व्यवहार की तुलना के लिए कुत्ता सदैव हाज़िर है।
कुत्तों की मेहरबानी को भूलना बेइंसाफी होगी। आज इसे आदमी से ज्यादा इज्ज़त और शोहरत हासिल है। यह अकारण नहीं हो सकता। आदमी ने इंसान बनना छोड़ दिया तो कुत्ते ने अपना लिया। आदमी ने ही कुत्ते को ये अधिकार दे दिया, और अपनी हस्ती को इसके आगे तुच्छ कर लिया। जब पालते हैं तो इंसानों सरीखा इनका नामकरण करते हैं। कोई भी नाम रखिये किसी-न-कसी इंसान के नाम जैसी होगी जिसे जब वो सुनेगा तो खुद को बेईज्ज़त होता महसूस कर ऐतराज़ करेगा। गुस्से में आम ये कहा जाता है कि -'अगर मैं झूठा साबित होऊं तो मेरे नाम पर कुत्ता पाल लेना!' और हकीकतन ये हो भी रहा है। कुत्ते जानेंगे तो फक्र महसूस करेंगे।
कुत्ते की श्रवण शक्ति, गंध सूंघने और पहचानने की शक्ति, उनकी कच्ची नींद और हर आहट पर चौकस-चौकन्ना और उसका फुर्तीलापन निर्विवाद रूप से प्रशंसनीय है। इंसान की फितरत को भी पहचान लेना कुत्तों को और भी विलक्षण प्राणी बना देता है। कुत्ता जिस घर, या दायरे में रहता है, उसे वहाँ नित्य आने-जाने वाले की पहचान हो जाती है। उन सभी में आगंतुकों, जो आते-जाते रहते हैं, और हमेशा मौजूद घर के सदस्यों में से उसे हर किसी से घनिष्ठता नहीं हो जाती। कुत्ता >लालची, खोटी, चापलूस, और बेईमान नीयत वाले को< झट पहचान लेता है और, अपने मालिक की पुचकार और मनाही को नज़रअंदाज कर लगातार उस पर भौंकता रहता है जिस पर कि उसे संदेह होता है। खोटी नीयत वाला व्यक्ति रोज-रोज क्यों न आता-जाता हो कुतवा उसे गरियाये बिना नहीं छोड़ता। एक बात काबिलेगौर है, कुत्ते के ये गुण उसके देहाती, देशी, विदेशी या हाईब्रीड के होने का मोहताज़ नहीं। सभी में यह होता है, सिर्फ उसके इन गुणों को थोडा प्रयास कर उभारने की जरूरत होती है। अगर आप साफ़ दिल के हैं तो वो धीरे-धीरे आपका भी दोस्त बन ही जाएगा।
मेम-साब की गोद की शोभा कुत्ते से और बढ़ जाती है। किसी नौकरानी को इतना अधिकार नहीं कि वो मालकिन के सामने बैठ भी जाय, जबकि कुत्ता मालकिन के साथ नर्म-मुलायम-गर्म बिस्तर पर साथ सोता है। नौकरानी का काम है कुत्ते और उसकी टट्टी को साफ़ करना, उसे नहलाना-धुलाना। मालिक-मालकिन भी कुत्ते से जो प्यार दिखाते हैं उसे देखकर उनके आश्रित-कर्मचारियों को क्षोभ होता है, उन्हें ये हीन भावना डंस लेती है कि उनकी औकात एक कुत्ते से भी गई-बीती है। पर कुछ तो ख़ास है जो सारी दुनिया में महिला-पुरुष, मशहूर या आम, अमीर या गरीब सभी कुत्ता पालते हैं और कई तरह से कई तरीके से उससे अपने स्नेह-लगाव और प्यार का प्रदर्शन करते हैं। खूबसूरसत लड़कियां अपने इस "श्वान-स्नेह" को जिस अंदाज़ में झल्कातीं हैं, कवियों को कई कालजयी कविता रचने की प्रेरणा दे जातीं हैं। धन्य हैं ये देवियाँ और भाग्यशाली हैं वे कुत्ते जिन्हें यूँ परस्पर इतना प्यार होता है। 'लड़की को पटाना हो तो पहले उसके कुत्ते को पटाओ!' कई बार यह सूत्र काम कर भी जाता होगा। इन देवियों के कुत्तों को नहलाने-साफ करने वाला स्टाफ जिस शिद्दत से उसको नहलाता और साफ़ करता है, उसके रहने के महंगे कमरे को साफ़ करता है, देख कर किसी ने कहा कि -'काश ये सेवा तुमने "गौ माता" की की होती तो तुम्हारे सात पुश्त 'तर' जाते।' क्या पता कुत्ते को वो सिर्फ एक जीव जानकर और अपने कार्य को ही अपना कर्म मान कर करता है और खुश है तो वो इसी समय 'तरा' हुआ हो!
धनाढ्य घरों में कुत्ता एक अत्यावश्यक वस्तु है, जिसके बिना धन की बेईज्ज़ती है। कुत्ता दरवानो से ज्यादा चौकस होते हैं, जिनके भूँकने पर ही उनीन्दे दरवान को चेतना आती है और वो लाठी पीटकर,या जोर से चीख-पुकारकर 'अपनी' मुस्तैदी को मुहरबंद करता है। कुत्ता यहाँ भी शहीद हुआ। पर उसे इन सांसारिक मोह माया का कोई भान तक नहीं। उसकी इस मासूम शहादत को दरवान जी अपनी बड़ाई में बदल लेते हैं। अपनी कोताही को यह कह कर जस्टिफाई करते हैं कि -'ई साला आखिर हई काहे वास्ते?' दरवान जी की शिकायत भी बेवजह नहीं है। उनको शिकायत है कि उसका छह महीने का वेतन 'कुत्ते जी' के एक महीने के खर्चे से भी कम है। कुत्ते को रोज हड्डी-बोटी-दूध और स्नान, साफ़-सफाई चाहिए जबकि वो एक साबुन की टिकिया भी तरह-तरह के मोल-भाव कर के खरीद पाता है। कुत्ता कहने पर उसे डांट पड़ती है, बोला जाता है उसे बात करने का शऊर नहीं है। जबकि "वाचडॉग" बोलने से उसकी कोई बेईज्ज़ती नहीं होती। मालिक 'हॉटडॉग' खाता और 'ब्लैकडॉग' पीता है,और मुदित मन से खुद को 'लकीडॉग' समझकर, पसरकर सोया रहता है। वाह रे अंग्रेजी की महिमा!! दरवान रात भर असाधारण मौसम और विपरीत हालात में 'डॉग' साहब के साथ ड्यूटी करता है। कभी भूखा-प्यासा तो कभी बीमार-सा, तो कभी एक-दो प्याले के खुमार-सा। उसके मुख मलीन और भंगिमा सख्त होती है तो लोगों को शिकायत होती है कि साहब आपका दरवान बड़ा अक्खड़ है। पर कुत्ते से सभी प्रसन्न होते हैं, लेकिन पास नहीं जाते। कुत्ता उन्हें अजनबी जान उन्हें भाव नहीं देता उनपर खूब भौंकता है। फिर भी तारीफ़ का पात्र है। जबकि दरवान को निकम्मा और काहिल मान लिया जाता है, उसे ताकीद की जाती है कि आगंतुकों से शिष्टाचार से पेश आये। कुत्ते का क्या है वो तो जानवर है।
अपने पहले, शुरूआती सीज़न के 'कौन बनेगा करोडपति' के किसी एपिसोड में अमित जी कंप्यूटर द्वारा प्रस्तुत एक प्रश्न, तब के प्रतियोगी से पूछते हैं,{जिसका एक्सैक्ट संवाद मुझे याद नहीं}, कि अंतरिक्ष में राकेट के द्वारा सबसे पहले किस जानवर को भेजा गया था! प्रश्न के उत्तर के विकल्पों में से एक विकल्प 'कुता' भी था। जब अमित जी विकल्पों को पढ़ते हैं, तब उन्होंने इस शब्द 'कुत्ता' का उच्चारण किया, और तत्काल बोल पड़े- 'कुत्ता!' _'बोलने से ऐसा लगता है जैसे किसी ने किसी को गाली दी हो!' उत्तर आसन था, सो प्रतियोगी की हामी पर वे कंप्यूटर से विकल्प (A, B, C, D जो भी था),पर ताला लगाने को कहते हैं, ऐसा नहीं कहते कि -'कंप्यूटर महाशय! 'कुत्ते जी' को लॉक किया जाए।' हमारे नेता दुर्दांत आतंकवादी, देश के दुश्मनों को 'ओसामा "जी"' और लश्कर के मुखिया 26/11 के मास्टरमाइंड को 'हाफ़िज़ सईद "साहब"' कहते है, और शर्मिंदा तक नहीं होते। काफी शिष्ट और व्यवहारिक होने का घमंड जो होता है उन्हें! जिनकी तर्कशक्ति की बुद्धि उन्हें प्रेरित करती है यह प्रदर्शित करने का कि हम शत्रु को भी इज्ज़त से पुकारते हैं, भले चाहे वह शत्रु सारे देश की जनता ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का खतरनाक पागल कुत्ते से भी गया-बीता घोर दुश्मन है और देखते ही तत्काल ठौर (on that very spot!) मार गिराने के ही काबिल है।
ईश्वर ने जब कुत्तों की प्रजनन क्षमता बनाई होगी, तभी तत्काल मनुष्यों की बारी आ गई होगी। ईश्वर की लीला ईश्वर ही जानें, पर शायद ईश्वर ने कुत्तों पर रिप्रोडक्टिव सिस्टम फिक्स करने के बाद पता नहीं हाथ धोया था या नहीं, जब वो इस एक्सपेरिमेंट को अंजाम दे रहे होंगे तो (कुत्तों जैसी फितरत पता नहीं कितने प्रतिशत)'मेल' ह्यूमन मेंटल सिस्टम, ब्रेन में कुत्तों वाली फितरत, जरूर घुस गई होगी। जिसका नतीजा प्रत्यक्ष दिखता है। कुत्ते जन्म के एक साल के भीतर ही प्रजनन के लिए चाक-चौबंद तैयार होकर अपने पार्टनर की तलाश में निकल जाते हैं। जन्म के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है उसे याद नहीं रहता कि किसने जन्माया था? किसने जन्म दिया था? भाई-बहन कौन थे? थे भी तो वे आपस में पार्टनर बनेंगे कि नहीं? माँ-बहन सभी इन्हें ही उचित पार्टनर लगते हैं। और उनकी वंशवृद्धि को किसी नैतिकता के पैमाने पर तौल कर नहीं देखा जाता। 'इनका क्या? ये तो जानवर है! मनुष्य की तुलना कुत्तों से क्यों? गाय से हाथी से बन्दर से शेर से या और किसी जानवर से क्यों नहीं!? इसलिए कि भले दुसरे जानवर भी कोई नैतिकता नहीं समझते, पर प्रजनन के लिए इनमे से शीघ्र सक्षम सबसे पहले कुत्ता ही तैयार हो जाता है। कुत्ता ही आपके-हमारे घरों और गलियों में खुले-आम वंश-श्रृंगार करता है, कुत्ते ही झुण्ड में एक साथ मिलकर एक निरीह पर हमला कर निर्दयिता करते हैं। इसके लिए लाइन मारना भी सबसे पहले कुत्ता ही शुरू करता है। आदमी के कुछ नस्ल इसी किस्म के होते हैं। कम उम्र में ही खुद को आजमाने की कोशिश शुरू- कुत्तागिरी है। नदीदों की तरह हर बालिका पर लार टपकाना-कुत्तागिरी है। कामांध होकर बालिकाओं का पीछा करना, उन्हें घूरना, छेड़ना-कुत्तागिरी है। अकेला या झुण्ड में हमला कर किसी बालिका पर ज़ुल्म करना-कुत्तागिरी है। और सुधि आदमीयत वाले इंसानों की बस्ती में ये कतई मंज़ूर नहीं। इसके लिए ईश्वर को भी गरियायेंगे और इन अत्याचारी 'कुत्तों' को भी उचित सबक सिखायेंगे; ऐसे कुत्तों का वंशनाश, बीजनाश आवश्यक है। 'दामिनी' की घटना के बाद क्या 'ये कुत्ते' सुधर गए हैं? क्या कोई और दूसरी बालिका 'इन कुत्तों' की पशुता का शिकार नहीं हुई है? दामिनी के बाद सेम यही अत्याचार होना रूक गया> क्या ऐसी ही और नई वारदातें नहीं हुईं?..._फैसला! अभी तुरंत!! तुरंत फैसला जरूरी है। वर्ना हम गए! किस तरह ये 'मुजरिम कुत्ते' हाफ़िज़ सईद से अलग हैं!?!?
*बिफरा हुआ कुत्ता :>>>
एसएमपी सर के विमल सीरीज के उपन्यास "दमन चक्र" में जब विमल और वेष बदली हुई नीलम पहली बार ओरियंटल की बोर्ड मीटिंग में वहाँ मौजूद बोर्ड के (दादा टाइप) मैनेजिंग डायरेक्टर दाण्डेकर को मिलते हैं तब बाद में नीलम विमल से दाण्डेकर के हुलिए और व्यवहार का हवाला देकर पूछती है कि "वो 'बिफरे हुए कुत्ते' जैसी शक्ल वाला" आदमी अगर फिर भौंका तो?'__यहाँ मेरा इशारा इस बात की तरफ है कि इंसान, महिला या पुरुष, में पहली नज़र में ही ये जान लेने की क्षमता फीड होती है कि सामने वाला बंदा किस किस्म का है। भगवान् ने कमीनी फितरत वाले कुत्ते की जात जैसे गलीज़ आदमी को सचमुच बिफरे हुए कुत्ते जैसी ही कमीनी शक्ल भी दी होती है। आप जब पहली ही बार किसी से मिलते हैं तो मिलते ही आपको ये आभास हो जाता है कि 'मेरी इससे निभने वाली है या नहीं। या 'इसके वजह से प्रॉब्लम हो सकती है!' अगर आप थोड़ी बारीकी, गभीरता और यत्न से अपने बचपन को याद करें तो याद करके बताइये कि जब आपने स्कूल में पहला कदम रक्खा था तो क्या सभी लड़कों से आपकी दोस्ती हो गई थी? _नहीं। आपकी पहली मासूम, सहमी नज़र कक्षा में मौजूद हुजूम में किसी अपने जैसे हमख्याल और प्यारे शख्श की तलाश में होती है। जब वो मिलता है तो आप एक-दुसरे को पसंद कर मित्रता, फिर याराना का रिश्ता स्थापित कर लेते हैं। फिर भी कक्षा में मौजूद हुजूम में आपको वो शक्ल भी दिखाई पड़ती है, जिसके चेहरे से घमंड, और कमीनगी साफ़ झलकती है। वो अपनी नाक के नीचे ही सबको देखना चाहता है। बेवजह सभी से अक्खड़ लहजे में बात करता है, बात-बात पर किसी-न-किसी का कॉलर पकड़ लेता है। वो कक्षा का 'इलेक्टेड मोनिटर' हो-या-न हो, वो मोनिटर पर भी ऐसी ही 'धाक जमा कर' उसे अपने रौब के दायरे में रखने की घटिया कोशिश करता है, और यूँ 'सिंगल आउट' होकर तस्दीकशुदा 'बिफरा हुआ कुत्ता' सिद्ध होता है। ऐसे लोग या तो समाज के असामाजिक तत्व बनते हैं या फिर ज़िन्दगी भर दुर्र-दुर्र झेलते, अवांछित अछूत बन जाते हैं। इनकी ऐसी दुर्भावना तब स्पष्ट और प्रबल हो जाती है, जब आप की सोच को मुहरबंद करती वह बंदा कोई दादागिरी नुमा व्यवहार दायें-बाएं बिखेरता मिलता है। उसकी हर किसी पर हर वक़्त चाबुक ताने रहने की फितरत सहज ही समझ में आ जाती है, कि ये खुद को 'बॉस' समझता है। वजह यही है कि उसे अबतक कोई आइना दिखाने वाला नहीं मिला होता की वो देख ले कि उसकी शकल बिलकुल "बिफरे हुए कुत्ते जैसी" है। और वो कभी भी शांत नहीं रहेगा। उसके आस-पास कभी शांति नहीं रहेगी। उसकी अशांत अवस्था उसे खुद ही ले डूबेगी। ऐसा वहशी समान 'कुत्ता आदमी' कतई सभ्य इंसान नहीं हो सकता। इसीलिए वो किसी का भला चाह ही नहीं सकता। इससे जितना हो सके परहेज जरूरी है। फिर भी वो अपनी फितरत के मुताबिक कभी-न-कभी : यदि आप मौजूद हैं; चुपचाप अपना काम कर रहे हैं; उसकी तरफ आप कोई तवज्जो नहीं देते; जिसे वो अपनी तौहीन समझता है और हमेशा आपको उकसाने वाली कोई हरकत करता है, आपको छेड़ता है, आपको बेईज्ज़त और शरेआम ज़लील करके आपको खुद अपने आगे सरेंडर करने को विवश करता है ऐसी स्थिति में मेरा सवाल है : "आप क्या करेंगे?" ये भी संभव है कि सबकुछ आपकी, मेरी निगाह का धोखा साबित हो; जिसके चांसेज लगभग जीरो ही हैं, पर जब ऐसा साबित होगा तो निश्चय ही मन के मैल मिट जायेंगे, प्रेम-प्यार-दोस्ताना और याराना की जीत होगी। लेकिन ऐसा नहीं होता है तो? अब जबाब दीजिये __ ऐसा आदमी सच्चा पुत्र-पति और पिता, मित्र और सही नागरिक के रोल में खपेगा? निभा पायेंगे इसके साथ? यदि आपका ऐसे लोगों से पाला कभी पड़ा था तो आपने क्या किया? मुझे आकस्मात बदकिस्मती से ऐसे कुत्ते से पाल़ा पड़ जाय तो मुझे क्या करना चाहिए? ध्यान रखियेगा, आपको इससे अकेले ही लड़ना है या भागना है। यहाँ अब आपके अपने इज्ज़त, आन-मान-सम्मान-स्वाभिमान की बाज़ी है। ऐसी हालत में इस कुत्ते का क्या इलाज़ है!?!?!?
कमज़ोर-से-कमज़ोर कुत्ता भी भौंकता है। अनायास भौंकता है। घर के भीतर से ही भौंकता है। सिर्फ उसे किसी दुसरे कुत्ते की 'ललकार' सुनाई देने की कसर होती है। 'ताल-से-ताल मिलाओ' इसने सबसे ज्यादा समझा है। चाहे वो ताल विरोध ही क्यों न दर्शाता हो। अनेकता में एकता की मिसाल यह कुत्ते की जात जितनी प्रबलता से दर्शाती है, 'शायद' ऐसी और दूसरी कोई मिसाल नहीं। कोई कुत्ता (लिंग-भेद से भी परे) अपनी 'टेरिटरी' में दुसरे अप्रवासी कुत्ते की इंट्री और दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करता। बिना किसी फतवे के समूचे समूह को इकठ्ठा कर लेता है और जो जंग होती है, उसमे अप्रवासी 'घुसपैठिये' कुत्ते को हार मान कर, देह नुंचवा कर, दुम दबा कर भागना ही पड़ता है। लेकिन देश के रहनुमा 'नो कमेंट्स' से ज्यादा बोलना तक नहीं जानते। सबसे बड़े प्रतिनिधि तो चुप रहना ही बेहतर समझते हैं, डर हो सकता है कि कहीं जाति न बदल जाय, हमें भी 'उनके' (पाकिस्तानियों) जैसा ही बडबोला न समझ लिया जाय। फिल्मों और उपन्यासों का रसिया हूँ, इसलिए एक और फ़िल्मी दृश्य की याद आ गई। राजेश खन्ना की फिल्म 'अपना देश' में तीन नेता (तीनों विलेन) म्युनिसिपल्टी के चुनाव में अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए आपस में लड़ पड़ते हैं। उनकी भों-भों चलती रहती है कि डायरेक्टर ने सड़क पर लड़ते तीन कुत्तों को पर्दे पर दिखा दिया, और हॉल में गूंजती तालियाँ और सीटियाँ साबित करतीं हैं कि - ये पब्लिक है, सब जानती है।(...ये राजेश खाना की ही फिल्म 'रोटी' का गाना है।). फिल्मों की बात है तो और एक बात जोड़ता हूँ। कुत्तों ने मिमिक्री आर्टिस्टों पर भी खूब मेहरबानी की है। उन्हें जब भी धरम-पा जी की नक़ल करनी होती है वे उनकी अंदाजेबयां की नक़ल कर सिर्फ -"कुत्ते!" कहते हैं और सारी तारीफ के हक़दार बन जाते हैं। मशहूर हास्य कलाकार श्री राजू श्रीवास्तव एक कॉमेडी शो में>>> -"मैंने देखा सामने से धर्मेन्द्र जी चले आ रहे हैं! आँखों पर यकीन नहीं हुआ! डरते-डरते उनके पास जा कर पूछे कि सर, आप धर्मेन्द्र जी ही हो ना? कोई मेकअप तो नहीं किया हुआ?' 'वो' पलटे और गुस्से से बोले -"कुत्ते!" (राजू)>>>".....हाँ!हाँ! असली है, असली है!!" कुत्तों में कटखनापन भी अजीब लच्छन हैं। किसी को भी काटना, बेवजह काटना, बेमतलब भौं-भौं इनकी लाइफ स्टाइल है।
इनके सारे बदन में हर वक़्त, बेवक्त की खुजली भी लाज़बाब होती है। तीन टांग से बैलेंस बनाकर एक टांग से बदन खुजाना!_ये नक़ल कोई मिमिक्री आर्टिस्ट करके नहीं दिखाता। कुत्ते को ड्राइविंग नहीं आती फिर भी वो हर गाडी के पीछे भागता है। पकड़ भी लेगा तो आखिर करेगा क्या!? कुत्ते की दुम बड़ी रहस्यमय है! इसके हिलने और दुबकने का मतलब, प्यार,स्नेह का प्रदर्शन तथा डरा-सहमा हुआ माना जाता है। टेढ़ी दुम पर कई प्रश्नोत्तर, और डायलोगबाजी हो चुके है, आगे भी होते ही रहेंगे। जब भी जरूरत होगी किसी के भी व्यवहार की तुलना के लिए कुत्ता सदैव हाज़िर है।
कुत्तों की मेहरबानी को भूलना बेइंसाफी होगी। आज इसे आदमी से ज्यादा इज्ज़त और शोहरत हासिल है। यह अकारण नहीं हो सकता। आदमी ने इंसान बनना छोड़ दिया तो कुत्ते ने अपना लिया। आदमी ने ही कुत्ते को ये अधिकार दे दिया, और अपनी हस्ती को इसके आगे तुच्छ कर लिया। जब पालते हैं तो इंसानों सरीखा इनका नामकरण करते हैं। कोई भी नाम रखिये किसी-न-कसी इंसान के नाम जैसी होगी जिसे जब वो सुनेगा तो खुद को बेईज्ज़त होता महसूस कर ऐतराज़ करेगा। गुस्से में आम ये कहा जाता है कि -'अगर मैं झूठा साबित होऊं तो मेरे नाम पर कुत्ता पाल लेना!' और हकीकतन ये हो भी रहा है। कुत्ते जानेंगे तो फक्र महसूस करेंगे।
कुत्ते की श्रवण शक्ति, गंध सूंघने और पहचानने की शक्ति, उनकी कच्ची नींद और हर आहट पर चौकस-चौकन्ना और उसका फुर्तीलापन निर्विवाद रूप से प्रशंसनीय है। इंसान की फितरत को भी पहचान लेना कुत्तों को और भी विलक्षण प्राणी बना देता है। कुत्ता जिस घर, या दायरे में रहता है, उसे वहाँ नित्य आने-जाने वाले की पहचान हो जाती है। उन सभी में आगंतुकों, जो आते-जाते रहते हैं, और हमेशा मौजूद घर के सदस्यों में से उसे हर किसी से घनिष्ठता नहीं हो जाती। कुत्ता >लालची, खोटी, चापलूस, और बेईमान नीयत वाले को< झट पहचान लेता है और, अपने मालिक की पुचकार और मनाही को नज़रअंदाज कर लगातार उस पर भौंकता रहता है जिस पर कि उसे संदेह होता है। खोटी नीयत वाला व्यक्ति रोज-रोज क्यों न आता-जाता हो कुतवा उसे गरियाये बिना नहीं छोड़ता। एक बात काबिलेगौर है, कुत्ते के ये गुण उसके देहाती, देशी, विदेशी या हाईब्रीड के होने का मोहताज़ नहीं। सभी में यह होता है, सिर्फ उसके इन गुणों को थोडा प्रयास कर उभारने की जरूरत होती है। अगर आप साफ़ दिल के हैं तो वो धीरे-धीरे आपका भी दोस्त बन ही जाएगा।
मेम-साब की गोद की शोभा कुत्ते से और बढ़ जाती है। किसी नौकरानी को इतना अधिकार नहीं कि वो मालकिन के सामने बैठ भी जाय, जबकि कुत्ता मालकिन के साथ नर्म-मुलायम-गर्म बिस्तर पर साथ सोता है। नौकरानी का काम है कुत्ते और उसकी टट्टी को साफ़ करना, उसे नहलाना-धुलाना। मालिक-मालकिन भी कुत्ते से जो प्यार दिखाते हैं उसे देखकर उनके आश्रित-कर्मचारियों को क्षोभ होता है, उन्हें ये हीन भावना डंस लेती है कि उनकी औकात एक कुत्ते से भी गई-बीती है। पर कुछ तो ख़ास है जो सारी दुनिया में महिला-पुरुष, मशहूर या आम, अमीर या गरीब सभी कुत्ता पालते हैं और कई तरह से कई तरीके से उससे अपने स्नेह-लगाव और प्यार का प्रदर्शन करते हैं। खूबसूरसत लड़कियां अपने इस "श्वान-स्नेह" को जिस अंदाज़ में झल्कातीं हैं, कवियों को कई कालजयी कविता रचने की प्रेरणा दे जातीं हैं। धन्य हैं ये देवियाँ और भाग्यशाली हैं वे कुत्ते जिन्हें यूँ परस्पर इतना प्यार होता है। 'लड़की को पटाना हो तो पहले उसके कुत्ते को पटाओ!' कई बार यह सूत्र काम कर भी जाता होगा। इन देवियों के कुत्तों को नहलाने-साफ करने वाला स्टाफ जिस शिद्दत से उसको नहलाता और साफ़ करता है, उसके रहने के महंगे कमरे को साफ़ करता है, देख कर किसी ने कहा कि -'काश ये सेवा तुमने "गौ माता" की की होती तो तुम्हारे सात पुश्त 'तर' जाते।' क्या पता कुत्ते को वो सिर्फ एक जीव जानकर और अपने कार्य को ही अपना कर्म मान कर करता है और खुश है तो वो इसी समय 'तरा' हुआ हो!
धनाढ्य घरों में कुत्ता एक अत्यावश्यक वस्तु है, जिसके बिना धन की बेईज्ज़ती है। कुत्ता दरवानो से ज्यादा चौकस होते हैं, जिनके भूँकने पर ही उनीन्दे दरवान को चेतना आती है और वो लाठी पीटकर,या जोर से चीख-पुकारकर 'अपनी' मुस्तैदी को मुहरबंद करता है। कुत्ता यहाँ भी शहीद हुआ। पर उसे इन सांसारिक मोह माया का कोई भान तक नहीं। उसकी इस मासूम शहादत को दरवान जी अपनी बड़ाई में बदल लेते हैं। अपनी कोताही को यह कह कर जस्टिफाई करते हैं कि -'ई साला आखिर हई काहे वास्ते?' दरवान जी की शिकायत भी बेवजह नहीं है। उनको शिकायत है कि उसका छह महीने का वेतन 'कुत्ते जी' के एक महीने के खर्चे से भी कम है। कुत्ते को रोज हड्डी-बोटी-दूध और स्नान, साफ़-सफाई चाहिए जबकि वो एक साबुन की टिकिया भी तरह-तरह के मोल-भाव कर के खरीद पाता है। कुत्ता कहने पर उसे डांट पड़ती है, बोला जाता है उसे बात करने का शऊर नहीं है। जबकि "वाचडॉग" बोलने से उसकी कोई बेईज्ज़ती नहीं होती। मालिक 'हॉटडॉग' खाता और 'ब्लैकडॉग' पीता है,और मुदित मन से खुद को 'लकीडॉग' समझकर, पसरकर सोया रहता है। वाह रे अंग्रेजी की महिमा!! दरवान रात भर असाधारण मौसम और विपरीत हालात में 'डॉग' साहब के साथ ड्यूटी करता है। कभी भूखा-प्यासा तो कभी बीमार-सा, तो कभी एक-दो प्याले के खुमार-सा। उसके मुख मलीन और भंगिमा सख्त होती है तो लोगों को शिकायत होती है कि साहब आपका दरवान बड़ा अक्खड़ है। पर कुत्ते से सभी प्रसन्न होते हैं, लेकिन पास नहीं जाते। कुत्ता उन्हें अजनबी जान उन्हें भाव नहीं देता उनपर खूब भौंकता है। फिर भी तारीफ़ का पात्र है। जबकि दरवान को निकम्मा और काहिल मान लिया जाता है, उसे ताकीद की जाती है कि आगंतुकों से शिष्टाचार से पेश आये। कुत्ते का क्या है वो तो जानवर है।
जिन्हें
इस जानवर कुत्ते से स्नेह हो जाता है,
वे उसके लिए वैसे ही चिंतित होते हैं, जैसे अपने किसी अज़ीज़ को मिस करते हैं, छोटा हो तो फ़िक्र करते हैं, कहीं घर से बाहर जाना पड़ता है तो फोन करके उसका हाल-चाल पूछते हैं। 06,दिसंबर`2012 को मलुवा ने पाँच बच्चों को जन्म दिया था। उनमे से दो मेल हैं और दो फीमेल। फीमेल में से एक काले रंग की है, बाकी भूरे हैं। फैसला लेने में बिलकुल देर नहीं हुई कि मलुवा की जगह अब उसकी बेटी काली वाली लेगी। लेकिन इच्छा हुई कि साथ में एक मेल कुत्ते को भी रखा जाय। एक तगड़ा छांट भी लिया गया। पर एक की ही गुंजाइश थी। फिर 'कुत्ते की फितरत' पर भी शंका थी, क्योंकि कुछ 'कुत्ते इंसानों' की तरह कुत्ते को भी नैतिकता और मान-मर्यादा की समझ नहीं होती। फिर एक जोक याद आ गया जिसमे वर्णित कुत्ते के लक्षण से सारी सुधि दुनिया को नफ़रत है। जोक मुझे मेरे प्यारे बड़े भाई सामान भोजपुरी लोक गायक 'व्यास भैया' से सुनने को मिला था, जिनका 'सेन्स ऑफ़ हयूमर', बातों को पेश करने का उनका अन्दाजेबयाँ लाजबाब है; जोक(सीधे शब्दों में)कुछ यूँ है: "एक आदमी को हाइड्रोसिल / hydrosil की बीमारी हो गई। उसने डॉक्टर्स से संपर्क किया तो ट्रांसप्लांट ही निजात बतलाया गया। मरीज़ के राजीनामे के बाद चालु ऑपरेशन के दरम्यान, दुर्भाग्य से, ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंग, भंग (डैमेज) हो गया। डॉक्टर्स में खलबली मच गई। दुसरे अंग की तलाश तक अब ऑपरेशन रोकना संभव नहीं था। छिपाकर कुत्ते का अंग ट्रांसप्लांट कर दिया गया। ऑपरेशन हो गया। मरीज़ के सक्रीय होने के बाद डॉक्टर्स ने उससे उसका हाल पूछा। उसने सिर्फ एक शिकायत की वो ये कि लघुशंका के वक़्त उसकी एक टांग अपने-आप उठ जाती है!! ...खैर,...फिर इनकी दुर्भावना वाली फितरत इनके फीमेल से भिन्न होती है। इनमें संयम नहीं! विचार नहीं! इनमे खूंखार, घातक, पाशविक फितरत होती होगी तभी तो ये 'कुत्ते जैसी हरकत' करते हैं! जो इन्हीं के जैसे सेम कुछ हैवान और वहशी दरिंदों जैसे 'कुत्ते-इंसानों' में भी होने के कारण नफरत,हिकारत,धिक्कार,वहिष्कार,प्रताड़ना, के बाद तुरंत निश्चित मृत्यु दंड="वध" के सौ फ़ीसदी काबिल है। सो हमने कुत्ते की जात से तौबा की, छोड़ आये। कुत्ते की फीमेल को हिंदी में क्या बोला जाता है उसका पूरा भान होने के बाद भी वो शब्द यहाँ लिखने के लिए मेरी अंतर्रात्मा हामी नहीं देती। हमने काली फीमेल को पाल लिया है। इसका नामकरण "ब्लैकि" रखा गया है, किसी को ऐतराज हो तो बता दीजियेगा, कोई और नाम सोचेंगे! मलुवा की विदाई हो गई। उसकी एक बच्ची को एक मित्र ने पाल लिया। बाकी तीन बच्चो सहित मलुवा को मैंने शशि के कार्य स्थल, प्रेट्रोल पंप स्टेशन पर छोड़ दिया। मन को तस्सली थी कि पेट्रोल पंप के बगल में एक लाइन मोटल (ढाबा) है, जी-खा लेगी। जब मैं सपरिवार राँची गया तो मैंने फोन करने की मन में हंसी और शरारत सूझि! मैंने शशि को फोनकर मलुवा और उसके बच्चों का हाल पूछा। लौटने के बाद सभी इक्कठे बैठे हुए थे तो शशि खुद ही मलुवा का समाचार बताने लगा। मैंने उससे जब यह कहा कि मैंने फोन पर मलुवा का समाचार जानबूझकर पूछा था; मैं देखना चाहता था कि वह क्या सोचता है: "भईया तो कभी फोन करके हमर हाल नई पूछ्लई; और मलुवा से केतना प्यार हइ कि स्पेशल फोन करके 'हमरे से' हाल-चाल पुछइत हइ!" _मेरी बात पर खूब ठहाके लगे। शशि और मेरी आँखें भींग आईं।
वे उसके लिए वैसे ही चिंतित होते हैं, जैसे अपने किसी अज़ीज़ को मिस करते हैं, छोटा हो तो फ़िक्र करते हैं, कहीं घर से बाहर जाना पड़ता है तो फोन करके उसका हाल-चाल पूछते हैं। 06,दिसंबर`2012 को मलुवा ने पाँच बच्चों को जन्म दिया था। उनमे से दो मेल हैं और दो फीमेल। फीमेल में से एक काले रंग की है, बाकी भूरे हैं। फैसला लेने में बिलकुल देर नहीं हुई कि मलुवा की जगह अब उसकी बेटी काली वाली लेगी। लेकिन इच्छा हुई कि साथ में एक मेल कुत्ते को भी रखा जाय। एक तगड़ा छांट भी लिया गया। पर एक की ही गुंजाइश थी। फिर 'कुत्ते की फितरत' पर भी शंका थी, क्योंकि कुछ 'कुत्ते इंसानों' की तरह कुत्ते को भी नैतिकता और मान-मर्यादा की समझ नहीं होती। फिर एक जोक याद आ गया जिसमे वर्णित कुत्ते के लक्षण से सारी सुधि दुनिया को नफ़रत है। जोक मुझे मेरे प्यारे बड़े भाई सामान भोजपुरी लोक गायक 'व्यास भैया' से सुनने को मिला था, जिनका 'सेन्स ऑफ़ हयूमर', बातों को पेश करने का उनका अन्दाजेबयाँ लाजबाब है; जोक(सीधे शब्दों में)कुछ यूँ है: "एक आदमी को हाइड्रोसिल / hydrosil की बीमारी हो गई। उसने डॉक्टर्स से संपर्क किया तो ट्रांसप्लांट ही निजात बतलाया गया। मरीज़ के राजीनामे के बाद चालु ऑपरेशन के दरम्यान, दुर्भाग्य से, ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंग, भंग (डैमेज) हो गया। डॉक्टर्स में खलबली मच गई। दुसरे अंग की तलाश तक अब ऑपरेशन रोकना संभव नहीं था। छिपाकर कुत्ते का अंग ट्रांसप्लांट कर दिया गया। ऑपरेशन हो गया। मरीज़ के सक्रीय होने के बाद डॉक्टर्स ने उससे उसका हाल पूछा। उसने सिर्फ एक शिकायत की वो ये कि लघुशंका के वक़्त उसकी एक टांग अपने-आप उठ जाती है!! ...खैर,...फिर इनकी दुर्भावना वाली फितरत इनके फीमेल से भिन्न होती है। इनमें संयम नहीं! विचार नहीं! इनमे खूंखार, घातक, पाशविक फितरत होती होगी तभी तो ये 'कुत्ते जैसी हरकत' करते हैं! जो इन्हीं के जैसे सेम कुछ हैवान और वहशी दरिंदों जैसे 'कुत्ते-इंसानों' में भी होने के कारण नफरत,हिकारत,धिक्कार,वहिष्कार,प्रताड़ना, के बाद तुरंत निश्चित मृत्यु दंड="वध" के सौ फ़ीसदी काबिल है। सो हमने कुत्ते की जात से तौबा की, छोड़ आये। कुत्ते की फीमेल को हिंदी में क्या बोला जाता है उसका पूरा भान होने के बाद भी वो शब्द यहाँ लिखने के लिए मेरी अंतर्रात्मा हामी नहीं देती। हमने काली फीमेल को पाल लिया है। इसका नामकरण "ब्लैकि" रखा गया है, किसी को ऐतराज हो तो बता दीजियेगा, कोई और नाम सोचेंगे! मलुवा की विदाई हो गई। उसकी एक बच्ची को एक मित्र ने पाल लिया। बाकी तीन बच्चो सहित मलुवा को मैंने शशि के कार्य स्थल, प्रेट्रोल पंप स्टेशन पर छोड़ दिया। मन को तस्सली थी कि पेट्रोल पंप के बगल में एक लाइन मोटल (ढाबा) है, जी-खा लेगी। जब मैं सपरिवार राँची गया तो मैंने फोन करने की मन में हंसी और शरारत सूझि! मैंने शशि को फोनकर मलुवा और उसके बच्चों का हाल पूछा। लौटने के बाद सभी इक्कठे बैठे हुए थे तो शशि खुद ही मलुवा का समाचार बताने लगा। मैंने उससे जब यह कहा कि मैंने फोन पर मलुवा का समाचार जानबूझकर पूछा था; मैं देखना चाहता था कि वह क्या सोचता है: "भईया तो कभी फोन करके हमर हाल नई पूछ्लई; और मलुवा से केतना प्यार हइ कि स्पेशल फोन करके 'हमरे से' हाल-चाल पुछइत हइ!" _मेरी बात पर खूब ठहाके लगे। शशि और मेरी आँखें भींग आईं।
अपने पहले, शुरूआती सीज़न के 'कौन बनेगा करोडपति' के किसी एपिसोड में अमित जी कंप्यूटर द्वारा प्रस्तुत एक प्रश्न, तब के प्रतियोगी से पूछते हैं,{जिसका एक्सैक्ट संवाद मुझे याद नहीं}, कि अंतरिक्ष में राकेट के द्वारा सबसे पहले किस जानवर को भेजा गया था! प्रश्न के उत्तर के विकल्पों में से एक विकल्प 'कुता' भी था। जब अमित जी विकल्पों को पढ़ते हैं, तब उन्होंने इस शब्द 'कुत्ता' का उच्चारण किया, और तत्काल बोल पड़े- 'कुत्ता!' _'बोलने से ऐसा लगता है जैसे किसी ने किसी को गाली दी हो!' उत्तर आसन था, सो प्रतियोगी की हामी पर वे कंप्यूटर से विकल्प (A, B, C, D जो भी था),पर ताला लगाने को कहते हैं, ऐसा नहीं कहते कि -'कंप्यूटर महाशय! 'कुत्ते जी' को लॉक किया जाए।' हमारे नेता दुर्दांत आतंकवादी, देश के दुश्मनों को 'ओसामा "जी"' और लश्कर के मुखिया 26/11 के मास्टरमाइंड को 'हाफ़िज़ सईद "साहब"' कहते है, और शर्मिंदा तक नहीं होते। काफी शिष्ट और व्यवहारिक होने का घमंड जो होता है उन्हें! जिनकी तर्कशक्ति की बुद्धि उन्हें प्रेरित करती है यह प्रदर्शित करने का कि हम शत्रु को भी इज्ज़त से पुकारते हैं, भले चाहे वह शत्रु सारे देश की जनता ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का खतरनाक पागल कुत्ते से भी गया-बीता घोर दुश्मन है और देखते ही तत्काल ठौर (on that very spot!) मार गिराने के ही काबिल है।
ईश्वर ने जब कुत्तों की प्रजनन क्षमता बनाई होगी, तभी तत्काल मनुष्यों की बारी आ गई होगी। ईश्वर की लीला ईश्वर ही जानें, पर शायद ईश्वर ने कुत्तों पर रिप्रोडक्टिव सिस्टम फिक्स करने के बाद पता नहीं हाथ धोया था या नहीं, जब वो इस एक्सपेरिमेंट को अंजाम दे रहे होंगे तो (कुत्तों जैसी फितरत पता नहीं कितने प्रतिशत)'मेल' ह्यूमन मेंटल सिस्टम, ब्रेन में कुत्तों वाली फितरत, जरूर घुस गई होगी। जिसका नतीजा प्रत्यक्ष दिखता है। कुत्ते जन्म के एक साल के भीतर ही प्रजनन के लिए चाक-चौबंद तैयार होकर अपने पार्टनर की तलाश में निकल जाते हैं। जन्म के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है उसे याद नहीं रहता कि किसने जन्माया था? किसने जन्म दिया था? भाई-बहन कौन थे? थे भी तो वे आपस में पार्टनर बनेंगे कि नहीं? माँ-बहन सभी इन्हें ही उचित पार्टनर लगते हैं। और उनकी वंशवृद्धि को किसी नैतिकता के पैमाने पर तौल कर नहीं देखा जाता। 'इनका क्या? ये तो जानवर है! मनुष्य की तुलना कुत्तों से क्यों? गाय से हाथी से बन्दर से शेर से या और किसी जानवर से क्यों नहीं!? इसलिए कि भले दुसरे जानवर भी कोई नैतिकता नहीं समझते, पर प्रजनन के लिए इनमे से शीघ्र सक्षम सबसे पहले कुत्ता ही तैयार हो जाता है। कुत्ता ही आपके-हमारे घरों और गलियों में खुले-आम वंश-श्रृंगार करता है, कुत्ते ही झुण्ड में एक साथ मिलकर एक निरीह पर हमला कर निर्दयिता करते हैं। इसके लिए लाइन मारना भी सबसे पहले कुत्ता ही शुरू करता है। आदमी के कुछ नस्ल इसी किस्म के होते हैं। कम उम्र में ही खुद को आजमाने की कोशिश शुरू- कुत्तागिरी है। नदीदों की तरह हर बालिका पर लार टपकाना-कुत्तागिरी है। कामांध होकर बालिकाओं का पीछा करना, उन्हें घूरना, छेड़ना-कुत्तागिरी है। अकेला या झुण्ड में हमला कर किसी बालिका पर ज़ुल्म करना-कुत्तागिरी है। और सुधि आदमीयत वाले इंसानों की बस्ती में ये कतई मंज़ूर नहीं। इसके लिए ईश्वर को भी गरियायेंगे और इन अत्याचारी 'कुत्तों' को भी उचित सबक सिखायेंगे; ऐसे कुत्तों का वंशनाश, बीजनाश आवश्यक है। 'दामिनी' की घटना के बाद क्या 'ये कुत्ते' सुधर गए हैं? क्या कोई और दूसरी बालिका 'इन कुत्तों' की पशुता का शिकार नहीं हुई है? दामिनी के बाद सेम यही अत्याचार होना रूक गया> क्या ऐसी ही और नई वारदातें नहीं हुईं?..._फैसला! अभी तुरंत!! तुरंत फैसला जरूरी है। वर्ना हम गए! किस तरह ये 'मुजरिम कुत्ते' हाफ़िज़ सईद से अलग हैं!?!?
कुत्ते गन्दी जगहों पर भी निर्विकार भाव से घूमते-टहलते हैं, पर साफ़-सुथरी
सड़क से डरते हैं! "अबे! उधर सड़क पर ट्रैफिक में कहाँ जा रहा है, 'आदमी की
मौत' मरना चाहता है क्या!!?" खुले मैदानों से अब खुशबू की जगह बदबू आती है।
कुत्ते आपस में बतियाते हैं-'छेह:! यार हमारा मैला तो इतना नहीं महकता! क्या
अंग्रेज फिर से आ गये?" जबाब:>"अरे ना रे! कोई नेता हगले होई!"
"इनसे तो 'कुत्ते' ही भले!"
मुझसे
पहले भी किसी ने कुत्ते की महिमा पर कुछ कहा होगा। मैंने क्यों ये लिखा
मुझे खुद नहीं मालूम। पर, कुत्ता कथा में और कुछ दिलचस्प सूझेगा तो
इसी-(blog)-पृष्ठ पर जोड़ता जाउंगा।
_श्री .
30/जनवरी/2013 लोहरदगा।............................समय? मलूम नईं जी!