पकिस्तान की आलोचना के बीच अपने देश के भीतर नासूर की तरह पकते,
फलते-फूलते नक्सलियों के द्वारा वीरगति को प्राप्त हमारे एक जांबाज प्रहरी
के शव में जिंदा बम प्लांट करना क्या उस तालिबानी बर्बरता से कम है जिनके
कारण मानवता शर्मसार होती है? इन विचलित कर देने वाली बर्बर घटनाओं के कारण
'दिवंगत "दामिनी" की चीख' कहीं दब नहीं गई? ..........ज़रा सोचिये ...,
क्या कोई सियासत की चालबाजी है या सच में अब आदमी आदमखोर बन गया है? सरकार
की क्षमता नक्सलियों के आगे अगर इतनी ही पंगु है, तो फिर सीमा की सुरक्षा
की सोच कर क्या रूह नहीं काँप जाती? सरकार का यही रवैया रहा तो भगवान् न
करे, हमें काफी दुःख-दंष झेलने पड़ेंगे .....! -यह एक आम आदमी की चीख है
.........कोई सुन रहा भी है या नहीं?
आज देश को हनी सिंह की नहीं सुभद्रा कुमारी चौहान की आवश्यकता है। ........वंदे मातरम !!
_श्री .
आज देश को हनी सिंह की नहीं सुभद्रा कुमारी चौहान की आवश्यकता है। ........वंदे मातरम !!
_श्री .