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Saturday, January 12, 2013

Swami Vivekananda ‎(Today Swami Vivekananda's 150th Birthday) 1863-2013

आज हमारे शहर लोहरदगा में अभूतपूर्व मनभावन दृश्य देखने को मिला। खुद को डॉक्टर से दिखाना था क्योंकि मुझे ठंढ लग जाने के कारण छाती में कफ जम जाने से जब खाँसी उठती है तो थमने का नाम नहीं लेती। कई रातों से ठीक से सो भी नहीं पाता, जोर से हंसने या साँस लेने पर खूब जोर से खाँसी होने लगती है, हाल बे-हाल हो जाता है।
मोटरबाइक से डॉक्टर के यहाँ जाने को निकला तो घर के निकट थाना टोली मस्जिद मोड़ के पास भारी जाम लगा मिला। कुछ सोच कर मैंने शॉर्टकट रास्ता पकड़ा और एक गली से होते न्यू रोड जाना चाहा तो मेनका सिनेमा, देवी मंडप के पास गली के मुहाने पर भी भारी जाम मिला। यहाँ जाम का कारण पता चला। मौका था पूज्यनीय स्वामी विवेकनन्द जी के 150वीं जन्मोत्सव का। विभिन्न स्कूलों के बच्चों की सामूहिक जुलूस और झाँकी गुजर रही थी। अपने-अपने स्कूल-यूनिफार्म में सजे बच्चे-बच्चियाँ हाथों में तख्ती और बैनर लिए स्वामी जी के सम्मान में जयघोष करते जा रहे थे। जुलूस की लम्बाई और छात्र-छात्राओं की संख्या बेमिसाल थी। जुलूस इतनी लम्बी थी कि थाना टोली से लेकर न्यू रोड होते स्टेडियम तक पहुँच रही थी। जुलूस के सम्मान में हर सड़क हर मोड़ पर ट्रैफिक थम गया था। पर कहीं कोई जल्दीबाजी या बेचैनी नहीं बल्कि उत्सुकता, प्रसन्नता और गर्व से तमतमाते चेहरे रोमांच पैदा कर रहे थे। खूबसूरत झाँकी में कोई बालक विवेकानंद बना मुस्कान बिखेर रहा था।  कोई स्वामी जी द्वारा शिकागो में दिए लोकप्रिय भाषण के अनुवाद को पढ़कर सूना रहा था। वाह! मन झूम गया। झाँकी के पीछे चलते बच्चों की लम्बी लाइन संयमित और उत्साहित हो नारे लगा रहे थे। उनके शिक्षकगण जुलूस को भली-भाँती कंडक्ट कर रहे थे। इस समय मैंने अपने कैमरा को बहुत मिस किया। फिर मोबाइल की याद आई जिसमे छोटी MgP की सही पर कैमरा है। मैं भीड़ में थोडा-थोडा कर किसी तरह न्यू रोड पर पहुंचा। वहाँ का नज़ारा और भी मनभावन था। जुलूस को निकल जाने देने के लिए सड़क के हर तरफ हर प्रकार के दुपहिये-चौपहिये वाहनों की असंख्य कतार लगी हुई थी जिसे बड़ी मुस्तैदी से टैफिक पुलिस संभाले हुए जुलूस को बढ़ते जाने का निर्देश दे रही थी। मैंने फिर कोशिश की। और खिसकते-खिसकते न्यू रोड स्थित अपने बाबूजी द्वारा निर्मित हमारे मकान पर जा पहुंचा। मैंने तुरंत मोटरबाइक को मकान के ओटे पर चढ़ा कर खड़ा किया और सीढियां फलांगते सबसे ऊपर खुले छत पर जा कर देखा तो कई तरह के पेड़ों और दुसरे मकानों की ओट हो जाने के कारण दृश्य बाधित लगा। तभी सामने की छत पर से भईया "व्यास जी" की पत्नी "भउजी" ने मुझे देखा और अपने छत पर आने का इशारा किया। पर भीड़ के कारण यह हो न सका, और झाँकी करीब पहुँच चुकी थी। मैं एक मंजिल नीचे उतरा और सड़क के सामने वाले बरामदे पर पहुंचा। वहां काफी लोग जमा थे। वहां से मैंने जुलूस और झाँकी की कुछ तस्वीरें लीं, पर मुझे तसल्ली नहीं हुई। मैं नीचे उतर कर अपनी बाइक के पास खड़ा हो कर तस्वीरें लेने लगा। पर मोबाइल ने ठीक से परफोर्म नहीं किया। दुसरे जेब से दूसरा मोबाइल निकाला और उसी के कमज़ोर अधमरे कैमरे से जितना सुलभ हो सका तस्वीरें लीं। पर जो नज़ारा मैं अपनी आँखों से देख सका उसके लिए "खाँसी बाबा" की जय!!











जुलूस के निकल जाने और ट्रैफिक के सामान्य होने पर मैंने पाया कि अब डॉक्टर के यहाँ न जा सकूँगा। सो, खांसते हुए घर वापस .......  


_श्री .